मुगल, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और विरजी वोरा- यह स्टोरी उस दौर की है जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने व्यापारिक प्रसार के लिए पुर्तगालियों, डचों तथा फ्रांसीसियों से संघर्षरत थी। इसके अतिरिक्त मुगल दरबार से इस कम्पनी को देश में कहीं भी व्यापार करने की छूट मिल चुकी थी। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी अब भारत के विभिन्न इलाकों सूरत, मुम्बई, मद्रास और कोलकाता से 20 मील दूर हुगली और कासिम बाजार में फैक्ट्री स्थापित कर व्यवसाय शुरू कर चुकी थी। यह अंग्रेज कम्पनी भारत से रेशम, गुड़ का शीरा, कपड़ा (विशेषकर ढाका का मलमल) और खनिज इंग्लैण्ड ले जाती थी। हांलाकि कम्पनी ने अब धीरे-धीरे भारत के राजनीतिक मामलों में भी रूचि लेना शुरू कर दिया था। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से जंग जीतने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने व्यापारिक एकाधिकार के लिए औरंगज़ेब से भी युद्ध लड़ने की कोशिश की। परन्तु इस जंग में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी को करारी शिकस्त मिली।
चूंकि ईस्ट इंडिया कम्पनी का सामना इस बार एक ऐसे मुगल बादशाह से था जिसके साम्राज्य की सीमाएं काबुल से ढाका तक और कश्मीर से पॉन्डिचेरी तक 40 लाख वर्ग किलोमीटर के रक़बे में फ़ैली हुई थीं। ऐसे में ताकतवर बादशाह औरंगजेब के साथ हुई जंग में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थिति यह हो गई कि सितंबर 1690 में दो अंग्रेज दूतों जॉर्ज वेल्डन और अबराम नॉआर को हाथ बांधकर मुगल दरबार में पेश किया गया। इन दोनों को फर्श पर लेटकर औरंगजेब से माफी मांगनी पड़ी थी। काफी मिन्नतों के बाद डेढ़ लाख रुपए हर्जाने के साथ औरंगजेब ने ईस्ट इंडिया कम्पनी का व्यापारिक लाइसेंस फिर से बहाल कर दिया।
इन्हीं दिनों एक अमीर भारतीय व्यापारी ऐसा था जो फारस की खाड़ी से लेकर लाल सागर और दक्षिण पूर्व एशिया के बंदरगाहों तक एकछत्र राज कर रहा था। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब के पिता मुगल सम्राट शाहजहां को भी उस भारतीय व्यापारी ने चार अरबी घोड़े उपहार में दिए थे। उसके पास इतना पैसा था कि दक्कन अभियान के समय बादशाह औरंगजेब ने भी उससे कर्ज लिया था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के फैक्ट्री रिकॉर्ड्स के मुताबिक, भारत का यह व्यापारी उन दिनों दुनिया का सबसे अमीर शख्स था। जी हां, दोस्तों मैं भारतीय व्यापारियों के शहंशाह विरजी वोरा की बात कर रहा हूं। इस स्टोरी में हम आपको ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के सबसे बड़े फाइनेन्सर विरजी वोरा के बारे में बताने जा रहें जिसने अंग्रेजों को एक-दो बार नहीं बल्कि कई बार कर्ज दिए।
विरजी वोरा का संक्षिप्त जीवन परिचय- गुजरात राज्य की व्यापारिक नगरी सूरत में जन्मे विरजी वोरा ने साल 1619 से 1670 के बीच व्यापार के क्षेत्र में धूम मचा रखी थी। बॉम्बे अभिलेखागार तथा सूरत, बड़ौदा से प्राप्त जैन दस्तावेजों के अनुसार, विरजी वोरा एक जैन थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के दस्तावेजों के मुताबिक, विरजी वोरा की सम्पति तकरीबन 8 मिलियन डॉलर थी, आज की तारीख में यह रकम खरबों रुपए में होगी। इतना ही नहीं, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के फैक्ट्री रिकॉर्ड्स में विरजी वोरा को दुनिया का सबसे अमीर व्यापारी बताया गया। सूरत के इस अमीर व्यापारी विरजी वोरा को फ्रांसीसी अधिकारी ‘वोरा ब्रदर्स’ तथा अंग्रेज अफसर ‘मर्चेंट प्रिंस’ कहकर बुलाते थे। मंदिर निर्माण तथा सामूहिक तीर्थयात्रा का आयोजन करने जैसे धार्मिक मामलों में गहरी रूचि लेने के कारण विरजी वोरा को ‘संघपति’ अथवा ‘संघवी’ की भी उपाधि मिली थी।
बता दें कि मुगल काल में सूरत एक ऐसा समृद्ध बन्दरगाह था जहां 84 से अधिक देशों के जहाज़ लंगर डालते थे। इसी सूरत बंन्दरगाह पर व्यापारिक एकाधिकार रखने वाले विरजी वोरा का मसालों, बुलियन, मूंगा, हाथीदांत, सीसा और अफीम सहित कई अन्य व्यापारिक वस्तुओं पर एकछत्र प्रभुत्व कायम था। इसके अतिरिक्त फारस की खाड़ी, लाल सागर और दक्षिण पूर्व एशिया के बंदरगाहों पर विरजी वोरा की तूती बोलती थी। थोक व्यापार, धन उधार देने तथा बैंकिंग के क्षेत्र में भी विरजी वोरा का सिक्का चलता था।
छत्रपति शिवाजी की सूरत लूट और विरजी वोरा- छत्रपति शिवाजी महाराज ने सन 1664 ई. में मुगलों के व्यापारिक नगर सूरत पर सैन्य आक्रमण कर तकरीबन छह दिनों तक लूटपाट की। कहा जाता है कि इस दौरान शिवाजी को सूरत से अकूत सम्पत्ति हासिल हुई जिसमें उन्हें विरजी वोरा के पास से हीरे, मोती, माणिक के अतिरिक्त बड़ी मात्रा में धन मिला था। एक डच चश्मदीद वॉलक्वार्ड इवरसन के मुताबिक, छत्रपति शिवाजी को व्यापारी विरजी वोरा के पास से 6 बैरल सोना, मोती, रत्न और कीमती सामान मिले थे।
वहीं विरजी वोरा के एक फ्रांसीसी मित्र जीन डी थेवेनोट ने लिखा है कि “शिवाजी की सूरत लूट से विरजी वोरा को तकरीबन पचास हजार यूरो की आर्थिक क्षति पहुंची थी।” छत्रपति शिवाजी ने 1670 में भी सूरत को लूटा जिसमें विरजी वोरा को एक बार फिर से वित्तीय क्षति हुई थी लेकिन डच तथा अंग्रेजों के रिकॉर्ड में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हांलाकि 27 नवम्बर 1664 को लिखे गए एक अंग्रेजी पत्र से पता चलता है कि छत्रपति शिवाजी ने सूरत शहर के दो सबसे बड़े व्यापारियों विरजी वोरा और हाजी जाहिद बेग से सबकुछ नहीं छीना बल्कि उनके पास इतनी सम्पत्ति रहने दी थी ताकि वे अपना व्यापार जारी रख सकें। साल 1670 के बाद ब्रिटिश रिकॉर्ड में विरजी वोरा का उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा माना जाता है कि 1675 में विरजी वोरा की मृत्यु हो गई।
विरजी वोरा से बार-बार कर्ज लेती थी अंग्रेज कम्पनी - विरजी वोरा के एजेन्ट मुगल राजधानी आगरा से नील, बुरहानपुर से कपड़े, दक्कन में गोलकुंडा से काली मिर्च और इलायची तथा गोवा व मालाबार तट से गरम मसाले थोक भाव में खरीदते थे। गुजरात राज्य में अहमदाबाद, वडोदरा और भड़ौच आदि कई विभिन्न शहरों में विरजी वोरा के एजेन्ट फैले हुए थे। अंग्रेज और डच व्यापारी सूरत से आगरा धन भेजने के लिए विरजी वोरा प्रदत्त हुंडियों (वर्तमान में डिमांड ड्राफ्ट) का उपयोग करते थे। डच ईस्ट इंडिया कम्पनी और ब्रिटिश इंडिया कम्पनी के सबसे बड़े फाइनेन्सर विरजी वोरा कभी-कभी कुछ अंग्रेजों को निजी व्यापार के लिए भी कर्ज देते थे। विरजी वोरा द्वारा अंग्रेजों को निजी व्यापार के लिए पैसा उधार देने पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के लंदन स्थित मुख्यालय में निन्दा की गई थी।
ब्रिटिश रिकॉर्ड के मुताबिक, जहां एक तरफ विरजी वोरा व्यापार के क्षेत्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रतिस्पर्धी थे वहीं दूसरी तरफ वह कम्पनी के सबसे बड़े ग्राहक भी थे। इस अंग्रेज कम्पनी को जब भी धन की कमी महसूस हुई, विरजी वोरा ने इसे रुपए उधार दिए। ब्रिटिश दस्तावजों के मुताबिक सन 1619 में 25,000 रुपए, 1630 ई. में 50000 रुपए, 1635 में 20,000 रुपए, 1636 में 30,000 रुपए, 1636 में 2 लाख रुपए तथा 1642 में जब कम्पनी की वित्तीय हालत खराब हुई तो एक बार फिर से एक लाख रुपए उधार दिए। 27 जनवरी 1642 को लंदन मुख्यालय को लिखे गए एक पत्र में विरजी वोरा को ईस्ट इंडिया कंपनी का ‘सबसे बड़ा ऋणदाता’ बताया गया है। इसके ठीक पांच साल बाद यानि 1647 में विरजी वोरा ने अंग्रेज कम्पनी को गोलकुंडा में 1.17 फीसदी प्रति माह की ब्याज दर पर 6000 पाउण्ड उधार दिए। इसके अतिरिक्त विरजी वोरा ने अंग्रेजों की सूरत फैक्ट्री की अध्यक्ष मेरी को 100,000 रुपए दिए थे। साल 1669 में अंग्रेजों ने भारतीय व्यापारियों के एक ग्रुप से 400,000 रुपए उधार लिए, जिनमें विरजी वोरा एक महत्वपूर्ण भागीदार थे।
गौरतलब है कि भारत के ही अमीर व्यापारियों से आर्थिक मदद लेकर अपना व्यापार चलाने वाली ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने न केवल भारतीय व्यापारियों को घुटने पर ला दिया बल्कि कभी मुगलों के सामने गिड़गिड़ाने वाले इन अंग्रेजों ने कालान्तर में मुगलों को ही कैदकर पूरे देश पर कब्जा कर लिया।
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