पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित स्वर्ण मंदिर सिख धर्म का सबसे पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। सिख धर्म के लोगों में यह पावन मंदिर श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब और स्वर्ण गुरुद्वारा के नाम से भी विख्यात है। अमृत सरोवर के मध्य स्थित स्वर्ण मंदिर का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है। अमृत सरोवर का निर्माण सिखों के चौथे गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। गुरु राम दास ने तकरीबन 638 ‘शबद’ लिखे जो गुरु ग्रंथ साहिब के भजनों का लगभग 10 प्रतिशत है। गुरु अर्जनदेव जी (सिखों के पांचवें गुरु) ने अमृत सरोवर का विस्तार और सौंदर्यीकरण करवाया था। ऐसी मान्यता है कि अमृत सरोवर में स्नान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है तथा भक्त की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि स्वर्ण मंदिर को कई बार विध्वंस का सामना करना पड़ा लेकिन भक्ति और आस्था रखने वाले सिखों ने इस मंदिर को दोबारा बनवा दिया। अफगानी लुटेरे अहमद शाह अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर को दो बार क्षति पहुंचाई। इस स्टोरी में हम आपको यह बताएंगे आखिर में अफगानी आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर का विध्वंस क्यों करवाया था।
अहमदशाह अब्दाली का पंजाब पर आक्रमण
साल 1747 ई. में नादिरशाह का वध कर दिए जाने पर अहमदशाह अब्दाली कन्धार का स्वतंत्र शासक बन बैठा। इसके बाद उसने काबुल को जीतकर आधुनिक अफगान राज्य की नींव डाली। उसने पचास हजार की सेना एकत्र कर नादिरशाह के वैध उत्तराधिकारी के रूप में पश्चिमी पंजाब पर अपना दावा किया। यही वजह थी कि अब्दाली ने पंजाब पर कई आक्रमण किए।
1748 में अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण किया लेकिन वह असफल रहा। हांलाकि वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था। इसके अगले वर्ष यानि 1749 ई. में उसने पुन: आक्रमण किया और पंजाब के गवर्नर मुईनुलमुल्क को पराजित किया हांलाकि 14000 रुपए वार्षिक कर देने की शर्त पर वह लौट गया। लेकिन नियमित रूप से रुपया नहीं मिलने पर उसने 1752 ई. में पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया।
नादिरशाह की ही तरह दोबारा लूटे जाने के भय से मुगल बादशाह अहमदशाह ने उसे पंजाब तथा सिन्ध का प्रदेश दे दिया। चूंकि 1753 में मुईनुलमुल्क की मृत्यु हो गई और पंजाब में अव्यवस्था फैल गई। मुगलों ने मुल्तान के सूबेदार अदीना बेग को लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। ऐसे में अहमदशाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बताया और नवम्बर 1756 ई. में वह आक्रमण कर भारतीय सीमाओं में प्रवेश कर गया और दिल्ली तक पंजाब को बिना किसी रूकावट के रौंदता हुआ चला गया।
अहमदशाह अब्दाली की लूट पर सिख जत्थों का धावा
साल 1757 के जनवरी महीने में दिल्ली पहुंचकर अहमद शाह अब्दाली ने भी वही खेल दोहराया जो नादिरशाह के समय देखने को मिला था। तकरीबन एक महीने तक दिल्ली में रहकर उसने न केवल कत्लेआम किया बल्कि जमकर लूटपाट की। इस लूट के दौरान अहमदशाह अब्दाली को करोड़ों की धनराशि हाथ लगी।
अहमदशाह अब्दाली ने स्वदेश लौटने से पूर्व अपने बेटे तैमूर खान को पंजाब का गवर्नर नियुक्त कर दिया। जब अहमदशाह अब्दाली लूट से मिली करोड़ों का माल, 28000 हाथी, घोड़े, बैलगाड़ियां इत्यादि लेकर वापस जा रहा था तभी सिख जत्थों ने पीछे से आक्रमण करके अब्दाली की लूट का एक बड़ा हिस्सा लूट लिया।
इसलिए अहमदशाह ने इस बात का बदला उसने अमृतसर में लिया। सर्वप्रथम अब्दाली ने स्वर्ण मंदिर के अमृत सरोवर के पवित्र कुंड में वध किए गए जानवरों की अतड़ियां डलवा दी और मिट्टी इत्यादि से भरवा दिया इसके साथ ही मुख्य मंदिर को भी गिरवा दिया। बावजूद इसके सिख जत्थों ने सिन्धु नदी तक अब्दाली का पीछा किया व उसे लूटते रहे।
स्वर्ण मंदिर की अपवित्रता का प्रतिशोध
अमृतसर की इस घटना से सिखों में रोष था, विशेषकर बाबा दीप सिंह इस घटना का बदला मंदिर का पुनर्निर्माण करके पूरा करना चाहते थे। मिसल शहीद तरना दल के प्रमुख बाबा दीप सिंह ने गुरु गोबिंद सिंह के करीबी साथी के रूप में घुड़सवारी तथा हथियार चलाने का कौशल सीखने में काफी समय बिताया था। इतना ही नहीं, कुरुक्षेत्र के पास बाबा दीप सिंह के नेतृत्व में सिख जत्थों ने अहमदशाह अब्दाली के लूट के माल पर छापा भी मारा था।
75 वर्षीय बाबा दीप सिंह जब अमृतसर के लिए कूच किए तब उनके साथ 500 लोग थे। बाबा दीप सिंह जब तरन-तारन से अमृतसर पहुंचे उस वक्त उनके साथ तकरीबन 5000 सिख थे जिनके हाथों में तलवार, भाले तथा गंडासे थे। युद्ध के मैदान में प्रवेश करने से पहले ही उन्होंने कहा था कि ‘मेरा सिर दरबार साहिब में गिरे।’ अमृतसर में अहमदशाह अब्दाली के जनरल जहांन खान और उसकी प्रशिक्षित सेनाओं के साथ हुए युद्ध में बाबा दीप सिंह की हत्या कर दी गई। स्वर्ण मंदिर में बाबा दीप सिंह ने जहां अपनी अंतिम सांस ली वह स्थान आज भी मंदिर के भीतर एक पवित्र स्थल के रूप में चिह्नित है। हांलाकि स्वर्ण मंदिर का अनादर एक बार फिर से किया गया।
बारूद से स्वर्ण मंदिर का विध्वंस
यह सिलसिला यूं ही नहीं खत्म हुआ, साल 1761 में अहमदशाह अब्दाली ने एक बार फिर से 60 हजार अफगानों तथा पठानों की विशाल सेना के साथ पंजाब में प्रवेश किया। इस बार अपने देश वापस लौटते समय अब्दाली ने 1762 ई. में स्वर्ण मंदिर को दोबारा क्षति पहुंचाई, उसने स्वर्ण मंदिर की नींव में बारूद रखवाकर पूरी इमारत को ही नष्ट करवा दिया।
अहमदशाह अब्दाली की इस घृणित कार्रवाई के बाद स्वर्ण मंदिर विखण्डित अवस्था में पड़ा रहा। तत्पश्चात आहलूवालिया मिस्ल के मिस्लदार जस्सा सिंह अहलुवालिया ने सबसे अमीर प्रान्त सरहिन्द की विजय से प्राप्त धनराशि से अप्रैल, 1765 में स्वर्ण मंदिर का नए सिरे से निर्माण करवाया। कालान्तर में महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण मंदिर के बाहरी हिस्से पर सोने की परत चढ़वाई।
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