मुहम्मद गोरी के भारत पर आक्रमण के दौरान उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने विलक्षण सैन्य प्रतिभा का परिचय दिया था। पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ तराईन युद्ध के दौरान ऐबक निरन्तर गोरी के साथ बना रहा। कुतुबुद्दीन ऐबक के पराक्रम से प्रभावित होकर मुहम्मद गोरी ने उसे भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया। मुहम्मद गोरी के गजनी लौट जाने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने स्वामी के द्वारा जीते हुए प्रदेशों को न केवल तुर्कों के आधिपत्य में रखा बल्कि राज्य विस्तार करना भी शुरू किया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने राज्य विस्तार के क्रम में अन्हिलवाड़, कालिंजर, महोबा, खजुराहो, कालपी और बदायूं में भयंकर मारकाट मचाई थी। उसने चंदावर के जंग में न केवल कन्नौज के शासक जयचन्द को पराजित किया बल्कि मेवाड़ पर भी आक्रमण किया।
मेवाड़ के शासक कर्णसिंह की संरक्षिका राजमाता कर्मदेवी
रावल शाखा की शुरूआत करने वाले क्षेमसिंह का पुत्र सामंत सिंह 1172 ई. में मेवाड़ का शासक बना। सामंत सिंह का विवाह अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज द्वितीय की बहिन पृथ्वीबाई के साथ हुआ। जब नाड़ोल के चौहान शासक कीर्तिपाल और पृथ्वीराज द्वितीय के बीच अनबन हो गई तब कीर्तिपाल ने मेवाड़ पर आक्रमण कर सामंत सिंह को पराजित कर दिया और मेवाड़ राज्य छीन लिया। सामंत सिंह ने 1178 ई. में वागड़ जाकर अपना नया राज्य बनाया। जिसकी नई राजधानी वटपदक बड़ौदा थी। क्षेम सिंह के छोटे पुत्र कुमार सिंह ने 1179 ई. में कीर्तिपाल को हराकर मेवाड़ पर अधिकार कर लिया।
1192 ई. में मुहम्मद गोरी के विरूद्ध पृथ्वीराज चौहान की तरफ से सामंत सिंह ने तराईन के द्वितीय युद्ध में हिस्सा लिया था और वीरगति को प्राप्त हुए। सामंत सिंह की मृत्यु के पश्चात उनका अल्पवयस्क पुत्र कर्ण सिंह मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। सामंत सिंह की पहली रानी पृथा उनके साथ ही सती हो गई जबकि दूसरी रानी कर्मदेवी अल्पवयस्क शासक कर्णसिंह की संरक्षिका बनी।
साहसी और वीर रानी कर्मदेवी अपने नाबालिग बेटे कर्णसिंह को सिंहासन पर बैठाकर स्वयं मेवाड़ का राजकाज भलीभांति संभाल रही थी। सामंत सिंह मृत्यु और नाबालिग शासक कर्णसिंह की कमजोर स्थिति को भांपकर कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक विशाल तुर्क सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा किया जाने वाला यह औचक आक्रमण मेवाड़ी राजपूतों के बीच चिन्ता का विषय बन गया क्योंकि युद्ध में उनकी सेना का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं दिख रहा था। तभी मेवाड़ की राजमाता कर्मदेवी ने अपने मेवाड़ी सैनिकों से कहा-“ यह सच है कि अभी कर्णसिंह बहुत छोटा है, महाराणा सामंत सिंह भी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन मैं अभी जीवित हूं। आप सभी युद्ध की तैयारी कीजिए, सेना का नेतृत्व मैं स्वयं करूंगी। कर्मदेवी के रहते मेवाड़ को कमजोर नहीं समझें।”
राजमाता कर्मदेवी के सैन्य संचालन से मेवाड़ के राजपूतों में साहस का संचार हो गया। युद्ध के लिए उन्मत राजपूत योद्धा ने आगे बढ़कर कुतुबुद्दीन ऐबक का सामना करने का निर्णय लिया। राजमाता कर्मदेवी ने मेवाड़ी सेना का नेतृत्व करते हुए आमेर के निकट तुर्की सेना को पराजित किया। इस प्रकार राजपूत रानी कर्मदेवी ने मेवाड़ के गौरव की रक्षा की।