दोस्तों, साल 2015 में भारतीय सिनेमा में एक ब्लॉकबस्टर फिल्म आई थी ‘बाहुबली’। इस फिल्म में माहिष्मती साम्राज्य के सिंहासन के लिए संघर्ष दिखाया गया है। अब आप सोच रहें होंगे कि यदि सिनेमा में दिखाया गया है तो निश्चित रूप से माहिष्मती साम्राज्य काल्पनिक ही होगा। जी नहीं, आपको बता दें कि भारतीय इतिहास में माहिष्मती 86 हजार साल पुरानी नगरी है। माहिष्मती साम्राज्य पर एक से बढ़कर एक बाहुबली राजाओं ने शासन किया। वर्तमान में माहिष्मती कहां स्थित है, माहिष्मती साम्राज्य की समृद्धि कैसी थी तथा माहिष्मती साम्राज्य पर शासन करने वाले बाहुबली राजाओं का इतिहास क्या है। यह सब जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।
भारतीय इतिहास में माहिष्मती का वर्णन
मध्य प्रदेश के इन्दौर जिले में स्थित महेश्वर नामक स्थान की पहचान माहिष्मती के रूप में की जाती है। एस. एन. मजूमदार, एस के दीक्षित, मि. विल्फर्ड एवं स्व. करंदीकर जैसे नामचीन इतिहासकारों ने भी वर्तमान महेश्वर को माहिष्मती बताया है। महर्षि पतंजलि ने भी उल्लेख किया है कि उज्जयनी से यात्रा प्रारम्भ करने वाले यात्री का सूर्योदय माहिष्मती नगर में होता था।
बुद्धकाल में यह चेदि जनपद की राजधानी था। बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि यह दक्षिण अवंति जनपद का मुख्य नगर था। विन्ध्य पर्वत के दक्षिण भाग में मौजूद माहिष्मती नगर नर्मदा नदी तट पर स्थित था, इसी वजह से व्यापार और वाणिज्य की दृष्टि से भी इस नगर की विशेष महत्ता थी।
कालिदास ने 'रघुवंश' में भी नर्मदा नदी तट पर स्थित माहिष्मती नगर के वैभव का वर्णन किया है। यहां तक कि सातवीं शती में चीनी यात्री ह्वनेसांग ने माहिष्मती नगर का उल्लेख किया है। ह्वेनसांग के अनुसार, माहिष्मती का शासक ब्राह्मण था। माहिष्मती संस्कृत शिक्षा का केन्द्र था। कहा जाता है कि आदिगुरू शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले मण्डन मिश्र तथा उनकी पत्नी भारती भी यहीं के निवासी थे।
बता दें कि महेश्वर के समीप ही, नर्मदा नदी के तट पर स्थित नगर मंडलेश्वर में आदि गुरु शंकराचार्य और मंडन मिश्र के मध्य विश्व प्रसिद्द शास्त्रार्थ हुआ था। यही कारण है कि महेश्वर के निकट 'मंडलेश्वर' नामक बस्ती मंडन मिश्र के नाम पर विख्यात है।
बाहुबली राजा सहस्रबाहु (कार्तवीर्य अर्जुन )
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माहिष्मती के सबसे बाहुबली राजा का नाम कार्तवीर्य अर्जुन था, जिसे सहस्रबाहु अथवा सहस्रार्जुन के नाम से भी जाना जाता है। सहस्रबाहु का उल्लेख ऋग्वेद, वायु पुराण, नारद पुराण, वाल्मीकि रामायण तथा महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है।
इतना ही नहीं, उदयपुर, जोधपुर, कोटा, बीकानेर, भरतपुर, अलवर के अतिरिक्त मैसूर के हिन्दू राजाओं के शाही पुस्तकालयों में कार्तवीर्य अर्जुन की पूजा पर आधारित लगभग 100 पांडुलिपियाँ पाई गई हैं।
ऋग्वेद के अनुसार, हैहय वंशीय चक्रवर्ती राजा सहस्रबाहु ने नाग प्रमुख कर्कोटक नाग को परास्त कर माहिष्मती नगर पर विजय प्राप्त किया था। वहीं एक अन्य एक पौराणिक अनुश्रुति के मुताबिक, माहिष्मती साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रवंशी नरेश का नाम महिष्मानस था और कार्तवीर्य अर्जुन यानि सहस्रबाहु इन्हीं के वंश में पैदा हुआ था।
भगवान दत्तात्रेय का परमभक्त सहस्रबाहु हजार भुजाओं का स्वामी था तथा उसके पास शक्तिशाली सुदर्शन चक्र भी था। माहिष्मती के चक्रवती राजा सहस्त्रबाहु ने त्रिलोक विजेता लंकापति रावण को दो बार पराजित करके उसे अपने कैद में रखा था।
पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार सहस्रबाहु अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी में अठखेलियां कर रहा था, इस दौरान उसने अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा नदी के तीव्र जल प्रवाह को रोक दिया फिर अचानक नर्मदा का पानी छोड़ दिया, ऐसे में वहां से कुछ ही दूरी पर शिव की आराधना में लीन लंकापति रावण नर्मदा नदी के तीव्र प्रवाह में बह गया। इसके बाद वह सहस्रबाहु को दंड देने के लिए पहुंचा। फिर क्या था, सहस्रबाहु और त्रिलोक विजयी रावण में भयंकर युद्ध हुआ परन्तु हजार भुजाओं वाले सहस्रबाहु ने रावण को कीड़े-मकोड़े की भांति पकड़कर कैदखाने में डाल दिया। बाद रावण के पितामह महर्षि पुलत्स के आग्रह पर सहस्रबाहु ने उसे मुक्त कर दिया।
वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री रामचरित मानस के प्रथम सोपान बालकाण्ड में भगवान परशुराम द्वारा सहस्रबाहु के वध का उल्लेख मिलता है। वायु पुराण के मुताबिक, सहस्रबाहु के पुत्रों ने जब जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी तब भगवान परशुराम ने अपने फरसे से सहस्रबाहु की हजार भुजाएं काट दी और उसे मार डाला, इसके बाद भगवान शिव के भक्त रावण को सहस्रबाहु के कैद से मुक्त कराया था।
महायोद्धा सहदेव की माहिष्मती विजय
हस्तिनापुर नरेश पांडु की पत्नी माद्री से पैदा हुए जुड़वा पुत्रों में से एक थे सहदेव। त्रिकालदर्शी सहदेव परशु अस्त्र के माहिर योद्धा थे। अपने ज्ञान और कौशल के दम पर सहेदव ने कुरूक्षेत्र में महत्वपूर्ण फैसले लिए और पांडवों की रणनीति को मजबूत बनाया। महाभारत युद्ध के दौरान सहदेव ने गान्धार नरेश शकुनि का वध किया था। महाभारत युद्ध में सहदेव के रथ पर हंस का ध्वज लहराता था।
महाकाव्य महाभारत के दूसरे अध्याय सभा पर्व में इस बात का उल्लेख मिलता है कि महायोद्धा सहदेव ने एक भीषण युद्ध के पश्चात माहिष्मती के राजा नील को परास्त करके उससे ‘कर’ वसूला था। कौरवों की ओर से लड़ने वाला माहिष्ती का राजा नील महाभारत युद्ध में मारा गया था।
अहिल्याबाई होल्कर का प्राण प्रिय स्थान था महेश्वर (माहिष्मती)
भारत वर्ष के प्रख्यात तीर्थस्थलों पर मंदिर, घाट, बांध, कुएं तथा बावड़ियों का निर्माण करवाने वाली इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर साल 1765 के बाद से पवित्र स्थल महेश्वर (माहिष्मती) में ही रहने लगी थीं। महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर स्थित नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर अनेक मंदिरों और घाटों का निर्माण करवाया।
नर्मदा नदी के तट पर स्थित महेश्वर किले को अहिल्या किला भी कहा जाता है। दरअसल राजपूत, मराठा और मुगल वास्तुशैली में निर्मित इस विख्यात किले की कल्पना अहिल्याबाई होल्कर ने की थी। महेश्वर किले का निर्माण कृष्णाबाई होल्कर ने अपनी सास अहिल्याबाई होल्कर की स्मृति में 17वीं शताब्दी में करवाया था।
नर्मदा नदी के तट पर महारानी अहिल्याबाई के साथ ही होल्कर वंश के कई नरेशों की छतरियां बनी हैं। अहिल्याबाई होल्कर की छतरी का निर्माण उनकी बेटी कृष्णाबाई होल्कर ने करवाया था। अहिल्याबाई होल्कर की छतरी की डिजाइन जोधपुर के मंडोर किले में मौजूद छतरियों की तरह है।
महेश्वर यानि माहिष्मती में अहिल्याबाई फोर्ट के अतिरिक्त मंडलेश्वर महेश्वर, राजवाड़ा महेश्वर,जलेश्वर मंदिर महेश्वर, नर्मदा घाट महेश्वर, पंडरीनाथ मंदिर महेश्वर, खरगोन महेश्वर और अहिल्येश्वर मंदिर महेश्वर आदि बेहद दर्शनीय स्थल हैं।
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