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Who says Akbar was great?

कौन कहता है अकबर महान था?

ब्रिटिश इतिहासकार विसेन्ट ​आ​र्थर स्मिथ और लेनपूल के अ​तिरिक्त तकरीबन अधिकांश इतिहासकारों ने भारतीय शासकों में अकबर को सबसे महान बताया है। राजस्व और शासन से जुड़े नवीन और उदार सिद्धान्तों के प्रतिपादन के साथ ही मुगल वंश को स्थायित्व प्रदान करने के कारण अकबर को भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के महान शासकों में स्थान प्रदान किया गया है। परन्तु अकबर के कुछ ऐसे काले सच भी हैं जो उसकी महानता पर मजबूती के साथ प्रश्नचिह्न खड़ा करते हैं क्योंकि महज नीतियों और सिद्धान्तों की वजह से किसी को महान नहीं कहा जा सकता है। मुगल बादशाह अकबर के चरित्र की उन खामियों को जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

1- अकबर के हरम में 5000 खूबसूरत महिलाएं

अबुल फजल अपनी प्रसिद्ध कृति ‘अकबरनामा’ में लिखता है कि “मुगल बादशाह अकबर के हरम में दुनिया के कई देशों से लाई गई खूबसूरत महिलाएं और दासियां थी​ जिनकी संख्या तकरीबन पांच हजार थी।” इस तथ्य की पुष्टि अकबर का इमाम तथा दरबारी इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूंनी भी अपनी कृति ‘मुन्तखब-उत-तवारीख’ में करता है।

अकबर के हरम में किसी गैर मर्द को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। हरम में रहने वाली महिलाओं की सुरक्षा के लिए किन्नरों की नियुक्ति की जाती थी जो तीर-तलवार चलाने में माहिर होते थे। हरम में प्रवेश करने वाली महिला कभी बाहर नहीं निकल पाती थी, उसकी अर्थी ही हरम से बाहर आती थी।

अकबर खुदारोज (प्रमोद दिवस) के नाम पर खूबसूरत महिलाओं के चयन के लिए एक सामूहिक कार्यक्रम आयोजित करवाता था। खुदारोज का असली मकसद महज सुन्दर स्त्रीयों को हरम के लिए चुनना था। इतना ही नहीं, मुगल बादशाह अकबर सुन्दर महिलाओं का अपहरण करवाकर उन्हें अपने हरम में शामिल करवाता था। इस बारे में अकबर ने स्वयं कहा है- “यदि मेरी बुद्धिमत्ता पहले ही जागृत हो जाती तो मैं किसी भी स्त्री का अपहरण कर अपने हरम में नहीं लाता।”

2- अकबर के पत्नियों की संख्या 300

इतिहासकारों के मुताबिक, अकबर के पत्नियों और रखैलों की संख्या 300 के करीब थी। हांलाकि इनमें से सभी को शाही अधिकार नहीं मिले थे। अकबर ने 14 साल की उम्र में 9 साल की रूकैया बेगम से निकाह किया था। अकबर ने अपने संरक्षक एवं गुरू बैरम खान की विधवा सलीमा बेगम से विवाह कर लिया था। एक खूबसूरत महिला बीबी दौलत शाद भी अकबर की बेगम थी जिनके पिता की सटीक जानकारी नहीं मिलती है परन्तु कुछ इतिहासकारों के मुताबिक बीबी दौलत शाद के पिता का नाम मुबारक शाह खानदेश था।

आमेर की कछवाहा राजकुमारी हरखा बाई से अकबर की प्रेम कहानी जगजाहिर है। हरखा बाई का पूरा नाम मरियम उज्मानी जोधा बाई था। हांलाकि यह भी कोई प्रेम विवाह नहीं था बल्कि एक राजनीतिक समझौता था जो राजा भारमल और अकबर के बीच हुआ था। अकबर से विवाह के बाद हरखा बाई कभी आमेर वापस नहीं गईं।

बीकानेर के शासक राव कल्याणमल ने भी अपनी पुत्री की शादी अकबर से की थी। यही नहीं, भाटी-जैसलमेर के महारावल हरराज सिंह ने अपनी पुत्री राजकुमारी नाथी बाई का विवाह अकबर से किया था। अकबर की अन्य बेगमों के नाम कुछ इस प्रकार है- क़सीमा बानु, भक्करी बेगम, गौहर उन्निसा, आयशा सुल्तान बेगम, सुल्तान बेगम, मासूम सुल्तान बेगम, गुलरुख बेगम, महम बेगम, बीबी मुबारका, दिलदार बेगम, रायख बेगम, गुलनार आगा बेगम आदि।

3- गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर अकबर की कुदृष्टि

गोंडवाना क्षेत्र पर दलपत शाह का प्रभुत्व था। रानी दुर्गावती से विवाह के सात वर्ष पश्चात ही दलपत शाह का निधन हो गया। ऐसे में रानी दुर्गावती ने गोडवाना का शासन अपने ​हा​थों में ले लिया। रानी दुर्गावती का एक 5 वर्षीय पुत्र भी था जिसका नाम नारायण था। रानी दुर्गावती ने अपने 16 साल के शासन में एक कुशल प्रशासक की छवि निर्मित की थी। शेर के शिकार के लिए विख्यात रानी दुर्गावती अत्यंत खूबसूरत भी थी। मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने अकबर के समक्ष रानी दुर्गावती के सौन्दर्य की खूब तारीफ की और गोंडवाना पर हमले के लिए उकसाया। अन्य राजपूत रानियों की तरह अकबर रानी दुर्गावती को भी अपने रनिवास में शामिल करना चाहता था।

अकबर द्वारा गोंडवाना पर हमले का एक दूसरा कारण यह भी था कि पुरगढ़ा के राजा की 16 वर्षीय पुत्री अत्यन्त सुन्दरी थी, जिसका विवाह रानी दुर्गावती के 18 वर्षीय पुत्र नारायण के साथ हुआ था। चूंकि अकबर ने उत्तरी भारत के सभी रजवाड़ों को आदेश दे रखा था कि वे अपनी कन्याओं के डोले आगरा भेजें। ऐसे में पुरगढ़ा के राजा ने अपनी पुत्री का विवाह गोंडवाना की राजधानी गढ़कटंग में ही सम्पन्न करवाया था। इसके बाद अकबर को जैसे ही सूचना मिली कि पुरगढ़ा की खूबसूरत राजकुमारी गोंडवाना पहुंच चुकी है, उसने कड़ा के सूबेदार आसफ खां को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया।

साल 1564 में अकबर के आदेश के बाद मुगल सूबेदार आसफ खां 50 हजार तीव्रगामी घुड़सवारों के साथ गोंडवाना पर टूट पड़ा। पहले हमले में रानी दुर्गावती ने अपने 18 वर्षीय बेटे नारायण के साथ घोड़े पर सवार होकर इतना तीव्र हमला किया कि मुगल सेना में भगदड़ मच गई। इसके बाद आसफ खां ने शांति प्रस्ताव भेजा जिसे रानी दुर्गावती ने ठुकरा दिया। कुछ दिनों बाद आसफ खां को दूसरे हमले में भी ​करारी शिकस्त मिली।

तत्पश्चात आसफ खां ने तीसरी बार आक्रमण किया। इस बार रानी दुर्गावती अपने प्रिय हाथी सरमन पर सवार होकर युद्ध के लिए आई। इस हमले में रानी दुर्गावती के पुत्र नारायण ने सैकड़ों मुगल सैनिकों का मारकर वीरग​ति को प्राप्त की। युद्ध के दौरान रानी दुर्गावती ने अनुभव किया कि उन्हें मारने नहीं बल्कि बंदी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तब उन्होंने अपनी ही कटार छाती में उतार कर आत्महत्या कर ली। रानी दुर्गावती की मृत्यु के पश्चात उनकी 18 वर्षीय बहन कमलावती और पुरगढ़ा की 16 वर्षीय राजकुमारी (रानी की पुत्रवधू) को बलपूर्वक कैदकर अकबर के हरम में डाल दिया गया।

अकबर को महान बताने वाला अंग्रेज इतिहासकार विसेन्ट आर्थर स्मिथ भी लिखता है कि “अकबर का इतने श्रेष्ठ चरित्र वाली रानी पर चढ़ाई करना एक कोरा आक्रमण था। रानी ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया था जिससे अकबर को उचित ठहराया जा सके।”

4- चित्तौड़ नरसंहार - 30000 राजपूतों का कत्ल

साल 1567 में 25 वर्षीय अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। मुगल सेना द्वारा चित्तौड़ किले की घेराबंदी के दौरान राणा उदय सिंह अपने सरदारों की सलाह पर किले से बाहर सुरक्षित निकलकर जंगलों में चला गया। चित्तौड़ किले की रक्षा का उत्तरदायित्व सरदार जयमल को सौंपा गया था। तकरीबन पांच महीने की घेराबंदी के बावजूद भी मुगलों को सफलता हाथ नहीं लगी थी। एक रात जब जयमल चित्तौड़ किले की मरम्मत करवा रहा था तभी अकबर ने उसे अपनी बन्दूक से निशाना बनाया जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया और उसकी मृत्यु हो गई।

इसके बाद उसी रात में ही राजपूत स्त्रियों ने जौहर कर लिया और प्रात:काल फतहसिंह (फत्ता) के नेतृत्व में राजपूतों ने मुगलों पर आक्रमण कर दिया। हांलाकि इस युद्ध में राजपूतों की शिकस्त हुई, इसके बाद हाथी पर सवार होकर अकबर ने 300 हाथियों के साथ चित्तौड़ किले में प्रवेश किया। चित्तौड़ किले के अन्दर आठ हजार राजपूत सैनिकों के अलावा 40 हजार आम लोग भी थे।

अकबर ने किले में प्रवेश करते ही नरसंहार का आदेश दिया। इस हत्याकाण्ड में 30 हजार राजपूतों का कत्ल कर दिया गया। चित्तौड़ नरसंहार अकबर के नाम पर एक बड़ा धब्बा है जिससे धोने के लिए उसने आगरा किले के द्वार पर जयमल और फतहसिंह की हाथी पर बैठी हुई मू​र्तियां बनवाईं।

5- पृथ्वीसिंह राठौड़ की पत्नी किरण देवी की घटना

मुगल बादशाह अकबर ने अपने पिता हुमायूं की तर्ज पर ही आगरा के किले में नौरोज के पर्व पर मीना बाजार लगवाने की शुरूआत की। आगरा किले के परिसर में तकरीबन पांच से आठ दिनों के लिए मीना बाजार लगता था। मीना बाजार की सबसे बड़ी शर्त यह थी कि मुगल सेना के अधिकारक्षेत्र वाले इस बाजार में केवल शाही परिवार की महिलाएं अर्थात मनसबदारों की पत्नियां, अथवा राजपूत रानियां ही दुकान लगाती थीं। दुकादानदारी के वक्त मीना बाजार में बाहरी मर्दों का प्रवेश वर्जित था। केवल मुगल बादशाह ​अथवा शहजादे ही मीना बाजार में जा सकते थे।

कुछ विद्वानों का कहना है कि मीनाबाजार मुगल बादशाह अकबर की अय्याशी का अड्डा था। कहा जाता है कि मीना बाजार में दुकान लगाने वाली खूबसूरत महिलाओं को बादशाह अकबर की कामवासना का शिकार बनना पड़ता था। इसी तथ्य से जुड़ी एक तस्वीर बीकानेर के जूनागढ़ फोर्ट में लगी है जो प्रत्यक्षरूप से मुगल बादशाह अकबर के चरित्र हनन से जुड़ी है।

यह घटना उन दिनों की है जब बीकानेर के राव कल्याणमल की अधेड़ पत्नी मीना बाजार में दुकान लगाती थी। किन्तु राव कल्याणमल के परिवार की सुन्दर और जवान महिलाएं मीना बाजार में कभी नहीं आई थीं। वैसे भी राव कल्याणमल ने अपनी बेटी की शादी अकबर से की थी। ऐसे में अकबर ने राव कल्याणमल से शिकायत की कि आपके परिवार की युवा महिलाएं एक दिन भी मीना बाजार में नहीं आई हैं, यह ठीक नहीं है।

ऐसे में विवश होकर रावकल्याणमल ने अपने बड़े बेटे रायसिंह राठौड़ की पत्नी को दो ​दासियों के साथ मीना बाजार में भेजने का निर्णय लिया। रायसिंह की पत्नी मीना बाजार की गति​विधियों से परिचित थीं। ऐसे में वह रोने लगीं तभी रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीसिंह की पत्नी किरण देवी (महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह की बेटी) एक तीखी कटारी अपने जूड़े में खोसते हुए बाहर आई और बोली भाभी सा! आप अकेले नहीं मरेंगी। यह सिसोदिया की बेटी भी आपका साथ देगी। 

अकबर को जैसे ही पता चला कि आज मीना बाजार में राव कल्याणमल की दोनों बहुएं आई हैं, खुशी से उछल पड़ा। उसने देखा कि जिस सिसोदिया वंश ने उसके सामने कभी सिर नहीं झुकाया, उसी सिसोदिया वंश की बेटी मीना बाजार में आ चुकी है। रानी किरण देवी के सौन्दर्य पर मोहित होकर अकबर ने एक कनीज से सूचना भिजवाई कि बीकानेर वाली बेगम साहिबा अपनी भाभियों को याद कर रही हैं। इसके बाद किरण देवी ने रायसिंह की पत्नी से कहा कि भाभी सा! आप यहीं रूकें। कोई भी जीते जी मेरे शरीर को नहीं पा सकेगा। मीना बाजार से आगे निकलकर किरण देवी जैसे ही महल की तरफ बढ़ीं, पूरा क्षेत्र सुनसान था। शराब के नशे में धुत अकबर अचानक किरण देवी के सामने आकर खड़ा हो गया।

अब किरण देवी के समक्ष दो ही विकल्प थे या तो अकबर के सामने आत्मसमर्पण कर दें या फिर आत्महत्या कर लें। परन्तु किरण देवी क्षणमात्र में अपना निर्णय ​बदलते हुए शेरनी की भांति नशे में धूत अकबर पर टूट पड़ीं और अकबर को जमीन पर पटक दिया। अकबर जैसे ही जमीन पर गिरा, किरण देवी ने अपने जूड़े से कटार निकालकर उसके सीने की तरफ बढ़ाया। इतने में अकबर ने कहा- हे! देवी मुझे माफ करों, ऐसा पापकर्म मैं अब कभी नहीं करूंगा।

किरण देवी ने सोचा ​कि यदि मैं अकबर पर यह कटार चला देती हूं तो अकबर के दरबार में नियुक्त मेरा पति मारा जाएगा। इसलिए किरण देवी ने अकबर के सीने पर कटा रखकर कहा-कुरान की कसम खाओ कि आज के बाद किसी भी महिला के साथ ऐसी हरकत नहीं करोगे। इस बारे में ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल टॉड ने लिखा है कि इस घटना के बाद से मीना बाजार लगना बंद हो गया। 

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