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Eight stupas are built at the Ashta Mahasthana related to the life of Lord Buddha

भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े ‘अष्ट महास्थान’ जहां बने हैं आठ स्तूप

ईसा पूर्व छठीं शताब्दी के नास्तिक सम्प्रदाय के आचार्यों में गौतम बुद्ध का नाम सर्वप्रमुख है। महात्मा बुद्ध ने जिस धर्म का प्रवर्तन किया वह कालान्तर में अन्तर्राष्ट्रीय धर्म बन गया। यदि उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का मूल्यांकन किया जाए तो वह भारत में जन्म लेने वाले महानतम व्यक्ति थे।

भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े आठ महत्वपूर्ण स्थानों को बौद्ध ग्रन्थों मेंअष्ट महास्थान कहा गया है। ये स्थान हैं - 1. लुम्बिनी 2. बोधगया  3. सारनाथ 4. श्रावस्ती 5. संकिसा 6. राजगीर  7. वैशाली 8. कुशीनगर। गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं की स्मृति में इन सभी 8 स्थानों पर स्तूप बने हुए हैं जिन्हें उद्देशिका स्तूप की श्रेणी में रखा गया है। ऐसे में अष्ट महास्थान पर बने आठ स्तूपों की जानकारी के लिए इस स्टोरी को जरूर पढ़ें।

1. लुम्बिनी - शांति स्तूप

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु से 10 किलोमीटर पूर्व में लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में 563 ई. पू. में हुआ था। भगवान बुद्ध के जन्मस्थान लुम्बिनी मठ क्षेत्र के निकट शांति स्तूप बना हुआ है।

इस शांति स्तूप का निर्माण जापान के बौद्धों ने तकरीबन 10 लाख अमेरिकी डालर (तकरीबन 8 करोड़ 72 लाख 53 हजार रुपए) की लागत से करवाया था। शांति स्तूप में स्थापित भगवान बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा उनके जन्म के समय की मुद्रा को दर्शाती है। सफेद रंग के विश्व शांति स्तूप से सम्पूर्ण लुम्बिनी का मनोरम दृश्य नजर आता है।

2. बोधगया - महाबोधि स्तूप

राजकुमार सिद्धार्थ ने अथक परिश्रम एवं घोर तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में बोधगया में वैशाख पूर्णिमा की एक रात पीपल वृक्ष के नीचे पुनपुन नदी तट ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।

बिहार की राजधानी पटना से 115 किमी. दूर बोधगया में जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, वहां एक बौद्ध मंदिर निर्मित है जिसे बौद्ध अनुयायीमहाबोधि स्तूपअथवा महाबोधि मंदिर कहते हैं। बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर दुनियाभर के बौद्धों के लिए सबसे पवित्र और पूजनीय तीर्थस्थल है।

बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक ने तकरीबन 260 ईसा पूर्व में करवाया था। वर्तमान मंदिर पाँचवीं या छठी शताब्दी का है। गुप्त काल के उत्तरार्ध में बना वर्तमान महाबोधि मंदिर पूरी तरह से ईंट में निर्मित है जो भारत के सबसे पुराने बौद्ध मंदिरों में से एक है।

3. सारनाथ - धमेख स्तूप

बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध वाराणसी स्थित सारनाथ (ऋषिपत्तनम अथवा मृगदाव) आए। सारनाथ में उन्होंने पांच ब्राह्मण संन्यासियों- कौंडिन्य, अस्साजी, भद्दिया, वप्पा और महानामा को अपना प्रथम उपदेश दिया जिसे बौद्ध ग्रन्थों में धर्मचक्रप्रवर्तन नाम से जाना जाता है।

बौद्ध संघ में प्रवेश सर्वप्रथम सारनाथ से ही प्रारम्भ हुआ। वाराणसी स्थित सारनाथ का धमेख स्तूप भगवान बुद्ध के आठ महास्थलों में से एक है। धमेख स्तूप में भगवान बुद्ध के अवशेष रखे हुए हैं। धमेख स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने 249 ईसा पूर्व में करवाया था। ईंट,रोड़ी और पत्थरों से निर्मित धमेख स्तूप के निचले तल में शानदार फूलों की नक्काशी देखते ही बनती है।

4. श्रावस्ती- अंगुलिमाल स्तूप

भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए थे। यहां बुद्ध ने सर्वाधिक इक्कीस वास किए। श्रावस्ती में एक कुख्यात डाकू था जो लोगों का वध कर देता था और उनकी उंगलियों की माला पहनता था, इसलिए लोग उसे अंगुलिमाल डाकू कहते थे। भगवान बुद्ध जब श्रावस्ती आए तो उन्होंने अंगुलिमाल से मुलाकात की, तत्पश्चात भगवान बुद्ध की शिक्षा एवं करूणा से प्रभावित होकर खूंखार डाकू अंगुलिमाल संत (बौद्ध भिक्षु) बन गया।

श्रावस्ती के सबसे पवित्र स्थलों में से एक अंगुलिमाल स्तूप केवल स्मारक नहीं, अपितु करुणा,दया और आंतरिक परिवर्तन की अद्भुत गाथा है। यह वही स्थान है जहां भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित होकर कुख्यात डाकू अंगुलिमाल सत्य और ​अहिंसा के मार्ग पर चल पड़ा। अंगूलिमाल स्तूप की सबसे प्राचीन संरचना कुषाण काल की है। सीढ़ियों से सुसज्जित यह स्तूप एक आयताकार चबूतरे पर निर्मित है।

5. संकिसा - संकिसा स्तूप

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के बसंतपुर गांव में स्थित संकिसा महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि संकिसा वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध अपनी मां को धर्म की शिक्षा देने के बाद स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरे थे।

गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तकरीबन 300 वर्ष बाद सम्राट अशोक संकिसा आए थे और यहां अशोक स्तंभ का निर्माण करवाया जिसके शीर्ष पर हाथी की मूर्ति बनी हुई है। सम्राट अशोक ने स्वर्ग से बुद्ध के अवतरण की स्मृति में एक स्तूप और एक मंदिर भी बनवाया। वर्तमान में संकिसा स्तूप के खंडहर अभी भी मौजूद हैं।

6. राजगीर - विश्व शांति स्तूप

बिहार राज्य के नालंदा ज़िले में स्थित राजगीर कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। प्राचीन इतिहास में इस शहर को राजगृह के नाम से जाना जाता है। राजगृह में भगवान बुद्ध ने कई वर्षाकाल व्यतीत किए। राजगीर स्थित गृद्धकूट पर्वत पर भगवान बुद्ध ने कई उपदेश दिए थे। राजगृह के वेणुवन में मगध सम्राट बिम्बिसार ने भगवान बुद्ध को वन विहार (भिक्षुओं के रहने का स्थान) दान में दिया था। महात्मा बुद्ध के महा​परिनिर्वाण के बाद राजगृह स्थित सप्तपर्णी गुफा में पहली बौद्ध संगीति (परिषद) आयोजित की गई थी।

बिहार के नालंदा जिले में राजगीर की पहाड़ियों पर स्थित विश्व शांति स्तूप 120 फीट ऊंचा है, जिसका व्यास कुल 103 फीट है। विश्व शांति स्तूप के चारों दिशाओं में भगवान बुद्ध की चार स्वर्णजड़ित मूर्तियां स्थापित हैं, जो उनके जीवन की चार महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाती हैं। स्तूप के पास एक छोटा जापानी बौद्ध मंदिर भी है जहां विश्व शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।

7. वैशाली - अवशेष स्तूप

वैशाली में भगवान बुद्ध ने कई बार प्रवास किया था। वैशाली की नगरवधू आम्रपाली ने यहीं भगवान बुद्ध की शरण प्राप्त की और बौद्ध भिक्षुणी बनकर अपना आम्रवन विहार दान में दिया। तथागत बुद्ध ने वैशाली में ही अपने परिनिर्वाण (मृत्यु) की घोषणा की थी। भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद 383 ईसा पूर्व में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन भी हुआ था।

बिहार के वैशाली जिले में स्थित अवशेष स्तूप में भगवान बुद्ध के वास्तविक अस्थि-अवशेष सुरक्षित हैं। लिच्छवी नरेश ने बुद्ध के अस्थि अवशेषों को रखने के लिए ईंट और मिट्टी से इस स्तूप का निर्माण करवाया था। अवशेष स्तूप की निर्माण तिथि तकरीबन 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व बताई गई है। साल 2010 में अवशेष स्तूप को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों की सूची में ​शामिल किया।

8. कुशीनगर - परिनिर्वाण स्तूप

महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम चरण में हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा पहुंचे। जहां 483 ईसा पूर्व में 80 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गई। इस घटना को बौद्ध परम्परा में महापरिनिर्वाण कहा गया है। अपनी मृत्यु से पूर्व भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए कहा था- “सभी सांघातिक वस्तुओं का विनाश होता है, अपनी मुक्ति के लिए उत्साहपूर्वक प्रयास करो।

भगवान बुद्ध के महा​परिनिर्वाण स्थल कुशीनगर में एक बौद्ध मंदिर बना हुआ है जिसे परिनिर्वाण स्तूप कहा जाता है। इस मंदिर में उत्तर दिशा की ओर सिर करके दाहिनी तरफ लेटी हुई भगवान बुद्ध की तकरीबन 6 मीटर लंबी प्रतिमा मौजूद है। महापरिनिर्वाण मंदिर के दर्शनार्थ पूरी दुनिया से हजारों पर्यटक और तीर्थयात्री हर साल भारी संख्या में आते हैं।

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