
पूर्वांचल के बलिया जिले की पहचान आज भी चन्द्रशेखर से की जाती है। भारतीय राजनीति में चन्द्रशेखर उस कद्दावर शख्स का नाम है जिसने पहले कभी कोई सरकारी पद नहीं संभाला और सीधे प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। सियासी गलियारे में श्री चन्द्रशेखर का औरा ऐसा था जिनकी कद्र प्रत्येक राजनेता करता था।
श्री चन्द्रशेखर की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह स्वयं अपने लिए कभी वोट नहीं मागते थे। चुनावों के दौरान वह जनसभाएं करते तथा अपनी बात जनता के समक्ष पुरजोर ढंग से रखते थे। चन्द्रशेखर के समर्थक ही जनता के बीच जाकर उनके लिए वोट मांगते थे। चुनाव के दौरान श्री चन्द्रशेखर के पक्ष में उठने वाली लहर उनके जीत का कारण बनती थी।
साल 1995 में ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार’ से सम्मानित श्री चन्द्रशेखर संसद में जब कभी विवादास्पद मुद्दों पर बोलते या हस्तक्षेप करते थे तो पूरा सदन शांत होकर बड़े ध्यान से सुनता था। श्री चन्द्रशेखर साल 1977 से लेकर मृत्युपर्यन्त (साल 2007) तक संसदीय क्षेत्र बलिया से आठ बार सांसद रहे।
बिना किसी राजनीतिक स्वार्थ के देश की ज्वलंत समस्याओं का मुद्दा उठाने वाले इस युवा तुर्क को साल 1984 में एकमात्र चुनावी हार का सामना करना पड़ा। बता दें कि देश की जनता में युवा तुर्क, बलिया के बाबू साहब, अध्यक्ष जी तथा अपनों के बीच ‘दाढ़ी’ के नाम से विख्यात श्री चन्द्रशेखर की यह पहली और अंतिम चुनावी हार थी।
अब आपका यह सोचना बिल्कुल लाजिमी है कि आखिर में किस वजह से बलिया की जनता ने अपने लाडले श्री चन्द्रशेखर को 1984 ई. के लोकसभा चुनाव में करारी हार का स्वाद चखने पर मजबूर कर दिया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में थे चन्द्रशेखर
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर साल 1984 में जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके हथियारबंद साथियों को स्वर्ण मंदिर परिसर से बाहर निकालने के लिए भारतीय सेना ने कठोर कार्रवाई की थी। इस सैन्य कार्रवाई को इंडियन आर्मी ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ नाम दिया। इस सैन्य कार्रवाई में जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत हो गई थी।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सेना के टैंकों ने स्वर्ण मंदिर पर कम से कम 80 गोले बरसाए थे। इस सैन्य कार्रवाई के दौरान इंडियन आर्मी के 83 सैनिकों की मौत हुई थी और 248 सैनिक घायल हुए थे। जबकि 492 अन्य लोगों के मौत की पुष्टि हुई। इसके अतिरिक्त तकरीबन 1500 लोगों को हिरासत में लिया गया था।
स्वर्ण मंदिर पर की गई सैन्य कार्रवाई से भारत ही नहीं अपितु दुनियाभर के सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुईं। ऐसा माना जाता है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के प्रतिशोध में ही इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। बता दें कि 31 अक्टूबर 1984 ई. को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने की थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के पक्ष में पूरे देश में सहानुभूति की जबरदस्त लहर चल रही थी।
जब देश के बड़े से बड़े से नेता कांग्रेस के पक्ष में उपजी सहानुभूति की लहर के आगे अपनी जुबान खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे, तब श्री चन्द्रशेखर ही एकमात्र ऐसे नेता थे जो ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के विरोध में तत्कालीन केंद्र सरकार के एक्शन पर लगातार सवाल उठा रहे थे। दरअसल श्री चन्द्रशेखर सिख धर्म के पवित्र स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के विरोधी थे।
सहानुभूति की लहर एवं स्थानीय मुद्दे
साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में राजीव गांधी के पक्ष में जबरदस्त सहानुभूति लहर व्याप्त थी। देश का कोई भी नेता कांग्रेस के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इन परिस्थितियों श्री चन्द्रशेखर ही एकमात्र ऐसे कद्दावर राजनेता थे, जो केन्द्र सरकार पर हमला बोलने से नहीं चूक रहे थे ऐसे में चन्द्रशेखर का विरोध होना तो तकरीबन तय ही था।
1984 ई. के लोकसभा चुनाव में जहां चन्द्रशेखर राष्ट्रीय मुद्दों जैसे- आपातकाल और आपरेशन ब्लू स्टार को चुनावी मुद्दा बनाकर अपने लिए वोट मांग रहे थे वहीं कांग्रेस उम्मीदवार जगन्नाथ चौधरी स्थानीय मुद्दों जैस- बिजली, सड़क, पानी और काननू व्यवस्था की दोहाई देकर जनसमर्थन में लगे थे। जगन्नाथ चौधरी यह भी कहने में गुरेज नहीं कर रहे थे कि “चन्द्रशेखर को आप लोग कई बार आजमा चुके हैं, इस बार मुझे भी मौका दीजिए।”
इतना ही नहीं, श्री चन्द्रशेखर के विरोधी इस मुद्दे को भी तूल दे रहे थे कि इंदिरा गांधी ने तो रायबरेली को चमका दिया लेकिन चन्द्रशेखर ने बलिया के लिए कुछ भी नहीं किया। लोकसभा चुनाव-1984 में बतौर जनता पार्टी अध्यक्ष चन्द्रशेखर पूरे देश में चुनावी सभाओं को सम्बोधित कर रहे थे, परन्तु चुनाव के अंतिम दौर में जब उनके समर्थकों ने उन्हें वास्तविक स्थिति से अवगत कराया तब उन्होंने बलिया में डेरा जमाया। हांलाकि तब तक काफी देर हो चुकी थी।
लोकसभा चुनाव-1984 : श्री चन्द्रशेखर की करारी हार
इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फेकने वाली जनता पार्टी अब विभाजित हो चुकी थी बावजूद इसके 7 साल बाद यानि 1984 ई. में भी इस पार्टी की सियासी धमक बरकरार थी। जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर जी का 1977 और 1980 ई. के बाद यह तीसरा लोकसभा चुनाव था।
आपातकाल के बाद 1977 ई. में हो रहे लोकसभा चुनावों के दौरान चन्द्रशेखर को ‘चांद’ कहा जा रहा था। 1980 के लोकसभा चुनाव में भी बलिया ने अपने लाडले चन्द्रशेखर पर जमकर प्यार लुटाया लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव में फिजां पूरी तरह बदल चुकी थी।
बलिया रेलवे लाइन के दक्षिण स्थित रामलीला मैदान में आयोजित चुनावी जनसभा में श्री चन्द्रशेखर को ‘भिंडरावाले वापस जाओ’, ‘वापस जाओ’ के नारे सुनने पड़े। इस दौरान रामलीला मैदान के कोने-कोने से विरोध के स्वर उठ रहे थे। बागी बलिया की धरती पर ऐसा पहली बार हुआ था जब चन्द्रशेखर को अपना भाषण पूरा किए बिना ही मंच से उतरना पड़ा था।
इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर और स्थानीय मुद्दों के आगे चन्द्रशेखर की राष्ट्रीय राजनीति सुस्त पड़ गई, लिहाजा इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जगन्नाथ चौधरी ने बलिया के लाडले चन्द्रशेखर जी को 54 हजार 940 वोटों से कारारी शिकस्त दे दी।
हांलाकि कुछ ही वर्षों बाद ‘मिस्टर क्लीन’ कहे जाने वाले श्री राजीव गांधी पर बोफोर्स सौदे की दलाली का जो कलंक लगा, यह दाग कांग्रेस के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ। बोफोर्स सौदे की दलाली से जुड़े इसी कलंक के चलते 1989 ई. के लोकसभा चुनाव में बतौर जनता पार्टी प्रत्याशी श्री चन्द्रेशखर को बलिया से जीत मिली। इसके बाद श्री चन्द्रशेखर को बलिया की जनता ने फिर कभी निराश नहीं किया, इससे यह साबित होता है कि चन्द्रेशखर जी बलिया के हमेशा लाडले बने रहे।
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