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1971 War: America was about to attack India, Russia became the savior

1971 की जंग : भारत पर हमला करने वाला था अमेरिका, रूस बना संकटमोचन

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, पड़ोसी मुल्क चीन और पाकिस्तान के लिए सिर्फ इतना ही काफी है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 दिसंबर को दो दिवसीय यात्रा पर भारत आ रहे हैं। व्लादिमीर पुतिन की इस यात्रा के दौरान एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 की तीव्र डिलीवरी के साथ-साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान एसयू-57 में भी भारत की रुचि शामिल हो सकती है।

बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रूसी एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 ने पाकिस्तानी मिसाइलों की धज्जियां उड़ा दी थी। इसी वजह से पाकिस्तानी सेना ने सर्वप्रथम युद्ध रोकने की पहल की। ऐसे में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से एक बार पुन: साल 1971 के जंग की यादें ताजा हो उठी हैं जिसमें रूस ने भारत के लिए संकटमोचन की भूमिका निभाई थी।

93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर

साल 1971 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में नरसंहार शुरू किया। पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत बंगालियों पर अत्याचार शुरू किए। पाकिस्तानी सेना की इस क्रूर कार्रवाई से घबड़ाकर बंगाली तथा हिन्दूओं ने अपना घर-बार छोड़ दिया और जान बचाने हेतु भारत की सीमा में प्रवेश करने लगे। भारत पहुंचने वाले शरणार्थियों की संख्या महज दस महीने में ही तकरीबन एक करोड़ तक पहुंच गई।

ऐसे में भारत पर सामाजिक - आर्थिक दबाव बढ़ना लाजिमी था, लिहाजा भारत की तत्कालीन सरकार ने पूरी दुनिया को घूम-घूमकर यह बताया कि पाकिस्तान अपनी समस्या सुलझाए लेकिन कोई भी देश उस पर दबाव नहीं डाल रहा था।

फिर क्या था, भारत ने बांग्लादेशी स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में युद्ध में प्रवेश किया। 2 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना ने ऑपरेशन चंगेज खान के तहत भारत के पश्चिमी हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी शुरू कर दी।

इसके बाद भारतीय सेना ने 4 दिसम्बर को जवाबी कार्रवाई शुरू की और पाकिस्तान की तकरीबन 6 हजार वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया। इतना ही नहीं, 16 दिसम्बर 1971 तक पाकिस्तान के आर्मी जनरल नियाजी ने ढाका में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

इसी के साथ 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भी हथियार डाल दिए, इन सभी को कैद कर​ लिया गया। द्वितीय ​विश्वयुद्ध के बाद विश्व इतिहास का यह सबसे बड़ा सैन्य समर्पण था। हांलाकि शिमला समझौते के तहत अगस्त, 1972 में भारत ने 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया।

किन्तु इस महान घटना के बीच एक रोचक तथ्य यह देखने को मिला कि 1971 की जंग का पासा पलटने के लिए महाशक्ति अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में विमानवाहक युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज की तैनाती कर रखी थी। अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज के कमांडर एडमिरल ज़ुमवाल्ट को जरूरत पड़ने पर भारतीय बेस पर हमला करने का भी निर्देश दिया गया था।

अब आपका सोचना लाजिमी है कि आखिर में रूस ने ऐसा क्या किया जिससे महाशक्ति अमेरिका 1971 की जंग से पीछे लौटने पर विवश हो गया। इस रोचक तथ्य को जानने के लिए यह ऐतिहासिक स्टोरी जरूर पढ़ें।

भारत पर हमले की तैयारी में था अमेरिका

1971 की जंग में भारतीय सेना को बांग्लादेश तक पहुंचने से रोकने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े (टास्क फोर्स-74) को यह खुली छूट दे रखी थी कि यदि वो चाहे तो भारतीय बेस पर हमला कर सकते हैं। हांलाकि रूस ने अमेरिकी सैन्य गतिविधियों की पूरी सूचना भारत को दे दी थी। ऐसे में भारत के वीर योद्धाओं ने अमेरिकी सेना पर आत्मघाती हमला करने का निर्णय लिया।

अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज की तैनाती

1971 की जंग में पाकिस्तान को मदद पहुंचाने तथा भारत को बांग्लादेश तक पहुंचने से रोकने के लिए महाशक्ति अमेरिका ने यूएस नेवी के सातवें बेड़े (टास्क फोर्स-74) को बंगाल की खाड़ी में भेजा जिसकी अगुवानी परमाणु क्षमता सम्पन्न विमानवाहक युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज कर रहा था। अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े में यूएसएस एंटरप्राइज सहित सात विध्वंसक, एक हैलिकॉप्टर वाहक यूएसएस ट्रिपोली और एक तेलवाहक पोत भी शामिल था।

70 लड़ाकू विमानों से सम्पन्न 75, 000 टन वजनी युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा से संचालित वाहक था। अमेरिकी नौसेना का यह सातवां बेड़ा भारत के एकमात्र विमानवाहक आइएनएस विक्रांत की तुलना में कम से कम पांच गुना बड़ा था। विमानवाहक युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज सिर्फ एक बार ईंधन भरे जाने के बाद पूरी दुनिया का चक्कर लगाने में सक्षम था।

अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े (टास्क फोर्स-74) की अगुवाई कर रहे एडमिरल जॉन मेकेन जूनियर को यह निर्देश था कि जरूरत पड़ने पर वह भारतीय बेस पर हमला कर सकता है। दरअसल अमेरिकी नौसेना के इस बेड़े को संघर्ष के चरम पर भारतीय सेना को डराने के लिए भेजा गया था। गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिकी समर्थन में ग्रेट ब्रिटेन ने भी अपने विमानवाहक पोत एचएमएस ईगल की तैनाती अरब सागर में कर रखी थी।

रूस बना संकटमोचन

इस संकटकाल में भारत के अजीत दोस्त रूस ने संकटमोचन की भूमिका निभाई। रूस ने अमेरिकी नौसेना को रोकने के लिए क्रूजर, विध्वंसक और परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बियों के दो समूहों को इस क्षेत्र में तैनात कर दिया। रूसी बेड़े की कमान एडमिरल व्लादिमीर क्रगलियाकोव ने सम्भाल रखी थी। सैटलाइट तस्वीरों से जैसे ही पता चला कि रूसी नौसेना ने बंगाल की खाड़ी के पास न्यूक्लियर सबमरीन खड़ी कर रखी है, अमेरिका के होश उड़ गए। रूसी नौसेना ने 18 दिसंबर 1971 से 7 जनवरी 1972 तक पूरे हिंद महासागर में अमेरिकी बेड़े का पीछा किया।

अब अमेरिका इस बात को भलीभांति जान चुका था कि यदि उसने भारत पर हमला किया तो रूसी पनडुब्बी उसके एयरक्राफ्ट कैरियर को बंगाल की खाड़ी में ही डूबो देगी। चूंकि अमेरिका रूस के साथ युद्ध में उलझना नहीं चाहता था, ऐसे में अमेरिकी आदेश पर उसका विमानवाहक युद्धपोत यूएसएस एंटरप्राइज बंगाल की खाड़ी से श्रीलंका चला गया। वहीं अरब सागर में तैनात ब्रिटिश जहाज भी मेडागास्कर की ओर चले गए। इसके बाद नए मुल्क बांग्लादेश के जन्म और 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण से पूरी दुनिया वाकिफ है।

निष्कर्षतया भारत-पाकिस्तान जंग-1971 के दौरान यह घटना भारत और रूस के बीच गहरी दोस्ती का अनूठा उदाहरण है। वहीं, साल 2025 में पाकिस्तान के विरूद्ध आपरेशन सिन्दूर के समय भी रूसी एयर डिफेन्स सिस्टम एस-400 ने भारत को विजय दिलाने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

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