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Due to which weakness of India did Pakistan capture POK?

भारत की किस कमजोरी के चलते पाकिस्तान ने हड़प लिया POK ?

दोस्तों, पाकिस्तान की नापाक करतूतें किसी से छुपी नहीं हैं। 1947 ई. से लेकर आज तक पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के पार से कश्मीर में घुसपैठिए भेजता रहा है। पाकिस्तान के ये घुसपैठिए जिहाद के नाम पर कश्मीर में लूटपाट, हत्याएं, अपहरण और अग्निकाण्ड को अंजाम देते रहे हैं।

कश्मीर में इन पाकिस्तानी आतंकियों ने कितना खून बहाया है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके अभी हाल ही में 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तान के इन आतंकियों ने 26 निर्दोष भारतीय पयर्टकों को गोली से उड़ा दिया, जबकि 20 लोग गम्भीर रूप से घायल हैं। पाक आतंकियों के इस दुष्कृत्य से पूरे देश में जनाक्रोश है, यहां तक कि भारत एक बार फिर से भयंकर युद्ध के मुहाने पर खड़ा है।

परन्तु क्या आप जानते हैं, कश्मीर का वह कौन सा सामरिक इलाका है, जिसे पाकिस्तान ने 1947 ई. से ही हड़प रखा है। जी हां, आपका अनुमान बिल्कुल सही है, मैं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानि पीओके की बात कर रहा हूं। कश्मीर घाटी के उत्तर पश्चिमी और पश्चिमी क्षेत्रों के 84,160 वर्ग किमी. क्षेत्र को पाकिस्तान ने हड़प रखा है।

सबसे गम्भीर बात यह है कि ऊंचे पहाड़, ग्लेशियर, गहरी घाटियां, संकरे पासेज वाले पीओके से पाकिस्तानी आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ करते हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि आखिर में भारत की किस कमजोरी की वजह से धोखेबाज पाकिस्तान ने पीओके हड़प लिया? इस संवदेनशील प्रश्न का जवाब जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण (22 अक्टूबर 1947 ई.)

मजहब का नाम लेकर पाकिस्तान ने भारत से बंटवारा तो कर लिया लेकिन उसकी सोच हमेशा से नकारात्मक थी। लिहाजा आजादी के तुरन्त बाद 22 अक्टूबर 1947 ई. को पाकिस्तानी सेना ने पठान कबायलियों की मदद से कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। ट्रकों में भर-भरकर हजारों की संख्या में आए पठान कबायलियों तथा पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा करना शुरू किया।

वहीं, दूसरी तरफ कश्मीर के महाराजा हरि सिंह स्वतंत्र कश्मीर का स्वप्न देख रहे थे। हरि सिंह की छोटी सी निजी सेना पाकिस्तानी सेना के सामने कुछ भी नहीं कर सकती थी। अत: कश्मीर के प्रधानमंत्री सहायता मांगने के लिए दिल्ली आए।

प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जो पहले से ही महाराजा हरि सिंह से निजी तौर पर बहुत नाराज थे। पहले तो उन्होंने यह कहकर टालने का प्रयास किया कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून के तहत वह सहायता तभी भेज सकते हैं, जब कश्मीर का भारत में विलय हो जाए।

फिर क्या था, महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 ई. को विलय के लिए हस्ताक्षर किए पत्र पं. नेहरू को भेज दिए। इस प्रकार पूरा कश्मीर वैधानिक रूप से भारत का अभिन्न बन गया। पं. जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त करवा दिया। इसके बाद 27 अक्टूबर 1947 से भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आतातायियों को कश्मीर से भगाना शुरू किया और शीघ्र ही कश्मीर घाटी को इनसे मुक्त करा लिया। परन्तु कश्मीर के उत्तर पश्चिमी और पश्चिमी क्षेत्र पर पाकिस्तानी सेना कब्जा कर चुकी थी जिसे आज हम सभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के रूप में जानते हैं।

पाकिस्तान ने कैसे हड़प लिया पीओके (POK)

इंडियन आर्मी द्वारा पाकिस्तानी सेना और पठान कबायलियों को कश्मीर घाटी से खदेड़े जाने के बाद स्थिति काफी विकट हो चुकी थी, भय था कि कहीं भारत और पाकिस्तान के बीच ​एक बड़ा युद्ध न हो जाए। ऐसे में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 30 दिसम्बर 1947 ई. को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अपनी याचिका दायर कर दी कि वह पाकिस्तान को कहे कि वह अपना अनाधिकृत अधिग्रहण (‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानि पीओेके) समाप्त करे और भारत को उसका प्रदेश लौटा दे।

भारत के राजनीतिक इतिहास में यही प्रश्न बार-बार उठ खड़ा होता है कि आखिर में वह कौन सी कमजोरी थी जिसके चलते भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानि पीओके पर अपनी पकड़ खो दी? कहते हैं पं. जवाहरलाल नेहरू की आनाकानी और अपने मुकदमे को सुरक्षा परिषद में ले जाने का सुझाव गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबैटन ने ही पं. नेहरू को दिए थे। चूंकि सुरक्षा परिषद में इंग्लैण्ड और अमरीका ने पाकिस्तान का पक्ष लिया क्योंकि वे पाकिस्तान को रूस के विरूद्ध एक रक्षा पंक्ति के रूप में देखते थे।

मशहूर इतिहासकार यशपाल के अनुसार, “जब भारत ने पाकिस्तानी सेना के हस्तक्षेप की बात की तो इंग्लैण्ड और अमेरिका ने इस प्रश्न को भारत-पाक झगड़े का नाम दे दिया। इस मुद्दे को लेकर कई प्रस्ताव पारित किए गए। आखिरकार अंतिम परिणाम यह निकला कि 31 दिसम्बर 1947 ई. को भारत और पाकिस्तान की सेनाएं जहां मौजूद थीं, उसे ही नियंत्रण रेखा मान लिया गया और वहां संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षक नियुक्त कर दिए गए।

इस प्रकार बड़ी आसानी से पाकिस्तान कश्मीर घाटी के उत्तर पश्चिमी और पश्चिमी क्षेत्रों के 84,160 वर्ग किमी. के क्षेत्रों का स्वामी बन गया जिसे हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीरयानि पीओके के नाम से जानते हैं। पीओके की इसी सीमा रेखा से पाकिस्तानी आतंकी भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करते हैं और फिर कत्लेआम मचाते हैं। 

1947ई.में भारत ने पीओके (POK) पर कब्जा क्यों नहीं किया

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानि पीओके मुद्दे को सुरक्षा परिषद में ले जाने के लिए राजनीतिक विश्लेषक आज भी पं. नेहरू की आलोचना करते हैं। हांलाकि स्वयं पं. नेहरू भी सुरक्षा परिषद के पक्षपात तथा राजनीतिक जोड़-तोड़ से परेशान थे।

इस बारे में फरवरी 1949 ई. को पं. नेहरू अपनी बहन मिसेज विजयलक्ष्मी पंडित को एक पत्र लिखते हैं कि, “वह इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि सुरक्षा परिषद में भी ऐसा पक्षपात होता होगा और फिर यह लोग समस्त संसार सुव्यवस्था स्थापित करने का दावा करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि दुनिया टूट रही है। इंग्लैण्ड और अमेरिका ने बहुत घिनौनी भूमिका निभाई है।

कहते हैं, भारत के पहले फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा ने पं. नेहरू से कहा था कि आप महीनेभर रूक जाइए, हमारी सेना पीओके वापस ले लेगी। बावजूद इसके पं. नेहरू पीओके मुद्दे को सुरक्षा परिषद में ले गए। यहां तक कि साल 1953 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी के.एम. करियप्पा ने पं. नेहरू से पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने के लिए कहा था। उन्होंने अपने पत्रों के ​जरिए पं. नेहरू से कहा था कि, “पंडितजी कृपया इस काम को अपने जीवनकाल में ही कर लें।

के. एम. करियप्पा ने पीओके मुद्दे के समाधान के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान से संपर्क करने और इसे जल्द सुलझाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। करियप्पा का कहना था कि इस मुद्दे को अगली पीढ़ियों के लिए नहीं छोड़ा जाए।

इस सम्बन्ध में भारत के केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा ​में कहा कि य​दि प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने सही कदम उठाया तो पीओके आज भारत का हिस्सा होता। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पूरा कश्मीर हाथ आए बिना ही पं. नेहरू ने सीजफायर कर दिया। खैर जो भी हो, यह तय है कि पं. नेहरू का सुरक्षा परिषद के पास जाना और कश्मीर के पूर्ण विलय के लिए जनमत संग्रह की बात करना, उनकी विदेश नीति की असफलता का द्योतक था। 

पीओके (POK) के वर्तमान हालात

प्रख्यात इतिहासकार बीएल. ग्रोवर एवं यशपाल की किताब आधुनिक भारत का इतिहास के मुताबिक, पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी के उत्तर पश्चिमी और पश्चिमी क्षेत्रों के 84,160 वर्ग किमी. क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर रखा है। जबकि वर्तमान केन्द्र सरकार के अनुसार, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानि पीओके का यह क्षेत्रफल 78 वर्ग किमी. से ज्यादा है। 

सामरिक लिहाज से पीओके काफी अहम है, क्योंकि इस क्षेत्र में ऊंचे पहाड़, ग्लेशियर, गहरी घाटियां, संकरे पासेज हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पीओके की पूर्वी सीमा जम्मू-कश्मीर, उत्तरी सीमा चीन तथा इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त तथा खैबरपख्तूनवा से लगती है। जबकि पीओके की उत्तर-पश्चिमी सीमा अफगानिस्तान से सटी हुई है।

1963 ई. को चीन और पाकिस्तान में एक समझौता हुआ जिसके तहत पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर का तकरीबन 5,180 वर्ग किमी हिस्सा चीन को दे दिया। इस समझौते के बारे में भारत सरकार के वर्तमान विदेशमंत्री जयशंकर का कहना है कि साल 1963 में पाकिस्तान ने चीन का साथ पाने के लिए पीओके का पांच हजार किमी. क्षेत्र चीन को सौंप दिया।

चूंकि चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का मेन हिस्सा पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान से ही होकर गुजरता है, जहां चीन ने तकरीबन 65 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है। ऐसे में चीन कभी नहीं चाहेगा कि पीओके पर भारत कब्जा करे। ऐसा कहा जा रहा है कि चीन ने पाकिस्तान के लिए मजबूत बंकरों का निर्माण करवा रखा है तथा माइन्स की जाल बिछा रखी है। यही नहीं, चीन ने उस इलाके में न केवल हथियारों की तैनाती कर रखी है बल्कि उसने मजदूर वेष में भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती भी कर रखी है।

चूंकि इस बात की चर्चा जोरों पर है कि सैन्य हमले के दौरान इंडियन आर्मी पीओके को अपने कब्जे में लेने की कोशिश अवश्य करेगी लिहाजा पाकिस्तानी आर्मी ने नियंत्रण रेखा के पास बंकर, तोपें, सुरंग, रॉकेट लॉन्चर तथा कमांड हेडक्वार्टर की तैनाती कर रखी है। पीओके की कार्रवाई इंडियन आर्मी के लिए वैसे भी कठिन होगी क्योंकि पीओके में सैन्य सामान तथा रसद आपूर्ति से लेकर गाइडेंस तथा बैकअप तक पाक आर्मी के पास होगा। इन सबके बावजूद भारतीय ​थल सेना की ताकत का एशिया में किसी के पास तोड़ नहीं है।

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