
दोस्तों, भारत के पौराणिक इतिहास को कालखण्डों में गिनना मुमकिन नहीं, नाममुमकिन है। भारत के एक दो नहीं अपितु कई नाम हैं, जैसे- जम्बूद्वीप, भरतखण्ड, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान, हिन्द, अल-हिन्द, इंडिया, ग्यागर, फग्यूल, तियानझू, होडू आदि।
अब आप सोच रहें होंगे कि आखिर मैं भारत के इतने नाम क्यों गिना रहा हूं, दरअसल हिन्दुस्तान और इंडिया नाम के पीछे सिन्धु नदी का रोचक इतिहास छुपा है। इससे इतर, ऋग्वैदिक काल से ही सिन्धु नदी का भारत से गहरा रिश्ता जुड़ा हुआ है। यहां तक कि प्राचीन भारत की सबसे महत्वपूर्ण सभ्यता का नाम भी सिन्धु घाटी सभ्यता है। ऐसे में सिन्धु नदी का इतिहास जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
ऋग्वेद में सिन्धु नदी का महात्म्य
पूर्वकाल में भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था। भारत के सबसे प्राचीन धर्मग्रन्थ ऋग्वेद में आर्य निवास स्थल के लिए सर्वत्र ‘सप्तसिन्धव:’ शब्द का प्रयोग किया गया है। बता दें कि सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज और सरस्वती नामक सात नदियों से जुड़े विस्तृत भूखण्ड को ऋग्वेद में ‘सप्तसिन्धव:’ कहा गया है।
ऋग्वैदिक मंडल में सिन्धु नदी को देवी के रूप में मान्यता दी गई है। ऋग्वेद में आर्यों की सर्वप्रमुख नदी ‘सिन्धु’ का वर्णन कई बार आया है जबकि ‘गंगा’ का सिर्फ एक बार तथा ‘यमुना’ नदी का तीन बार उल्लेख किया गया है। ऐसे में आप सिन्धु नदी की महत्ता स्वयं ही समझ सकते हैं। प्रख्यात इतिहासकार झा एवं श्रीमाली के अनुसार, “सिन्धु नदी का अनेक जगहों पर इतनी ओजस्वी भाषा में वर्णन किया गया है कि नदी की तुमुल तरंगों का दृश्य नेत्रों के सामने साकार हो जाता है।”
ऋग्वेद के सबसे महत्वपूर्ण देवता इन्द्र को पुरन्दर, रथेष्ट, विजयेन्द्र, शतक्रतु, वृत्रहन तथा मधवा भी कहा गया है। ऋग्वेद में इन्द्र की स्तुति में 250 सूक्त हैं। इन्द्र को ‘वर्षा का देवता’ माना गया है। ऋग्वेद के दूसरे मंडल के 15वें सूक्त में यह लिखा है- “सोदअ्चं सिन्धुमरिणात महित्वा वज्रेणान उषस:संपिपेव। अजवसो जविनीभि: विवृश्चन सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार।।”
इसका हिन्दी अर्थ है- इन्द्र ने अपने प्रभाव से सिन्ध नदी का बहाव उत्तर दिशा की तरफ कर दिया तथा उषा के रथ को अपनी प्रबल एवं तीव्र सेना से निर्बल कर दिया। इन्द्र ऐसा तब करते हैं जब वह सोम मद से मत्त हो जाते हैं। यदि हम ऋग्वेद के उपरोक्त सूक्त का बारीकी से अध्ययन करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सिन्धु नदी अपने उद्गम स्थल कैलाश मानसरोवर से कश्मीर तक उत्तर दिशा की ओर बहती है। कश्मीर के बाद सिन्धु नदी का बहाव दक्षिण-पश्चिम की तरफ हो जाता है। ऐसा कहते हैं कि देवराज इन्द्र ने दुर्गम पहाड़ी मार्गों को काटकर सिन्धु नदी के संकीर्ण बहाव को चौड़ा कर दिया। ऐसा करने से आर्यों का मार्ग और सुगम हो गया।
ऋग्वेद में सरस्वती नदी का भी बड़ा महात्म्य है। आर्य निवास की यह भी एक अति प्रशंसित एवं पवित्र नदी थी। सरस्वती नदी की प्रशंसा करते ऋषि लोग कभी नहीं अघाते थे। यहां तक कि वर्तमान अफगानिस्तान में बहने वाली कुभा (काबुल), सुवास्तु (स्वात), क्रमु (कुर्रभ) तथा गोमती (गोमाल) नदियों से भी आर्यजन भलीभांति परिचित थे।
उत्तर वैदिक काल में सिन्धु
उत्तर वैदिक काल में आर्यों का प्रसार एक व्यापक क्षेत्र में हो गया। उत्तर वैदिक काल की समाप्ति से पूर्व ही आर्यों ने यमुना, गंगा एवं सदानीरा नदियों द्वारा सिंचित उपजाऊ मैदानों को पूर्णतया जीत लिया था। आर्य सभ्यता का केन्द्र मध्य देश था जो सरस्वती से लेकर गंगा के दोआब तक विस्तृत था।
वाल्मीकि रामायण में सिन्धु नदी को ‘महानदी’ की संज्ञा दी गई है। जैन धर्म के एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति’ में जम्बूद्वीप यानि भारत के सात महाद्वीपों, नदियों, और पर्वतों का वर्णन किया गया है। इसी जैन ग्रन्थ में सिन्धु नदी का भी उल्लेख मिलता है।
महाकवि कालीदास रचित ‘रघुवंश’ महाकाव्य में भगवान श्रीराम द्वारा अपने अनुज भरत को सिन्ध देश दिए जाने का उल्लेख मिलता है। वहीं महाकाव्य महाभारत में सिन्धु नरेश जयद्रथ का भी वर्णन किया गया है जो हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र की पुत्री दु:श्शाला का पति था। महाभारत में गांडीवधारी अर्जुन के द्वारा सिन्ध नरेश जयद्रथ के वध का बड़ा ही रोचक वर्णन मिलता है। जानकारी के लिए बता दें कि अखण्ड भारत का हिस्सा रहे पाकिस्तान का सिन्ध प्रान्त ही कभी सिन्ध देश था।
सिन्धु घाटी सभ्यता
सैन्धव सभ्यता 2500 ई. पू. के आस-पास अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में प्रकट होती है। अपने नगर नियोजन और जल निकासी व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध सैन्धव सभ्यता का केन्द्र स्थल मुख्यत: सिन्ध घाटी में ही पड़ता है।
हांलाकि सैन्धव सभ्यता केवल सिन्धु नदी-घाटी तक ही सीमित नहीं थी। इस सभ्यता का क्षेत्रफल बारह लाख पन्द्रह हजार वर्ग किलोमीटर था। सिन्धु घाटी का विस्तार बलूचिस्तान, पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त, पश्चिमी पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, गंगा-यमुना के दोआब, जम्मू, गुजरात तथा उत्तरी अफगानिस्तान का था। ध्यान रहे, ये सभी क्षेत्र कभी अखण्ड भारत के अधीन थे।
सिन्ध के प्रमुख तीर्थस्थल
1.हिंगलाज शक्तिपीठ, बलूचिस्तान
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंगोल नदी के किनारे हिंगलाज माता का मंदिर मौजूद है। यह मंदिर कराची से तकरीबन 250 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को सनातन धर्म के 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। हिंगलाज देवी खत्रियों की कुलदेवी है। तमाम राजनीतिक व मजहबी उथल-पुथल के बाद भी बलूचों, पश्तूनों और सिन्धियों की हिंगलाज माता के प्रति आस्था व विश्वास देखते ही बनता है।
2.सूर्य मंदिर, मुल्तान
मुल्तान को कभी ‘कश्यपपुरा’ के नाम से जाना जाता है। यहां सिन्ध की सहायक नदी चिनाब के किनारे भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने एक विशाल सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। कार्णाक सूर्य मंदिर से मिलते-जुलते इस सूर्य मंदिर के बारे में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने विस्तार से लिखा है।
ह्वेनसांग 641 ईस्वी में यहां आया था, वह लिखता है कि “इस सूर्य मंदिर में शुद्ध सोने से बनी भगवान सूर्य की एक मूर्ति थी जिसकी आंखें लाल रूबीयों से बनाई गई थीं। मंदिर के दरवाजों, खम्भों और शिखर में सोने, चांदी और रत्नों का बहुतायत से इस्तेमाल किया गया था।” यह सच है कि कालान्तर में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया।
3.सिंध प्रांत का श्रीरामदेव पीर मंदिर
पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त स्थित टंडो अल्लाहयार शहर में श्रीरामदेव पीर का एक मंदिर है। सिन्ध प्रान्त के जैकोब स्थित यह मंदिर वार्षिक रामदेव पीर मेले के लिए विख्यात है। पाकिस्तान का यह दूसरा सबसे बड़ा हिन्दू तीर्थस्थल है।
4.उमरकोट शिव मंदिर
सिंध प्रांत के उमरकोट जिले में स्थित यह शिव मंदिर अपनी प्राचीन वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस शिव मंदिर को सिन्ध का सबसे पुराना मंदिर कहा जाता है। यह शिव मंदिर इस प्रान्त के सबसे पवित्र हिन्दू पूजा स्थलों में से एक है।
इंडस (Indus) से है इंडिया का खास कनेक्शन
हिमालय के कैलाश मानसरोवर से निकलने वाली सिन्धु नदी का विलय स्थल अरब सागर है। सम्भवत: इसीलिए पुराणों में अरब सागर को सिन्धु सागर कहा गया है। ईरानी लोग ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते थे अत: वे सिंधु नदी को ‘हिंदू नदी’ कहते थे। यही वजह है कि सिंधु नदी के पार रहने वाले लोगों को ‘हिन्दू’ कहा जाने लगा। हिन्दू शब्द से ही हिन्दुस्तान बना यानि हिन्दुओं के रहने का स्थान।
सिन्धु नदी का अंग्रेजी नाम ‘Indus River’ है जो प्राचीन यूनानियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था। अंग्रेजों के आगमन के समय हिन्दुस्तान को Indus Valley Civilization यानि सिन्धु घाटी सभ्यता के रूप में एक नई पहचान मिली, ऐसे में अंग्रेजों ने भारत का नाम ‘इंडिया’ रख दिया।
सिन्धु नदी का संक्षिप्त भौगोलिक इतिहास
एशिया की सबसे लम्बी नदियों में एक सिन्धु नदी का उद्गमस्थल हिमालय में कैलाश मानसरोवर से 62.5 मील उत्तर में सेंगेखबब के जलस्रोत हैं। सिन्धु नदी अपने उद्गम स्थल से निकलकर तिब्बती पठार की चौड़ी घाटी से होते हुए कश्मीर की सीमा को पार करते हुए दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से होकर निकलती है तथा अरब सागर में मिलती है। भारत से होकर प्रवाहित होने वाली सिन्ध नदी को पाकिस्तान में राष्ट्रीय नदी का दर्जा प्राप्त है।
सिन्धु नदी की लम्बाई 2000 मील (तकरीबन 3610 किलोमीटर) है। सिंध नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं- झेलम, चिनाव, रावी, व्यास एवं सतलुज। जबकि गिलगिट, काबुल, स्वात, कुर्रम, टोची, गोमल, संगर आदि सिन्धु नदी की अन्य सहायक नदियां हैं। सिन्धु नदी की सहायक सतलुज यानि शतद्रु नदी पर बना भाखड़ा-नांगल बांध से भारत की सिंचाई एंव विद्युत परियोजना को बहुत ज्यादा मदद मिलती है।
सिन्धु नदी का वार्षिक जल प्रवाह तकरीबन 243 क्यूबिक किमी है, यह आंकड़ा नील नदी के प्रवाह से दोगुना तथा टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियों के संयुक्त प्रवाह से तीन गुना है। मार्च महीने में हिम के पिघलने से सिन्धु नदी में अक्सर भयंकर बाढ़ आ जाती है। बरसात के दिनों में सिन्धु नदी का जलस्तर काफी ऊँचा रहता है परन्तु जाड़े के मौसम में इस नदी का जल स्तर काफी नीचा रहता है।
जानकारी के लिए बता दें कि तत्कालीन भारत सरकार ने 1960 में की गई ‘सिन्धु जल सन्धि’ को निलम्बित कर दिया है। यह ऐतिहासिक सन्धि 80 फीसदी पाकिस्तानी खेतों की सिंचाई सुनिश्चित करती थी। भारत सरकार का कहना है कि पाकिस्तान जब तक आतंकवाद के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाता है, तब तक यह जल संधि निलम्बित रहेगी। चूंकि भारत सरकार ने सिन्धु नदी का पानी रोक दिया है, ऐसे में यह स्पष्ट है कि कुछ ही दिनों में पाकिस्तान का कृषिजन्य इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा।
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