बादशाह शाहजहां का शासनकाल मुगल साम्राज्य के वैभव और शक्ति की पराकाष्ठा का था, जिसके कारण उसे ‘मुगल काल का स्वर्ण’ युग पुकारा गया है। मुगलकालीन इतिहास में बादशाह शाहजहां को इसलिए भी याद किया जाता है कि वह अपनी पत्नी मुमताज महल से बेइंतहा प्यार करता था। यही वजह है कि उसने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल का निर्माण करवाया। हांलाकि मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहां बिल्कुल अकेला पड़ गया, इस दौरान शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी जहांआरा उसके सबसे करीब थी।
बादशाह शाहजहां अपनी सबसे खूबसूरत बेटी जहांआरा बेगम को खुद से दूर नहीं रखना चाहता था, यही वजह है कि उसने जहांआरा का विवाह नहीं किया यानि की जहांआरा आजीवन कुंवारी ही रही। शाहजहां को उसकी बेटी जहांआरा का किसी से इश्क फरमाना तनिक भी पसन्द नहीं था, ऐसा नहीं था कि जहांआरा बेगम के प्रेमी नहीं थे।
इतिहासकार निकोलाओ मनूची लिखता है कि “जहांआरा बेगम के कई प्रेमी थे जो चुपके-चुपके उससे मिलने आते थे।” एक बार जहांआरा बेगम को दाराशिकोह के निजी डॉक्टर से इश्क हो गया, किन्तु सख्त पहरे के चलते वह आशिक पकड़ा गया। फिर क्या था, शाहजहां ने उसे पानी के देग में जिन्दा उबाल दिया।
अब आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि शाहजहां इकलौता मुगल बादशाह है जिस पर अपनी ही बेटी संग नाजायज सम्बन्ध रखने के आरोप लगे। इस बारे में मुगलकालीन इतिहासकारों ने क्या कुछ लिखा है, इसे जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
शाहजहां के सबसे करीब थी जहांआरा
मुगल बादशाह शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी जहांआरा बला की खूबसूरत थी। जहांआरा अपने पिता शाहजहां के सबसे करीब थी, जिसे वह पागलों की तरह प्यार करता था। मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहां ने उसकी सम्पत्ति का आधा हिस्सा जहांआरा को दे दिया था, इस प्रकार जहांआरा महज 17 वर्ष की उम्र में ही दुनिया की सबसे अमीर महिला बन गई।
मुगलिया हुकूमत में जहांआरा बेगम को ‘बादशाह बेगम’, ‘बेगम साहिबा’ व ‘फातिमा जमां बेगम’ आदि नामों से पुकारा जाता था। जहांआरा बेगम की पॉकेट मनी सालाना 2 करोड़ रुपए थी। जहांआरा बेगम की सालाना आय 30 लाख रुपए थी, जिसकी कीमत आज की तारीख में तकरीबन डेढ़ अरब रुपए है।

बादशाह शाहजहां के जन्मदिन से लेकर नवरोज आदि उत्सवों की मुख्य कार्यवाहक जहांआरा बेगम ही थी। नवरोज के अवसर पर जहांआरा बेगम को मुगल दरबार से 20 लाख रुपए के आभूषण और जेवरात तोहफे में मिलते थे। मुगलकाल की सबसे शक्तिशाली महिला जहांआरा बेगम की खरीददारी के लिए शाहजहां ने दिल्ली में चांदनी चौक का निर्माण करवाया।
जहांआरा बेगम ने अपनी जेब खर्च से आगरा की जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। इस मस्जिद के निर्माण में कुल पांच लाख रुपए खर्च हुए थे। जहांआरा बेगम ने व्यापारियों के ठहरने के लिए पेशावर में एक आधुनिक सराय का निर्माण करवाया था, जिससे ‘कारवां सराय’, ‘सराय जहां बेगम’ तथा ‘सराय-दो-दर’ के नाम से जाना जाता है।
इतना ही नहीं, शाहजहांनाबाद (पुरानी दिल्ली) का पूरा नक्शा जहांआरा बेगम ने ही तैयार किया था। शाहजहांनाबाद शहर की 19 में से 5 इमारतें जहांआरा बेगम ने खुद बनवाई थी। जहांआरा बेगम के पास एक नहीं बल्कि कई जागीरें थीं। बादशाह शाहजहां ने व्यापारिक शहर सूरत भी जहांआरा बेगम को सुपूर्द कर दिया था।
सूरत बन्दरगाह से प्रतिवर्ष मिलने वाली 5 लाख रुपए की आय जहांआरा को ही प्राप्त होती थी। इसके अतिरिक्त सूरत बन्दरगाह से जहांआरा बेगम के कई व्यापारिक जहाज भी चलते थे। जहांआरा बेगम के एक व्यापारिक जहाज का नाम ‘साहिबी’ था जो डच तथा अंग्रेजों के साथ व्यापार करने के लिए सात समन्दर पार जाता था।
जहांआरा संग अवैध सम्बन्धों पर क्या लिखते हैं इतिहासकार
मुगल बादशाह शाहजहां की सबसे खूबसूरत बेटी जहांआरा बेगम आजीवन अविवाहित रहीं। कहते हैं, शाहजहां को जहांआरा बेगम बिल्कुल मुमताज महल की तरह लगती थी इसलिए उसने जहांआरा की शादी किसी और से नहीं की। फ़्रेंच इतिहासकार फ्रेंकोई बर्नियर के मुताबिक, “जहांआरा बेगम की देखरेख में बना शाही भोजन ही शाहजहां को परोसा जाता था।” चूंकि जहांआरा बेगम शराब पीने की शौकीन थीं, इसीलिए उसके लिए विदेशों से खास किस्स की महंगी और दुर्लभ शराब मंगवाई जाती थी। चूंकि उन दिनों विदेशी शराब काफी महंगी हुआ करती थी, जिसकी व्यवस्था मुगल खजाने से की जाती थी।

फ्रांसीसी इतिहासकार फ्रेंकोई बर्नियर अपनी किताब ‘ट्रैवेल्स इन द मुगल एम्पायर’ में लिखता है कि “बादशाह शाहजहां अपनी बेटी जहांआरा बेगम से पागलों की तरह प्यार करता था। आगे बर्नियर लिखता है कि उन दिनों चारों तरफ यही चर्चा थी कि शाहजहां का अपनी बेटी संग नाजायज सम्बन्ध हैं। कुछ दरबारी तो चोरी-छुपे यह कहते सुने जाते थे कि बादशाह को उस पेड़ से फल तोड़ने का पूरा हक है जिसने उसने खुद लगाया है।” यद्यपि फ्रेंकोई बर्नियर एकमात्र इतिहासकार है, जिसने शाहजहां और जहांआरा के नाजायत बीच सम्बन्धों की बात लिखी है।
ऐसे में इतिहासकार निकोलाओ मनूची और राना सफ़वी ने फ्रेंकोई बनिर्यर के इस दावे को महज अफवाह करार दिया है। इनका कहना है कि उन दिनों उत्तराधिकार की लड़ाई में फ्रेंकोई बर्नियर ने औरंगजेब का साथ दिया था, सम्भव है उसने दारा शिकोह की समर्थक जहांआरा को बदनाम करने के लिए इस तरह की अफवाहें फैलाई होंगी।

बता दें कि साल 1657 में शाहजहां के बीमार पड़ते ही उसके पुत्रों- दारा शिकोह, औरंगजेब, शाह शुजा और मुराद बख्श में उत्तराधिकार के लिए भयंकर युद्ध शुरू हो गया। इस उत्तराधिकारी युद्ध में औरंगजेब विजयी हुआ। इसके बाद औरंगजेब ने सबसे पहले अपने पिता शाहजहां को आगरा किले में बन्दी बनाया तत्पश्चात अपने सभी भाईयों की निर्दयापूर्वक हत्या करवा दी। औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा किले की जिस इमारत में कैद करके रखा उसे ‘शाह बुर्ज’ अथवा ‘मुसम्मन बुर्ज’ कहा जाता है।
शाहजहां के जीवन के अंतिम आठ वर्ष (जुलाई 1658 से जनवरी 1666 ई. तक) मुसम्मन बुर्ज में ही बीते जहां उसकी बड़ी बेटी जहांआरा बेगम ने अपनी स्वेच्छा ने शाहजहां के साथ आठ साल कारवास में हिस्सा लिया और अपने पिता की सेवा-सुश्रुषा की। मुसम्मन बुर्ज से ताजमहल को निहारते हुए जनवरी 1666 ई. में शाहजहां की मत्यु हो गई। शाहजहां के निधन के पश्चात साधारण नौकरों के द्वारा उसे ताजमहल में मुमताज महल के बगल में दफना दिया गया।
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