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The Gateway of India was a witness to the end of the British military from India

भारत से ब्रिटिश मिलिट्री के खात्मे का गवाह बना था यह ऐतिहासिक दरवाजा

फतेहपुर सीकरी स्थित बुलन्द दरवाजा’, दिल्ली का इंडिया गेट तथा मुम्बई में अरब सागर के किनारे स्थित गेटवे ऑफ इंडिया भारत के तीन ऐसे ऐतिहासिक दरवाजे हैं जिनका अपना अलग स्वर्णिम इतिहास है।

यदि हम मुम्बई के ऐतिहासिक दरवाजे गेटवे ऑफ इंडियाकी बात करें तो इसका निर्माण ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम और क्ववीन मैरी के प्रथम भारत आगमन की स्मृति में करवाया गया था।

इस तथ्य से इतर गेटवे ऑफ इंडिया उस ऐतिहासिक पल का भी गवाह बना जब हमारे देश से ब्रिटिश मिलिट्री 28 फरवरी 1948 ई. को सर्वदा के लिए इंग्लैण्ड रवाना हो गई। ऐसे में आजाद भारत की धरती से ब्रिटिश मिलिट्री की आखिरी विदाई से जुड़ा रोचक इतिहास जानने के लिए यह स्टोरी अवश्य पढ़ें। 

गेटवे ऑफ इंडिया का संक्षिप्त परिचय

दक्षिण मुम्बई में अरब सागर के किनारे स्थित गेटवे ऑफ़ इंडिया को मुंबई का ताजमहल भी कहते हैं। ऐतिहासिक आभा से युक्त गेटवे ऑफ़ इंडिया देश-दुनिया के सैलानियों के लिए पूरे साल आकर्षण का केन्द्र बना रहता है। गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के साल 1911 में प्रथम भारत आगमन की स्मृति में करवाया गया था।

इंडो-सरसेनिक शैली में निर्मित गेटवे ऑफ इंडिया का अंतिम डिजाइन प्रख्यात आर्किटेक्ट जॉर्ज विटेट ने तैयार किया था जिसे 31 मार्च 1914  ई. को मंजूरी मिली। इसके बाद यह ऐतिहासिक इमारत साल 1924 में बनकर तैयार हुई। तत्पश्चात 4 दिसम्बर, 1924 ई. को इसे जनता के लिए खोल दिया गया।

समुद्री मार्ग से मुंबई पहुंचने पर गेटवे ऑफ इंडिया की इमारत ही सबसे पहले नजर आती है। पीले बेसाल्ट और मजबूत कंक्रीट से​ निर्मित गेटवे ऑफ इंडिया जहां आज मौजूद है, अपोलो बंदर के नाम से विख्यात इस क्षेत्र का इस्तेमाल पहले मछली पकड़ने के लिए किया जाता था।

अरब सागर के किनारे दक्षिण मुंबई बंदरगाह पर स्थित गेटवे ऑफ इंडिया के केंद्रीय गुंबद का व्यास 15 मीटर है और इसकी जमीन से ऊंचाई 26 मीटर है। गेटवे ऑफ इंडिया में चार बुर्ज बने हैं। गेटवे ऑफ इंडिया विजय का प्रतीक एक मेहराब है ​जिसका जटिल जालीदार काम देखते ही बनता है।

भारत को गुलाम बनाने में ब्रिटिश मिलिट्री की भूमिका

यदि हम भारत में अंग्रेजों की साम्राज्यवादी सफलताओं की बात करें तो यह साफ हो जाता है कि भौतिक सभ्यता तथा अस्त्र-शस्त्रों यानि मिलिट्री के मामले में वे अपने प्रतिद्वंदियों से बहुत आगे थे। यही वजह है कि ब्रिटिश मिलिट्री को भारत में ब्रिटिश ताज का रत्न कहा गया। ब्रिटिश भारत के निर्माण में अंग्रेजी सेना ने महती भूमिका निभाई।

भारत में व्यापार करने आए अंग्रेजों ने शुरूआत में अपने व्यापारिक जहाजों तथा कारखानों को समुद्री डाकुओं, लुटेरों और अन्य यूरोपीय शक्तियों (डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी आदि) से रक्षा के नाम पर सेना रखना शुरू किया।

1757 ई. में प्लासी का युद्ध और 1764 ई. में बक्सर का निर्णायक युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने बम्बई, मद्रास और बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना कर न केवल ब्रिटिश मिलिट्री की तैनाती की बल्कि खुद का कमांडर इन चीफ भी नियुक्त किया। हांलाकि उन दिनों ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की सेना में यूरोपीय और भारतीय दोनों शामिल थे।

परन्तु इस ऐतिहासिक घटना के ठीक सौ साल बाद यानि 1857 की महाक्रांति के समय ब्रिटिश मिलिट्री में अंग्रेज सैनिकों की कुल संख्या 34 हजार थी जबकि तकरीबन 2 लाख 50 हजार भारतीय सैनिक थे। विद्रोह की आक्रमता को देखते हुए ब्रिटिश क्राउन ने 1858 ई. के भारत सरकार अधिनियम के तहत एहतियाती कदम उठाते हुए सबसे पहले भारत पर सीधे शासन करना शुरू किया तथा ब्रिटिश सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या पहले से कम कर दी। बतौर उदाहरण- साल 1880 में भारत में मौजूद ब्रिटिश मिलिट्री में जहां ब्रिटिश सैनिकों की संख्या 66 ​हजार थी वहीं भारतीय सैनिकों की संख्या एक लाख तीस हजार थी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1914 में भारत में ब्रिटिश मिलिट्री कुल 130 टुकड़ियां तैनात थी, जिसमें यूरोपीय और भारतीय दोनों ही शामिल थे। भारत में तैनात इस ब्रिटिश मिलिट्री के दम पर इंग्लैण्ड ने कई ऐतिहासिक युद्ध लड़े जैसेएंग्लो-अफगान युद्ध, बोअर युद्ध, बॉक्सर विद्रोह तथा प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध। एक लम्बी लड़ाई के बाद भारतीय मुक्ति संग्राम का वह स्वर्णिम दिन आ ही गया जब ब्रिटिश मिलिट्री को भारत की धरती से अलविदा कहना पड़ा।

गेटवे ऑफ इंडिया से ब्रिटिश मिलिट्री की अंतिम विदाई

दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि भारत की आजादी के ठीक एक साल बाद हमारे देश की धरती से ब्रिटिश मिलिट्री हमेशा-हमेशा के लिए इंग्लैण्ड रवाना हो गई। इस ऐतिहासिक पल का गवाह बना था दक्षिण मु​म्बई में अरब सागर ​के किनारे स्थित गेटवे ऑफ इंडिया ​जहां से 28 फरवरी 1948 ई. को ब्रिटिश मिलिट्री की अंतिम सैन्य टुकड़ी समरसेट लाइट इन्फैंट्री ने भारत की धरती से अंतिम विदाई ली।

समरसेट लाइट इन्फैंट्री के जवान मुम्बई की सड़कों पर मार्च करते हुए गेटवे ऑफ इंडिया पहुंचे। 28 फरवरी 1948 ई. के दिन हजारों लोगों की मौजूदगी में एक विदाई समारोह का आयोजन किया गया था जहां पहले से मौजूद नवगठित भारतीय सेना- मराठा लाइट इन्फैंट्री, 3/5वीं गोरखा और सिख रेजिमेंट के जवानों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया।

विदाई समारोह के दौरान जहां भारत के मिलिट्री बैण्ड ने राष्ट्रगान जन गण मन... बजाया वहीं ब्रिटिश सैन्य बैण्ड ने राष्ट्रगान गॉड सेव द किंग...की धुन बजाई। विदाई के समय ब्रिटिश मिलिट्री को उपहार स्वरूप एक तैल चित्र, भारतीय तिरंगा और गेटवे ऑफ इंडिया का एक रजत मॉडल दिया जिसे गया साल 1911 में ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के भारत आगमन के दौरान बनाया गया था।

इतना ही नहीं, आजादी के बाद मुम्बई के पहले गवर्नर राजा महाराज सिंह ने गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के लिए विदाई और शुभकामना संदेश पढ़े। आखिर में ब्रिटिश सैनिकों की वापसी के प्रभारी व कमांडिंग मेजर जनरल लैश्मर व्हिस्लर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। अंत में एम्प्रेस ऑफ ऑस्ट्रेलिया नामक जहाज पर सवार होकर ब्रिटिश मिलिट्री की अंतिम बटालियन समरसेट लाइट इन्फैंट्री अपने देश इंग्लैण्ड के लिए रवाना हो गई।

सिर्फ़ दो दिन पहले कुछ ऐसी ही घटना पाकिस्तान में भी देखने को मिली जहां 26 फ़रवरी 1948 ई. को ब्रिटिश मिलिट्री ब्लैक वॉच की दूसरी बटालियन हाईलैंडर रेजिमेंट ने कराची की सड़कों पर परेड किया था। पाकिस्तान छोड़ने वाली यह आखिरी ब्रिटिश सेना की इकाई थी।

अब आपका यह सोचना भी लाजिमी है कि ब्रिटिश सेना को भारत छोड़ने में एक साल क्यों लग गए?  दरअसल ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियां और रॉयल एयर फ़ोर्स की एक बड़ी सैन्य टुकड़ी तो 17 अगस्त 1947 ई. को ही स्वदेश रवाना हो गई थी। चूंकि उन दिनों समुद्री परिवहन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी, ऐसे में सम्पूर्ण ब्रिटिश सैन्य टुकड़ियों की चरणबद्ध वापसी में काफी समय लगा और समरसेट लाइट इन्फैंट्री अंतिम सैन्य टुकड़ी बनी जिसने भारत की धरती से विदाई ली।

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