‘ईरान के नेपोलियन’ के नाम से प्रसिद्ध आक्रमणकारी नादिरशाह को भारत कभी नहीं भूल सकता। 20 मार्च 1739 ई. को नादिरशाह ने दिल्ली में प्रवेश किया और 57 दिन तक लूटपाट तथा कत्लेआम करता रहा। इस दौरान नादिरशाह ने तकरीबन 20 हजार दिल्लीवासियों को मौत के घाट उतार दिया। वापसी के समय नादिरशाह प्रख्यात मुगल सिंहासन तख्त-ए-ताउस, कोहिनूर हीरा, 30 करोड़ रुपए नकद, सोना, चांदी, हीरे, जवाहररात के अतिरिक्त 100 हाथी, 7000 घोड़े, 1000 ऊंट, 100 हीजड़े, 130 लेखपाल, 200 उत्तम लोहार, 300 राजमिस्त्री, 100 पत्थर तराश और 200 बढ़ई भी अपने साथ ले गया।
बता दें कि अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली उसी लुटेरे नादिरशाह की सेना का एक सिपाही और उसका उत्तराधिकारी था। जाहिर सी बात है, अहमद शाह अब्दाली के लिए हिन्दुस्तान कोई नया नहीं था, उसने 1748 से 1767 ई. के बीच भारत पर सात आक्रमण किए और दिल्ली से लेकर आगरा तथा मथुरा तक खूब लूटपाट की।
अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली को भारतीय इतिहास में पानीपत के तीसरे युद्ध के लिए सर्वाधिक याद किया जाता है जिसमें मराठों की पूर्णतया हार हुई थी। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में 70 से 80 हजार लोग मारे गए थे। प्रख्यात भारतीय इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने लिखा है कि “महाराष्ट्र में सम्भवत: कोई ऐसा परिवार न था, जिसने कोई न कोई सम्बन्धी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश ही हो गया।”
इसी खूंखार तथा लुटेरे अहमद शाह अब्दाली को अफगानिस्तान में 'बाबा-ए-कौम' यानि 'राष्ट्रपिता' कहा जाता है। इतना ही नहीं, अहमद शाह अब्दाली न केवल अफगानिस्तान बल्कि पाकिस्तान में भी बतौर नायक के रूप में पेश किया जाता है। इस रोचक स्टोरी में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर में भारत के लुटेरे अहमद शाह अब्दाली को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लोग हीरो के रूप में क्यों देखते हैं?
नादिरशाह का उत्तराधिकारी अहमद शाह अब्दाली
नादिरशाह की सेना में महज एक सैनिक था अहमद शाह अब्दाली परन्तु अपनी योग्यता के दम पर वह जल्द ही सेनानायक के पद पर आसीन हो गया। ऐसे में अफगान पदाधिकारी अहमद शाह अब्दाली का नादिरशाह बहुत आदर करता था। नादिरशाह ने एक बार कहा था कि, “मैंने अहमद शाह अब्दाली जैसे चरित्र का व्यक्ति सारे ईरान, तूरान और हिन्दुस्तान में नहीं देखा।”
साल 1747 में नादिरशाह का वध कर दिए जाने पर 25 वर्ष का सेनानायक अहमद शाह अब्दाली कन्धार का स्वतंत्र शासक बन बैठा और उसने अपने सिक्के भी चला दिए। शीघ्र ही उसने काबुल को जीत लिया और आधुनिक अफगान राज्य की नींव रखी।
अहमद शाह अब्दाली की इस उपलब्धि के बावजूद उसकी विनम्रता और ज़बरदस्त शोहरत को देखकर साबिर शाह नामक एक सूफी दरवेश ने उसे ‘दुर्रे- दुर्रानी’ (मोतियों का मोती) की उपाधि से नवाजा। अफगानिस्तान के लोग उसे अहमद शाह दुर्रानी कहते थे, इसी वजह से उसका साम्राज्य दुर्रानी साम्राज्य कहलाता था।
अहमद शाह अब्दाली का भारत पर आक्रमण
अफगानिस्तान में दुर्रानी साम्राज्य की नींव रखने के बाद अहमद शाह अब्दाली ने 50 हजार सैनिकों वाली सेना एकत्र की और नादिरशाह के वैध उत्तराधिकारी के रूप में पश्चिमी पंजाब पर अपना दावा किया। साल 1748 से 1767 ई. के बीच उसने भारत पर कुल सात आक्रमण किए।
1748 ई. में उसका पंजाब पर प्रथम आक्रमण असफल रहा। परन्तु वह सुगमता से हार मानने वाला नहीं था और 1749 में उसने दोबारा आक्रमण किया और पंजाब के गवर्नर मुईनुलमुल्क को परास्त किया। हांलाकि 14000 रुपए वार्षिक ‘कर’ (tax) के वचन देने पर वह लौट गया।
नियमित रूप से यह रुपए नहीं मिलने पर 1752 ई. में उसने पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया। अत: मुगल बादशाह ने नादिरशाह की ही भांति दोबारा लूटे जाने के डर से अब्दाली को पंजाब तथा सिन्ध का प्रदेश सौंप दिया। नवम्बर 1753 ई. में मुइनुलमुल्क की मौत हो गई जिससे पंजाब में अव्यवस्था फैल गई।
मुगल वजीर इमादुलमुल्क ने अदीना बेग को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अहमद शाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बतलाया और साल 1756 के नवम्बर महीने में भारतीय सीमाओं का उल्लंघन कर उसमें प्रवेश कर गया।
जनवरी 1757 में अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली से लेकर मथुरा तथा आगरे तक खूब लूटमार की। वापसी से पूर्व उसने आलमगीर द्वितीय को बादशाह, इमादुलमुल्क को वजीर, रूहेला सरदार नजीबुद्दौला को मीरबख्शी और अपना मुख्य प्रतिनिधि नियुक्त कर अफगानिस्तान चला गया। अहमदशाह अब्दाली द्वारा नियुक्त मुगल बादशाह ‘आलमगीर द्वितीय’ इतना अय्याश था कि चार वर्ग मील में फैले अपने हरम से वह महीनों तक बाहर ही नहीं निकलता था।
अहमद शाह अब्दाली के दौर में मराठे भारत की एकमात्र मुख्य शक्ति थे, जो हिन्दू पादशाही की भावना से प्रेरित होकर दिल्ली पर प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। साल 1757 में रघुनाथ राव के नेतृत्व में मराठों ने दिल्ली पर पुन: आक्रमण किया और अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को मीरबख्शी के पद से हटाकर अहमद शाह बंगश को उस पद पर नियुक्त कर दिया। इतना ही नहीं, मराठों ने सरहिन्द तथा लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। अत: अहमद शाह अब्दाली ने मराठों की इस उद्दण्डता का बदला लेने के लिए भारत पर दोबारा आक्रमण किया।
1761 ई. का आक्रमण अहमदशाह अब्दाली का भारत पर पांचवा आक्रमण था जिसमें उसने मराठों को करारी मात दी। इसके बाद अब्दाली ने 1764 ई. में छठवां तथा 1767 ई. में सातवां आक्रमण सिक्खों के विरूद्ध किया लेकिन वह सिखों को कुचलने में नाकाम रहा।
मराठों के साथ पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी 1761 ई.)
साल 1757 तक मराठे अपने शक्ति के चरमोत्कर्ष पर थे। हांलाकि मराठों ने राजपूतों तथा जाटों से अपने सम्बन्ध पूर्व में ही खराब कर लिए थे। रघुनाथ राव के नेतृत्व में मराठों द्वारा दिल्ली की सत्ता में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से मुसलमानों का एक दल भी मराठों के विरूद्ध हो चुका था। इसी दल ने अहमद शाह अब्दाली से मराठों के विरूद्ध सहायता मांगी।
जनवरी 1760 ई. में दिल्ली के निकट लोनी में अहमदशाह अब्दाली और मराठा सरदार दत्ताजी के बीच युद्ध हुआ जिसमें दत्ताजी मारा गया, ऐसे में मराठा शक्ति तथा अब्दाली के बीच निर्णायक युद्ध होना सम्भावी हो गया।
दत्ताजी की मृत्यु की खबर सुनकर मराठा पेशवा बालाजी बाजीराव ने अपने 17 वर्षीय पुत्र विश्वासराव भाऊ के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना भेजी परन्तु वास्तविक सेनापति उसका चचेरा भाई सदाशिवराव भाऊ (पेशवा बाजीराव प्रथम के छोटे भाई चिमनाजी अप्पा का पुत्र) था।
14 जनवरी 1761 ई. को प्रात: नौ बजे मराठों ने आक्रमण कर दिया। मल्हार राव होल्कर युद्ध के बीच ही भाग निकला। मराठों के पास इब्राहिम गार्दी के नेतृत्व में एक तोपखाना था परन्तु इब्राहिम गार्दी युद्धभूमि में ही मारा गया। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठे बुरी तरह पराजित हुए। विश्वासराव, सदाशिवराव भाऊ, जसवन्तराव पवार, तुकोजी होल्कर, जनकोजी सिन्धिया समेत करीब 28000 हजार मराठा सैनिक मारे गए। एक अनुमान के मुताबिक, कुल स्त्रीयों-पुरूषों तथा तीर्थयात्रियों सहित 70 से 80 हजार लोग मारे गए थे।
पानीपत के पराजय की सूचना एक व्यापारी ने पेशवा को इस संदेश के रूप में दी- “दो मोती विलीन हो गए, बाईस सोने की मुहरें लुप्त हो गईं और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।” मराठा इतिहासकार युदनाथ सरकार ने लिखा है कि “महाराष्ट्र में सम्भवत: कोई ऐसा परिवार न था, जिसने कोई न कोई सम्बन्धी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश ही हो गया।”
20 मार्च 1761 ई. को दिल्ली छोड़ने से पहले अब्दाली ने शाहआलम को मुगल बादशाह, नजीबुद्दौला को मीर बख्शी तथा इमादुलमुल्क को वजीर नियुक्त किया। अहमद शाह अब्दाली ने 1767 ई. में सातवां और अंतिम आक्रमण किया। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों से मुगल साम्राज्य के पतन की गति और तीव्र हो गई तथा अंग्रेजी सम्राज्य का उदय हुआ।
अफगानिस्तान में हीरो क्यों है अहमद शाह अब्दाली
पानीपत की शानदार विजय ने अहमद शाह अब्दाली को अफगानियों की नजर में महान बना दिया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान के कई इलाकों में पानीपत के तृतीय युद्ध को ‘मराटाई वहाल’ (मराठों को शिकस्त देना) के रूप में याद किया जाता है। कन्धार में आज भी पश्तों के बीच एक कहावत मशहूर है— तुम ऐसा दावा कर रहे हो, जैसे मराठों को शिकस्त दे दी है।
मराठों पर निर्णायक विजय हासिल करने वाले अब्दाली ने पश्चिम में ईरान से लेकर पूरब में हिन्दुस्तान के सरहिंद तक एक विशाल दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की। भारतीय इतिहासकार गंडा सिंह अपनी किताब ‘अहमद शाह दुर्रानी: आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान के निर्माता’ में लिखते हैं कि “अहमद शाह अब्दाली सिर से लेकर पैर तक विशुद्ध अफगानी था। उसने अपनी पूरी जिन्दगी मुल्क की बेहतरी में लगा दी थी।”
अब्दाली ने अफगान के तमाम कबीलों के बीच चल रहे आपसी रंजिश को खत्म कर उन्हें एकजुट किया तथा एक आधुनिक अफगान देश की नींव रखी। यही वजह है कि युवा से लेकर बुजुर्ग तक अहमद शाह अब्दाली को बाबा-ए-कौम, अहमद शाह बाबा और अहमद शाह महान भी बुलाते हैं।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्तून इलाकों में लोग अहमद शाह अब्दाली का नाम बहुत अदब से लेते हैं। अब्दाली साम्राज्य की राजधानी कन्धार में अहमदशाह अब्दाली का मकबरा है, ऐसे में अब्दाली की मजार पर फतिहा पढ़ने के लिए पूरे अफगानिस्तान से लोग कन्धार आते हैं। अहमद शाह अब्दाली केवल महान योद्धा नहीं वरन बहुत अच्छी नज्में भी लिखा करता था। उसने पश्तो के अलावा अरबी और भाषा में कई रचनाएं लिखी हैं।
इतिहासकार माउंटस्टार्ट एल्फ़िंस्टन अपनी किताब 'एकाउंट ऑफ़ द किंगडम ऑफ़ काबुल ऐंड इट्स डिपेंडेंसीज़ इन पर्सिया तातारी एंड इंडिया में लिखता है कि “अब्दाली की ख़्वाहिश हमेशा ही एक संत बनने की रही थी। वो एक जन्मजात लेखक थे और आध्यात्मिक रुझान वाले व्यक्ति थे। ”
मजहब के नाम पर बने नए देश पाकिस्तान के निवासी भी इस्लाम और उसके नेतृत्वकर्ताओं को अपना आदर्श मानते हैं, अत: पाकिस्तान ने अपनी एक बैलिस्टिक मिसाइल का नाम अब्दाली के नाम पर रखा है।
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