
आम का सीजन आते ही बाजार में कई वैरायटी के आम दिखने लगते हैं। आम को ‘फलों का राजा’ यूं नहीं कहा गया है, तकरीबन प्रत्येक भारतीय इस फल का दीवाना है। किसी को ‘लंगड़ा आम’ पसन्द है तो किसी को ‘अल्फान्सो’। कोई ‘दशहरी’ का स्वाद लेना चाहता है तो कोई ‘चौसा आम’ खाना चाहता है। मालदा, केसर, बादाम, तोतापुरी, नीलम, हापुस तथा फजली आदि कई बेहतरीन किस्म के आम है, जिनके लोग बेहद शौकीन हैं।
जब आम की बात छिड़ ही गई है, तो बता दें कि आमों के प्रति मुगल बादशाहों की दीवानगी भी कुछ कम नहीं थी। ताकतवर मुगल बादशाहों में बाबर से लेकर औरंगजेब तक, ये सभी आम खाने के बेहद शौकीन थे। यदि इन मुगल बादशाहों की आम के प्रति दीवानगी का इतिहास जानने चाहते हैं, तो यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
बाबर को किस हद तक पसन्द थे आम
भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने अपनी कृति ‘तुज्क-ए-बाबरी’ (बाबरनामा) में पहाड़ों से घिरे काबुल के फलों की बड़ी तारीफ की है जिसमें अंगूर, अनार, खुमानी, सेब, नाशपाती, बेर, आलूबुखारा, अंजीर और अखरोट का नाम शामिल है। बाबर की आत्मकथा से पता चलता है कि वह फरगना के कस्तूरी खरबूजे को सबसे अच्छा फल मानता था, परन्तु उसने यह भी लिखा है कि यदि आम को सही तरीके से खाया जाए तो यह फल कस्तूरी खरबूजे को टक्कर दे सकता है।
ऐतिहासिक कृति ‘तुज्क-ए-बाबरी’ में बाबर ने आम को ‘हिंदुस्तान का सबसे अच्छा फल’ बताया है। दरअसल बाबर जब भारत आया तब उसकी सेना एक आम के बगीचे में ही रूकी थी, बारिश की फुहारों के बीच पहली बार उसने आम का स्वाद चखा था। बाबर लिखता है कि “शुरू में मुझे आम की सुगन्ध कुछ अजीब लगी परन्तु इसका स्वाद बेजोड़ था।”
अपनी कृति ‘तुज्क-ए-बाबरी’ में बाबर ने आम खाने के तरीके के बारे में भी लिखा है। वह लिखता है कि आम में छेदकर उसके स्वादिष्ट रस को चूसकर आनन्द लिया जा सकता है, या फिर आम को निचोड़कर गूदा बना लें और फिर मजे से खाएं। वह आम के छिलके को हटाकर भी इसे खाने की बात करता है।
हुमायूं को भी बेहद पसन्द थे आम
मुगल बादशाह बाबर की तरह उसके बड़े बेटे हुमायूं को भी आम बेहद पसन्द थे। एक किस्सा यह आता है कि शेरशाह सूरी से बिहार के चौसा में हुए युद्ध के समय भी हुमायूं मौका निकालकर आम खाना नहीं भूलता था। आज की तारीख में उस आम को हम लोग ‘चौसा आम’ के नाम से जानते हैं। हांलाकि चौसा के युद्ध में हुमायूं को करारी हार नसीब हुई थी।
हुमायूं को आम किस कदर पसन्द थे, इसका अन्दाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दक्षिण भारत में आम की एक बेहद लोकप्रिय किस्म का नाम ‘हिमाम पसंद’ है। इस आम को मूल रूप से ‘हुमायूं पसन्द’ कहा जाता था। आम की बेहतरीन किस्म ‘हिमाम पसन्द’ की पैदावार आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों में होती है।
आमों का सबसे अधिक दीवाना था अकबर
बाबर और हुमायूं की तुलना में बादशाह अकबर की आमों के प्रति दीवानगी बहुत ज्यादा थी। अकबर आम खाने का इतना शौकीन था कि उसने आमों के बाग भी लगवाए। बतौर उदाहरण- बिहार के दरभंगा जिले के मशहूर ‘लक्खीबाग’ जिसे लोग ‘लख बाग’ भी कहते है, इस बगीचे में अकबर ने एक लाख आम के पेड़ लगवाए थे। उन दिनों लक्खी बाग में कई वैरायटी के आम लगाए गए थे।
अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी कृति ‘आइन-ए-अकबरी’ में आमों का कई बार उल्लेख किया है। अबुल फजल लिखता है कि “भारत के हर कोने में आम मिलता है। आम का रंग और स्वाद बेजोड़ है, यहां तक कि यह फल मुगल शासकों के मनपसन्द खरबूजे और अंगूरों से भी बेहतर है।”
आइन-ए-अकबरी के अनुसार, दिल्ली में भी आम उगाया जाता था, जो स्वाद में काफी अलग होता था। हांलाकि बंगाल के मालदा और अवध से मंगाए जाने वाले आम बेहतर माने जाते थे। अबुल फजल ने आम के अचार का भी उल्लेख किया है, वह आम खाकर दूध पीने की भी बात करता है, जिससे पाचन शक्ति को बढ़ावा मिलता है। इसके साथ ही अबुल फजल ने अपनी कृति में आम के तने में दूध और गुड़ डालने की एक असामान्य खाद पद्धति का वर्णन किया है, जिससे आम के फल मीठे होते हैं।
जहांगीर को भी पसन्द थे आम
बादशाह जहांगीर शराब और अफीम का कुछ ज्यादा ही शौकीन था बावजूद इसके उसने अपनी कृति ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में आम रस की मिठास, सुगन्ध, स्वाद का उल्लेख किया है। उसने अपनी कृति में आगरा प्रान्त के छपरामऊ के आमों को श्रेष्ठ बताया है।
जहांगीर की पादशाह बेगम नूरजहां उसके लिए आम और गुलाब के सुगन्ध वाली ‘पेय पदार्थ’ तैयार करती थी। मध्य प्रदेश के कट्ठीवाड़ा में उगाया जाने वाला दुर्लभ किस्म का ‘नूरजहां आम’ इस बात का सर्वोत्तम उदाहरण है।
‘नूरजहां आम’ साइज (तकरीबन 30 सेमी.तक) में काफी बड़ा होता है। आम खाने के शौकीन ‘नूरजहां आम’ को खूब पसन्द करते हैं। इतना ही नहीं, ‘जहाँगीर आम’ भी बहुत ही बेशकीमती आम की किस्म है। आम की अन्य किस्मों की तुलना में ‘जहांगीर आम’ काफी मीठा होता है।
आमों के लिए शाहजहां ने औरंगजेब को लगाई थी फटकार
कैप्टन रमेश बाबू अपनी किताब ‘माई ओन मझगांव’ में लिखते हैं कि “मझगांव के आम सबसे स्वादिष्ट और मीठे होते थे जो मुगल बादशाह शाहजहां को बेहद पसन्द थे।” वह लिखते हैं कि मझगांव में आम का एक ऐसा बगीचा था जिसकी सुरक्षा मुगलों की एक सैन्य टुकड़ी करती थी। मझगांव के आम मुगल राजधानी दिल्ली तथा आगरा भेजे जाते थे।
दक्कन के आम भी शाहजहां को बेहद पसन्द थे अत: उसने आमों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विशेष व्यवस्था की थी। दक्कन में एक बार आम की पैदावार की बहुत कम हुई, अत: शाहजहां को भेजे गए आमों की मात्रा थोड़ी कम थी, इसके लिए शाहजहां ने नाराजगी जताई और अपने बेटे औरंगजेब को फटकार लगाई।
आमों के प्रति औरंगजेब का लगाव
यद्यपि औरंगजेब ने इतिहास लेखन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था अपितु ‘अदब-ए-आलमगिरी’ में औरंगजेब और आम से जुड़े किस्से दर्ज हैं। बेहद खूबसूरत तवायफ हीराबाई और औरंगजेब की प्रेम कहानी भी औरंगाबाद में आम के बगीचे से ही शुरू हुई थी। औरंगजेब जब दक्कन में था तब उसे आम की कमी बहुत खलती थी। आम के सीजन में वह अपने दरबारियों के जरिए हजारों किमी. दूर से आम की खेप मंगवाता था।
बादशाह शाहजहां के कहने पर औरंगजेब ने एक बार दो दुर्लभ किस्म के आम भिजवाए थे- ‘सुधारस’ और ‘रसना विलास’। यहां सुधारस से तात्पर्य है- अमृत के समान रसीला आम। वहीं रसना विलास का मतलब है- जीफ को आनन्द देने वाला आम। अब आप समझ गए होंगे कि औरंगजेब को आमों को प्रति कितना लगाव था।
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