
दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक काशी के उत्तर पश्चिम में 34 मील दूर गोमती नदी के तट पर स्थित विख्यात नगर जौनपुर की स्थापना सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई मुहम्मद जौना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में की थी। शर्की शासकों के अधीन यहां हुई सांस्कृति उन्नति के कारण जौनपुर को ‘भारत का सिराज’ अथवा ‘सिराज-ए-हिन्द’ कहा जाता था।
मलिक सरवर (1394-1399 ई.)
साल 1394 में सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के एक हिंजड़े मलिक सरवर (ख्वाजा जहां) ने जौनपुर में शर्की राज्य की स्थापना की। जौनपुर राज्य का संस्थापक मलिक सरवर फिरोज शाह तुगलक के पुत्र सुल्तान नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह का दास था जो अपनी योग्यता के दम पर 1389 ई. में वजीर बन गया। 1394 ई. में उसे दोआब के विद्रोह को दबाने के लिए भेजा गया था।
मलिक सरवर ने न केवल दोआब विद्रोह का दमन किया बल्कि अलीगढ़ से लेकर बिहार में तिरहुत तक के सम्पूर्ण प्रदेश पर अधिकार कर लिया। वह स्वतंत्र शासक की भांति व्यवहार करता था। सुल्तान नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह (1394-1412 ई.) ने मलिक सरवर को ‘मलिक-उश-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) तथा ‘ख्वाजा-ए-जहां’ की उपाधि प्रदान की। मलिक सरवर के पद के कारण ही उसका वंश ‘शर्की वंश’ कहलाया।
मुबारक शाह शर्की (1399-1402 ई.)
साल 1398 में तैमूर के आक्रमण के समय मलिक सरवर (ख्वाजा जहां) ने दिल्ली सल्तनत को कोई सहायता प्रदान नहीं की। साल 1399 में ख्वाजा जहां की मृत्यु हो गई। ख्वाजा जहां की मृत्यु के पश्चात उसके दत्तक पुत्र मलिक क़रनफुल ने 1399 ई. में ‘मुबारक शाह शर्की’ के नाम से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर लिया।
मुबारक शाह शर्की ने सुल्तान की उपाधि धारण की और अपने नाम का खुतबा पढ़वाया। हांलाकि सुल्तान नासिरूद्दीन मुहम्मद के शक्तिशाली वजीर मल्लू इकबाल खां ने जौनपुर को जीतने का प्रयत्न किया किन्तु असफल रहा। साल 1402 में मुबारकशाह शर्की की मृत्यु हो गई।
इब्राहीम शाह शर्की (1402-1440 ई.)
मुबारक शाह शर्की की मौत के पश्चात उसका छोटा भाई इब्राहीम ‘शमसुद्दीन इब्राहीम शाह’ के नाम से जौनपुर सल्तनत की गद्दी पर बैठा। इब्राहीम शाह शर्की के सम्बन्ध न केवल नासिरूद्दीन मुहम्मद तुगलक बल्कि सैय्यद वंश के शासक खिज्र खां एवं मुबारक शाह से भी कटुतापूर्ण रहे। विस्तारवादी नीतियों को लेकर इनके बीच संघर्ष हुए लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। इब्राहीम शाह शर्की ने बंगाल को जीतने का प्रयत्न किया लेकिन असफल रहा।
सांस्कृतिक दृष्टि से इब्राहीम शाह शर्की का कार्यकाल महत्वपूर्ण रहा। सुसंस्कृत कला एवं साहित्य प्रेमी इब्राहीम शाह शर्की के समय जौनपुर मुस्लिम विद्या के साथ ही उत्तरी भारत का एक महान सांस्कृति केन्द्र बन गया। इब्राहीम शाह शर्की ने ‘सिराज-ए-हिन्द’ की उपाधि धारण की। स्थापत्य कला की दृष्टि से जौनपुर में ‘शर्की शैली’ का जन्म हुआ।
जौनपुर की बहुचर्चित अटाला मस्जिद शिल्पकला के क्षेत्र में अन्य मस्जिदों के निर्माण के लिए एक आदर्श है जो साल 1408 में इब्राहीम शाह शर्की के कार्यकाल में बनकर तैयार हुई। 1440 ई. में इब्राहीम शाह शर्की की मृत्यु हो गई।
महमूद शाह शर्की (1440 से 1457 ई.)
इब्राहीम शाह शर्की की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र महमूद शाह शर्की जौनपुर का सुल्तान बना। जौनपुर सल्तनत के चौथे सुल्तान महमूदशाह को ‘नासिर-उद-दीन महमूद शाह शर्की’ के नाम से जाना जाता है। अपनी बहादुरी और उदारता के लिए मशहूर महमूद शाह चुनार किले को जीतने में सफल रहा परन्तु कालपी किले को जीतने में नाकाम रहा।
महमूद शाह ने दिल्ली पर भी आक्रमण किया लेकिन उसे बहलोल लोदी ने पराजित कर दिया। महमूद शाह शर्की की बेगम बीबी राजी ने लाल दरवाजा मस्जिद का निर्माण करवाया था, जो उसकी वास्तुकला का एकमात्र जीवित नमूना है। महमूद शाह शर्की की गणना भी सफल शासकों में की जाती है। हांलाकि महमूद शाह शर्की के भाई ने ही उसका वध कर दिया और हुसैन शाह शर्की के नाम से जौनपुर के सिंहासन पर बैठा।
हुसैन शाह शर्की (1457 ई. से 1479 ई.)
हुसैन शाह शर्की जौनपुर सल्तनत तथा शर्की राजवंश का अंतिम सुल्तान साबित हुआ। हुसैन शाह शर्की एक महत्वाकांक्षी शासक था। अत: उड़ीसा और ग्वालियर में मिली शुरुआती सफलताओं के बाद उसने दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया लेकिन साल 1476 में बहलोल लोदी ने उसे पराजित कर दिया।
लिहाजा 1479 ई. में उसे जौनपुर से भागने पर मजबूर होना पड़ा। हुसैनशाह शर्की ने भागकर बंगाल के कहलगांव में सुल्तान अलाउद्दीन हुसैनशाह के यहां शरण ली। हुसैनशाह शर्की ने अपने अंतिम दिन वहीं गुजारे जहां 1505 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
बहलोल लोदी ने अपने सबसे बड़े पुत्र बारबक शाह लोदी को जौनपुर का सुल्तान नियुक्त किया। अंत में सिकन्दर लोदी ने जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। इस प्रकार 75 वर्ष की स्वतंत्र सत्ता के पश्चात जौनपुर राज्य दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया।
शर्की राज्य जौनपुर से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1- शर्की शासकों के अधीन हुई सांस्कृति उन्नति के कारण जौनपुर को कहा जाता था— सिराज-ए-हिन्द अथवा भारत का सिराज ।
2- जौनपुर नगर स्थित है— गोमती नदी के किनारे।
3- जौना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में फिरोजशाह तुगलक द्वारा 1359 ई. में स्थापित राज्य था— जौनपुर।
4- जौनपुर में शर्की राजवंश की स्थापना की थी— मलिक सरवर ने।
5- शर्की राजवंश का संस्थापक मलिक सरवर था— अफ्रीकी मूल का गुलाम।
6- मलिक सरवर का दत्तक पुत्र ‘मलिक करनफुल’ था— हिन्दू गुलाम लड़का एवं फिरोजशाह तुगलक का जल वाहक।
7- सुल्तान नासिरूद्दीन महमूद ने मलिक सरवर (ख्वाजा जहां) को उपाधि दी थी— मलिक-उस-शर्क की।
8- ‘मलिक-उस-शर्क’ का अर्थ है— पूर्व का स्वामी।
9- स्थापत्य कला के क्षेत्र में जौनपुर की ‘शर्की शैली’ का जन्मदाता था— इब्राहीम शाह शर्की।
10- इब्राहीम शाह शर्की ने संगीत और नृत्य पर एक विशाल पुस्तकालय स्थापित किया था— कारा में।
11- जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिलाया था— सिकन्दर लोदी ने।
12- महमूद शाह शर्की का एक अन्य नाम था— भीकन खान।
13- सिकन्दर लोदी के समय जौनपुर का शासक था— हुसैनशाह शर्की।
14- इब्राहीम शाह शर्की द्वारा निर्मित मस्जिदें इस प्रकार हैं— अटाला मस्जिद (अटाला देवी के मंदिर पर निर्मित), फोर्ट मस्जिद, झंझोरी मस्जिद।
15- जौनपुर के अटाला देवी मंदिर निर्माण किसने करवाया था— कन्नौज के राजा विजयचन्द्र ने।
16- अटाला मस्जिद की नींव फ़िरोज़ शाह तुगलक ने 1376 ई.में रखी थी, जिसका निर्माणकार्य 1408 ई.में पूरा करवाया था— इब्राहीम शाह शर्की ने।
17- 1450 ई. में लाल दरवाजा मस्जिद का निर्माण करवाया था—महमूद शाह शर्की ने।
18- उड़ीसा के सम्राट कपिलेन्द्र देव गजपति ने हराया था— महमूद शाह शर्की को।
19- हुसैनशाह शर्की ने द्वारा निर्मित मस्जिद— जामी मस्जिद (1470 ई.में)।
20- हुसैनशाह शर्की एक प्रतिभाशाली संगीतकार था जिसने आविष्कार किया था— जुंग्लाह राग का।
21- जौनपुर की मस्जिदों में मीनारें नहीं हैं। चौकोर स्तम्भ एवं छोटी दहलीज इसकी मुख्य विशेषताएं हैं।
22- पद्मावत के लेखक मलिक मुहम्मद जायसी का निवास स्थान था— जौनपुर।
23- उत्तर प्रदेश, बिहार तथा नेपाल के अधिकांश हिस्सों पर शासन था— जौनपुर सल्तनत का।
24- हुसैनशाह शर्की ने ‘गन्धर्व’ की उपाधि धारण की, उसने कई रागों की रचना की— जौनपुरी-असावरी, जौनपुरी-बसन्त, मल्हार-श्याम, भोपाल-श्याम आदि।
25- इब्राहिम शाह शर्की के शासनकाल में इस्लामी धर्मशास्त्र और कानून पर लिखे गए दस्तावेज—हाशिया-ए-हिंदी, बहार-उल-मौवाज और फतवा-ए-इब्राहिमशाही।