
8वीं से 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व का एक प्रमुख लक्षण नगरीकरण था। सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के पश्चात प्राचीन भारत में दूसरी बार बड़े शहर अस्तित्व में आए परिणामस्वरूप महाजनपदों का उदय हुआ। इस काल में पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार में लोहे का अत्यधिक इस्तेमाल होने लगा था। आहत अथवा पंचमार्क सिक्के (अधिकांशत: चांदी के ) भी छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में ही शुरू हुए। यह वही दौर था जब भारत में लेखन परम्परा की शुरूआत हुई।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महाजनपदों की शासन प्रणाली में ब्राह्मण तथा क्षत्रियों को ‘कर’ से मुक्ति थी। भारत के अधिकांश महाजनपद व्यापारिक मार्गों पर स्थित थे अत: इनके सहारे बहुमूल्य सामानों का आयात-निर्यात होता था।
प्रत्येक महाजनपद की राजधानी पूरी तरह से किलेबंद थी। राजाओं के पास नियमित सेना थी। राजाओं को व्यापारियों, शिकारियों, चरवाहों, कृषकों तथा शिल्पकारों से ‘कर’ (tax) के अतिरिक्त उपहार आदि की प्राप्ति होती थी। महाजनपदों में न्याय एवं सुरक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाता था। राजा के निर्वाचित होने से गणराज्यों में विद्रोह की सम्भावना नगण्य होती थी।
चूंकि अब हल के फाल लोहे से बनने लगे थे जिससे कठोर जमीन को भी आसानी से जोता जा सकता था अत: पैदावार में काफी वृद्धि हुई। धान के अत्यधिक उत्पादन से ज्यादा लोगों का पेट पालना संभव हो गया। कृषि ‘कर’ के रूप में उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। कृषि क्षेत्र में समृद्धि से महाजनपदों की आय में बढ़ोतरी होने लगी। महाजनपदों में राजाओं का शासन उदार तथा जनहित में होता था तथा आपसी सद्भाव का विशेष ख्याल रखा जाता था।
16 महाजनपदों की राजधानी
बौद्ध ग्रन्थ ‘अंगुत्तर निकाय’ तथा जैन ग्रन्थ ‘भगवती सूत्र’ में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है। इन सोलह महाजनपदों में चार महाजनपद - 1.मगध, 2.कोशल, 3.वत्स तथा 4. अवन्ति सबसे अधिक शक्तिशाली थे, साथ ही इन चारों महाजनपदों में राजतंत्रात्मक शासन प्रणाली थी। 16 महाजनपदों में से 15 महाजनपद उत्तरी भारत से थे जबकि अस्मक ही एकमात्र ऐसा महाजनपद था जो दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के किनारे स्थित था।
बौद्ध ग्रन्थ ‘अंगुत्तर निकाय’ में वर्णित 16 महाजनपदों के नाम इस प्रकार हैं — 1. काशी (राजधानी- वाराणसी), 2. कोशल (राजधानी- श्रावस्ती/अयोध्या), 3. अंग (राजधानी-चम्पा), 4. मगध (राजधानी-राजगृह/गिरिव्रज), 5. वत्स (राजधानी-कौशाम्बी), 6. वज्जि (राजधानी-विदेह/मिथिला), 7. मल्ल (राजधानी - कुशीनारा व पावा), 8. अवन्ति (राजधानी- उज्जयिनी व महिष्मति), 9. चेदि (राजधानी- शुक्तिमति), 10. अश्मक (राजधानी- पोटन), 11. कुरू (राजधानी-इन्द्रप्रस्थ), 12. पांचाल (राजधानी- उत्तरी पांचाल का अहिच्छत्र व दक्षिणी पांचाल का काम्पिल्य), 13.मत्स्य (राजधानी-विराटनगर), 14. सूरसेन (राजधानी-मथुरा), 15. गांधार (राजधानी-तक्षशिला), 16. कम्बोज (राजधानी-हाटक अथवा राजपुर)।
16 महाजनपदों की वर्तमान स्थिति तथा विवरण
1.काशी — वर्तमान में वाराणसी तथा उसके आसपास का क्षेत्र काशी महाजनपद था। जातक ग्रन्थों से पता चलता है कि काशी एक महान, समृद्धिशाली तथा साधन-सम्पन्न राज्य था। बौद्ध ग्रन्थों से काशी एवं कोशल के बीच दीर्घकालीन संघर्ष का विवरण मिलता है। काशी के शक्तिशाली राजा ब्रह्मदत्त ने कोशल पर विजय प्राप्त की थी। अंत में कोशल के राजा कंस ने काशी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
2. कोशल — वर्तमान फैजाबाद के आसपास का क्षेत्र कोशल महाजनपद था। रामायणकालीन कोशल की राजधानी अयोध्या थी। बुद्ध काल में उत्तरी कोशल की राजधानी साकेत तथा दक्षिणी कोशल की राजधानी श्रावस्ती थी। बता दें कि साकेत का ही दूसरा नाम अयोध्या था। कोशल के प्रसिद्ध शासक प्रसेनजित ने अपनी बहन कोसल देवी का विवाह बिम्बिसार से करते समय उसे दहेज के रूप में काशी दिया था।
3. अंग — वर्तमान भागलपुर तथा मुंगेर जिला ही अंग महाजनपद था। पालि साहित्य में अंग देश का उल्लेख मिलता है। अंग की राजधानी चंपा को पहले ‘मालिनी’ नाम से जाना जाता था। गौतम बुद्ध के समय अंग तथा मगध देशों के बीच सदा ही युद्ध की स्थिति बनी रहती थी। कुछ समय के लिए अंग देश का हिस्सा बन चुका था मगध, किन्तु जल्द ही अंग का पतन हो गया। बिम्बिसार ने मगध तथा अंग दोनों पर अधिकार कर लिया।
4. मगध — वर्तमान पटना तथा गया जिले का क्षेत्र ही सर्वाधिक शक्तिशाली मगध महाजनपद था। वेदों में मगध को ‘अर्द्ध ब्राह्मण’ राज्य बताया गया है। चम्पा नदी मगध को अंग से अलग करती थी। मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण विन्ध्यपर्वत तक था। मगध महाजनपद की सीमा पूर्व में चम्पा नदी से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी। पांच पहाड़ियों के बीच स्थित थी मगध की राजधानी राजगृह। कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र स्थानान्तरित हो गई।
5. वत्स — वर्तमान इलाहाबाद और बांदा जिला ही वत्स महाजनपद था। वत्स महाजनपद की राजधानी कौशाम्बी थी। विष्णु पुराण के अनुसार, गंगा की भयानक बाढ़ में जब हस्तिनापुर नष्ट हो गया तब जनमेजय के प्रपौत्र निचक्षु ने कौशाम्बी को अपना राजधानी बनाया। बुद्ध काल में वत्स का शासक उदयन था। पुराणों के अनुसार, उदयन के पिता परतप ने अंग की राजधानी चम्पा को जीता था। कौशाम्बी में उदयन के राजप्रासाद के अवशेष प्राप्त होते हैं।
6. वज्जि — आठ राज्यों का एक संघ था वज्जि। इसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवी, मिथिला के विदेह तथा कुण्डग्राम के ज्ञातृक कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध थे। वज्जि संघ में लिच्छवियों को परम्परा आधारित न्याय-व्यवस्था के लिए जाना जाता है।
लिच्छवि गणराज्य को विश्व का पहला गणतंत्र माना जाता है। वर्तमान में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित आधुनिक बसाढ़ ही वैशाली है। जबकि कुण्डग्राम वैशाली के ही समीप स्थित था। वहीं मिथिला की पहचान अभी नेपाल की सीमा में मौजूद जनकपुर नामक नगर से की जाती है।
7. मल्ल — पूर्वी उत्तर प्रदेश का देवरिया जिला ही मल्ल महाजनपद था। मल्ल महाजनपद में बौद्ध तथा जैन धर्म बड़े व्यापक रूप से फैला। मल्ल राज्य की पहली राजधानी कुशीनारा में महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद इस राज्य ने अपनी स्वतंत्रता खो दी। मगध ने मल्ल पर विजय प्राप्त कर इसे अपने राज्य में मिला लिया।
8. अवन्ति —वर्तमान में पश्चिमी तथा मध्य मालवा का क्षेत्र ही अवन्ति महाजनपद था। प्राचीन काल में उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जैन थी तथा दक्षिणी अवंति का प्रमुख नगर महिष्मती था। महावीर स्वामी तथा गौतम बुद्ध के समय चंड प्रद्योत अवन्ति का राजा था।
अवंति महाजनपद बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र था। अवंति राज्य का आर्थिक महत्व इसलिए था क्योंकि अनेक व्यापार मार्ग इसी राज्य से होकर गुजरते थे। मगध के सम्राट शिशुनाग ने अवंति को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। प्राचीन काल में अवन्ति में हैहय वंश का शासन था।
9. चेदि —आधुनिक बुन्देलखण्ड व उसका सीमावर्ती भाग ही चेदि महाजनपद था। चेदि महाजनपद यमुना नदी के किनारे स्थित था। इसकी सीमाएं कुरू महाजनपद से जुड़ी हुई थीं। महाभारत काल में चेदि के शासक शिशुपाल का वध यदुवंशी राजा भगवान श्रीकृष्ण ने किया था।
कलिंग (उड़ीसा) का राजा खारवेल भी चेदि वंश का ही था। सम्भवत: चेदि प्रदेश की शाखा ने यहां राज्य स्थापित किया होगा। चेदि राज्य को बिम्बिसार ने मगध साम्राज्य में मिला लिया था।
10. अश्मक — आन्ध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर स्थित था अश्मक महाजनपद। अश्मक और मूलक दोनों ही प्रदेशों में इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय थे। दीघनिकाय के ‘महागोविन्दसुत’ के अनुसार, “रेणु नामक सम्राट के पुरोहित महागोविन्द ने साम्राज्य को सात अलग-अलग राज्यों में बांटा था, इनमें से एक अश्मक भी था।” यूनानी लेखकों के अनुसार सिकन्दर के आक्रमण के समय भी यह क्षेत्र मौजूद था।
11. कुरू — आज के मेरठ, दिल्ली व थानेश्वर के आसपास का क्षेत्र था कुरू महाजनपद। कुरू महाजनपद की राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी। महाभारतकालीन हस्तिनापुर नगर भी इसी राज्य का हिस्सा था। जातक ग्रन्थों के मुताबिक, हस्तिनापुर नगर की परिधि तकरीबन दो हजार मील थी।
बुद्ध के समय कुरू का राजा कौरव्य था। बुद्ध ने किसी पेड़ के नीचे यहां प्रवचन दिया था। बल और बुद्धि के लिए प्रसिद्ध कुरू राज्य पहले एक राजतंत्रात्मक राज्य था बाद में यहां गणतंत्र की स्थापना हुई।
12. पांचाल — पांचाल महाजनपद की पहचान वर्तमान रूहेलखण्ड स्थित बरेली, बदायूं तथा फर्रूखाबाद के जिलों से की जाती है। महाभारत में पांचाल के कई उल्लेख हैं। पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपदी भी ‘पांचाली’ कहलाती थी। पांचाल मूलत: एक राजतंत्रात्मक देश था किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि कौटिल्य के समय यह एक गणराज्य हो गया था।
13. मत्स्य — मत्स्य महाजनपद की राजधानी विराटनगर थी। वर्तमान जयपुर, अलवर तथा भरतपुर का क्षेत्र ही मत्स्य महाजनपद था। मत्स्य महाजनपद की राजधानी विराटनगर थी। महाभारत महाकाव्य के अनुसार, इसी राज्य ने अज्ञातवास के दौरान पांडवों को शरण दिया था। मत्स्य जनपद कभी चेदि जनपद के अधीन था। बुद्ध काल में इस राज्य का कोई राजनीतिक महत्व नहीं था।
14. सूरसेन — आधुनिक ब्रजमण्डल (मथुरा तथा आसपास का क्षेत्र) का क्षेत्र ही सूरसेन महाजनपद था। महाभारत तथा पुराणों के अनुसार, यहां यदुवंशियों का शासन था। कृष्ण यहां के राजा थे। बुद्ध काल में अवन्तिपुत्र यहां का राजा था, जो भगवान बुद्ध का शिष्य था। उसी की सहायता से मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार सम्भव हुआ। मज्जिझम निकाय के मुताबिक, अवन्ति पुत्र का जन्म अवन्ति नरेश प्रद्योत की कन्या से हुआ था।
15. गांधार — गांधार महाजनपद की पहचान पाकिस्तान के पेशावर तथा रावलपिण्डी जिले से की जाती है। गांधार की राजधानी तक्षशिला प्राचीन काल में विद्या एवं व्यापार का केन्द्र थी। छठी शताब्दी ईसापूर्व में गान्धार के शासक पुष्कर सारिन ने अवंति के राजा चंड प्रद्योत को हराया। मगध के साथ भी उसके अच्छे सम्बन्ध थे।
16. कम्बोज — दक्षिणी-पश्चिमी कश्मीर तथा कपिशा (राजौरी तथा हजारा के जिले) के आसपास का क्षेत्र ही कम्बोज महाजनपद था। ब्राह्मण ग्रन्थों में कम्बोज निवासियों को असभ्य माना गया है। कौटिल्य रचित ‘अर्थशास्त्र’ में इन्हें ‘वार्तासस्त्रोपजीवी संघ’ कहा गया है, जिसका अर्थ है- “कृषकों, व्यापारियों, चरवाहों और योद्धाओं का संघ।”
कम्बोज महाजनपद में पहले शासन की बागडोर राजा के हाथ में होती थी परन्तु आर्चाय कौटिल्य के समय यह एक संघ राज्य बन गया। चन्द्रवर्धन तथा सुदाक्ष्णा कम्बोज के दो सबसे प्रसिद्ध शासक हुए।
चार शक्तिशाली राजतंत्र
16 महाजनपदों के बीच हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप छोटे जनपदों का बड़े राज्यों में विलय हो गया। इस प्रकार केवल चार बड़े राजतंत्र ही प्रमुख रहे। इनके नाम हैं- मगध, कोशल, वत्स और अवन्ति।
1. मगध
16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली राज्य मगध साबित हुआ। कालान्तर में सभी राज्य मगध में ही मिला लिए गए, ऐसे में मगध का इतिहास पूरे भारत का इतिहास बना। महान विजेता बिम्बिसार को मगध का वास्तविक संस्थापक माना जाता है जो भगवान बुद्ध का मित्र एवं संरक्षक था। बिम्बसार ने अंग को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
अपने पिता बिम्बसार की हत्या कर अजातशत्रु मगध की गद्दी पर बैठा। घोर साम्राज्यवादी अजातशत्रु ने मल्ल तथा वज्जि संघों को पराजित कर मगध में मिला लिया। अजातशत्रु के समय मगध राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
2. कोशल
कोशल उत्तरी भारत का एक प्रमुख राज्य था जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। कोशल के राजा कंस ने काशी को जीता था, इसके बाद उसके पुत्र महाकोशल के समय काशी पर पूर्ण अधिकार हो गया। चूंकि काशी व्यापार तथा वस्त्रोद्योग का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था, साथ ही काशी का तक्षशीला, सौवीर तथा अन्य दूरवर्ती प्रदेशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे। अत: इस राज्य के मिल जाने से कोशल की राजनीतिक तथा आर्थिक समृद्धि काफी बढ़ गई।
बुद्ध के समय कोशल का राजा प्रसेनजित था, जो महाकोशल का पुत्र था। उसने अपनी बहन कोसल देवी का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार से करते समय उसे दहेज के रूप में काशी दिया था। प्रसेनजित के समय कोशल राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
काशी के अतिरिक्त कपिलवस्तु के शाक्य, केसपुत्त के कालाम, पावा और कुशीनारा के मल्ल तथा रामगाम के कोलिय व पिप्पलियन के मोरिय गणराज्यों पर कोशल का अधिकार था। महात्मा बुद्ध तथा उनके मत के प्रति श्रद्धालु प्रसेनजित की राजधानी में भगवान बुद्ध प्राय: जाते तथा विश्राम करते थे।
प्रसेनजित की अनुपस्थिति में उसके पुत्र विड्डभ ने कोशल पर अधिकार कर लिया। प्रसेनजित ने भागकर मगध में शरण लेनी चाही किन्तु राजगृह नगर के समीप ही थकान से उसकी मृत्यु हो गई। विड्डभ ने शाक्यों पर आक्रमण कर पुरूषों, स्त्रियों तथा बच्चों का भीषण नरसंहार किया। परन्तु उसके दुष्कृत्यों का फल भी उसे तुरन्त ही मिल गया। दरअसल विड्डभ जब अपनी पूरी सेना के साथ लौट रहा था, तभी वह राप्ती नदी की बाढ़ में अपनी पूरी सेना के साथ नष्ट हो गया। यह घटना महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण से कुछ समय पहले की है।
विड्डभ के उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है, विड्डभ के साथ ही कोशल राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया अथवा मगध में मिला लिया गया।
3. वत्स
इलाहाबाद और बांदा जनपदों की धरती पर स्थित वत्स महाजनपद महात्मा बुद्ध के समय का एक प्रमुख राजतंत्र था। वत्स का पड़ोसी राज्य अवन्ति था, ये दोनों की साम्राज्यवादी थे। वत्स की राजधानी कौशाम्बी थी। वत्स राज्य में उदयन का शासन था। एक बार हाथियों का शिकार करते हुए अवन्ति के सैनिकों ने उदयन को बन्दी बना लिया।
इसके बाद उदयन को कारगार में ही अवन्तिराज प्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता से प्रेम हो गया। इतना ही नहीं, उदयन अपनी प्रेमिका वासवदत्ता का अपहरण कर कौशाम्बी लौट आया। बाद में अवन्तिराज प्रद्योत ने इस विवाह को अनुमति प्रदान कर दी। इस प्रकार वत्स तथा अवन्ति में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गया।
उदयन प्रारम्भ में बौद्ध मतानुयायी नहीं था, परन्तु बाद में प्रख्यात ‘बौद्ध भिक्षु पिण्डोल’ ने उसे बौद्ध मत में दीक्षित किया। उदयन के शासनकाल में कौशाम्बी में कई बौद्ध मठ जिनका सर्वप्रमुख घोषिताराम था।
सोमदेव रचित ‘कथासरित्सागर’ तथा श्रीहर्ष की ‘प्रियदर्शिका’ के अनुसार, उदयन ने कलिंग पर विजय प्राप्त की थी तथा अंग देश की गद्दी पर अपने श्वसुर को विराजमान किया था परन्तु इन विवरणों में सटीकता का आभाव है। उदयन के पश्चात वत्स राज्य का इतिहास अन्धकारपूर्ण है। ऐसा प्रतीत होता है कि उदयन के साथ ही वत्स राज्य का पतन हो गया था तथा यह राज्य अवन्ति के अधीन हो गया।
4. अवन्ति
पश्चिमी भारत का प्रमुख राजतंत्र था अवन्ति। महात्मा बुद्ध के समय पुलिक का पुत्र प्रद्योत यहां का राजा था। विष्णु पुराण में पुलिक को बृहद्रथ वंश के अंतिम शासक रिपुंजय का अमात्य बताया गया है। प्रद्योत एक महत्कांक्षी शासक था, उसकी कठोर सैन्य नीतियों के कारण उसे ‘चण्ड प्रद्योत’ कहा गया है।
राजा प्रद्योत के समय सम्पूर्ण मालवा तथा पूर्व एवं दक्षिण के कुछ प्रदेश अवन्ति के अधीन हो चुके थे। अवन्ति में लौह उद्योग विकसित अवस्था में थे अत: यह राज्य आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न था। राजा प्रद्योत ने उच्च कोटि के लौह अस्त्र-शस्त्रों के दम पर वर्षों तक मगध राज्य का प्रतिरोध किया था।
बिम्बिसार के समय मगध और अंवति के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। स्रोतों के मुताबिक, एक बार अवन्ति का राजा प्रद्योत पाण्डुरोग से ग्रसित हो गया तब उसके इलाज के लिए बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य ‘जीवक’ को भेजा था। हांलाकि बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु के समय मगध और अवन्ति के बीच सम्बन्ध सौहार्द्रपूर्ण नहीं रहे।
मज्झिम निकाय के अनुसार, राजा प्रद्योत के आक्रमण के भय से अजातशत्रु ने अपनी राजधानी की किलेबन्दी करवाई परन्तु इन दोनों के बीच कोई प्रत्यक्ष संघर्ष नहीं हो सका। राजा प्रद्योत के पुत्र पालक ने अवन्ति पर 24 वर्षों तक शासन किया। उसने वत्स पर आक्रमण कर उसकी राजधानी कौशाम्बी पर कब्जा कर लिया। पालक ने अपने पुत्र विशाखयूप को कौशाम्बी का उपराजा बनाया था। पालक के बाद विशाखयूप, अजक तथा नंदिवर्धन ने क्रमश: अवन्ति पर शासन किया परन्तु शिशुनाग ने इन सबका अन्त कर दिया।
सोलह महाजनपदों से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
— महाजनपद दो प्रकार के थे- राजतंत्र तथा गणतंत्र। वज्जि और मल्ल (गणतंत्रात्मक शासन) को छोड़कर शेष सभी महाजनपदों में राजतंत्रीय शासन था।
— बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनि की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र, तथा महाभारत महाकाव्य में जनपदों की सूची मिलती है।
— संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरणविद् पाणिनी ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है।
— सोलह महाजनपदों में से 15 महाजनपद उत्तर भारत में थे। जबकि एकमात्र महाजनपद अश्मक दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के तट पर स्थित था।
— सोलह महाजनपदों में सबसे बड़ा एवं शक्तिशाली महाजनपद ‘मगध’ था।
— अश्मक महाजनपद ‘अस्साका’ के नाम से जाना जाता था।
— कोशल, अवन्ति तथा पांचाल की दो-दो राजधानियां थीं।
— उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी माहिष्मति (आधुनिक माहेश्वर) थी।
— क्षिप्रा नदी तट पर स्थित अवन्ति महाजनपद की राजधानी उज्जयिनी को विशाला, अमरावती आदि नामों से भी जाना जाता है।
— महाजनपदों की गणतंत्रात्मक व्यवस्था में प्रतिनिधियों की संख्या ‘संथागार’ कहलाती थी।
— वज्जि संघ में लिच्छवियों को परम्परा आधारित न्याय-व्यवस्था के लिए जाना जाता है।
— लिच्छवि गणराज्य को ‘विश्व का पहला गणतंत्र’ माना जाता है।
— महाजनपदों की शासन प्रणाली में ब्राह्मण तथा क्षत्रियों को ‘कर’ (tax) से मुक्ति थी।
— मल्ल महाजनपद के दो भाग थे — 1.कुशीनारा के मल्ल 2. पावा के मल्ल।
— महात्मा बुद्ध के जन्म से पहले सोलह महाजनपदों का जन्म हो चुका था।
— बुद्धकालीन छह प्रमुख नगर थे- 1. राजगिरि, 2. चम्पा, 3.कौशाम्बी, 4. साकेत, 5. श्रावस्ती एवं 6. वाराणसी।
— कुशीनारा में ही भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था।
— काशी महाजनपद सूती वस्त्रों तथा घोड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। व्यापारी लोग उत्तरापथ से आकर काशी में घोड़े बेचते थे।
— जातक ग्रन्थों के मुताबिक, काशी नगरी 12 योजन विस्तृत थी।
— रामायणकाल में कोशल की राजधानी अयोध्या थी। कालान्तर में उत्तरी कोशल की राजधानी साकेत (अयोध्या) तथा दक्षिणी कोशल की राजधानी श्रावस्ती हो गई।
— कोशल के राजा प्रसेनजीत बुद्ध के समकालीन थे।
— अथर्ववेद में मगध तथा अंग के निवासियों को ‘व्रात्य’ कहा गया है।
— महाभारत काल में अंग का शासक महारथी कर्ण तथा चेदि महाजनपद का शासक शिशुपाल था। शिशुपाल का वध यदुवंशी राजा भगवान श्रीकृष्ण ने किया था।
— कम्बोज महाजनपद श्रेष्ठ घोड़ों के लिए विख्यात था।
— गंगा की भयानक बाढ़ में जब हस्तिनापुर नष्ट हो गया तब जनमेजय के प्रपौत्र निचक्षु ने कौशाम्बी को अपना राजधानी बनाया।
— सूरसेन महाजनपद (मथुरा के आसपास का क्षेत्र) में यदुवंश का शासन था। कृष्ण यहां के राजा थे। गौतम बुद्ध के समय सूरसेन का राजा अवन्ति का पुत्र था, जो बुद्ध का शिष्य था।
— छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ही हर्यक, शिशुनाग तथा नन्द वंश का उदय हुआ।
— तक्षशिला के अतिरिक्त विराटनगर, श्रावस्ती ,कौशाम्बी, पद्मावती, वैशाली, नालंदा इत्यादि ऐतिहासिक स्थलों के खोज का श्रेय एलेक्ज़ेंडर कनिंघम को जाता है।
निष्कर्षतया वैदिक काल के अन्त में जनों ने क्षेत्रीय संगठन बनाकर एक नए और स्थिर निवासीय क्षेत्रों को जन्म दिया जिन्हें राज्य अथवा जनपद के रूप में जाना जाता है।