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Rajaraja was the richest man in the world who was the builder of brihadeshwara temple

इस भव्य शिव मंदिर का निर्माणकर्ता था दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति

चोल सम्राटों ने अपनी शक्ति और ऐश्वर्य का प्रदशर्न भव्य तथा विशाल शिखर वाले मंदिरों के निर्माण में किया। चोल मंदिर के वास्तुकारों ने देवताओं की तरह​ कल्पना की और मणिकारों की भांति इस कल्पना को कला में प्रदर्शित किया।

ऐसा ही एक भव्य शिव मंदिर है, जो भारत में निर्माण कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। जी हां,  मैं तमिलनाडु के तंजौर स्थित बृहदीश्वर मंदिर की बात कर रहा हूं, जिसे राजराज चोल ने तकरीबन 1000 ई. में बनवाया था। भारतीय वास्तुकारों द्वारा निर्मित मंदिरों में यह शिव मंदिर सबसे भव्य एवं विशाल है।

बृहदीश्वर मंदिर के निर्माण में जितनी अकूत दौलत लगी और राजराज ने जितने हीरे, मोती, मूंगे, स्वर्ण तथा चांदी आदि के आभूषण दान किए, वह चोल सम्राट को उस युग में दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बनाती थी। अब आपका यह सोचना लाजिमी है कि तंजौर के इस विशाल शिव मंदिर में आखिर कितनी दौलत लगी थी और कितना खजना रखा हुआ था? यह महत्वपूर्ण तथ्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

चोल सम्राट राजराज की सिंहल (श्रीलंका) विजय

चोल सम्राट राजराज एक महान विजेता, कुशल प्रशासक, निर्माता तथा धर्मसहिष्णु सम्राट था। राजनीतिक तथा सांस्कृतिक, दोनों ​ही दृष्टियों से उसका शासनकाल  (985 से 1015 ई.) चोल वंश के चरमोत्कर्ष को व्यक्त करता है। चोल राज्य की गद्दी पर बैठने के बाद राजराज ने कुछ वर्षों तक अपनी आं​तरिक स्थि​ति सुदृढ़ की तत्पश्चात उसने दिग्विजय हेतु सैनिक अभियान शुरू किए।

चोल सम्राट ने सर्वप्रथम दक्षिण में केरल तथा पाण्डय के राजाओं को पराजित करने के बाद सिंहल द्वीप (श्रीलंका) पर ध्यान दिया। सिंहल द्वीप का शासक महेन्द्र पंचम केरल तथा पाण्डय राजाओं का मित्र था। महेन्द्र ने राजराज के विरूद्ध केरल नरेश भास्करवर्मा का साथ दिया था।

प्रख्यात इतिहासकार नीलकण्ठ शास्त्री के अनुसारकेरल, पाण्डय तथा सिंहल द्वीप ने मिलकर राजराज के विरूद्ध एक संघ बना लिया था। इसी वजह से केरल तथा पाण्डय विजय के पश्चात राजराज ने सिंहल द्वीप की तरफ कूच किया।चोल सम्राट राजराज ने एक शक्तिशाली नौसेना के साथ सिंहल द्वीप पर आक्रमण किया। राजराज ने सिंहल नरेश महेन्द्र पंचम को करारी शिकस्त दी। राजराज की चोल सेना ने अनुराधापुर को ध्वस्त कर दिया, साथ ही सिंहल द्वीप के सम्पूर्ण उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया।

तिरूवालंगाडु तामपत्रों में राजराज के सिंहल विजय का विवरण कुछ इस तरह मिलता है- “श्रीराम ने वानरों की मदद से समुद्र पर पुल बनाकर बड़ी कठिनाई से लंका के राजा रावण का वध किया था। परन्तु चोल सम्राट राजराज तो राम से भी अधिक प्रतापी सिद्ध हुआ, उसकी शक्तिशाली नौसेना ने समुद्र पारकर लंका को जला दिया।”  

सिंहल पर अधिकार करने के बाद राजराज ने वहां एक प्रान्त स्थापित किया और अनुराधापुर की जगह पोलोन्नरूव को अपनी राजधानी बनाई तथा उसका नाम जननाथ मंगलम् रखा। राजराज निर्मित तंजौर के बृहदीश्वर मंदिर में रत्नजड़ित कांसे की 60 मूर्तियों के साथ ही सोने-चांदी के टनों सिक्के सिंहल द्वीप (श्रीलंका) से लाए गए थे। इससे यह साबित होता है कि सिंहल विजय के पश्चात राजराज को अकूत सम्पत्ति प्राप्त हुई थी।

तंजौर के बृहदीश्वर मंदिर की वास्तुकला

चोल सम्राट राजराज ने तकरीबन 1000 ई. में तंजौर में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जो भारत का सबसे बड़ा शिव मंदिर है। तंजौर का यह भव्य शिव मंदिर राजराजेश्वर अथवा बृहदीश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है।

180 फुट लम्बे इस शिव मंदिर का शिखर पिरामिड आकार का है, जो 196 फुट उंचा है। मंदिर शिखर की मंजिलें बराबर छोटी होती गई हैं। ऐसे में सबसे उपर की मंजिल सबसे नीचे की मंजिल का एक तिहाई भाग रह गया है। बृहदीश्वर मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।

यह विशाल शिव मंदिर चारों तरफ से ऊंची दीवार से घिरा है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर दोनों तरफ दो द्वारपालों की मूर्तियां बनी हैं। मंदिर के बाहरी भाग में नंदी महाराज की एक विशाल मूर्ति बनी है। मंदिर के दीवारों में बने ताखों में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।

बृहदीश्वर मंदिर का प्रमुख आकर्षण गर्भगृह के उपर पश्चिम में बना तकरीबन 200 फीट ऊंचा विमान शिखर है। मंदिर का गर्भगृह 44 वर्ग फीट का है, जिसके चारों तरफ 9 फीट चौड़ा प्रदक्षिणापथ निर्मित है। प्रदक्षिणापथ के भीतरी दीवारों पर सुन्दर भित्तिचित्र बने हैं।

मंदिर की 'स्तूपिका' को पत्थर के एक खंड से तराश कर बनाया गया है जिसका वजन 80 टन से अधिक है। 1000 वर्ष पूर्व बिनी किसी आधुनिक तकनीक के जमीन से तकरीबन 200 फीट ऊपर उठाकर 80 टन वजनी पत्थर को मंदिर शिखर पर ​स्थापित करना आश्चर्य का विषय है। सबसे खास बात यह है कि 80 टन के इस गुम्बद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती।

मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है, जिसे बृहदीश्वर कहते हैं। इतिहासकार पर्सी ब्राउन का मत है कि तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर द्रविड़ शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है, इसे समस्त भारतीय स्थापत्य की कसौटी भी कहा जा सकता है।बृहदेश्वर मंदिर की महत्ता को देखते हुए साल 1987 में यूनेस्को द्वारा इसे 'विश्व धरोहर स्थल' के रूप में घोषित किया गया था।

बृहदीश्वर मंदिर में लगी थी राजराज की अकूत सम्पत्ति

तंजौर के बृहदीश्वर मंदिर को बनाने में पूरे दस साल लगे थे। भारत के इस सबसे विशाल शिव मंदिर में एक लाख 30 हजार टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के मध्य भाग में भगवान शिव की 12 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित की गई। मोतियों से जड़ी भगवान शिव की इस प्रतिमा को सोने से मढ़ा गया था। मंदिर शिखर कभी पूरी तरह से सोने की प्लेटों से ढका हुआ था जो सूर्य की रोशनी में चमचमाते हुए चोल राज्य के वैभव को दर्शाता था।

मंदिर के हॉल में जगमगाते मशालों के बीच सिंहल द्वीप (श्रीलंका) से लाई गई 60 कांस्य मूर्तियां स्थापित की गई थी। इन सभी मूर्तियों को मोतियों से जड़ा गया था। अन्य शिलालेखों से जानकारी मिलती है कि चोल सम्राट राजराज ने बृहदीश्वर मंदिर को स्वर्ण निर्मित 30 आभूषणों का एक गुच्छा अर्पित किया था, जिसमें 173 हीरे, 277 मूंगा तथा 19,613 मोती जड़े हुए थे, जिनका कुल वजन 887 कझांजू था।

इतना ही नहीं, पांडय तथा केरल के चेर राजाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद राजराज ने मंदिर को बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं तथा आभूषण दान किए थे। कर्नाटक के चालुक्य राजा सत्यश्रवण को पराजित करने के पश्चात चोल सम्राट ने भगवान शिव को 20 स्वर्ण पुष्प तथा स्वर्ण निर्मित एक शानदार कमल अर्पित किया था, जिसका कुल वजन 87 किलो ग्राम से ज्यादा था।

पूजा आदि के निमित्त चोल सम्राट राजराज ने भगवान शिव को 95 किलोग्राम से अधिक चांदी के बर्तन व सामान दान में दिए। इसके अतिरिक्त उन्होंने 23 तांबे की मूर्तियों के साथ ही दो चांदी की वासुदेव मूर्तियाँ भी मंदिर में स्थापित करवाई।

इसी क्रम में चोल सम्राट ने भगवान शिव को दो अलंकृत आभूषण भी दान किए जो 30 क्रिस्टल, 27 हीरे और 435 मूंगों से सजे थे, जिनका कुल वजन 6 किलो ग्राम से ज्यादा था। उसी वर्ष यह भी उल्लेख मिलता है कि राजा राजराज ने तकरीबन 4 किलोग्राम वजन के 53 स्वर्ण आभूषण भी दान किए।

चोल सम्राट के दिग्विजय से प्राप्त बेशकीमती हार, आभूषण, तुरही तथा नगाड़े आदि भी बृहदीश्वर मंदिर में ही रखे गए थे।  इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि तंजौर के बृहदीश्वर मंदिर की यह सम्पूर्ण सम्पत्ति चोल सम्राट राजराज को उस युग में दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति साबित करने के लिए पर्याप्त थी।

मार्च 2018 ई. में द हिन्दू  के एक लेख में बताया गया है कि यह भव्य मंदिर अतीत में कभी वास्तविक खजाना था। परन्तु अब यह अपनी समृद्ध सम्पत्ति के मामले में गोबी के रेगिस्तान की भांति है। यह सच है कि बृहदीश्वर मंदिर की सम्पत्ति तथा रत्न-आभूषण आदि मनुष्य के लालच का शिकार बन गए।

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