
महाराष्ट्र में औरंगाबाद ज़िले के ‘ऐलोरा की गुफ़ाओं’ में स्थित कैलाश मंदिर पुरानी परम्पराओं से इतर चट्टान को तराशकर तैयार किए गए स्वतंत्र मंदिर निर्माण कला का एक अद्भुत उदाहरण है। भगवान शिव को समर्पित कैलाश मंदिर की एकल विशेषता यह है कि इसे बनाने के लिए पर्वत को नीचे भीतर की ओर खोदा ही नहीं गया अपितु चट्टान को शीर्ष भाग से तराशना शुरू किया गया।
भारत के अन्य प्राचीन मंदिरों की तरह ऐलोरा के कैलाश मंदिर से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें हैं, जो इतिहास के विद्यार्थियों एवं दशनार्थियों को हैरान करती हैं। एलियन्स अस्तित्व को मानने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि अत्यन्त विशाल कैलाश मंदिर के निर्माण कार्य से जुड़ी सटीकता केवल उन्नत तकनीक से ही सम्भव है।
ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने कैलाश मंदिर के नीचे गुफाओं पर शोध शुरू किया था लेकिन उच्च रेडियोएक्टिविटी के चलते शोधकार्य बन्द करना पड़ा। इतना ही नहीं, गुफाओं को भी बन्द कर दिया गया जो आज तक बन्द ही हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर विशेषज्ञों का मानना है कि कैलाश मंदिर को सिर्फ 18 वर्ष में ही पूर्ण कर लिया गया जबकि वर्तमान में इस मंदिर को बनाने में 100 से150 साल लग जाएंगे।
ऐसे में तकरीबन 1252 वर्ष पहले कैलाश मंदिर को बनाने में आखिर किस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया था? दोस्तों, ऐलोरा के कैलाश मंदिर से जुड़ी अन्य रहस्यमयी बातों को जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।
कैलाश मंदिर निर्माण से जुड़ी ऐतिहासिक कथा
ऐलोरा के कैलाश मंदिर का निर्माण कार्य राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण प्रथम ने शुरू करवाया था। कृष्ण प्रथम के पास अनेक विजयों से प्राप्त अतुल धनराशि थी, साथ ही उसमें प्रबल धार्मिक भावना भी थी। इन्हीं के संयोग से कैलाश मंदिर निर्माण सम्भव हो सका।
इन तथ्यों से इतर 10वीं शताब्दी में लिखी गई किताब ‘कथा कल्पतरु’ के मुताबिक, राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण प्रथम एक बार गम्भीर रूप से बीमार हो गए, इसके बाद चिन्तित रानी ने मन्नत मांगी कि यदि राजा ठीक हो जाएंगे तो वह एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवाएगी और मंदिर शिखर देखने के बाद ही अपना व्रत तोड़ेगी।
इसके बाद रानी को जब पता चला कि मंदिर निर्माण में काफी वक्त लगेगा, इसके बाद महादेव के ध्यान में बैठी रानी को भोलेनाथ ने एक अस्त्र प्रदान किया जो पत्थर को भाप बना सकता था। ऐसी मान्यता है कि महादेव प्रदत्त दिव्य अस्त्र से ही कैलाश मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद उस दैवीय अस्त्र को गुफा के नीचे दफना दिया गया।
ऐलोरा कैलाश मंदिर की स्थापत्य कला
द्रविड़ शैली में निर्मित ऐलोरा का कैलाश मंदिर संसार में प्रस्तर कला की महान तथा अद्वितीय कृति है। सम्पूर्ण मंदिर तक्षण कला से अलंकृत है। कैलाश मंदिर को बनाने के लिए पर्वत को नीचे भीतर की ओर खोदा ही नहीं गया अपितु शिल्पियों ने चट्टान को शीर्ष भाग से तराशना शुरू किया। इस प्रकार ऊपर से नीचे की ओर तराशकर मंदिर के सभी अंग बनाए गए। ऐसे में मंदिर बनाने वालों ने पुरानी परम्पराओं को एकदम त्यागकर चट्टान को तराशकर स्वतंत्र मंदिर बनाया।
कैलाश मंदिर का विमान एक समानान्तर चतुर्भुज के आकार में बना है। 150 फुट लम्बा और 100 फुट चौड़ा यह विमान 25 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। चबूतरे के ऊपर और नीचे का भाग काफी ढला हुआ है। बीच वाले हिस्सों के बगल के दोनों भागों के बीच के भाग में पट्टी है, जिसमें हाथी और शेरों की उभरी हुई आकृतियां उकेरी गई हैं। ये हाथी और शेर भी विमान को धारण करने का आभास देते हैं। मंदिर के बरामदे तक पहुंचने के लिए नीचे से सीढ़ियां हैं। मंडप, अन्तराल तथा गर्भगृह अन्य मंदिरों की भांति हैं। गर्भगृह का शिखर 25 फुट ऊंचा है।
मंदिर का शिखर पिरामिड के आकार का है। विमान के चारों ओर पांच छोटे मंदिर हैं। मंदिर की प्रमुख इमारत के बाद नंदी मंदिर बनवाया गया है जिसके दोनों तरफ 51 फुट ऊंचे दो ध्वजस्तम्भ हैं जिनपर त्रिशूल स्थापित किए गए हैं। स्तम्भ द्रविड़ शैली के हैं। स्तम्भों का आधार चतुर्भुजी अथवा बहुभुजी है। इसके ऊपर अष्टभुजी लाट है। लाट के शीर्ष भाग पर मसनद के आकार का शीर्ष है। नंदी मंदिर के प्रवेशद्वार पर बनाया गया है। मंदिर के अहाते के अन्दर चारों ओर आंगन में स्तम्भ्युक्त बरामदे काटे गए हैं।
कुछ स्तम्भों के शीर्ष मंगलवट आकार के हैं। मंदिर के विभिन्न अंग इस कलात्मक ढंग से समायोजित किए गए हैं कि वे एक ही इमारत के अविच्छिन्न अंग से दिखाई देते हैं। ऐलोरा के कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश पर्वत की तरह स्वरूप देने का प्रयास किया गया है। कैलाश मंदिर में तराशी हुई विशाल मूर्तियों में से त्रिमूर्ति सबसे प्रभावशाली है। इसके बाद शिव-पार्वती विवाह तथा नटराज की मूर्तियों का स्थान है। कैलाश मंदिर की वीथियों में बनी अन्य मूर्तियों में महिषासुर का वध करती हुई दुर्गा, गोवर्धन धारण किए कृष्ण, कैलाश पर्वत उठाए हुए रावण, सीता हरण, जटायु के साथ युद्ध आदि दृश्यों का अंकन अत्यन्त कुशलतापूर्वक किया गया है।
ऐलोरा के कैलाश मंदिर से जुड़ी रहस्यमयी बातें
—कैलाश मंदिर निर्माण से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि इस दौरान अलौकिक मशीनों का इस्तेमाल किया गया जिनमें चट्टानों को वाष्पीकृत करने की क्षमता थी।
— भगवान शिव को समर्पित 90 फ़ीट ऊंचे कैलाश मंदिर को बनाने में 7000 मजदूर लगाए गए थे।
— मंदिर तो 18 वर्षों में बनकर पूरा हो गया था परन्तु विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आज की तारीख में इस मंदिर को बनाया जाए तो 100-150 साल का समय लग जाएगा। कुछ लोगों का मानना है कि यह किसी दैवीय सहायता से ही सम्भव हो सकता है।
— कैलाश मंदिर का निर्माण चट्टान को तोड़कर नहीं अपितु तराशकर किया गया है।
— कैलाश मंदिर निर्माण के दौरान तकरीबन 40 हजार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था।
— ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने मंदिर की गुफाओं पर शोधकार्य शुरू किया था लेकिन उच्च रेडियोएक्टिविटी के चलते गुफाओं को बंद कर दिया गया।
— शोधकर्ताओं का मानना है कि भूमि के नीचे छुपाए गए अस्त्र एवं अन्य उपकरणों के कारण हाई रेडियोएक्टिविटी उत्पन्न होती है।
— ऐलोरा का कैलाश मंदिर तकरीबन 1252 साल पुराना है।
— कैलाश मंदिर में कभी पूजा हुई हो, इस बात का सटीक प्रमाण नहीं मिलता है। इस मंदिर में आज भी कोई पुजारी नहीं है।
— मुगल बादशाह औरंगजेब ने तोपों की मदद से कैलाश मंदिर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, परन्तु वह असफल रहा।
— साल 1983 में यूनेस्को द्वारा कैलाश मंदिर को 'विश्व विरासत स्थल' घोषित किया जा चुका है।
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