
ईस्ट इंडिया कम्पनी शुरू से ही पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए बेचैन थी, लेकिन यह एक दुष्कर कार्य था क्योंकि उसका सामना महायोद्धा महाराजा रणजीत सिंह से था। साल 1838 में ही डब्ल्यू.एफ.आसबर्न ने लिखा था कि “रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब को तुरन्त जीत लेना चाहिए और सिन्ध को अपनी सीमा बना लेना चाहिए”।
अंग्रेजों को इसका भी अवसर जल्द ही मिल गया 1839 ई. में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद समस्त सिख साम्राज्य एक बारूद के ढेर की तरह फट पड़ा। पूरे पंजाब में अराजकता फैल गई जिसका फायदा अंग्रेजों ने उठाया। अयोग्य नेतृत्व, प्रभावी सैन्य कमाण्डर के अभाव तथा सिख सरदारों के विश्वासघात के चलते अंग्रेजों ने सिख सेना को करारी शिकस्त दी तथा लाहौर तक कब्जा कर लिया। अब आप सोच रहे होंगे कि ईस्ट इंडिया कम्पनी को फिर जम्मू-कश्मीर क्यों बेचना पड़ा और इस दुर्गम पहाड़ी इलाके से आखिर सिख साम्राज्य का क्या कनेक्शन था? यह ऐतिहासिक तथ्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।
सबराओं की लड़ाई में सिखों की करारी हार (1846 ई.)
महाराजा रणजीत सिंह का भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है, पंजाब के लोग इस महायोद्धा को आज भी याद करते हैं। लाहौर, मुल्तान, पेशावर और जम्मू-कश्मीर तक इसका राज्य फैला हुआ था। परन्तु महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु (27 जून, 1939 ई. ) के बाद समस्त सिख साम्राज्य की शक्ति का तेजी से पतन हुआ। साल 1839 से 1845 ई. तक महज छह वर्षों में चार राजा (खड़ग सिंह, नौनिहाल सिंह, शेर सिंह, दलीप सिंह) तथा चार वजीर बदले जा चुके थे।
सिख सरदारों ने 1843 ई. में महाराजा रणजीत सिंह के अल्पव्यस्क पुत्र दलीपसिंह को महाराजा घोषित किया और उसकी माता रानी जिन्दन कौर को सरंक्षक तथा हीरासिंह डोगरा को वजीर नियुक्त किया। परन्तु हीरासिंह डोगरा की साल 1844 में हत्या कर दी गई। इसके बाद रानी जिन्दन कौर का भाई जवाहरसिंह वजीर बना परन्तु उसकी भी हत्या हो गई। इसके बाद 1845 ई. में रानी जिन्दन कौर का प्रेमी लाल सिंह वजीर बना, उसने खालसा सेना को अपनी तरफ मिला और तेजसिंह को नया कमाण्डर नियुक्त किया।
ऐसे में महाराजा के अयोग्य उत्तराधिकारियों, महल के साजिशों एवं अंदरूनी कलह के कारण लाहौर दरबार की वास्तविक शक्ति खालसा सेना के हाथों में चली गई। चूंकि अंग्रेज हमेशा से ही पंजाब की उर्वर भूमि को ललचाई दृष्टि से देख रहे थे। ऐसे में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद ही अंग्रेज पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय करने को आतुर हो उठे। अंग्रेज इस बात को भलीभांति जानते थे कि खालसा सेना के पास ऐसा कोई योग्य कमाण्डर नहीं है, जो सेना का नेतृत्व कर सके अथवा जिसकी आज्ञा समस्त खालसा सेना मानती हो।
इन परिस्थितियों में पंजाब को अपने अधीन करने के लिए गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग ने साल 1844 में ब्रिटिश सेना की संख्या बढ़ाकर 32000 कर दी जिनके पास 68 तापें थीं और तकरीबन 10 हजार आरक्षित सैनिक तैयार किए। इसके अतिरिक्त बम्बई से 57 नावें लाई गईं ताकि पोनटून पुल बनाए जा सकें।
सिक्खों ने अंग्रेजों की युद्ध की तैयारी का यह अर्थ निकाला कि वे आक्रमण एवं युद्ध करना चाहते हैं। रानी जिन्दन कौर ने भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए युद्ध छेड़ दिया क्योंकि उसे लगा कि यदि खालसा सेना हार जाएगी तो उसकी शक्ति समाप्त हो जाएगी और यदि जीत गई समस्त प्रदेश उसके अधीन हो जाएंगे।
इस प्रकार ईस्ट इंडिया कम्पनी और सिखों के बीच मुदकी, फीरोजशाह, बद्दोवल, अलावाली इन चार जगहों पर ऐसी लड़ाईयां हुईं जो निर्णायक नहीं थीं। परन्तु 10 फरवरी 1846 को सबराओं की लड़ाई निर्णायक साबित हुई। वजीर लाल सिंह एवं सैन्य कमाण्डर तेजसिंह ने विश्वाघात किया और खालसा सेना द्वारा बनाई गई खाईयों का भेद अंग्रेजों को दे दिया और युद्ध से बिना लड़े ही भाग गए। इस प्रकार इस युद्ध में सिखों की करारी हार हुई और अंग्रेजों ने लाहौर तक कब्जा कर लिया। 9 मार्च 1846 को अंग्रेजों ने सिखों को लाहौर की सन्धि करने पर बाध्य कर दिया।
इस सन्धि के तहत महाराजा दलीप सिंह ने सतलुज और व्यास नदियों के बीच स्थित किलों से अपना अधिकार पूर्णतया छोड़ दिया, जिन पर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अधिकार कर लिया। इसके अलावा, तकरीबन 80,000 सैनिकों वाली मजबूत सिख सेना को भंग कर दिया गया और केवल 22,000 सैनिकों को सेवा में रखने की अनुमति प्रदान की गई। सिखों को अपनी सभी तोपें भी अंग्रेजों को देनी पड़ी।
इसके साथ ही सन्धि की अन्य शर्तों में सिखों को डेढ़ करोड़ रुपए युद्ध हर्जाने के रूप में देना पड़ा जिसमें से उन्होंने 50 लाख रुपए अपने राजकोष से दिया और शेष रकम के बदले व्यास और सिन्ध नदियों के बीच का पहाड़ी क्षेत्र अंग्रेजों के हाथों में सौंप दिया जिसमें जम्मू-कश्मीर और हजारा प्रान्त भी सम्मिलित थे।
कौन था गुलाब सिंह जिसे अंग्रेजों ने बेच दिया जम्मू-कश्मीर
17 अक्टूबर 1792 ई. को डोगरा राजपूत परिवार में जन्में गुलाब सिंह के पिता का नाम श्री किशोर सिंह जामवल था। गुलाब सिंह की परवरिश उनके दादा जोरावर सिंह के संरक्षण में हुई। गुलाब सिंह ने अपने दादा जोरावर सिंह से ही तलवारबाज़ी और घुड़सवारी की कला सीखी। इसके बाद साल 1808 में महज 16 वर्ष की आयु में ही महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बतौर पैदल सैनिक भर्ती हो गए।
डोगरा राजपूत गुलाब सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ कई युद्धों में हिस्सा लिया। गुलाब सिंह ने मुल्तान के युद्ध में अद्भुत रणकौशल का प्रदर्शन किया। इसके अलावा रेसाई पर की गई सैन्य कार्रवाई का स्वतंत्र नेतृत्व भी किया था। साल 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानी पठान जब्बार खां को शिकस्त देकर जम्मू-कश्मीर को सिख साम्राज्य में मिला लिया। इसके बाद डोगरा राजपूत गुलाब सिंह को जम्मू-कश्मीर का गवर्नर नियुक्त कर दिया। गुलाब सिंह ने अपनी सैन्य क्षमता के दम पर 1834 ई. में लद्दाख भी जीत लिया। साल 1837 में कश्मीर और हज़ारा में कई मुस्लिम कबीलों ने जब राजद्रोह की घोषणा कर दी तब महाराजा रणजीत सिंह ने गुलाब सिंह को विद्रोहियों को दबाने का काम सौंपा था।
कहते हैं, महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद लाहौर दरबार के षड्यंत्र में डोगरा राजपूत गुलाब सिंह ने अपने दो भाईयों तथा दो बेटों को भी खो दिया था। ऐसे में 1846 ई. में हुई सबराओं की लड़ाई में गुलाब सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया था और खालसा सेना से इतर युद्ध से बाहर रहने का विकल्प चुना। अत: अंग्रेजों से हार के बाद सिखों ने लाहौर सन्धि के लिए गुलाब सिंह को मध्यस्थ बनाया। सन्धि के तहत सिखों से मिले जम्मू-कश्मीर के दुर्लभ पहाड़ी इलाके में अंग्रेजों को कोई विशेष रूचि नहीं थी, दूसरे जम्मू-कश्मीर सहित लद्दाख का पूरा इलाका डोगरा राजपूत गुलाब सिंह के नियंत्रण में था अत: ब्रिटिश राजकोष की भरपाई के लिए कम्पनी ने अपने करीबी राजा गुलाब सिंह को एकमुश्त 75 लाख रुपए में जम्मू-कश्मीर बेच दिया।
महाराज गुलाब सिंह की जम्मू-कश्मीर रियासत की सीमा
इस प्रकार डोगरा राजवंश के संस्थापक महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू-कश्मीर रियासत की स्थापना की। हैरानी की बात यह है कि राजा गुलाब सिंह ने महज 75 लाख रुपए में ही कश्मीर घाटी, जम्मू, लद्दाख, और गिलगित-बाल्टिस्तान तक का क्षेत्र प्राप्त कर लिया था। महाराजा गुलाब सिंह द्वारा स्थापित डोगरा राजवंश ने जम्मू -कश्मीर पर 1948 ई. तक शासन किया।
जानकारी के लिए बता दें कि आज की तारीख में जहां एक तरफ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में विभाजित हो चुके हैं वहीं 28,000 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैले गिलगित-बल्तिस्तान पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा जमा रखा है। सात जिलों में बंटे गिलगित-बल्तिस्तान की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और भारत से मिलती हैं।
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