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Lord Parashurama still live only on Mahendragiri mountain

महेंद्रगिरि पर्वत पर आज भी रहते हैं भगवान परशुराम, जानते हैं क्यों?

हिन्दू धर्म का एक विख्यात श्लोक है – “अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषण: कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविन:।अर्थात् अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये सात चिरंजीवी हैं। सनातनी समाज में यह मान्यता दृढ़ है कि ये सातों लोग अमर हैं और पृथ्वी के प्रलय तक जीवित रहेंगे।

पौराणिक धर्मग्रन्थों में जिस प्रकार से यह उल्लेख मिलता है कि हनुमानजी का निवास स्थान गन्धमादन पर्वत है, ठीक उसी प्रकार से महेन्द्रगिरि पर्वत को भगवान परशुराम का निवास स्थल बताया गया है। जनमानस में यह मान्यता व्याप्त है कि भगवान परशुराम आज भी महेन्द्रगिरि पर्वत पर रहते हैं।

अब आपके मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर में महेन्द्रगिरि पर्वत कहां है और फिर महेन्द्रगि​रि पर क्यों और कब से रह रहे हैं भगवान परशुराम? इन रोचक प्रश्नों का जवाब पाने के लिए पौराणिक इतिहास से जुड़ी यह स्टोरी अवश्य पढ़ें।

चिरंजीवी हैं भगवान परशुराम

हिन्दू धर्म में श्रीहरि विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम का उल्लेख रामायण तथा महाभारत जैसे पौ​राणिक ग्रन्थों में प्रमुखता से किया गया है। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने परशुराम की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तथा चिरंजीवी होने का वरदान दिया।

भगवान शिव ने परशुरामजी को विजय धनुष भी प्रदान किया था। द्वापर युग में इसी विजय धनुष को भगवान परशुराम ने अपने शिष्य महारथी कर्ण को सौंप दिया था। पौराणिक ग्रन्थों के मुताबिक, भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं और महेन्द्रगिरि पर्वत पर रहकर ​आज भी तप-साधना करते हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण के मुताबिक, इस धरती से 21 बार क्षत्रियों का विनाश करने वाले जमदग्नि पुत्र परशुराम ने भगवान शिव प्रदत्त पाशुपतास्त्र से महिष्मती के चक्रवर्ती सम्राट सहस्रबाहु कार्तवीर्य अर्जुन का उसकी विशाल सेना समेत वध कर दिया था। यह वही हैहय वंशीय सहस्त्रबाहु अर्जुन था जिसने कभी लंकापति रावण को कैद कर लिया था किन्तु बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे मुक्त कर दिया।

वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण, गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस, अध्यात्म रामायण तथा आनंद रामायण में सीता स्वयंवर प्रसंग में भगवान परशुराम और श्रीराम के मध्य वार्ता का उल्लेख मिलता है। सीता स्वयंवर के दौरान भगवान परशुराम स्वयं कहते हैं कि हम महेन्द्र पर्वत पर तपस्या कर रहे थे त​भी शिव धनुष पिनाक के टूटने का स्वर सुनाई दिया। परशुराम क्रोधित होकर श्रीराम को युद्ध के लिए ललकारते हैं और कहते हैं कि युद्ध तो दूर तुम भगवान विष्णु के इस सारंग धनुष के भार तले कुचले जाआगे।

इसके बाद श्रीराम सांरग धनुष पर बाण संधान कर परशुराम के तपोबल द्वारा संचित लोकों को नष्ट करते हैं। तत्पश्चात भगवान परशुराम पुन: महेन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या करने चले जाते हैं। वाल्मीकि रामायण में यह उल्लेख मिलता है कि, माता सीता की खोज के दौरान वानरराज सुग्रीव ने वानर दल को महेंद्र पर्वत के बारे में भी बताया था। यह वर्णन महेंद्र पर्वत होने की पूर्णतः पुष्टि करता है।

वहीं, महाभारत युग में भगवान परशुराम को महान योद्धाओं द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह तथा महारथी कर्ण का गुरु बताया गया है। भगवान परशुराम ने इन तीनों महा​रथियों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी। पुराणों के मुताबिक, गुरु संदीपनी के आश्रम में परशुराम ने ही भगवान श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था।

इसके अतिरिक्त महाकाव्य महाभारत में गंगापुत्र भीष्म और भगवान परशुराम के बीच युद्ध का भी उल्लेख मिलता है, हांलाकि इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत। इतना ही नहीं, यह भी उल्लेख मिलता है कि महाभारत युद्ध के दौरान शरशैय्या (बाणों की शैया) पर पड़े भीष्म पितामह से मिलने उनके गुरु परशुराम आए थे।

पुराणों में ऐसा वर्णित है कि कलियुग में भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा भगवान परशुराम के द्वारा ही दी जाएगी। भगवान परशुराम ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या कर दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेंगे।

महेन्द्रगिरि पर्वत रहते हैं भगवान परशुराम

सप्तऋषियों में से एक महर्षि कश्यप भगवान परशुराम के गुरु थे। महर्षि जमदग्नि और देवी रेणुका के पुत्र परशुराम ने अपने पिता की हत्या और मातृ शोक का प्रतिशोध लेने के लिए अपने शौर्य बल से इस धरती को 21 बार क्षत्रियों से विहिन कर दिया। अपना संकल्प पूर्ण करने के बाद भगवान परशुराम ने सम्पूर्ण पृथ्वी अपने गुरु महर्षि कश्यप को दान कर दी।

तत्पश्चात महर्षि कश्यप ने भगवान परशुराम को पृथ्वी छोड़ने का आदेश दिया। चूंकि भगवान परशुराम ने पूर्व में भी महेंद्रगिरि पर्वत पर अपने आराध्य देवाधिदेव महादेव की तप-साधना की थी, इसलिए उन्होंने दक्षिण में महेन्द्रगिरि पर्वत पर ही रहने का निर्णय लिया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ​चिरंजीवी भगवान परशुराम दिनभर पृथ्वी पर विचरण करते हैं किन्तु रात में ​वह महेन्द्रगिरि पर्वत पर ही निवास करते हैं।

स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान परशुराम आज भी महेन्द्रगिरि पर्वत पर रहते हैं। ज्यादातर आंगतुकों का कहना है कि इस पर्वत पर अक्सर परशुराम नज़र आते हैं। असंख्य शिवलिंगों वाले महेन्द्रगि​रि पर्वत पर महाभारतकालीन कई मंदिर बने हुए हैं। मान्यता है कि इन मंदिरों को पांडवों ने बनवाए थे। इस पर्वत पर भीम, कुंती, युधिष्टिर के अलावा दारु ब्रम्हा का भी मंदिर मौजूद है।

कहां है महेन्द्रगिरि पर्वत

भगवान परशुराम की तपस्या स्थली महेन्द्रगिरि पर्वत उड़ीसा राज्य के गजपति जिले के रायगढ़ प्रखण्ड के परालाखेमुंडी में स्थित है। उड़ीसा का दूसरा सबसे ऊंचा पर्वत है महेंद्रगिरि जो पूर्वी घाट के बीच 1500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है तथा गंजम जिले तक फैला हुआ है। महेन्द्रगिरि पर्वत से समंदर, नदियां और हरे-भरे पहाड़ों का मनोरम दृश्य नजर आता है।

औषधीय सुगंधों युक्त महेन्द्रगिरि पर्वत क्षेत्र में तकरीबन 600 से अधिक प्रजाति के औधषीय पौधे पाए जाते हैं। प्राकृतिक स्वर्ग सदृश यह सम्पूर्ण क्षेत्र भगवान शिव की पूजा करता है, ऐसे में महाशिवरात्रि पर्व के अवसर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है। अक्टूबर से फरवरी महीने के मध्य यहां ठंडी और सुखद हवाएं चलती हैं जो पर्यटकों के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण है।

कैसे पहुंचे महेन्द्रगिरि पर्वत

महेंद्रगिरि पर्वत तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले परालाखेमुंडी जाना होगा। इसके बाद परालाखेमुंडी से कैनपुर की दूरी तकरीबन 46 किमी. है जिसे आप बस सेवा के जरिए तय कर सकते है। कैनपुर पहुंचते ही आप जीप के जरिए महेन्द्रगिरि पर्वत की चोटी तक आसानी से जा सकते हैं।

एक रास्ता ब्रह्मपुर से इच्छापुर, जरादा तथा कैपुर होते हुए परालाखेमुंडी तक जाता है और फिर परालाखेमुंडी से महेंद्रगिरि पर्वत तक पहुंचने का मार्ग हम आपको बता चुके हैं। ब्रह्मपुर से परालाखेमुंडी पहुंचने के लिए एक अन्य मार्ग भी है जो दिगापनंदी और उदयगिरी और रायागढ़ होते हुए जाता है। इस प्रकार इन तीनों रास्तों से आप बड़ी आसानी से महेन्द्र​गिरि पर्वत चोटी तक पहुंच सकते हैं।

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