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Gandhamadana parvat is still a mystery which is abode of Hanuman ji

आज भी एक रहस्य है हनुमान जी का निवास स्थल गंधमादन पर्वत

दोस्तों, इस कलियुग में भगवान श्रीराम से ज्यादा हनुमान जी के मंदिर हैं। देश के प्रत्येक हनुमान मंदिर में मंगलवार तथा शनिवार के दिन बुजुर्गों, युवाओं से लेकर बच्चों तक की अच्छी-खासी भीड़ आसानी से देखी जा सकती है।

अष्ट सिद्धि  और नवनिधि के दाता हनुमान जी शक्ति के ऐसे प्रतीक हैं जो धन और स्वास्थ्य से लेकर भूत-प्रेत आदि तक की बाधा का भी निवारण करते हैं। माता सिया और भगवान श्रीराम से अजर-अमर तथा कलियुग के अंत इस धरती पर जीवित रहने का वरदान प्राप्त कर चुके हनुमान जी के बारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में यह वर्णित है कि वह सशरीर गंधमादन पर्वत पर रहते हैं।

भारत के कई पौराणिक ग्रन्थों में गंधमादन पर्वत का स्पष्ट उल्लेख मिलता है किन्तु वास्तविक गंधमादन पर्वत कहां है? यह प्रश्न भूगोलवेत्ताओं तथा वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक रहस्य है। दरअसल एक-दो नहीं अपितु तीन गंधमादन पर्वत हैं। ऐसे में हनुमान जी के निवास स्थान गंधमादन पर्वत से जुड़ी रहस्यमयी बातें जानने के लिए पौराणिक इतिहास से जुड़ी यह रोचक स्टोरी अवश्य पढ़ें।

अजर-अमर हैं हनुमान जी

हिन्दू धर्म में हनुमान जी को इस धरती पर एकमात्र जीवित देवता माना जाता है, क्योंकि उन्हें चिरंजीवि होने का वरदान प्राप्त है। वाल्मीकि रामायण तथा गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अनुसार, हनुमान जी को माता सीता से अजर-अमर होने का वरदान प्राप्त है।

रामायण कथा के मुताबिक, हनुमान जी जब प्रभु श्रीराम का संदेश लेकर लंकापति रावण के अशोक वाटिका में माता सीता के पास पहुंचे तब माता सिया ने उन्हें अमर होने का वरदान दिया था। इस प्रसंग को गोस्वामी तुलसीदास कुछ इस प्रकार से ​लिखते हैं - “अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।। इसका अर्थ है- हे पुत्र! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने हो जाओ।

पुराणों के अनुसार, विष्णु अवतार भगवान श्रीराम ने अयोध्या में 11000 वर्षों तक शासन किया। दरअसल इस गूढ़ तथ्य का यह अर्थ है कि एक धर्मात्मा राजा के लिए एक दिन और एक रात सम्पूर्ण वर्ष के बराबर होती है। ऐसे में 11,000 वर्षों के रामराज्य का अर्थ 11 हजार दिन हो सकता है यानि की भगवान श्रीराम ने अयोध्या पर तकरीबन 30 वर्षों तक शासन किया।

अपने जीवन के अंत में भगवान श्रीराम ने अपने भाईयों सहित सरयू नदी में जलसमाधि लेने का निर्णय लिया। जल समाधि लेने से पूर्व भगवान श्रीराम ने अपने परम भक्त हनुमान जी को कलियुग के अंत तक इस धरती पर रहकर भागवत भक्तों के कष्ट हरने का आदेश दिया था।

यदि हम त्रेता और द्वापर युग की बात छोड़ दें, तो इस कलियुग में भी ऐसे कई महान सन्त हुए जिन्हें हनुमान जी के साक्षात दर्शन हुए हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी को तो हनुमान जी ने भगवान श्रीराम के दर्शन भी करवाए। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं - “चित्रकूट के घाट पै, भई संतन की भीड़। तुलसीदास चन्दन घिसै तिलक देत रघुवीर।।

गोस्वामी तुलसीदास के अतिरिक्त समर्थ गुरू रामदास जी, भक्त माधव दास, नीम करोली बाबा, राघवेंद्र स्वामी सहित कई महान सन्तों को हनुमान जी के साक्षात दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों में गंधमादन पर्वत का उल्लेख

रामायण, महाभारत, श्रीमद्भावत और पुराणों में गंधमादन पर्वत को गंधर्वों, किन्नरों, अप्सराओंऋषियों, सिद्धों तथा चारणों सहित हनुमान जी का निवास स्थान बताया गया है। ये सभी गंधमादन पर निर्भिक घूमते हैं। गंधमादन पर्वत पर पहुंचना असंभव माना जाता है। वर्तमान में रामायण के परम विद्वान और जगदगुरू स्वामी रामभद्राचार्य ने अपनी टीकाओं और प्रवचनों में हनुमान चालीसा और रामायण के संदर्भ में गंधमादन पर्वत का उल्लेख किया है।

बता दें कि गंधमादन पर्वत का उल्लेख केवल हिन्दू धर्मग्रन्थों में ही नहीं अपितु बौद्ध तथा जैन धर्मग्रन्थों में भी मिलता है। जैनधर्म में गंधमादन का उल्लेख एक पवित्र तीर्थ के रूप में किया गया है जहां ऋषभदेव सहित अन्य तीर्थंकरों ने तपस्या की थी। वहीं तिब्बती बौद्ध परम्परा में ऐसा वर्णित है कि गंधमादन पर्वत हिमालय का ऐसा गुप्त स्थल है, जहां गुरु रिनपोछे जैसे सिद्धों ने गहन साधना की थी।

गंधमादन पर्वत पर रहते हैं हनुमान जी

गंधमादन पर्वत का अर्थ है- ‘सुगन्ध से उन्मत्त करने वाला पहाड़। गंधमादन पर्वत का एक नाम यक्षलोक भी है जहां महर्षि कश्यप ने तपस्या की थी। ऐसी भी मान्यता है कि यह पर्वत धन के देवता कुबेर के क्षेत्र का एक हिस्सा है। पुराणों के मुताबिक, रावण के द्वारा स्वर्ण नगरी लंका छीन लिए जाने के पश्चात कुबेर ने गंधमादन पर्वत पर ही निवास किया था। इस पर्वत पर पहुंचना जनसामान्य के लिए असम्भव माना जाता है।

श्रीमद्भावत के अनुसार, हनुमान जी का निवास स्थान गंधमादन पर्वत है। पुराणों के अनुसार, हनुमान जी त्रेतायुग तथा द्वापर युग में गंधमादन पर्वत पर ही ध्यान-साधना किया करते थे। गंधमादन पर्वत अपने कमल पुष्पों वाले अद्भुत सरोवर के लिए विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि गंधमादन पर्वत पर भगवान श्रीराम का एक प्राचीन मंदिर भी है, जहां प्रत्येक दिन हनुमान जी उन्हें कमल पुष्प अर्पित करते हैं।

महाभारत में ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक बार नकली कृष्ण बने राजा पौण्ड्रक ने गंधमादन का कमल पुष्प लाने के लिए द्विवीद वानर को भेजा था, लेकिन हनुमान जी ने उसे वहां से भगा दिया था। अज्ञातवास के दौरान पांडव पुत्र भीम सहस्रदल कमल पुष्प लेने के लिए हिमवंत पारकर गंधमादन पर्वत पहुंचे थे जहां उनकी मुलाकात हनुमानजी से हुई थी। तब हनुमानजी ने गंधमादन पर्वत पर भीम के बलशाली होने का अंहकार तोड़ा था। तत्पश्चात भीम के अनुनय-विनय करने पर हनुमान जी ने अपना​ विराट स्वरूप दिखाया था। अर्जुन के भी इन्द्रलोक जाते समय हिमवंत और गंधमादन पर्वत का उल्लेख किया गया है।

एक रहस्य है गंधमादन पर्वत

भूगोलवेत्ताओं तथा वैज्ञानिकों के लिए गंधमादन पर्वत आज भी एक रहस्य बना हुआ है। दरअसल भौगोलिक मानचित्रों में कोई भी पर्वत गंधमादन के नाम से चिह्नित नहीं है, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गंधमादन पर्वत का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है, क्योंकि हिमालय की कई जगहें गंधमादन से मेल खाती हैं।

हमारे देश में एक-दो नहीं अपितु तीन गंधमादन पर्वत हैं। एक गंधमादन पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है, वहीं एक गंधमादन पर्वत रामेश्वरम के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक पहाड़ी है जहां से हनुमान जी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी। एक गंधमादन पर्वत उड़ीसा में भी है।

हिन्दू धर्मग्रन्थों में यह वर्णित है कि हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर दिशा में गंधमादन पर्वत है। भारत-चीन सीमा के पास मौजूद इस हिमालय के ऊंचे शिखरों पर पहुंचना काफी दुष्कर कार्य है, क्योंकि यह बर्फीले रास्तों व घने जंगलों से भरा है। वहीं सुमेरू पर्वत के चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को गंधमादन पर्वत कहा जाता था, वर्तमान में यह पर्वत तिब्बत के इलाके में स्थित है।

प्राचीन धर्मग्रन्थों में इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच गंधमादन पर्वत बताया गया है जो अपने सुगन्धित क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध था। वहीं कुछ विद्वान गंधमादन पर्वत को उत्तराखंड के बद्रीनाथ - केदारनाथ क्षेत्र के निकट बताते हैं। ऐसे में अब आप समझ गए होंगे कि कितनी रहस्यमयी स्थान है गंधमादन पर्वत।

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