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What is written in Aurangzeb related book maasir-i-alamgiri about Gyanvapi issue?

ज्ञानवापी मुद्दे को लेकर बेहद चर्चा में है औरंगजेब से जुड़ी किताब ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’, जानिए क्यों?

असल में क्या है ज्ञानवापी मुद्दा?

सर्वप्रथम तो काशी विश्वनाथ मंदिर के बिल्कुल करीब स्थित ज्ञानवापी मस्जिद व्यापक रूप से इतिहास का विषय बन चुकी है और दूसरा यह कि ज्ञानवापी मस्जिद कानूनी बहस का भी रूप ले चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू पक्ष का मानना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के एक ध्वस्त हिस्से के ऊपर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया है। ऐसे में ज्ञानवापी मामले को लेकर अबतक सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट और वाराणसी कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। बता दें कि इस मामले को लेकर केवल वाराणसी जिला कोर्ट में ही 18 याचिकाएं दायर हैं।

साल 1991 में दायर की गई पहली याचिका में ज्ञानवापी परिसर से मुसलमानों को हटाने तथा मस्जिद को ध्वस्त करने की मांग की गई थी। साथ इस पहली याचिका में यह दलील दी गई थी कि मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद निर्माण करवाया गया था।

तकरीबन 32 वर्षों तक चले कानूनी जद्दोजहद के बाद एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) ने अपना सर्वे रिपोर्ट 24 जनवरी 2024 को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में दाखिल कर दिया। अपने सर्वे रिपोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने कहा है कि मौजूदा ढाँचे के निर्माण से पहले वहाँ एक हिंदू मंदिर था। जबकि मुस्लिम पक्ष ने इस रिपोर्ट को खारिज करने की मांग की है। इसके बाद से ही पूरे देश में ज्ञानवापी मुद्दा लगातार सुर्खियों में है।

शीर्ष इतिहासकार इरफान हबीब का कथन

ज्ञानवापी मस्जिद की जगह मंदिर होने के साक्ष्य की पुष्टि करते हुए मध्यकालीन इतिहास के विशेषज्ञ और देश के शीर्ष इतिहासकार इरफान हबीब का कहना है कि इस मामले में एएसआई के सर्वे की कोई जरूरत ही नहीं थी। आगे उन्होंने कहा कि इसका जिक्र कई किताबों में मिलता है, इसके लिए यदुनाथ सरकार की अंग्रेजी में अनुवादित किताब ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ ही काफी है। इरफान हबीब ने कहा कि ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ में मंदिर होने का जिक्र है। यदि सर जदुनाथ सरकार की यह किताब पढ़े लेते तो सब समझ में आ जाता। अब जाहिल हैं जिन्होंने यह किताब नहीं पढ़ी, इसके लिए क्या किया जाए।

साकी मुस्ताद खान कृत ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’

ज्ञानवापी मामले में मुगल बादशाह औरंगजेब के आधिकारिक अभिलेखों के रूप में लिखित साक्ष्य मौजूद हैं। औरंगजेब के खास वजीर इनायतुल्ला खान कश्मीरी ने बादशाह के शासनकाल का रिकॉर्ड लिखने के लिए साकी मुस्ताद खान नामक एक मुगल अधिकारी को नियुक्त किया था। सभी अदालती रिकॉर्ड, पत्राचार और अभिलेखीय सामग्रियों की जिम्मेदारी साकी मुस्ताद खान को दी गई थी ताकि औरंगजेब के आदेश, निर्णयों, नीतियों तथा कार्यों की कालानुक्रमिक जानकारी सामने आ सके।

औरंगजेब के शासनकाल के पहले दशक का रिकॉर्ड एक अन्य इतिहासकार मिर्जा मुहम्मद काजिम के द्वारा संकलित किया गया था जिसे ‘आलमगीरनामा’ कहा जाता है। जबकि अगले पांच दशकों का संकलन साकी मुस्ताद खान ने किया जिसमें वह काशी की भी बात करता है।

साकी मुस्ताद खान द्वारा फारसी भाषा में लिखी गई किताब ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ में मुगलबादशाह औरंगजेब के शासनकाल से जुड़ी घटनाओं का जिक्र किया गया है। मुस्ताद खान ने ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ का पहला भाग औरंगजेब के शासनकाल (1658-1707) में ही लिखा था जबकि इस फारसी किताब का शेष भाग उसने औरंगजेब की मौत के बाद 1710 ई. में पूरा किया।

‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ के मुताबिक, 8 अप्रैल 1669 ई. को मुगल बादशाह औरंगजेब ने बनारस के मंदिरों तथा विद्यालयों को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया था। यह आदेश कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित रखा हुआ है।

सर यदुनाथ सरकार द्वारा अनुवादित किताब ‘मासिर-ए-आलमगीरी’

सर यदुनाथ सरकार जब इतिहास लेखन के क्षेत्र में उतरे तब भारत के प्राचीन इतिहास से सम्बन्धित सामग्री अत्यन्त मात्रा में उपलब्ध थी। ठीक इसके विपरीत मध्ययुग के इतिहास की सामग्री का भंडार था। अभी इस क्षेत्र में अधिक कार्य भी नहीं हुआ था। ऐसे में यदुनाथ सरकार ने मुस्लिम इतिहास विशेषकर औरंगजेब को अपना विषय बनाया। इस दौरान उन्होंने अनेक मुगलकालीन फारसी पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया जिसमें एक पुस्तक ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ का नाम भी शामिल है। फारसी भाषा में लिखित मध्यकालीन ग्रन्थ ‘मासिरी-ए-आलमगीरी’ का अंग्रेजी में अनुवाद प्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने ब्रिटिश शासन के दौरान किया, इस पुस्तक को 1947 में प्रकाशित किया गया था।

सर यदुनाथ सरकार की अनुवादित किताब ‘मासिरी-ए-आलमगीरी के मुताबिक, साल 1669 ई. में तारीख 8 अप्रैल, दिन मंगलवार को औरंगजेब को सूचना दी गई कि टेट्टा, मुल्तान के प्रांतों में और विशेष रूप से बनारस में ब्राह्मण अपने स्कूलों में अपनी झूठी किताब पढ़ाते हैं जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय के छात्र दूर-दूर से इनके पास शिक्षा लेने के लिए आते हैं। इसके बाद दारूल इस्लाम की स्थापना में जुटे औरंगजेब ने सभी प्रांतों के गवर्नरों को हिंदुओं (विशेषकर काफिरों) के स्कूलों और मंदिरों ध्वस्त करने का आदेश दे दिया। चूंकि औरंगजेब को मंदिर विध्वंस की जानकारी 2 सितंबर को मिली थी। इससे स्पष्ट होता है कि बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर को 8 अप्रैल 1669 से 2 सितंबर 1669 के बीच तोड़ा गया था। 

 डॉ ए. एस. अल्टेकर किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ बनारस’ में क्या लिखा है?

भारतीय इतिहाकार, पुरातत्वविद् और मुद्राशास्त्री डॉ. ए एस. अल्टेकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति विभाग के प्रमुख थे। साल 1930 में प्रकाशित किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ बनारस’ को डॉ. अल्टेकर की चर्चित कृतियों में से एक माना जाता है। किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ बनारस’ में ज्ञानवापी परिसर के निर्माण की प्रकृति के बारे जानकरी दी गई है। इस किताब में यह उल्लेख किया गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद का ज्यादातर हिस्सा प्राचीन मंदिर के स्तम्भों पर खड़ा है। औरंगजेब के वास्तुशिल्पियों ने मंदिर के बड़े हिस्से को यथावत रखते हुए मस्जिद का निर्माण किया था।

गौरतलब है कि औरंगजेब से पहले उसके पिता शाहजहां ने 1642 ई. में ही काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था लेकिन भारी विरोध के चलते इस विशेष मंदिर को तोड़ा नहीं जा सका। हांलाकि बनारस के तकरीबन 63 छोटे-बड़े मंदिरों का ध्वस्त कर दिया। शाहजहां के बाद जब औरंगजेब बादशाह बना तो उसने 1669 में एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंस करवा दिया।

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