मुगल बादशाह औरंगजेब पांचों वक्त की नमाज पढ़ता था, नियमपूर्वक रोजे रखता था, इस्लाम के सभी नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करता था तथा जिस धर्म की सत्यता में उसे विश्वास था उस धर्म को उसने अपनी प्रजा में फैलाने का प्रयत्न किया। इसलिए औरंगजेब ने इस्लाम धर्म को राज्यधर्म बनाया और अपनी बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा को इस्लाम धर्म में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया।
इस क्रम में मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में अनेक हिन्दू मंदिरों एवं पाठशालाओं को तोड़ने के आदेश जारी किए गए ताकि हिन्दू अपने धर्म तथा शिक्षा का प्रसार न कर सकें। बतौर उदाहरण बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवदेव मंदिर तथा सौराष्ट्र का सोमनाथ मंदिर के अतिरिक्त उत्तर भारत के प्राय: सभी बड़े-बड़े मंदिर उसके समय में तोड़े गए।
हांलाकि इतिहास में फरमानों तथा सिक्कों के जरिए किसी भी शासक के धार्मिक दृष्टिकोणों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। चूंकि औरंगजेब ने अपने शासन के 15वें एवं 19वें वर्ष में फतेहपुरसीकरी टकसाल से हिन्दू राशि के वृष, मिथुन तथा कन्या के चित्रों से सुशोभित सिक्के जारी किए थे। ये सभी सिक्के अमेरिकन मुद्रा समिति बोस्टन में सुरक्षित हैं। इसी क्रम में औरंगजेब ने चित्रकूट के बालाजी मंदिर, प्रयागराज के सामेश्वर महादेव मंदिर तथा मथुरा के दाउजी मंदिर के रखरखाव के लिए जमीनें तथा धन आदि देने के फरमान जारी किए हैं। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के अध्ययन से एक प्रश्न उभरकर सामने आता है कि एक हिन्दू विरोधी शासक इस प्रकार की कार्यवाही कैसे कर सकता है।
इस सम्बन्ध में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के नदीम रेज़ावी का कहना है कि “औरंगज़ेब एक सम्राट था, उसका एकमात्र इरादा शासन करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो भी आवश्यक था, उसने वह किया। उसने कुछ मंदिरों को जमींदोज कर दिया और अन्य मंदिरों में भारी मात्रा में धन दान किया।”
1- चित्रकूट का बालाजी मंदिर
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित चित्रकूट वर्तमान में जिला मुख्यालय है। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। ऐसे में भगवान राम की इसी तपोभूमि पर बालाजी का मंदिर है जो पवित्र मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित रामघाट से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। बालाजी मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने बनवाया था, इसके पीछे एक बहुत ही रोचक इतिहास छिपा हुआ है।
प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार, मुगल बादशाह औरंगजेब जब चित्रकूट आया तब उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि सुबह होते ही चित्रकूट के सभी मंदिरों तथा मठों को तोड़कर मंदाकिनी नदी में बहा दिया जाए। अगले दिन सुबह मुगल सैनिकों ने जैसे ही मत्यगयेन्द्रनाथ (शिव का प्राचीन मंदिर) में स्थापित शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की, उन सभी सैनिकों के पेट में भयंकर दर्द शुरू हो गया और एक-एक करके सभी सैनिक बहोशी की हालत में चले गए। इस घटना से औरंगजेब घबरा गया और उसने सैनिकों के उपचार हेतु हर संभव प्रयास किए लेकिन असफल रहा। इसी दौरान घबराए औरंगजेब को एक संत ने बाबा बालकदास की शरण में जाने की सलाह दी।
औरंगजेब ने बाबा बालकदास के समक्ष अपने सैनिकों के उपचार की बात कही। तब बाबा बालकदास ने उससे मंदिरों को ध्वस्त करने की प्रक्रिया बंद करने को कहा। इसके बाद औरंगजेब ने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश रूकवा दिया। कहा जाता है कि औरंगजेब ने जैसे ही इस तरह का आदेश जारी किया तो बाबा बालकदास के उपचार से सभी सैनिक चमत्कारिक ढंग से उठ खड़े हुए। बाबा बालकदास के इस चमत्कार से औरंगजेब काफी प्रभावित हुआ और उस क्षेत्र के किसी भी मंदिर को छुआ तक नहीं और संत बालकदास के कहने पर साल 1683 में वहां एक तत्काल मंदिर बनवाने का आदेश दिया और भगवान के राजभोग के लिए फरमान भी जारी किए। यही वह मंदिर आज बालाजी मंदिर के नाम से विख्यात है। मंदाकिनी नदी के तट पर निर्मित बालाजी मंदिर में मुगलकालीन स्थापत्य कला की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है।
औरंगजेब के फरमान में क्या लिखा है -
चित्रकूट के बालाजी मंदिर में भगवान बालाजी की एक सोने की मूर्ति है। मंदिर में स्थापित इस मूर्ति की महत्ता को लेकर स्थानीय लोग गर्व करते हैं लेकिन औरंगजेब द्वारा जारी फरमान भी इस मंदिर के लिए उतना ही महत्व रखता है। फरमान के मुताबिक मंदिर में भोग-प्रसाद के लिए औरंगजेब ने अपने खजाने से प्रतिदिन एक रुपये देने की व्यवस्था की थी। इसके साथ ही बालाजी मंदिर के रखरखाव के लिए 8 गांवों में 330 बीघा जमीन दान की थी। आज की तारीख में इन गांवों के नाम इस प्रकार हैं- हमुठा, चित्रकूट, रोदरा, सरया, मदरी, जारवा और दोहरिया।
औरंगजेब के इस फरमान पर उसके राजस्व मंत्री सआदत खां की सील लगी हुई है और इसे बहरमंद खां नाम के कातिब ने लिखा है। हांलाकि फरमान में कुछ गलतियां देखने को मिल जाती हैं, जैसे- फरमान की शुरूआत में 'अल्लाहो अकबर' लिखा है जबकि औरंगजेब ने 'बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम' का चलन शुरू करवाया था। इस सम्बन्ध में जाने माने इतिहासकार इरफान हबीब का कहना है कि फरमान की भाषा, फरमान पर लगी सील और मुगल अधिकारियों के नाम इसके सही होने का इशारा करते हैं। फरमान में हुई त्रुटियों की वजह उसका रीस्टोर किया जाना है।
2- प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर
पद्मपुराण के अनुसार, संगम स्थल के समीप दक्षिणी तट पर सोमतीर्थ का उल्लेख है जहां चन्द्रमा ने सोमेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। 14वीं शताब्दी में रचित विद्यापति के ग्रंथ ‘भू परिक्रमा’ में भी सोमतीर्थ का उल्लेख मिलता है। एक कथा के मुताबिक, गौतम ऋषि ने चन्द्रमा को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दिया था। इसके बाद चन्द्रमा ने गौतम ऋषि से श्रापमुक्त होने के लिए अनुनय-विनय की थी। तब गौतम ऋषि ने चन्द्रमा से कहा कि संगम नगरी में जाकर भगवान शिव की आराधना करने पर श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद गौतम ऋषि के कहने पर चन्द्रमा ने यहां आकर कठोर तप किया तब भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिया और यह आशीर्वाद दिया कि जो भी इस मंदिर में आकर शिवलिंग के दर्शन करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। चूंकि चन्द्रमा का एक नाम सोम भी है, इसलिए यह मंदिर सोमेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया।
1674 ई. औरंगजेब यहां आया था-
ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने जब सोमेश्वर महादेव की सीढ़ियों पर अपने कदम रखे तो उसके पैर रुक गए और उसने इस मंदिर में कई चमत्कार देखे, इसके बाद उसने अपना सिर झुका लिया। उसने न केवल इस मंदिर को ध्वस्त करने का अपना इरादा बदल दिया वरन मंदिर से जुड़ा एक फरमान भी जारी किया।
सोमेश्वर महादेव के मंदिर प्रांगण में मौजूद हनुमान प्रतिमा के समक्ष पत्थर का बना एक धर्मदण्ड स्थित है, इस धर्मदण्ड पर 15 पंक्तियों में एक लेख उत्कीर्ण है, जिसके मुताबिक संवत 1674 के श्रावण मास में मुगल बादशाह औरंगजेब यहां आया था और उसने मंदिर के रखरखाव के लिए एक जागीर दान की थी। इसी जागीर से प्राप्त आय से मंदिर का रखरखाव व पूजा-अर्चना तथा भोग आदि की व्यवस्था की जाती थी। हांलाकि ब्रिटीश शासन के दौरान सोमेश्वर महादेव मंदिर से जगीर छीन ली गई। तब से लेकर आज तक श्रद्धालु भक्तों के चढ़ावे प्राप्त होने वाली धनराशि आदि से मंदिर में महादेव की पूजा की जाती है।
ओडिशा के पूर्व राज्यपाल विशंभर नाथ पांडेय का बयान
उड़ीसा के पूर्व राज्यपाल विशंभर नाथ पांडेय ने वर्ष 1977 में 27 जुलाई को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान (तब सांसद थे) सदन को औरंगजेब द्वारा सोमेश्वर महादेव मंदिर को प्रदत्त जागीर के बारे में जानकारी दी थी। सदन को जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि जब वह इलाहाबाद महानगरपालिका के चेयरमैन थे तब उनके सामने सोमेश्वर मंदिर से जुड़ा एक विवाद सामने आया था। इस दौरान एक पक्ष ने उन्हें औरंगजेब की ओर से जारी जागीर संबंधी फरमान दिखाया था। इसकी वैधता परखने के लिए जस्टिस तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में कमिटी भी बनाई गई थी। सोमेश्वर मंदिर को मिली जागीर का औरंगजेब का फरमान तब कमिटी ने देखा था।
3- मथुरा का दाऊ जी महाराज मंदिर
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में काशी के बाद सबसे ज्यादा मंदिर देखने को मिलते हैं। मथुरा से उत्तर दिशा में 20 किमी की दूरी बल्देव गांव स्थित है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी यानि दाऊ जी महाराज का मंदिर है। बता दें कि औरंगजेब ने फरमान जारी कर इस मंदिर के नाम 5 गांव दान में दिए थे। आज भी इन 5 गांवों से सरकारी खजाने को मिलने वाला राजस्व दाऊ जी मंदिर को दान में दिया जाता है।
दाऊ जी महाराज मंदिर से जुड़ी कथा-
दाऊ जी महाराज मंदिर से जुड़ी इस कथा को सभी ब्रजवासी जानते हैं। कथा के अनुसार, एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ने की कार्रवाई में मथुरा की तरफ बढ़ रहा था। उसे दाऊ जी महाराज मंदिर के बारे में जानकारी थी, इस मंदिर के बारे में वह जब भी अपने साथियों से पूछता था, तो जवाब मिलता कि ‘बस दो कोस दूर’ है। घंटों सफर करने के बाद भी यही जवाब मिला कि ‘बस दो कोस दूर’ है। ऐसे में औरंगजेब को दाऊ जी की शक्ति का आभास हुआ और उसने इस मंदिर को तोड़ने का इरादा बदल दिया, साथ ही 5 गांव दान में भी दे दिए।
शिलापट्ट पर उत्कीर्ण है औरंगजेब का फरमान-
दाऊ जी मंदिर के नक्कारखाने के बाहर लगे शिलापट्ट पर औरंगजेब द्वारा दान में दिए गए 5 गांवों से जुड़े फरमान उत्कीर्ण किया गया है। इस शिलापट्ट पर लिखा है कि “इस शाही नक्कारखाने का निर्माण मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब ने संवत 1729 (सन 1672) में कराया था तथा नक्कारखाने के संचालन हेतु 5 गांव बातौर माफी जागीर मंदिर को भेंट की। इस जागीर माफी को मुगलिया बादशाह शाहआलम ने बरकरार रखते हुए नक्कारखाने एवं मंदिर के भोग आदि की व्यवस्था के लिए ढाई गांव और बढाकर साढ़े सात गांव की जागीर मंदिर के सेवायत श्री शोभरि वन्शावंताश आदिगोड़ विप्रवंश मार्तंड गोस्वामी श्री कल्याण देव जी के वंशज गोस्वामी हंसराज जी एवं जगन्नाथ जी को भेंट दिया तथा मंदिर के संचालन के लिए बलभद्र कुंड के मालिकाना हक के साथ सम्पूर्ण परगना महावन में प्रति गांव दो रुपया अतिरिक्त मालगुजारी सर्देही वास्ते देवस्थान श्री दाऊ जी महाराज को भेंट की जिसका फरमान 1196 फसली यानी संवत 1840 विक्रम चैत्र शुक्ल 3 को जारी किया गया।”
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