वीर शैव सम्प्रदाय के अनुसार, प्रारम्भ में केवल भगवान शिव की सत्ता थी। वह निरावलम्ब थे, जिसे सर्वशून्य कहते हैं। उसके साथ उसकी शक्ति थी और इसी शक्ति के कारण उसमें अपनी चेतना पैदा हुई। वह शून्यलिंग बन गया जो निष्कल ब्रह्म था। इसके बाद महालिंग बना और फिर उसने पांच मुंह वाले सदाशिव का रूप धारण कर लिया। उसके पांच मुंह से पांच सादाख्य पैदा हुए जिनमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश- ये पांच तत्व निकले।
उसकी आंखों व मन से सूर्य और चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई तथा छुपे हुए मुंह से जीवात्मा का विकास हुआ। बता दें कि वीर शैव सम्प्रदाय सबके लिए खुला है क्योंकि इसकी दृष्टि में सभी व्यवसायों के लोग समान हैं। इस प्रकार इस सम्प्रदाय ने मानव मात्र की समानता को प्रतिपादित कर एक बड़ी क्रान्ति उत्पन्न कर दी। वीर शैव के आचार्यों ने पूरे देश में पांच मठों की स्थापना की, इनमें केदार (हिमालय में), उज्जयिनी, श्रीशैलम और रम्भापुरी और काशी का नाम शामिल है।
जी हां, दोस्तों काशी में गोदौलिया के बिल्कुल नजदीक इस प्राचीन वीर शैव मठ का नाम जंगमवाड़ी मठ है। जंगमवाड़ी मठ की स्थापना वीर शैव सम्प्रदाय के आचार्य श्री विश्वाराधय महास्वामी ने की थी। जंगमवाड़ी मठ को वाराणसी की अति प्राचीन मठों में से एक माना जाता है। हांलाकि कुछ ऐतिहासिक आलेखों के मुताबिक इस मठ का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था, लेकिन इसके निर्माण की सटीक तिथि प्रमाणित करना बहुत कठिन है।
जंगमवाड़ी से तात्पर्य है- “शिव को जानने वालों का आश्रम अथवा निवास।” आप इस मठ से जुड़ी सैकड़ों वर्ष पुरानी एक परम्परा जानकर हैरान रह जाएंगे कि 50000 वर्ग फुट में फैले इस वीर शैव मठ में अनुयायियों की आकस्मिक अथवा अकाल मृत्यु होने की स्थिति में मृतकात्मा की शान्ति के लिए पिण्डदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान किए जाते हैं। जंगमवाड़ी मठ में अधिकतर शिवलिंगों का दान सावन के महीने में किया जाता है।
इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि मुगलकाल के उन शक्तिशाली शासकों के बारे में जिन्होंने काशी के पवित्र जंगमवाड़ी मठ के नाम कई फरमान जारी किए थे। आखिर इन शाही फरमानों में क्या लिखा है, इसके लिए यह रोचक लेख जरूर पढ़ें।
दोस्तों, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि शक्तिशाली मुगल बादशाहों में हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, दाराशिकोह, औरंगजेब और मुहम्मद शाह की तरफ से समय-समय पर जंगमवाड़ी मठ के नाम फरमान जारी किए गए। इन शाही फरमानों से काफी हद तक मुगल शासकों के हिन्दू विरोधी भावनाओं का खण्डन स्वत: ही हो जाता है। बनारस के गजेटियर पृष्ठ संख्या 123 पर भी इन मुगल फरमानों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के द्वारा भी इन शाही फरमानों की जांच की जा चुकी है। यहां तक कि प्रख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने भी इन मुगल शाही फरमानों की सत्यता और सटीकता के संबंध में पुष्टि की है। जानकारी के लिए बता दें कि इन शाही फरमानों में उपरोक्त मुगल शासकों द्वारा जंगमवाड़ी मठ के नाम भूमि अनुदान का उल्लेख मिलता है।
मुगल बादशाह हुमायूं ने मिर्जापुर जिले के चुनार में जंगमवाड़ी मठ के नाम 300 बीघा भूमि दान में दी थी। साल 1566 ई. में मुगल सम्राट अकबर ने जंगमवाड़ी मठ के नाम एक फरमान (973 एएच/1565-66 ई. का) जारी किया था, जिसमें मुख्य पुजारी अर्जुन जंगम के नाम पर 480 बीघे जमीन अनुदान में दी गई थी।1
1600 ई. में जहांगीर यानि सलीम काशी के जंगमवाड़ी मठ के सम्पर्क में तब आया जब उसने पिता मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था तथा इलाहाबाद को शाही क्षेत्र घोषित करके एक एक स्वतंत्र शासक के रूप में शासन करना शुरू किया था। इस दौरान सलीम की मुहर के साथ जंगमवाड़ी मठ के अर्जुनमल जंगम को एक फरमान जारी किया गया था। यह शाही फरमान (दिनांक मिहर इलाही 45 आरवाई/सितंबर, अक्टूबर 1600 ई.) बनारस के आमिलों, जागीरदारों आदि को संबोधित किया गया था। सलीम की ओर से जारी फरमान में अर्जुन जंगम के पक्ष में अनुदान के रूप में 178 बीघे भूमि की पुष्टि की गई थी।2
जिस मुगल बादशाह औरंगजेब ने कई प्रख्यात हिन्दू मंदिरों को तुड़वाया था, उसके द्वारा जंगमवाड़ी मठ को अनुदान देना किसी विस्मय से कम नहीं है। उसने अपने मुगल पूर्वजों का अनुसरण करते हुए जंगमवाड़ी मठ के नाम कई फरमान जारी किए। मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा 1667 ई. में जारी फरमान में जंगमवाड़ी मठ की गलत तरीके से जब्त की गई भूमि को बहाल करने का उल्लेख मिलता है। जबकि 1672 ई. के फरमान में उसने विघटनकारी स्थानीय मुस्लिम से जंगमवाड़ी मठ को बचाया। इसके साथ ही उसके 1674 ई. के शाही फरमान में जंगमवाड़ी मठ से अवैध रूप से लिया गया किराया वापस करवाने का विवरण मिलता है।3
गौरतलब है कि काशी (वाराणसी) के जंगमवाड़ी मठ के नाम 4 फरमान अकबर, तीन औरंगजेब और दो-दो दाराशिकोह और शाहजहां के और एक फरमान जहांगीर की ओर से जारी किया गया है। मुगल बादशाहों द्वारा जारी किए गए उपरोक्त सभी फरमान जंगमवाड़ी मठ में आज भी सुरक्षित हैं।
1-Russell, R. V.; Lal, Hira (1995). The tribes and castes of the central provinces of India, Volume 1. Asian Educational Services. p. 222. ISBN 81-206-0833-X.
2- "Lingayat | Veerashaiva, Karnataka, Shaivism | Britannica". www.britannica.com. Retrieved 11 August 2023.
3- "Jangama". Lingayat Religion. Retrieved 26 May 2019.