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Nadir Shah attacked on Delhi and and Murdered thirty thousand Peoples

नादिरशाह ने महज आठ घंटे में तीस हजार दिल्लीवासियों को मौत के घाट उतरवा दिया था, जानिए क्यों?

नादिरशाह ने 1736 ई. में ईरान पर अधिकार कर लिया और वहां से अफगानों को खदेड़ दिया। इतना ही नहीं, अफगानों की शक्ति को पूर्णतया नष्ट करने के लिए नादिरशाह ने 1738 में कन्धार पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया। तत्पश्चात उसने अफगानिस्तान तथा भारत पर ​आक्रमण करने की योजना बनाई। अतिमहत्वाकांक्षी नादिरशाह ने देखा कि मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ‘रंगीला’ एक रंगीन मिजाज शासक है और इतना ज्यादा अय्याशी में डूब हुआ है कि उसे राज्य संभालने तक का होश नहीं। इस​ कारण भारत पर आक्रमण करके यहां से धन लूटना उसके आक्रमण का मुख्य लक्ष्य बन गया। कन्धार को जीतने के बाद उसने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया। अफगानिस्तान के मुगल सूबेदार नासिरखां को मुगल दरबार से कोई मदद नहीं मिली लिहाजा वह भाग खड़ा हुआ और नादिरशाह ने बड़ी आसानी से अफगानिस्तान पर अधिकार कर लिया।

इस प्रकार नादिरशाह भारत में प्रवेश करने के सबसे प्रचलित रास्ते खैबर दर्रे को पार करके हिन्दुस्तान में दाखिल हो गया। उसने पेशावर के रास्ते पंजाब में प्रवेश किया। पंजाब के सूबेदार जकारिया खां को भी मुगल बादशाह मुहम्मदशाह से कोई सहायता नहीं मिली इसलिए उसने आत्समर्पण कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि रंगीन मिजाज मु​हम्मद शाह को जब यह सूचना दी जाती कि नादिरशाह अपनी फौज के साथ आगे बढ़ रहा है तो केवल यही कहता- 'हनूज़ दिल्ली दूर अस्त’ यानी अभी दिल्ली बहुत दूर है, अभी से फ़िक्र की क्या बात है।

करनाल का युद्ध- 24 फरवरी 1739 ई.

जब तक मुगल बादशाह मुहम्मद शाह को होश आया तब तक नादिरशाह अपनी विशाल सेना के साथ दिल्ली से महज सौ मील दूर करनाल पहुंच गया। 24 फरवरी 1739 ई. को करनाल का युद्ध हुआ। यद्यपि रंगीन मिजाज बादशाह मुहम्मदशाह की सेना में लाखों ​सैनिक थे लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा बावर्चियों, संगीतकारों, सेवकों, कुलियों, खजांचियों तथा अन्य दूसरे नागरिकों से भरा पड़ा था जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या केवल एक लाख से कुछ ही ज्यादा थी।

मुगल सेना के मुकाबले नादिरशाह की फौज में केवल 55 हजार लड़ाके थे। बावजूद इसके महज तीन घंटे में करनाल युद्ध का फैसला हो गया। मुगल सेना की पराजय के बाद सन्धि की बातचीत हुई और ईरानी नादिरशाह दो करोड़ रुपया लेकर वापस जाने को तत्पर हो गया।

करनाल युद्ध के दौरान मुगलों के सेनापति खानेदौरान की मृत्यु के बाद बादशाह मुहम्मदशाह ने मीरबख्शी के पद निजाम-उल-मुल्क को नियुक्त कर दिया। इसके बाद सादतखां जो स्वयं मीरबख्शी पद पर आसीन होना चाहता था, असन्तुष्ट होकर उसने नादिरशाह को दिल्ली जाने की सलाह दी। इस प्रकार नादिरशाह ने बादशाह मुहम्मदशाह ‘रंगीला’ और निजाम-उल-मुल्क को कैद कर 20 मार्च  को राजधानी दिल्ली में प्रवेश किया।

तीस हजार दिल्लीवासियों का कत्लेआम

मुगल साम्राज्य के गिरावट के बाद भी उन दिनों दिल्ली को दुनिया के सबसे अमीर शहरों में शुमार किया जाता था।  इतना ही नहीं, दिल्ली दुनिया का सबसे बड़ा शहर था। दिल्ली की आबादी लंदन और पेरिस की संयुक्त आबादी से भी ज्यादा थी। आक्रमणकारी नादिरशाह ने जिस दिन दिल्ली में प्रवेश किया उसके अगले ​ही दिन इद-उल-जुहा थी इसलिए दिल्ली की मस्जिदों में नादिरशाह के नाम का खुत्बा पढ़ा गया और शाही टकसालों में उसके नाम के सिक्के ढाले गए। 22 मार्च को ही दिल्ली में अफवाह फैल गई कि एक तवायफ ने नादिरशाह का कत्ल कर दिया। इस अफवाह के चलते दिल्ली में दंगा फैल गया और वहां की जनता ने ईरानी सैनिकों का कत्ल करना शुरू कर दिया।

इससे क्रोधित होकर नादिरशाह अपने घोड़े पर सवार होकर लाल किले से बाहर निकल आया, उसके साथ सेना के कमांडर और जरनैल भी थे। चांदनी चौक के रोशनउद्दौला मस्जिद के पास खड़े होकर उसने अपनी तलवार निकाली और अपने सैनिकों की तरफ इशारा किया। अभी सुबह के नौ ही बजे तभी ईरानी सैनिकों ने क़त्ल-ए-आम शुरू कर दिया।

ईरानी सैनिकों ने घरों में घुसकर दिल्लीवासियों का कत्ल करना शुरू किया, कहा जाता है कि दिल्ली की गलियां लाशों से पट गई थीं। हजारों औरतों का बलात्कार किया गया और न जाने कितनी औरतों ने कुओं में कूद कर अपनी जान दे दी। तकरीबन आठ घण्टे तक दिल्ली में कत्लेआम होता रहा और इस दौरान तीस हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।

ईरानी सैनिकों ने दिल्ली को जीभरकर लूटा

नादिरशाह ने अपनी फौज को कई टुकड़ों में बांट दिया और आदेश दिया कि जितना हो सके माल लूट लो। इस लूटपाट के दौरान जिस किसी ने भी दौलत छुपाने की कोशिश की उसे बहुत बुरी तरह प्रताड़ित किया गया। दिल्ली शहर को लूटने के बाद नादिरशाह ने शाही महल में प्रवेश किया।

मोतियों और मूंगों से भरे शाही खजाने में हीरे, जवाहरात और सोने-चांदी का अम्बार लगा था। इतना धन नादिरशाह ने कभी अपने ख्वाब में भी नहीं देखा होगा। चंद दिनों में दिल्ली का शाही खजाना खाली कर दिया गया। इसके अलावा दरबार के कई नवाबों, राजाओं तथा उमरा ने बतौर फिरौती कई करोड़ सोने और जवाहरात दिए। तकरीबन महीनेभर सैकड़ों मजदूर सोने-चांदी के बर्तनों अन्य सामानों को पिघलाकर ईंटें ढालते रहे ताकि उन्हें ईरान ले जाने में कोई दिक्कत न हो।

आखिर नादिरशाह को कैसे मिली कोहिनूर हीरे की जानकारी

जदुनाथ सरकार की चर्चित किताब ‘नादिर शाह इन इंडिया’ के मुताबिक, “दिल्ली के शाही महल से सोना-चांदी सहित नकद 30 करोड़, 9 करोड़ का तख़्त-ए-ताऊस,25 करोड़ के गहने और नौ दूसरे रत्न जड़ित सिंहासन, हीरे-जवाहरात जड़ित हथियार तथा बर्तन, शाही तोपें और फर्नीचर आदि के अतिरिक्त 300 हाथी, 10 हजार घोड़े और उतनी ही संख्या में ऊंटों की वसूली की गई थी।”

उपरोक्त सभी सम्पत्तियों को लेकर नादिरशाह ईरान जाने ही वाला था तभी दिल्ली की एक तवायफ नूर बाई ने उसे बताया कि ये सब कुछ जो तुमने हासिल किया है, वो उस चीज़ के आग़े कुछ भी नहीं है जिसे मोहम्मदशाह ने अपनी पगड़ी में छुपा रखा है। दरअसल मुहम्मद शाह रंगीला की पगड़ी में अनमोल ‘कोहिनूर’ हीरा था।

नादिरशाह भी कम होशियार नहीं था, उसने मुहम्मदशाह से कहा कि ईरान में खुशी के मौके पर भाई अपनी पगड़ियां बदल देते हैं। चूंकि अब हम भाई बन गए हैं, इसलिए यह रस्म अदायगी आपको भी करनी होगी। इसके बाद बेबस मुहम्मदशाह ने अपनी पगड़ी उतारकर नादिरशाह के सिर पर रख दी। इस प्रकार दुनिया का सबसे बेशकीमती और मशहूर हीरा कोहिनूर नादिरशाह के पास पहुंच गया।

गौरतलब है कि ईरानी बादशाह नादिरशाह ने आज के हिसाब से तकरीबन 156 अरब डॉलर की लूटपाट की थी। ऐसा कहा जाता है यह भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लूटमार थी। नादिरशाह ने न केवल मुगल खाजाना खाली कर दिया बल्कि मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा और शक्ति को भी हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट कर दिया।

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