20वीं सदी के प्रारम्भ तक अधिकांश विद्वानों की यह धारणा थी कि वैदिक सभ्यता ही भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है, लेकिन इसी सदी के तीसरे दशक में यह धारणा भ्रामक सिद्ध हुई जब दो प्रख्यात पुरातत्वविदों दयाराम साहनी तथा राखलदास बनर्जी ने हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ों के प्राचीन स्थलों से पुरावस्तुएं प्राप्त करके यह साबित कर दिया कि परस्पर 640 किमी. की दूरी पर बसे ये दोनों नगर कभी एक ही सभ्यता के दो केन्द्र थे। इस पूरी सभ्यता को ‘सिन्धु नदी घाटी सभ्यता’ अथवा इसके मुख्य स्थल हड़प्पा के नाम पर इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ कहा जाता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता 2500 ई. पू. के आस-पास अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में प्रकट होती है। यह केवल सिन्धु नदी घाटी तक ही सीमित नहीं थी। अपितु पाकिस्तान के बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब के प्रान्तों में सैधव सभ्यता के कई पुरास्थलों की खोज की गई है। हड़प्पा या सिन्धु संस्कृति का उदय ताम्र पाषाणिक पृष्ठभूमि पर भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ। इसका नाम हड़प्पा संस्कृति पड़ा क्योंकि 1921 में इसका पता सर्वप्रथम पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त में स्थित हड़प्पा के आधुनिक स्थल में चला।
सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने वर्ष 1826 ई. में हड़प्पा के टीलों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था। इसके बाद वर्ष 1853 तथा 1873 ई. में जनरल कनिंघम ने हड़प्पा के टीलों का सर्वे कर कुछ पुरावस्तुएं प्राप्त की। 1912 ई.में जे.एफ. फ्लीट ने यहां से प्राप्त की गई सामग्रियों पर रॉयल एशियाटिक सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पत्रिका में एक लेख प्रस्तुत किया। हांलाकि कनिंघम तथा फ्लीट हड़प्पा के पुरातात्विक महत्व का सही-सही मूल्यांकन करने में असफल रहे।
इसके बाद 1921 ई. में जब सर जॉन मार्शल पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के निर्देशक थे, तब रायबहादुर दयाराम साहनी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के माण्टगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर हड़प्पा का अन्वेषण कर 1923-24 तथा 1924-25 में उत्खनन करवाया। इसके बाद माधव स्वरूप वत्स तथा सर मार्टीमर ह्वीलर के निर्देशन में उत्खनन कार्य करके पुरातात्विक महत्व की अनके वस्तुएं प्राप्त की गईं।
मोहनजोदड़ों (मृतकों का टीला) की खोज सर्वप्रथम 1922 ई. में राखालदास बनर्जी के द्वारा की गई। 1922-30 के दौरान सर जॉन मार्शल के निर्देशन में यहां उत्खनन कार्य करवाया गया। 1931 ई. में एन.जी. मजूमदार ने मोहनजोदड़ो से 128 किमी. दक्षिण पूर्व में चन्हूदड़ो नामक पुरास्थल का उत्खनन कार्य करवाया। उपरोक्त विद्वानों के अतिरिक्त के.एन. दीक्षित, आरेल स्टीन, जे.पी.जोशी, अर्नेस्ट मैके, ए.घोष आदि का इस सभ्यता की खोज में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता के अब तक 350 से अधिक स्थल प्रकाश में आ चुके हैं जिनमें से अधिकांश स्थल (तकरीबन 200) गुजरात में हैं। दजला-फरात (मेसोपोटामिया) तथा नील घाटी (मिस्र) सभ्यताओं के समकालीन सिन्धु घाटी सभ्यता अपने विशिष्ट नगर नियोजन तथा जल निकासी व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है।
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सिन्धु घाटी सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता का विस्तार
इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत में क्रमश: पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर तथा पश्चिमी महाराष्ट्र के हिस्सों में पाए जा चुके हैं। ऐसे में हड़प्पा सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण नर्मदा के मुहाने तक तथा पश्चिम में मकरान के समुद्र तट से लेकर पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले तक है। इसका कुल क्षेत्रफल 13 लाख वर्ग किमी. तक है। इस सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल आलमगीर तथा उत्तरी पुरास्थल मांडा (जम्मू) तथा दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद में हैं। इस सभ्यता के विस्तार के कारण स्टुअर्ट पिगट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियां बताया।
सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
सिन्धु घाटी सभ्यता के जिन नगरों की खुदाई की गई उनमें केन्द्रीय नगर, तटीय नगर, पत्तन नगर के साथ अन्य नगर एवं कस्बों के रूप में अभी तक तकरीबन 1500 स्थलों का पता लग चुका है। इनमें से केवल सात को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है : 1- हड़प्पा 2- मोहनजोदड़ो 3-कालीबंगा 4- चन्हूदड़ो 5-लोथल 6-बनावली 7- सुरकोटदा
इन सात नगरों के अतिरिक्त 13 अन्य प्रमुख सैन्धव स्थल इस प्रकार हैं-
- धौलावीरा 2- बालाकोट 3-अल्लाहदीनो 4- कोटदीजी 5- माण्डा 6-रोपड़ 7- भगवानपुरा 8- देसलपुर 9-रोजदी 10- दैमाबाद 11-हुलास 12-कुन्तासी 13- आलमगीरपुर
- हड़प्पा
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के माण्टगोमरी जिले (वर्तमान में शाहीवाल जिला) के रावी नदी के बाएं तट पर स्थित हड़प्पा स्थल की जानकारी सर्वप्रथम 1826 ई. में चार्ल्स मैसन ने दी। साल 1921 में दयाराम साहनी ने इस स्थल का सर्वेक्षण किया और बाद में इसका उत्खनन आरम्भ हुआ। दयाराम साहनी के अतिरिक्त माधोस्वरूप वत्स तथा मार्टीमर ह्वीलर ने हड़प्पा टीले का व्यापक स्तर पर उत्खनन करवाया। इस जगह से सिंधु सभ्यता से जुड़ी तांबे की इक्का गाड़ी, उर्वरता की देवी (स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे वाली मृण्मूर्ति), कांस्य दर्पण, मछुआरे का चित्र, गरुड़ की मूर्ति, शिव की मूर्ति आदि साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इस पुरास्थल से बारह कक्षों वाले एक अन्नागार का अवशेष मिला है जिसका कुल क्षेत्र 2745 वर्ग मीटर से अधिक है।
- मोहन जोदड़ो
सिन्धी भाषा में मोहन जोदड़ो का अर्थ है- ‘मृतकों का टीला’। यह सिन्ध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है, इसकी खोज सर्वप्रथम राखालदास बनर्जी ने 1922 में की थी। यह सिन्धु सभ्यता के सबसे बड़े शहरों में से एक है। इसकी जनसंख्या 41000 के लगभग थी। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए था। मार्शल ने इसे तत्कालीन विश्व का एक आश्चर्यजनक निर्माण कहा है। यह शहर करीब 125 हेक्टेयर में बसा हुआ था। मोहनजोदड़ो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को ‘स्तूपटीला’ भी कहा जाता है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त अवशेषों में महाविद्यालय भवन, कांसे की शिवमूर्ति, सूती कपड़ा, हाथी का कपालखण्ड, कुम्भकारों के छह भट्ठे, गले हुए तांबे के ढेर, कुएं से प्राप्त नर कंकाल, घोड़े के दांत तथा गीली मिट्टी पर कपड़े के साक्ष्य मिले हैं।
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- कालीबंगा
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित कालीबंगा की खोज 1953 ई. में अमलानन्द घोष ने की थी। यहां से आद्य हड़प्पा तथा हड़प्पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। कालीबंगा से प्राक् हड़प्पा काल के जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है। यहां से अग्निकुण्ड या हवन कुण्ड के साक्ष्य मिले हैं। कालीबंगा में दुर्ग व नगर क्षेत्र दोनों ही अलग-अलग रक्षा प्राचीर से घिरे थे। यहां शवों की अंत्योष्टि की तीन विधियों - समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण तथा दाह संस्कार के प्रमाण मिले हैं।
- चन्हूदड़ो
मोहनजोदड़ो से 80 मील दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ो की खोज 1931 ई. में एन.जी.मजूमदार ने की थी। इसका उत्खनन 1935 ई. में अर्नेस्ट मैके ने किया। चन्हूदड़ो से प्राक् हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिले हैं जिसे झूकर और झांगर संस्कृति कहते हैं। यह एकमात्र पुरास्थल है जहां से वक्राकार ईंटें मिली हैं। यहां से प्राप्त अवशेषों में अलंकृत हाथी, खिलौना, बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्हृ मिले हैं।
5-लोथल
गुजरात के अहमदाबाद जिले में स्थित सरागवाला गांव से 80 किमी. दक्षिण में भोगवा नदी के तट पर खम्भात की खाड़ी में स्थित लोथल की खोज 1975 ई. में एस.आर.राव ने की थी। लोथल हड़प्पा सभ्यता का एक बहुत महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर था। इस संपन्न व्यापार केंद्र से पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक मोती, जवाहरात और कीमती गहने भेजे जाते थे। लोथल से मिली फारस की मुहर और पक्के रंग में रंगे हुए पात्रों के मिलने से यह पता चलता है कि यह बंदरगाह पश्चिमी एशिया से सामुद्रिक व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र था। लोथल से विश्व का सबसे प्राचीनतम गोदी (डॉकयार्ड) भी मिला है। लोथल से चावल के भी साक्ष्य मिले हैं।
6-बनवाली
हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज सन 1973 ई. में आर. एस. बिष्ट ने की थी। कालीबंगा से मिट्टी की काले रंग की चूड़ियां प्राप्त हुई थीं, इसलिए इसका नाम कालीबंगा रखा गया। यह स्थल प्राचीन शहर कालीबंगा से 120 किमी तथा फतेहाबाद से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। बनवाली में भी कालीबंगा की तरह प्राक् हड़प्प तथा हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। बनवाली में जल निकास प्रणाली का अभाव दिखता है। बनवाली से खिलौने के रूप में हल आकृति, जौ के अवशेष, सेलखड़ी एवं पकी हुई मिट्टी की मुहरें, तांबे की चूड़ियां, मातृदेवी की लघु मृण्मूर्तियां एवं मिट्टी के बर्तन मिले हैं।
7-सुरकोटदा
गुजरात के कच्छ जिले में स्थित सुरकोटदा की खोज सर्वप्रथम जगपति जोशी ने 1964 ई. में की थी। यह सम्भवत: एक बन्दरगाह नगर था। दरअसल यह पुरास्थल सैन्धव संस्कृति के पतन काल को दृष्टिगत करता है। सुरकोटदा से घोड़े की अस्थियां मिली हैं, यह महत्वपूर्ण खोज है क्योंकि अन्य किसी भी हड़प्पा कालीन स्थल से घोड़े की अस्थियां नहीं मिली हैं। इसके अलावा यहां से विशेष प्रकार की कब्रगाह तथा तराजू का पलड़ा मिला है।
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सैन्धव सभ्यता से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
— हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रभावशाली विशेषता उसकी नगर योजना एवं जल निकासी प्रणाली है।
— स्वास्तिक चिन्हृ सम्भवत: हड़प्पा सभ्यता की देन है। इस चिन्ह से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है।
— लोथल और सुरकोटदा भारत में हड़प्पाकालीन प्रमुख बन्दरगाह थे।
— लोथल से एक मृदभांड पर ‘चालाक लोमड़ी’ का रूपांकन मिला है।
— मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले हैं।
— मोहनजोदड़ो से नर्तकी की कांस्य मूर्ति मिली है।
— सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।
— मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर पशुपतिनाथ और उनके चारो ओर हाथी, गैंडा, व्याघ्र, हिरण एवं भैंसा विराजमान है।
— बलूचिस्तान के दक्षिण भाग में स्थित सुतकागेंडोर की खोज 1927 ई. में ओरियल स्टेन ने की थी।
— गैंडे का एकमात्र साक्ष्य आमरी से मिला है।
— धान की भूसी लोथल एवं रंगपुर से प्राप्त हुई है।
— सिन्धु सभ्यता की सर्वाधिक मुहरें सेलखड़ी निर्मित हैं।
— विभिन्न हड़प्पाकालीन स्थलों से अबतक 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं।
— हड़प्पा कालीन संस्कृति में 9 प्रकार के फसलों की पहचान की गई है— चावल, गेहूं, जौ, खजूर, तरबूज, मटर, राई, तिल आदि।
— सबसे पहले कपास उगाने का श्रेय सिन्धुवासियों को ही प्राप्त है। यूनान के लोग इसे ‘फ्लूनू’ कहने लगे जो सिन्धु शब्द से निकला है।
— हड़प्पावासी नारियल की खेती भी करते थे।
— हड़प्पा समाज सम्भवत: मातृसत्तात्मक था।
— सिन्धु सभ्यता के निवासी शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे।
— सिन्धुवासी घड़ियाल की पूजा करते थे क्योंकि वे उसे ‘सिन्धु नदी का देवता’ मानते थे।
— हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने लेखन कला का आविष्कार किया था, हड़प्पाई लिपि का सबसे प्राचीनतम नमूना 1853 में मिला था लेकिन अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है।
— हड़प्पा लिपि में 64 मूल चिह्न तथा 250 से 400 तक चित्राक्षर हैं जिनमें सर्वाधिक प्रचलित चिह्न मछली का है।
— सिन्धु लिपि को पढ़ने का प्रयास सर्वप्रथम वेडेन ने किया था।
—अहमदाबाद जिले में स्थित रंगपुर की खोज 1931 ई. में एम.एस. वत्स तथा 1953 ई. में एस. आर. राव ने की थी। रंगपुर तथा प्रभास पत्तन को सिन्धु सभ्यता का औरस पुत्र कहा गया है। यहां से कच्ची ईटों का दुर्ग भी मिला है।
— सूरत जिले के ताप्ती नदी के निचले मुहाने पर स्थित मालवण एक बन्दरगाह था। मालवण का पता 1967 ई. में आल्चिन तथा जोशी ने लगाया था।
— दिलमुन (बहरीन द्वीप) को सुमेरियन लेखों में उगते सूर्य तथा हाथियों का देश कहा गया है।
— स्थलीय व्यापार में अफगानिस्तान तथा ईरान (फारस) एवं जलीय व्यापार में मकरान तट (ओमान) के नगरों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
— हड़प्पा सभ्यता का व्यापार वस्तु विनिमय के द्वारा होता था। इसमें सिक्कों का प्रयोग नहीं होता था।
— जम्मू से करीब 28 किमी. की दूरी पर चेनाब नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित माण्डा हड़प्पा संस्कृति का सबसे उत्तरी स्थल है। पुरास्थल माण्डा का उत्खनन 1982 ई. में जे.पी. जोशी और मधुबाला ने करवाया था।
— हिन्दूकुश पर्वत के उत्तर में अफगान स्थित मुंडीगाक एवं सोर्तुगोई हड़प्पा सभ्यता के सबसे उत्त्तरी छोर हैं।
— रोपड़ (पंजाब स्थित) से मानव कब्र के साथ कुत्ते के शवाधान के प्रमाण मिले हैं। इस प्रकार की प्रथा नव पाषाणकाल में बर्जुहोम में प्रचलित थी।
— 1800 ई. पू. के बाद हड़प्पा सभ्यता पतनोन्मुख हो गई।
सम्भावित प्रश्न
— हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, प्रमाण सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए?
— हड़प्पा सभ्यता की सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
— हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख 7 नगरों का विस्तार से वर्णन कीजिए?
— कालीबंगा और लोथल की सभ्यता और संस्कृति पर विस्तृत प्रकाश डालिए?
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