भारत का इतिहास

Cosmic literature and accounts of foreign travelers in ancient history of india

प्राचीन भारतीय इतिहास के मुख्य स्रोत- (स)

लौकिक साहित्य और विदेशी यात्रियों के विवरण

लौकिक साहित्य में ऐतिहा​सिक तथा अर्द्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों एवं जीवनियों को समाहित किया जा सकता है। जिनसे प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने में काफी मदद मिलती है। साहित्य के अतिरिक्त भारत में समय-समय पर आने वाले विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरणों से भी हमें भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं।

चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त)

लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक कृतियों में सर्वप्रथम आचार्य चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र का उल्लेख किया जा सकता है।  चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री, गुरू तथा प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य को पारंपरिक रूप से कौटिल्य या विष्णुगुप्त के रूप में जाना जाता है। कौटिल्य ने संस्कृत भाषा में लगभग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व प्राचीन भारतीय राजनीतिक ग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना की।

अर्थशास्त्र

आचार्य चाणक्य कृत अर्थशास्त्र में चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ-साथ मौर्यकालीन भारत की शासन पद्धति, ​आर्थिक स्थिति, कानून एवं सामाजिक जीवन का विस्तार से वर्णन मिलता है। दरअसल चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए शासन की विधि के रूप में की थी, इसलिए इसे राजनीतिशास्त्र का अनुपम ग्रन्थ माना जाता है। अर्थशास्त्र से पता चलता है कि कौटिल्य संघ शासन से भी भलीभांति परिचित था। अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण, 150 अध्याय, तथा 180 प्रकरण हैं। अर्थशास्त्र के प्रमुख अध्याय इस प्रकार हैं- विनयाधिकारिणी, वृताधिकरण, योनेयधिकरण, कर्माधिकरण, धर्मास्थ्यिाधिकरण, निशांत प्रणिधि, राजपुत्र रक्षणम्, आत्मरक्षिकम। अर्थशास्त्र पर भट्टस्वामी ने प्रतिपदपंचिका तथा माधयजवा ने जयचंद्रिका नामक टीकाएं ​लिखीं।

महाकवि कालिदास

महाकवि कालिदास को चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन माना जाता है। महान संस्कृत कवि एवं नाटककार कालिदास की शैव धर्म के प्रति अपार निष्ठा थी। कालिदास की सबसे प्रसिद्ध रचना अभिज्ञानशाकुंतलम् उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था। यह पूरे विश्व साहित्य में अग्रगण्य रचना मानी जाती है। कालिदास के प्रमुख ग्रन्थों में ऋतु संहार, मेघदूतम्, कुमारसम्भवम्, रघुवशंम्, विक्रमोवर्शीयम् तथा मालविकाग्निमित्र का नाम शामिल है।

मालविकाग्निमित्रम्

महाकवि कालिदास की रचना मालविकाग्निमित्रम् में पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र और मालिविका की प्रेमकथा का वर्णन है। इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ शुंग-यवन संर्घष तथा शुंग-विदर्भ संबंधों के साथ तत्कालीन सामाजिक तथा सांस्कृतिक जानकारी मिलती है।

कल्हण कृत राजतरंगिणी

लौकिक साहित्य में कश्मीरी कवि कल्हण द्वारा रचित राजतंरगिणी का महत्वपूर्ण स्थान है। 12वीं सदी (1148-49 ई.) में लिखी गई इस पुस्तक में आदिकाल से लेकर 1151 ई. तक के कश्मीर के प्रत्येक शासक के काल की घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन मिलता है। कल्हण ने जिस समय राजतरंगिणी की रचना की, तब कश्मीर का शासक जयसिंह द्वितीय था।

अर्द्ध ऐतिहासिक  रचनाओं में पाणिनी की अष्टाध्यायी, कात्यायन की वार्तिक, गार्गी संहिता, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

पाणिनी कृत अष्टाध्यायी- व्याकरण के इस महान ग्रन्थ की रचना पाणिनी ने छठी शताब्दी में की थी। इस पुस्तक में पश्चिमोत्तर भारत के राजनीतिक संघों तथा भारत की कई जातियों का उल्लेख मिलता है। 

गार्गी संहिता- गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रन्थ् है, बावजूद इसके इस ग्रन्थ में यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।  इस पुस्तक से हमें पता चलता है कि यवनों ने साकेत, पंचाल, मथुरा, कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) पर आक्रमण किया था। इस ग्रंथ से शुंगकालीन भारत की राजनीतिक स्थिति की जानकारी भी प्राप्त होती है।

पतं​जलि रचित महाभाष्य-  पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित पतंजलि द्वारा लिखित महाभाष्य से शुंगों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। महाभाष्य में यवनों के द्वारा अयोध्या तथा चित्तौड़ पर आक्रमण का उल्लेख मिलता है। इसी ग्रन्थ से पुष्यमित्र शुंग के द्वारा अश्वमेध यज्ञ की भी जानकारी मिलती है।

​विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस- विशाखदत्त के द्वारा रचित नाटक मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा नन्दों के विनाश का वर्णन मिलता है। इसमें चाणक्य और नन्द मंत्री राक्षस की कूटनीतिक चालों का भी सुन्दर वर्णन किया गया है।

महाकवि बाणभट्ट कृत ह​र्षचरित- महाकवि बाणभट्ट की कृति हर्षचरित में कान्यकुब्ज के सम्राट हर्षवर्धन का जीवन चरित्र है। इसमें सातवीं सदी के भारत के राजनीतिक, सामाजिक, आ​र्थिक, धार्मिक जीवन पर भी प्रकाश पड़ता है। बाणभट्ट की दूसरी कृति कादम्बिनी में से भी तत्कालीन सामाजिक तथा सांस्कृतिक तथ्यों की जानकारी मिलती है।

संगम साहित्य- संगम साहित्य तमिल भाषा में चौथी सदी ईसा पूर्व से दूसरी सदी के मध्य लिखा गया साहित्य है। इसकी रचना और संग्रहण पांड्य शासकों द्वारा मदुरै में आयोजित तीन संगम के दौरान हुई। इस साहित्य में उस समय के तीन राजवंशों चोल, चेर और पाण्ड्य का उल्लेख मिलता है। संगम साहित्य में द्रविड़ संस्कृति पर आर्य संस्कृति के प्रभाव तत्पश्चात दोनों के समन्वय से विकसित मिश्रित संस्कृति की जानकारी मिलती है।

तमिल के अतिरिक्त कन्नड़ भाषा में लिखित महाकवि पम्प की रचना विक्रमार्जुन विजय तथा रन्न कृत गदायुद्ध का विशेष महत्व है। इनसे चालुक्य तथा राष्ट्रकूट वंशों के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।

ऐतिहासिक जीवनियों में बाणभट्ट का हर्षचरित, वाकपति का गौडवहो, विल्हण का विक्रमांकदेव चरित, पद्यगुप्त का नव साहसांक चरित, संध्याकर नन्दी कृत रामच​रित, हेमचन्द्र कृत कुमारपाल चरित तथा जयानक कृत ​पृथ्वीराज विजय आदि महत्वपूर्ण हैं। 

सोमेश्वरकृत रसमाला तथा कीर्तिकौमुदी, मेरूतुंग कृत प्रबन्धचिन्तामणि, राजशेखर कृत प्रबन्धकोश से गुजरात के चालुक्य वंश का इतिहास तथा उसकी संस्कृति का अच्छा ज्ञान मिलता है।

चचनामा नामक ग्रन्थ में अरब लोगों के द्वारा सिन्ध विजय का इतिहास लिखा गया है। मूलत: यह पुस्तक अरबी भाषा में लिखा गई थी, कालान्तर में इसका अनुवाद खुफी के द्वारा फारसी में किया गया।

विदेशी यात्रियों के विवरण

विदेशी यात्रियों के द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत तथा भारत में कुछ समय तक निवास करने के दौरान स्वयं के अनुभवों के साथ-साथ जनश्रुतियों एवं भारतीय ग्रन्थों को आधार बनाकर जो कुछ लिखा गया है, इससे प्राचीन भारत के इतिहास की समृद्ध जानकारी मिलती है। विदेशी यात्रियों के विवरण को हम तीन भागों यूनानी, चीनी तथा अरबी-फारसी लेखकों के रूप में विभाजित कर सकते हैं।

यूनानी-रोमन लेखक

यूनानी लेखकों में स्काइलैक्स, हिकेटियस, हेरोडोटस और क्टेसियस का नाम प्रमुख है। फारस (ईरान) के सम्राट दारा ने अपने यूनानी सैनिक स्काइलैक्स को सिन्धु प्रदेश की जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा था। इसलिए स्काइलैक्स ने सिन्धु घाटी के बारे में लिखा था। वहीं हिकेटियस एक भूगोलवेत्ता था जिसने ईरानियों से प्राप्त सूचनाओं तथा स्काइलैक्स के विवरण ​से सिन्धु प्रदेश का वर्णन किया है।

हेरोडोटस को इतिहास का जनक कहा जाता है। हेरोडोटस ने अपने ग्रन्थ हिस्टोरिका में पश्चिमोत्तर भारत की जातियों का उल्लेख किया है। चूंकि हेरोडोटस ने केवल जनश्रुतियों के आधार पर हिस्टोरिका लिखि है, इसलिए इस रचना को प्रमाणिक नहीं माना जाता है। नियार्कस, आनेसिक्रिटस तथा आरिस्टोबुलस ने भारत यात्रा का वृत्तांत लिखा है, दरअसल ये तीनों सिकन्दर के साथ भारत आए थे।

यूनानी शासकों द्वारा मेगस्थनीज, डाइमेकस और डायोनिसियस को पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा गया था। इनमें मेगस्थनीज सबसे अधिक प्रसिद्ध है। सेल्यूकस निकेटर के राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्ययुगीन समाज और संस्कृति के विषय में लिखा है।

सीरिया के राजा अन्तियोकस के राजदूत डाइमेकस बिन्दूसार के दरबार में आया ​था जबकि डायोनिसियस अशोक के दरबार में आया था, यह मिस्र के राजा फिलेडेल्फस का राजदूत था।  अन्य विदेशी ग्रन्थों में अज्ञात नाविक के द्वारा रचित पेरिप्लस आफ एरिथ्रियन-सी, टॉलमी का भूगोल तथा प्लिनी का नेचुरल हिस्ट्री का उल्लेख किया जा सकता है।

प्लिनी की रचना नेचुरल हिस्ट्री में भारत के पशुओं, वनस्पतियों तथा खनिज पदार्थों के अलावा भारत तथा रोम के मध्य होने वाले व्यापारिक संबंधों का भा विस्तार से वर्णन किया गया है। नेचुरल हिस्ट्री में प्लिनी ने एक प्रसंग में रोम के द्वारा भारत को स्वर्ण भेजे जाने पर दुख प्रकट किया है। प्लिनी ने नेचुरल हिस्ट्री को पहली सदी ई. में लिखा है। 80 से 115 ई. के बीच लिखी गई पुस्तक पेरिप्लस आफ एरिथ्रियन-सी में भारतीय बन्दरगाहों एवं व्यापारिक वस्तुओं का वर्णन मिलता है।

चीनी लेखक

प्राचीन भारतीय इतिहास के मुख्य स्रोतों में चीनी यात्रियों के विवरण भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। बता दें कि भारत आने वाले चीनी यात्री बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, इसलिए उन्होने विशेषकर भारत में बौद्ध तीर्थस्थलों की यात्रा की तथा बौद्ध धर्म के विषय में लिखा। चीनी यात्रियों में फाह्यान, सुंगयुन, ह्वेनसांग तथा इत्सिंग का नाम प्रमुख है।

फाह्यान- चीनी यात्री फाह्यान पांचवी सदी के आरम्भ में चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ के शासनकाल में बौद्ध ग्रन्थों के अध्ययन के लिए भारत आया था, और लगभग 15-16 वर्ष भारत में रहा। फाह्यान ने अपने यात्रा वृत्तांत में बौद्ध धर्म पर अधिक प्रकाश डाला है। फाह्यान ने गुप्तयुगीन भारत के कई पक्षों का विवेचन किया है। इसने पाटलिपुत्र स्थित अशोक के राजप्रसाद की प्रशंसा करते हुए इसे देवताओं द्वारा निर्मित कहा है।

ह्वेनसांग- बौद्ध यात्री ह्वेनसांग सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था, यह भी इस देश में तकरीबन 15 वर्षों तक रहा। इसने समस्त भारत की यात्रा की। बौद्ध इतिहास के अतिरिक्त हर्षकालीन भारत का प्रत्यक्षदर्शी विवरण काफी प्रमाणिक माने जाते हैं। ह्वेनसांग ने भारत यात्रा का विवरण सी-यू-की नामक ग्रन्थ में लिखा है, इस महत्वपूर्ण रचना में 138 देशों का विवरण मिलता है।

इत्सिंग- इत्सिंग सातवी सदी के अन्त में भारत आया था, जो लंबे समय तक विक्रमशिला तथा नालन्दा विश्वविद्यालयों में रहा। इत्सिंग ने बौद्ध शिक्षण संस्थाओं एवं भारतीय वेशभूषा, खानपान का उल्लेख किया है। इत्सिंग ने अशोक को पाटलिपुत्र में ​बौद्ध भिक्षु के रूप में देखने का उल्लेख किया है।

अन्य चीनी लेखकों में मात्वान लिन् तथा चाऊ-जू-कुआ का भी उल्लेख किया जा सकता है। बता दें कि मात्वान लिन् ने जहां हर्ष के पूर्वी अभियान के बारे में लिखा है वहीं चाऊ-जू-कुआ ने चोल इतिहास पर प्रकाश डाला है।

अरबी लेखक

अरबी व्यापारियों तथा लेखकों से हमे पूर्व मध्यकालीन भारतीय समाज और संस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इनमें अल्बरूनी, सुलेमान तथा अलमसूदी का विशेषरूप से उल्लेख किया जा सकता है।

अल्बरूनी- अरबी लेखकों में अल्बरूनी का नाम सबसे अधिक विख्यात है। यह 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अल्बरूनी ने अपनी किताब त​हकीक-ए-हिन्द (किताबुल हिन्द) में राजपूतकालीन समाज, धर्म, रीति रिवाज आदि के बारे में विस्तार से लिखा है। अल्बरूनी पहले महमूद गजनवी का बंदी था, बाद में अपनी योग्यता के बल पर राजज्योतिषी के पद पर आसीन हो गया। अल्बरूनी को ज्योतिष, गणित, विज्ञान, अरबी, फारसी तथा संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। अल्बरूनी ने अपनी रचना में बौद्ध धर्म का बहुत ही कम उल्लेख किया है। उसने ​हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था तथा ब्राह्मणों की समाज में सबसे प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त होने का उल्लेख किया है।

सुलेमान- अरबी यात्री सुलेमान 9वीं शताब्दी में भारत आया था। सुलेमान ने पाल एवं प्रतिहार शासकों के  तत्कालीन आ​र्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक दशा का वर्णन किया है। सौदागर सुलेमान ने ‘सल सिलात्तु तवारीख’ नामक ग्रन्थ का पहला भाग लिखा है, जबकि इसी ग्रन्थ का दूसरा भाग अबू जईद ने लिखा।

अलमसूदी- बगदाद के यात्री अलमसूदी ने ‘मरूजुल जहव’ (स्वर्ण का रम्यक्षेत्र) नामक ग्रन्थ की रचना की। अलमसूदी 10वीं शताब्दी में भारत आया था। अलमसूदी ने तत्कालीन भारतीय राजनीति, समाज तथा धर्म के बारे में सुन्दर वर्णन किया है। अबू इसहाक अल इस्तखरी ने अपनी पुस्तक ‘किताबुल अकालोम’ में राष्ट्रकूटों तथा प्रतिहारों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है।

तिब्बती लेखक तारानाथ- तिब्बती बौद्ध लेखक तारानाथ ने 12वीं शती में कंग्यूर तथा तंग्यूर नामक दो महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की। इन दोनों ग्रन्थों में भारत संबंधी विवरण मिलता है।

संभावित प्रश्न— प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोतों में लौकिक साहित्य की विशद् विवेचना कीजिए?

— लौकिक साहित्य की प्रमुख रचनाओं पर टिप्पणी लिखिए?

— प्राचीन भारत के इतिहास में विदेशी यात्रियों के विवरण से किन महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी मिलती है, विस्तार से वर्णन कीजिए?

— चीनी लेखकों में ह्वेनसांग, फाह्यान तथा इत्सिंग पर टिप्पणी लिखिए।

— प्राचीन भारत के साहित्यिक स्रोतों में यूनानी-रोमन, चीनी तथा अरबी लेखकों की विशद व्याख्या कीजिए?