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Emperor Ashoka's sensual queen tishyarakshita fell in love with his son Kunal

सम्राट अशोक की इस कामुक रानी को बेटे कुणाल से हो गया था प्यार

सम्राट अशोक की पांच पत्नियां थींदेवी, कारूवाकी, पद्मावती, असंधि‍मित्रा और तिष्यरक्षिता। सम्राट अशोक की चौथी रानी पद्यावती का पुत्र राजकुमार कुणाल बेहद खूबसूरत था। नाम के अनुरूप इस राजकुमार की आंखें हिमालयी पक्षी कुणाल की तरह अति सुन्दर थीं। सम्राट अशोक की सबसे छोटी रानी तिष्यरक्षिता भी अत्यन्त सुन्दरी थी, हांलाकि वह सम्राट अशोक की तुलना में बेहद कम उम्र की थी।

वहीं दूसरी तरफ रानी तिष्यरक्षिता और राजकुमार कुणाल की उम्र तकरीबन एक समान थी। ऐसा कहा जाता है कि कामातुर रानी तिष्यरक्षिता ने कुणाल के प्रति आकर्षित होकर उससे अपनी यौनिच्छा प्रकट की थी। चूंकि कुणाल रानी तिष्यरक्षिता को मां कहकर सम्बोधित करता था और अपनी पत्नी कंचनमाला से बेहद प्रेम करता था।

अत: उसने रानी तिष्यरक्षिता के वासनामय प्रणय निवेदन को ठुकरा दिया। इसके बाद सम्राट अशोक की रानी तिष्यरक्षिता ने अपने सौतेले बेटे कुणाल के साथ जो षड्यंत्र रचा उसे जानकर आपकी रूह कांप जाएगी। ऐसे में यह जानने के लिए कि बेहद कामुक रानी तिष्यरक्षिता ने कुणाल के साथ क्या किया?, इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

सम्राट अशोक का कुशाग्र पुत्र कुणाल

प्राचीन भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक की कुल पांच संतानों का उल्लेख मिलता है। रानी देवी के गर्भ से उत्पन्न पुत्री संघमित्रा और पुत्र महेन्द्र को सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु सिंहल द्वीप (श्रीलंका) भेजा था। बता दें कि संघमित्र और महेन्द्र दोनों ही बौद्ध भिक्षु बन गए थे। जबकि सम्राट अशोक की दूसरी रानी कारूवाकी का पुत्र राजकुमार तीवर था। कल्हण कृत राजतंरगिणी के अनुसार, सम्राट अशोक का पुत्र जालौक कश्मीर का राजा था।

वहीं सम्राट अशोक का सबसे खूबसूरत और कुशाग्र का पुत्र का नाम कुणाल था जो रानी पद्मावती के गर्भ से पैदा हुआ था। दरअसल हिमालय में पाए जाने वाले पक्षी कुणाल की आखें बहुत सुन्दर होती हैं। अत: नाम के ही अनुरूप सम्राट अशोक ने अपने पुत्र का नाम कुणाल रखा था। कहते हैं, सम्राट अशोक ने पुत्र कुणाल को मौर्य साम्राज्य की सत्ता सौंपने का निर्णय लिया था, इसीलिए उसने कुणाल को राजनीतिक तथा प्रशासनिक शिक्षा-दीक्षा के लिए उज्जैन भेजा था।

बेहद खूबसूरत रानी तिष्यरक्षिता का इतिहास

सम्राट अशोक की सबसे छोटी रानी का नाम तिष्यरक्षिता था। बौद्ध ग्रन्थों महावंश एवं दिव्यावदान में रानी तिष्यरक्षिता को अग्रमहिषी अथवा तिस्सरक्खा कहकर सम्बोधित किया गया है। पालि साहित्य में अतिशय कामुक रानी तिस्सरक्खा (तिष्यरक्षिता) से जुड़ी अनेक दंतकथाएं उपलब्ध हैं।

अप्रतिम सुन्दरी और तीखे नैन-नक्शों वाली तिष्यरक्षिता प्रारम्भ में सिंहल द्वीप के राजा तिष्य की सेविका थी। एक बार राजा तिष्य अपने बगीचे में टहल रहे थे, तभी एक जहरीले नाग ने उन्हें डस लिया, इसके बाद चारों तरफ चीखपुकार मच गई। तभी अत्यन्त सुन्दरी तिष्यरक्षिता ने अपने मुख से राजा के उस पैर से सारा विष चूस लिया, जहां नाग ने डसा था। इसके बाद राजा तिष्य तो बच गए लेकिन तिष्यरक्षिता की हालत खराब हो गई। हांलाकि राजवैद्यों ने तिष्यरक्षिता को भी बचा लिया। ऐसे में राजा तिष्य के प्राणों की रक्षा करने वाली ​उस खूबसूरत सेविका का नाम तिष्यरक्षिता पड़ गया।

सम्राट अशोक को कैसे मिली तिष्यरक्षिता

सिंहल द्वीप (श्रीलंका) में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के दौरान अशोक की पुत्री संघमित्रा और पुत्र महेन्द्र राजपरिवार के विशेष मेहमान थे। ऐसे में जब वह अपना उद्देश्य पूर्णकर वापस लौटने लगे तब राजा तिष्य ने सेविका तिष्यरक्षिता को सम्राट अशोक की सेवा के लिए उपहार में भेज दिया।

जब महेन्द्र ने श्रीलंका से लाए अन्य उपहारों के साथ अपूर्व सुंदरी तिष्यरक्षिता को सम्राट अशोक के दरबार में पेश किया तो उसे देखकर सभी हतप्रभ रह गए। उसकी सुन्दरता का नशा हर किसी पर छा गया। फिर क्या था, सम्राट अशोक ने उसे अपनी परिचारिका के रूप में नियुक्त कर लिया परन्तु उसकी खूबसूरती के मोहपाश में बंधे राजा ने अंत में उससे विवाह कर लिया।

पुत्र कुणाल के समक्ष तिष्यरक्षिता का प्रणय प्रस्ताव

यद्यपि इतिहास की प्रमाणिक पुस्तकों में कुणाल से जुड़ी तिष्यरक्षिता की वासनायुक्त प्रेम कहानी का उल्लेख नहीं मिलता है, परन्तु चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस घटना का उल्लेख किया है। वहीं बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान तथा कुछ जैन ग्रंथों के अलावा अशोकवंदना’ (अशोक से जुड़ी किंवदंती) में भी राजकुमार कुणाल की कहानी का विस्तार से वर्णन किया गया है।

सम्राट अशोक की सबसे छोटी रानी तिष्यरक्षिता और राजकुमार कुणाल, ये दोनों ही तकरीबन समान उम्र के थे। बेहद खूबसूरत और कामातुर रानी तिष्यरक्षिता ने अत्यत्न सुन्दर नेत्रों वाले सौतेले बेटे कुणाल को अपनी तरफ आकर्षित करने का भरपूर प्रयास किया।

इतने पर भी बात नहीं बनी तो ​रानी तिष्यरक्षिता ने कुणाल को अपनी बाहों में भर लिया और बोली- “तुम्हारी मनमोहक आंखें और सुन्दर शरीर देखकर मेरा शरीर जंगल की आग में सूखे तिनके के समान जल रहा है। ऐसा कहते हुए रानी तिष्यरक्षिता ने राजकुमार कुणाल के समक्ष प्रणय निवेदन किया।

रानी तिष्यरक्षिता को ऐसी हरकत करते देख राजकुमार कुणाल ने अपनी दोनों आंखें बन्द कर ली और उसे खुद से दूर हटाते हुए कहा- “तुम मेरी मां समान हो, ऐसा प्रेम निन्दनीय होगा, तुम्हे नरक में भी स्थान नहीं मिला।

इतना सुनते ही रानी तिष्यरक्षिता आग बबूला हो उठी, उसने कहा- “प्रेम के वशीभूत होकर मैं तुम्हे स्वयं को अर्पित करने आई थी, लेकिन तुमने मुझे दूर धकेल दिया। अब तुम्हे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।

इतना सुनने के बाद राजकुमार कुणाल ने कहा- “ऐसा दुष्यकृत्य करने से मरना बेहतर है। अब प्रतिशोध एवं अपमान की अग्नि में जल रही रानी तिष्यरक्षिता ने राजकुमार कुणाल के साथ एक भयानक षड्यंत्र रचा।

रानी तिष्यरक्षिता ने कुणाल की आंखे फोड़वा दी

कथा के मुताबिक, एक बार सम्राट अशोक के बीमार पड़ने पर उसकी अथक सेवा करके रानी तिष्यरक्षिता ने मुंहमांगा वचन प्राप्त कर लिया था। वचन के मुताबिक, रानी तिष्यरक्षिता ने सम्राट अशोक से सात दिनों के लिए राजकाज मांगा था। इस प्रकार सम्राट अशोक ने रानी तिष्यरक्षिता को सात दिनों के लिए राजसत्ता सौंप दी। तत्पश्चात रानी तिष्यरक्षिता ने सम्राट अशोक की राजमोहर प्राप्त कर तक्षशिला के मंत्रियों को राजकुमार कुणाल की आंखें फोड़कर उसकी हत्या करने के लिए सम्राट अशोक के नाम राजाज्ञा लिख भेजी। सम्राट अशोक के मंत्रियों ने राजकुमार की आंखें तो फोड़ दी परन्तु उसे जीवित छोड़ दिया। एक अन्य कथा के अनुसार, तक्षशिला विद्रोह दमन के लिए राजकुमार कुणाल को भेजा गया जिसमें वह सफल हो गया परन्तु ​रानी तिष्यरक्षिता ने उसे अंधा करवा दिया।

राजकुमार कुणाल की यह कहानी इतिहास की प्रमाणिक पुस्तकों में कहीं देखने को नहीं मिलती है, परन्तु बौद्ध ग्रन्थों, अशोक से जुड़ी किंवदंती अशोकवन्दना तथा चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृत्तांत के अतिरिक्त यूजीन बर्नौफ़ की फ्रेंच भाषा में लिखित कृति अल हिस्टोइरे डी बुद्धिज़्म इंडियन’ (अंग्रेजी में अनुवादित) में सम्राट अशोक के पुत्र कुणाल और तिष्यरक्षिता की कहानी का उल्लेख मिलता है।

रानी तिष्यरक्षिता को प्राणदंड

अन्धा कुणाल अपने भरण-पोषण के लिए अब दर-दर भटकने लगा था। इधर-उधर यात्रा करते हुए अन्धा कुणाल वर्षों बाद सम्राट अशोक की राजधानी पहुंचा। रात्रि के वक्त उसने अपनी वीणा के मधुर स्वरों के साथ एक ह्दयविदारक गीत गाना शुरू किया। वीणा की धुन और मधुर स्वर वाले इस गीत को सुनकर सम्राट अशोक ने अपने दरबारी से पूछा कि यह कौन गा रहा है?

इतना सुनते ही अन्धे कुणाल को दरबारियों ने सम्राट अशोक के सम्मुख ला खड़ा किया। सम्राट अशोक के राजमहल में अन्धा कुणाल एक संतीज्ञ भेष में पहुंचा था फिर भी उसकी पत्नी कंचनमाला उसे देखते ही बेहाश होकर गिर पड़ी। सम्राट अशोक ने दुखी होकर कुणाल से पूछा कि किसने मेरे प्रिय पुत्र की दृष्टि छीन ली?

आंसू बहाते हुए राजकुमार कुणाल ने सबसे पहले अपने पिता को धन्यवाद दिया और कहा- “एक दिन मेरी मां का आदेश आया और पितृभक्ति के अभाव में मुझे जो दंड मिला उससे पीछे हटने का साहस नहीं कर पाया। यह जानने के बाद कि उसकी सबसे छोटी रानी ने ऐसा घृणित अपराध किया है, सम्राट अशोक ने बिना किसी पूछताछ के रानी तिष्यरक्षिता को प्राणदंड दे दिया।

कुणाल का पुत्र सम्प्रति बना उत्तराधिकारी

एक अन्य कथा के मुताबिक, चूंकि राजकुमार कुणाल अन्धा था, अत: सम्राट अशोक ने उसके नवजात शिशु सम्प्रति को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। कालान्तर में सम्प्रति एक शक्तिशाली राजा बना। कुछ एक अन्य स्रोतों के अनुसार, कुणाल ने मिथिला में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। वर्तमान में यह जगह कोसी नदी के तट पर स्थित कुनौली गांव (पूर्व में कुणाल ग्राम) के रूप में चिन्हित है। कुनौली गांव के नाट्य संस्था का नाम भी कुणाल नाट्य कला मंच है।

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