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major historical places of Rajputana related to the life of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े राजपूताना के 15 प्रमुख ऐतिहासिक स्थल

महाराणा प्रताप न केवल महान योद्धा और स्वाधीनता के पुजारी थे बल्कि कला एवं साहित्य के भी संरक्षक थे। हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात उन्होंने न केवल युद्ध के दौरान उजड़े गांवों को पुन: बसाया बल्कि नए राजप्रासादों का निर्माण कर अपनी नई राजधानी चावण्ड को आकर्षक रूप प्रदान किया। ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपल्ली तथा दिवेर युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है। इतना ही नहीं, इस इतिहासकार ने प्रताप को मेवाड़ केसरी कहकर पुकारा है।

महाराणा प्रताप ने अपनी सीमित साधनों से अकबर की असीम साम्राज्यवादी शक्ति से जमकर लोहा लिया और अपने राजपूती स्वाभिमान पर कभी आंच नहीं आने दी। महान विभूति महाराणा प्रताप के बारे में ​कवि दुरसा आढ़ा ने कुछ इस तरह श्रद्धांजलि अर्पित की है-

अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दूसरा । पुनरासी प्रताप, सुजस न जासी सूरमा ।। अर्थात्- “एक दिन अकबर चला जाएगा, दिल्ली पर दूसरों का राज्य हो जाएगा परन्तु हे शूरवीर पुण्यराशि प्रताप तुम्हारा सुयश कभी नहीं जाएगा।इस स्टोरी में हम राजपूताना के उन 15 ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं जो महान योद्धा महाराणा प्रताप के स्वाभिमानी और बलिदानी जीवन की याद दिलाते हैं।

महाराणा प्रताप से जुड़े 15 प्रमुख ऐतिहासिक स्थल

1.गोगुन्दा

उदयपुर से तकरीबन 35 किमी.की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में गोगुन्दा स्थित है। चारों ओर पहाड़ियों से घिरा होने के कारण सैन्य दृष्टि से यह क्षेत्र काफी सुरक्षित था। गोगुन्दा गांव में तालाब ​के किनारे उदय सिंह का अंतिम संस्कार हुआ था। 28 फरवरी 1572 ई. को महाराणा प्रताप का राजतिलक भी इसी तालाब के किनारे हुआ था, जहां आज एक छतरी बनी हुई है। जानकारी के लिए बता दें कि महाराणा प्रताप का राजोचित एवं शास्त्रसम्मत राजतिलक अथवा राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।

2. मायरा की गुफा

उदयपुर जिले के गोगुन्दा के पूर्वी पहाड़ जिन्हें लाभ के नाम से पुकारते हैं, यहीं पर मायरा की गुफा स्थित है। महाराणा प्रताप की शस्त्रागार रही ऐतिहासिक मायरा की गुफा को महाराणा गुफा भी कहते हैं। महाराणा प्रताप ने छापामार युद्ध के लिए इसी स्थान को चुना था।

मायरा की सबसे बड़ी खासियत है कि बाहर से देखने पर इसका प्रवेशद्वार दिखाई नहीं देता है, इसी वजह से महाराणा प्रताप ने गुफा के एक हिस्से को अपने शस्त्रागार के रूप में चुना था। मायरा की गुफा में ही महाराणा प्रताप गुप्त मंत्रणाएं किया करते थे।

3. धुलिया व राणा गांव

गोगुन्दा के पश्चिम में स्थित पठार जो धुलिया नाम से जाना जाता है। धुलिया की पहाड़ियों में महाराणा के महलों के खंडहर हैं। संकट के समय इसी जगह पर महाराणा प्रताप व उनका परिवार रहता था। इसी स्थान पर रहते हुए महाराणा के परिवार ने सिर्फ जंगली फल खाकर अपना समय बिताया था। इन्हीं खंडहरों के समीप राणा नामक गांव है।

4.हल्दीघाटी

उदयपुर से 27 मील दूर उत्तर पश्चिम में व नाथद्वारा से 7 मील पश्चिम में हल्दीघाटी नामक स्थान है। इसी ऐतिहासिक स्थल पर जून 1576 ई. में मुगल बादशाह अकबर के सेनापति मान सिंह और महाराणा प्रताप के मध्य भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध के नतीजों को लेकर इतिहासकारों में अभी भी मतभेद है।

इतिहासकारों का एक तबका हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को विजयी घोषित करता है जबकि ज्यादातर इतिहासकार इस ऐतिहासिक युद्ध में मुगल सेना को​ विजयी बताते हैं। बता दें कि प्रताप जयन्ती के शुभ अवसर पर प्रत्येक वर्ष इस राष्ट्रीय तीर्थ स्थली पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

5. कुम्भलगढ़

राजसमंद जिले में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित ऐतिहासिक किले कुम्भलगढ़ को मेवाड़ की आंख कहा जाता है। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई. को कुम्भलगढ़ में हुआ था। सैन्य सुरक्षा को ध्यान में रखकर प्रताप अपनी राजधानी गोगुन्दा से हटाकर कुम्भलगढ़ ले गया। यद्यपि 1578 ई. में कुम्भलगढ़ पर मुगलों का अधिकार हो गया किन्तु कुछ ही महीनों बाद महाराणा प्रताप ने इस किले को पुन: अपने कब्जे में ले लिया।

6.उदयसागर झील

उदयपुर से तकरीबन 13 किमी. दूर पूरब दिशा में उदयसागर झील है, यह झील 4 किमी. चौड़ी और 9 मीटर गहरी है। उदयपुर की प्रमुख पांच झीलों में से एक उदयसागर झील की पाल पर ही महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह और अकबर के सेनापति मानसिंह के बीच वार्तालाप हुआ था। कहते हैं, इसी मुलाकात के दौरान सिसोदिया वंश के प्रतिष्ठा का सवाल उठा और हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।

7.मोती मगरी

उदयपुर शहर के फतेहसागर झील के किनारे मोती मगरी पहाड़ी स्थित है। मोती मगरी को पर्ल हिल भी कहा जाता है। यहां पर महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह द्वारा निर्मित महल खंडहरों के रूप में स्थित हैं। सबसे खास बात यह कि मोती मगरी पहाड़ी पर राजपूत महानायक महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा स्थापित है। इस कांस्य प्रतिमा में महाराणा प्रताप अपने प्रिय घोड़े चेतक पर सवार हैं।

8. चावंड

उदयपुर शहर से 60 किलोमीटर दूर सराड़ा तहसील में स्थित चावंड तकरीबन 12 वर्षों तक महाराणा प्रताप की आपातकालीन राजधानी बनी रही। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के अन्तिम दिन चावंड में ही व्यतीत किए।

चावंड की पहाड़ियों पर प्रताप ने चामुंडा शक्तिपीठ की स्थापना की थी, यह मंदिर आज भी मौजूद है। एक दिन सख़्त धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय महाराणा प्रताप को अंदरुनी चोट लगी जिससे 19 जनवरी 1597 ई. को उनकी मृत्यु हो गई।

चावंड से 11 मील दूर बांडोली गांव के निकट केजड़ झील के तट पर महाराणा प्रताप का दाह संस्कार किया गया। खेजड़ बांध किनारे बनी 8 खम्भों की छतरी आज भी महान योद्धा महाराणा प्रताप की याद दिलाती है।

9. सिटी पैलेस, उदयपुर

उदयपुर के पिछोला झील के पूर्वी तट पर स्थित इस राजमहल का निर्माण उदय सिंह ने करवाया था। सिटी पैलेस के परिसर में कई महल बने हुए हैं। साल 1572 में उदय सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे महाराणा प्रताप ने उदयपुर की सत्ता संभाली। इसके बाद सिटी पैलेस वर्षों तक महाराणा प्रताप का निवास स्थान बना रहा।

10. कोल्यारी

​हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप आवरगढ़ के दक्षिण में स्थित कोल्यारी गांव में ही रूके थे। कोल्यारी गांव में ही महाराणा प्रताप व उनकी घायल सेना का इलाज करवाया गया था। मुगल सेनापति मानसिंह व उसकी सेना को चारों तरफ से घेरे रखने के लिए सारा नियंत्रण कोल्यारी गांव से ही होता था।

11. आवरगढ़

उदयपुर की झाडोल तहसील की सघन पहाड़ियों में स्थित आवरगढ़ 12 मील के घेरे में बसा हुआ है। यहां शत्रु का पहुंचना दुर्लभ था। यहां मौजूद परकोटों के अवशेष इस बात की गवाही देते हैं कि महाराणा प्रताप इस जगह काफी समय रूके होंगे।

आवरगढ़ के मध्य में एक बड़ा गोल चबूतरा है, ऐसा प्रतीत होता है यहां महाराणा प्रताप की सभाएं हुई होंगी। महाराणा प्रताप ने यहां होली भी जलाई थी तब से लेकर आज तक कमलनाथ मंदिर के पुजारी द्वारा यहां होली जलाई जाती है।

12. जावर

उदयपुर से 40 किमी. दूर टीडी चौराहे से जावरमाइंस आती मुख्य सड़क पर जावरमाता का मंदिर स्थित है। मंदिर की सामने वाली पहाड़ी पर कभी महाराणा प्रताप ने अपना समय व्यतीत किया था। जावर की गुफाएं प्रताप की शौर्य गाथाओं की साक्षी हैं। इन गुफाओं में 100 से 150 लोग आसानी से बैठ सकते हैं। यहां शस्त्रों को छिपाकर रखा जाता था। जावर में महाराणा प्रताप व मुगलों के बीच मुठभेड़ हुई थी।

13. मचीन

हल्दीघाटी और कुम्भलगढ़ के बीच में मचीन गांव स्थित है। इस गांव में स्थित एक उंचे पहाड़ से आसपास की हलचलें आसानी से देखी जा सकती हैं। इस पहाड़ में तकरीबन 4 से 5 मील लम्बी एक गुफा भी है जिसका मुंह दूसरी तरफ भी खुलता है। जनश्रुति के अनुसार, मुगल आक्रमणों के समय महाराणा व उनकी सेनाएं इसी गुफा में चली जाती थीं। इसी गांव में नाथ सम्प्रदाय के संत नाथ का तपस्या स्थल भी है।

14. उबेश्वर

उदयपुर से 16 मील पश्चिम में उबेश्वर नामक स्थान स्थित है। जहां सज्जनगढ़ के रास्ते में एक शिव मंदिर है। इसी के समीप ढलान पर एक खंडहर है जो महाराणा प्रताप का ​आवास स्थल बताया जाता है।

इस शिव मंदिर के शिवलिंग में एक दरार है, जनश्रुति के मुताबिक जब महाराणा प्रताप को ढूंढते हुए मुगल सेना यहां आई तब इसी शिवलिंग से भंवर निकले जिससे मुगल सेना डरकर भाग गई।

15. चित्तौड़ का किला

राणा उदयसिंह ने जब चित्तौड़ किले को जीता, ठीक उसी वर्ष महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। 700 एकड़ में फैले चित्तौड़ के किले में ही महाराणा प्रताप ने राजनीति और युद्ध की ट्रेनिंग ली थी। महाराणा प्रताप ने अपने सभी किले मुगलों से छीन लिए थे लेकिन दुर्भाग्यवश वह चित्तौड़ किले को कभी जीत नहीं पाए। दरअसल अकबर ने चित्तौड़ के किले को अपने स्वाभिमान का प्रश्न बना लिया था इसलिए उसने यहां एक विशाल सेना तैनात कर रखी थी।

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