ब्रिटिश भारत के साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने अपने आठ वर्ष के शासनकाल में जिन नौ देशी राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया, उनमें से एक अवध भी था। लार्ड डलहौजी ने अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर नवाब वाजिद अली शाह से सिंहासन छोड़ने को कहा। जब नवाब वाजिद अली शाह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तब 13 फरवरी 1856 ई. को अवध रियासत का विलय कर लिया गया।
अवध विलय के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता (अब कोलकाता) निर्वासित कर दिया जहां अवध के इस निर्वासित नवाब को साउथ ईस्टर्न रेलवे मुख्यालय के पास गार्डन रीच में एक इमारत आवंटित की गई, उन दिनों इस इमारत को ‘परीखाना’ (अब बी.एन.आर. हाउस) कहा जाता था।
1857 की महाक्रांति के दौरान अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को 26 महीने के लिए फोर्ट विलियम में नजरबन्द कर दिया। फोर्ट विलियम से रिहाई के बाद अवध के अंतिम नवाब ने अपने जीवन के आखिरी 31 साल कोलकाता में ही गुजारे।
नवाब वाजिद अली शाह जिस इलाके में रह रहे थे वहां उन्होंने अपनी आय (12 लाख रुपये प्रति वर्ष) से ज्यादा खर्च कर ‘छोटा लखनऊ’ बसा दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में कोलकाता का वह कौन सा इलाका है, जिसे ‘छोटा लखनऊ’ कहा जाता है और क्यों? इस रोचक प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह शानदार स्टोरी जरूर पढ़ें।
नवाब वाजिद अलीशाह का कलकत्ता निर्वासन
13 फरवरी 1856 ई. को अवध रियासत का विलय करने के पश्चात ब्रिटिश हुकूमत ने वहां के नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता निर्वासित कर दिया। अवध के नवाब वाजिद अली शाह इलाहाबाद के रास्ते वाराणसी ले जाऐ गए तत्पश्चात वाराणसी से मैकलियोड स्टीमर के जरिए 18 दिनों की लम्बी यात्रा के बाद 13 मई 1856 को कलकत्ता के मेटियाब्रुज के पास बिचली घाट पहुंचे।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नवाब वाजिद अली शाह कलकत्ता अकेले नहीं आए थे, बल्कि उनके साथ नवाब के करीबी रिश्तेदार, संगीतकार, नौकर-चाकर, रसोईए और पालतू जानवर भी शामिल थे। निर्वासित नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता से तकरीबन 3-4 मील दक्षिण में हुगली नदी के तट पर गार्डन रीच में एक शानदार इमारत आवंटित की गई, उन दिनों इस इमारत को ‘परीखाना’ (अब बी.एन.आर. हाउस) कहा जाता था। इसी इलाके में नवाब के मातहतों के लिए भी कई मकान दिए गए। हुगली नदी के किनारे मिट्टी के उभरे हुए टीले के कारण इस इलाके को लोग मटिया बुर्ज अथवा मेटिया ब्रुज कहते थे।
मटिया बुर्ज में बसा दिया छोटा लखनऊ
कलकत्ता निर्वासन के तकरीबन सात-आठ महीने बाद 1857 की महाक्रांति के समय अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को फोर्ट विलियम में 26 महीने के लिए नजरबन्द कर दिया। फोर्ट विलियम से रिहाई के बाद नवाब वाजिद अली शाह ने मटिया बुर्ज के ‘परीखाना’ नामक इमारत में अंग्रेजी पेन्शन के सहारे अपना निर्वासित जीवन व्यतीत करना शुरू किया।
फिर क्या था, अवध रियासत की सत्ता से बेदखल नवाब वाजिद अली शाह ने हुगली तट पर बसे मटिया बुर्ज में ही रहने का निर्णय ले लिया। इसके बाद नवाब ने अपनी पेन्शन (12 लाख रुपये प्रति वर्ष) से ज्यादा खर्च कर मटिया बुर्ज इलाके को ही लखनऊ की तर्ज पर बसाना शुरू किया। नवाब वाजिद अली शाह के मटिया बुर्ज इलाके में निवास करने के चलते अवध के दरबारी संगीतकारों, शागिर्दों, दर्जियों, कलाकारों तथा बावर्चियों का कलकत्ता आना अनवरत जारी रहा।
ऐसे में हुगली तट पर बसे मटिया बुर्ज ने जल्द ही ‘छोटा लखनऊ’ का स्वरूप धारण कर लिया। अपने शुरूआती दौर में मटिया बुर्ज एक छोटा सा गांव था, परन्तु 18 सदी में यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र में तब्दील हो गया। बतौर उदाहरण- मटिया बुर्ज हाट बेहद विख्यात है जहां कपड़े, गहने तथा अन्य सामान बड़े पैमाने पर क्रय-विक्रय किए जाते हैं। यही नहीं, लखनऊ की ही तरह मटिया बुर्ज में भी मुस्लिम और हिन्दू दोनों संस्कृतियों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
मटिया बुर्ज में कत्थक और ठुमरी का चलन
साहित्य, संगीत और कला के संरक्षक नवाब वाजिद अली शाह खुद भी एक प्रतिभाशाली संगीतकार थे। लिहाजा कलकत्ता निर्वासन के दौरान उन्होंने कैसरबाग राजमहल के संगीतमय वातावरण को मटिया बुर्ज में फिर से जीवित करने की कोशिश की।
वाजिद अली शाह के परपोते शहंशाह मिर्जा और कामरान मिर्जा के मुताबिक, नवाब वाजिद अली शाह के दरबारी संगीतकारों की वजह से मटिया बर्जु में कत्थक तथा ठुमरी खूब प्रचारित हुई। इस प्रकार अवध के संगीतकारों, दर्जियों, बावर्चियों तथा पतंगबाजों ने मटिया बुर्ज को ‘छोटा लखनऊ’ बनाकर कलकत्ता शहर का सांस्कृतिक केन्द्र बना दिया।
कलकत्ता में आलू- अंडा बिरयानी
कलकत्ता की मशहूर आलू बिरयानी नवाब वाजिद अली शाह की ही देन है। अपनी नई राजधानी मटिया बुर्ज में आर्थिक तंगी के कारण नवाब ने अपने दरबारी बावर्चियों से बिरयानी में मांस की भरपाई करने के लिए एक नई किस्म की डिश तैयार करने को कहा।
लिहाजा अवध के बावर्चियों ने अंडा और आलू के मिश्रण से बिरयानी तैयार किया जिसे हम सभी ‘कलकत्ता बिरयानी’ के नाम से जानते हैं। नवाब वाजिद अली शाह के बावर्चियों ने कबाब और बिरयानी की खुशबू से हुगली नदी के किनारे बसे मटिया बुर्ज को शाम-ए-अवध में तब्दील कर दिया। आज की तारीख में कलकत्ता बिरयानी की रेसिपी देशभर की बिरयानी से बिल्कुल अलग होती है।
कलकत्ता में नवाब की रसिक मिजाजी के किस्से
अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने अपने इलाके मटिया बुर्ज में खूबसूरत युवतियों के परीखाने, पतंगबाजी, कबूतरबाजी तथा चिड़ियाघर के शौक को कायम रखा। लखनऊ के बाद कलकत्ता शहर में भी नवाब वाजिद अली शाह की रसिक मिजाजी के किस्से खूब मशहूर हुए।
नवाब वाजिद अली शाह पर लिखी चर्चित किताब ‘परीखाना’ के मुताबिक, “अवध के नवाब वाजिद अली शाह बहुत कम उम्र से ही खूबसूरत नर्तकियों, कनीजों तथा महिला कलाकारों के सम्पर्क में रहने लगे थे।” उनमें से कईयों से शादी की और कुछ को बेगम के खिताब से नवाजा, बतौर उदाहरण- अमीरन, हुज़ूर परी, दिलदार परी, इमामन, महक परी, हूर परी, खुसरो बेगम, कैसर बेगम, और बेगम हजरत महल के नाम प्रमुख रूप से शामिल है।
अवध के नवाब वाजिद अली शाह के बारे में एक किस्सा यह भी बेहद चर्चित है कि जहां पूरी दुनिया गोरे रंग की दीवानी थी, वहीं नवाब साहब गहरे-सांवले रंग पर कुछ ज्यादा ही फिदा थे। नवाब वाजिद अली शाह ने कई अफ्रीकी गुलाम औरतों से निकाह किए, इनमें से एक का नाम अजायब खातून था। यह अफ्रीकी गुलाम औरतें नवाब वाजिद अली शाह की सुरक्षा में रहती थीं।
ऐसा कहा जाता है कि नवाब वाजिद अली शाह की 300 बेगमें थीं परन्तु उन्होंने बड़ी संख्या में तलाक भी दिए। लॉस्ट जनरेशन की लेखिका निधि दुग्गर के मुताबिक, बेगमों और उनके बच्चों के बढ़ते खर्चे तथा उन्हें समय नहीं देने के चलते अक्सर झगड़े होते थे।
शाही इमामबाड़ा : नवाब वाजिद अली शाह की कब्र
वाजिद अली शाह की मृत्यु 1859 में 14 फरवरी को कलकत्ता के मटिया बर्जु में हुई थी। नवाब वाजिद अली शाह की मृत्यु कैसे हुई थी, इसका कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मिलता है। हांलाकि नवाब वाजिद अली शाह की मृत्यु के चालीस दिनों बाद आयोजित होने वाले चेहलुम समारोह में समकालीन उर्दू और फारसी कवियों द्वारा कई शोकगीत सुनाए गए थे, उनमें से एक इस प्रकार है— “खल रही थी इस असिरी में भी जिसकी जिंदगी, जहर उस-ए दिलवाया मौका पा के मटियाबुर्ज माए; लंगरे मुंशी ने सिपहर-ए मंजिल पर की जफा, रोज-ओ शब उनका नमक खा खा के मटियाबुर्ज माए;”
अर्थात- वाजिद अली शाह को हिरासत में जहर देकर मारा गया, उनके खाने में कई ऐसी चीजें मिलाई गई थी जिससे उनकी मौत हो गई। यह काम लंगड़ा मुंशी ने किया था।
नवाब वाजिद अली शाह को मटिया बुर्ज स्थित सिब्तैनबाद शाही इमामबाड़े में दफनाया गया। इस शाही इमामबाड़े में वाजिद अली शाह और उनके बेटे बिरजिस कादिर की कब्र है। सिब्तैनबाद का शाही इमामबाड़ा लखनऊ के इमामबाड़े का छोटा संस्करण नजर आता है। सिब्तैनबाद के शाही इमामबाड़े के प्रवेश द्वार पर संगमरमर की एक पट्टिका लगी हुई है जिस पर यह उत्कीर्ण है कि यहां अवध के अंतिम दो नवाबों का मकबरा है।
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