अवध के शाही रसाईयों ने दम शैली यानि धीमी आंच पर तैयार बेहद लजीज पकवानों का आविष्कार किया जिनमें कबाब, कोरमा, बिरयानी, शीरमाल, रुमाली रोटियाँ और वारकी परांठे शामिल हैं। इनमें से एक अन्य बेहद लजीज पकवान निहारी का नाम लें तो अवधी पकवानों के साथ बड़ी बेईमानी होगी। दोस्तों, आज की तारीख में निहारी केवल लखनऊ ही नहीं बल्कि दिल्ली सहित देश के सभी बड़े शहरों में अलग-अलग तरीकों से तैयार की जाती है। यदि आप भी नॉनवेज खाने के शौकीन हैं तो निहारी का नाम सुनते ही आपके मुंह में भी पानी आ गया होगा। फिर देर किस बात की, चलिए इस स्टोरी हम आपसे साझा करते हैं लजीज पकवान निहारी से जुड़ा रोचक इतिहास।
निहारी से जुड़ा इतिहास
उर्दू शब्द ‘निहार’ से निहारी की उत्पत्ति हुई जिसे अरबी में नाहर करते है। नाहर से तात्पर्य है दिन। निहारी को कुछ लोग नहारी भी कहते हैं। निहारी एक तीखा पकवान है जो लाल मांस या चिकन से तैयार किया जाता है। बिल्कुल धीमी आंच पर पकाई जाने वाली निहारी में तकरीबन 50 प्रकार के गरम मसाले डाले जाते हैं। निहारी को अवध के नवाब और मुगल बादशाह बड़े चाव से खाते थे। अवध के नवाब अपने सिपाहियों को भी निहारी खिलाते थे जिससे कि उन्हें ताकत मिले।
वहीं कुछ इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि पुरानी दिल्ली के बावर्चीखाने में जन्मी है निहारी। ऐसा कहा जाता है कि मुगल सैनिकों कों हर दिन निहारी का कटोरा परोसा जाता था क्योंकि इसके ऊर्जा बढ़ाने वाले तत्व सर्दियों की सुबह के लिए एक आदर्श नाश्ता बनाते थे। इतना ही नहीं मुगल किलों और महलों के निर्माण में कार्यरत श्रमिकों के लिए भी निहारी को विशाल बर्तनों में पकाया जाता था।
निहारी एक ऐसा पकवान है जो जाड़े के दिनों में शरीर को गर्म रखने का काम करती है। इसके पीछे असली वजह यह है कि निहारी को डाइजेस्ट करना इतना आसान नहीं होता। इसलिए इस पकवान को सर्दियों में ही खाना चाहिए। कुछ लोगों का मानना है कि यदि आप निहारी को गर्मी में खाते हैं तो आपके पेट का हाजमा खराब हो सकता है।
नवाब आसफुद्दौला ने बनवाए थे निहारी कुलचे
मैदे की मुलायम मोटी रोटी जिसे आज लोग कुलचा के नाम से जानते हैं। खाने में बेहद मुलायम यह एक रोटी ही भूख मिटाने के लिए पर्याप्त होती है। चिकन अथवा मटन से तैयार मसालेदार सब्जी निहारी के बारे में आप से शुरू में ही जानकारी साझा कर चुके हैं। आज की तारीख में निहारी कुलचे को खाना जिस प्रकार से लोग पसन्द कर रहें हैं उसके पीछे का इतिहास बड़ा ही रोचक है।
दरअसल साल 1784 में अवध में भयंकर अकाल पड़ा था। उस वक्त अवध के चौथे नवाब आसफुद्दौला ने इमामबाड़ा और रूमी गेट का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया था। इन दोनों इमारतों को तैयार करने में बड़े स्तर पर कर्मचारी जुटे हुए थे। इनकी भूख मिटाने के लिए ही आसफुद्दौला ने अपने बावर्चियों से निहारी कुलचे तैयार करवाए थे। तभी से आम लोगों के बीच निहारी कुलचे खाने का प्रचलन बढ़ा।
निहारी तैयार करने से पूर्व की सामग्री
एक किलो लाल मांस, बारीक कटी हुई दो प्याज, पांच चम्मच देशी घी, एक-एक चम्मच अदरक और लहसुन का पेस्ट, एक चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच हल्दी, तीन चम्मच निहारी मसाला, तीन चम्मच आटा और आठ कप पानी।
मसाला सामग्री -पांच हरी इलायची, दो बड़ी इलायची, पांच लौंग, तेजपत्ता, दालचीनी का टुकड़ा, काली मिर्च, जायफल पाउडर, सौंफ, जीरा।
पकाने की विधि
सबसे पहले पकाने के मोटे तल वाले बर्तन में देशी घी डालकर गर्म करें। घी के गर्म होते ही उसमें कटे हुए प्याज के टुकड़े डालकर भूनें। इसके बाद इसमें मटन, अदरक-लहसुन का पेस्ट, धनिया पाउडर, हल्दी पाउडर और नमक डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। फिर पांच मिनट बाद इसमें निहारी मसाला डालें। इस मसाले को अच्छी तरह मिलाने के बाद निहारी में पानी डालें और बर्तन से ढंक दे फिर धीमी आंच पर तकरीबन 4 से 5 घंटे तक पकाएं। बीच-बीच में देखते रहें कि मटन पककर तैयार हो गया है या नहीं। जब मटन पक जाए तो आटे में आधा कप पानी मिलाकर पतला घोल तैयार कर लें। आटे के इस घोल को निहारी के मटन ग्रेवी में डालकर मिक्स करें और करीब 15 मिनट तक धीमी आंच पर ग्रेवी के गाढ़ा होने तक पकाएं। अंत में तैयार मटन निहारी को धनिया पत्ती, अदरक और कटे हुए नीबू के साथ सजाकर कुलचे के साथ सर्व करें।
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