दोस्तों, यदि आप भी नॉनवेज खाने के शौकीन हैं तो जाहिर सी बात है मुर्ग मुगलई, मुर्ग मखानी, मुर्ग नूरजहां का नाम सुनते ही आपके मुंह में भी पानी आ गया होगा। परन्तु यदि हम आपसे मुर्ग मुसल्लम की बात करें तो दावा है आप आज ही इस बेहद लजीज व्यंजन को जरूर आर्डर करना चाहेंगे। मुर्ग मुसल्लम एक ऐसा पकवान है जिसकी रेसिपी निराली है तथा इसका भोजन इतिहास भी काफी पुराना है। नॉन वेज का शौकीन प्रत्येक शख्स एकबारगी मुर्ग मुसल्लम जीभरकर जरूर खाना चाहता है। दरअसल मुर्ग मुसल्लम को कोई तमिल भोजन कहता है तो कोई इसे मुगलई व्यंजन बताता है। कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह लजीज पकवान अवध के नवाबों की देन है। तो फिर देर किस बात की, इस स्टोरी में हम बेहद लजीज पकवान मुर्ग मुसल्लम के इतिहास पर रोशनी डालेंगे।
मुर्ग मुसल्लम का इतिहास
‘मुर्ग मुसल्लम’ में मुर्ग से तात्पर्य मुर्गा यानि चिकेन से है जबकि मुसल्लम एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ होता है-पूरा। मतलब साफ है, मुर्ग मुसल्लम यानि पूरा मुर्गा या फिर कह लीजिए पूरा चिकेन। मुर्ग मुसल्लम को सबसे पहले अदरक, लहसुन और कश्मीरी लाल मिर्च, काली मिर्च तथा केवड़ा वाटर के सम्मिश्रण से मैरिनेट किया जाता है, इसके बाद इसमें उबले अंडे भरकर केसर, इलायची, मिर्च, खसखस, लौंग और दालचीनी जैसे मसालों के साथ पकाया जाता है। आखिर में मुर्ग मुसल्लम को बादाम और चांदी के वर्क से सजाकर आप मटर पुलाव, जीरा राईस या फिर बासमती चावल के साथ सर्व कर सकते हैं।
भोजन इतिहासकार सद्दाफ हुसैन का कहना है कि मुर्ग मुसल्लम की तरह भुने हुए चिकेन का उल्लेख तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के तमिल साहित्य में भी मिलता है। हांलाकि यह व्यंजन मुर्ग मुसल्लम ही था, इस पर सटीक दावा नहीं किया जा सकता है। कुछ भोजन इतिहासकारों ने मुर्ग मुसल्लम को अकबर के शाही रसोई का खास व्यंजन बताया है वहीं कुछ ने मुर्ग मुसल्लम को अवध के नबाबों की देन कहा है। हांलाकि अधिकांश भोजन इतिहासकारों ने इस तथ्य को एकमत से स्वीकार किया है कि लजीज व्यंजन ‘मुर्ग मुसल्लम’ दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का एक विशेष शाही पकवान था।
जानिए इब्नबतूता ने क्या लिखा है?
मोरक्को के प्रदेश तानजीर का निवासी इब्नबतूता चौदहवीं शताब्दी का बड़ा ही महत्वपूर्ण यात्री था जो दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक के शासन काल में भारत आया। इब्नबतूता ने अपने ग्रन्थ ‘रेहला’ में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के इतिहास के साथ-साथ दिल्ली के अन्य सुल्तानों के संक्षिप्त इतिहास का भी वर्णन किया है।
इब्नबतूता लिखता है कि “पराठा तथा सींक कबाब उसे बहुत पसन्द थे। मुर्ग मुसल्लम तथा समोसे उसके प्रिय व्यंजन थे जिनके बनाने की विधि का उसने वर्णन किया है। वह लिखता है कि मुहम्मद बिन तुगलक के महल में दो प्रकार का भोजन होता था-एक खास सुल्तान का विशेष भोजन, दूसरा सर्वसाधारण का भोजन। सुल्तान के भोजन में चपातियां, भुना मांस, मुर्ग मुसल्लम, चावल तथा समोसे होते थे। महल में सोने के बर्तनों में खाना खाया जाता था।” मतलब साफ है इब्नबतूता के मुताबिक, मुहम्मद बिन तुगलक के पसंदीदा व्यंजनों में से एक मुर्ग मुसल्लम भी था।
भोजन इतिहासकार सलमा यूसुफ हुसैन के मुताबिक, “मुर्ग मुसल्लम एक ऐसा व्यंजन है जिसे दिल्ली के सुल्तानों, विशेषकर मुहम्मद बिन तुगलक की शाही मेज पर परोसा जाता था”। वहीं शेफ कुणाल कपूर का कहना है कि “सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने एक विदेशी काजी के लिए रात के खाने में मुर्ग मुसल्लम परोसा था। इसमें भुने हुए मुर्गे को घी में पके चावल के साथ परोसा गया था।” इससे जाहिर होता है कि सल्तन काल में मुर्ग मुसल्लम को शाही पकवान का दर्जा हासिल था। यहां तक कि चर्चित किताब 'ट्रेसिंग द बाउंड्रीज़ बिटवीन हिंदी एंड उर्दू' में भी मुर्ग मुसल्लम को सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार का व्यंजन बताया गया है।
अबुल फजल ने आईन-ए-अकबरी में क्या लिखा है?
अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल द्वारा रचित अकबरनामा के पूरक ग्रन्थ का नाम आईन -ए-अकबरी है। अबुल फजल ने अपने इस ऐतिहासिक ग्रन्थ में अकबर कालीन संस्थाओं, नियमों, कानूनों, भूमि विवरण, राजस्व व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक रीति-रिवाजों का विस्तार से उल्लेख किया है। इस ग्रन्थ में मुर्ग मुसल्लम को अबुल फजल ने ‘मुसम्मन’ के रूप में संदर्भित किया है।
आईन-ए-अकबरी में मुगल बादशाह अकबर की शाही रसोई उल्लेख किया गया है- जिसमें गोश्त वाले पकवान, गोश्त और चावल वाले पकवान तथा विदेशी मसालों एवं मेवों के साथ पकाए गए गोश्त का उल्लेख है। अकबर की शाही रसोई का यह तीसरा पकवान मुर्ग मुसल्लम की ओर संकेत करता है।
अवध के नबाबों का शाही व्यंजन
अवध वर्तमान में उत्तर प्रदेश का एक भाग है। अवध पर कभी नवाबों का आधिपत्य था जो मुगल साम्राज्य के अधीनस्थ होकर शासन करते थे। उत्तर मुगल काल में अवध एक स्वतंत्र प्रांत बन गया। 1857 की महाक्रांति से पूर्व अवध ब्रिटिश हुकूमत का हिस्सा बन चुका था। मुर्ग मुसल्लम को बेहद पसंद करने वाले एक तबके का ऐसा मानना है कि यह व्यंजन अवध के राजघराने से निकला है।
पाक कला पर आधारित किताब ‘दस्तरख्वान-ए-अवध’ में मुर्ग मुसल्लम को लजीज व्यंजन की श्रेणी में शामिल किया गया है। वहीं अवधी पाक कला की एक किताब ‘बटेर मुसल्लम’ में भोजन इतिहासकार पुष्पेश पंत लिखते हैं कि “बटेर मुसल्लम में चिकेन की जगह पर बटेर का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले बटेर को साफ-सुथरा धोकर दही में मैरीनेट किया जाता है। तत्पश्चात इसे चिकन कीमा, बादाम, पिस्ता और मसालों से भरा जाता है। भूनी हुई प्याज, बादाम, चार मगज़, दही और मसालों के साथ इसकी ग्रेवी तैयार की जाती है। बटेर को पहले स्टॉक में पकाया जाता है फिर बटेर पर ग्रेवी डाली जाती है और फिर मक्खन से तब तक भूना जाता है जबतक कि सॉस भूरा न हो जाए और बटेर पूरी तरह से पक न जाए।
गौरतलब है कि मुर्ग मुसल्लम एक ऐसा लजीज व्यंजन है जो किसी भी नॉन वेजिटेरियन के मुंह में पानी ला सकता है। निसन्देह इस व्यंजन को ‘चिकेन व्यंजनों का राजा’ होने की उपाधि दी जा सकती है।
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