
आचार्य चाणक्य का संक्षिप्त परिचय
प्राचीन भारत के इतिहास में आचार्य चाणक्य को विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य इन दो नामों से भी जाना जाता है। बौद्ध ग्रंथ महावंश, जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी कृत परिशिष्टपर्वन् तथा सोमदेव रचित कथासरित्सागर व क्षेमेन्द्र कृत बृहत्-कथा-मंजरी के अतिरिक्त विशाखदत्त द्वारा लिखित संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस में यह वर्णन मिलता है कि एक बार नंद राजा ने अपनी यज्ञशाला में आचार्य चाणक्य को अपमानित किया जिससे क्रोध में आकर उसने नंद वंश को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा कर डाली और चन्द्रगुप्त मौर्य को अपना अस्त्र बनाकर उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
बौद्ध तथा ब्राह्मण ग्रंथों से आचार्य चाणक्य के जीवन के बारे में जो जानकारी मिलती है, उसके अनुसार वह तक्षशिला के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था। वेदों तथा शास्त्रों का ज्ञाता चाणक्य शिक्षा के प्रमुख केन्द्र तक्षशिला का प्रमुख आचार्य था। पुराणों में चाणक्य को द्विजर्षभ अर्थात श्रेष्ठ ब्राह्मण कहा गया है।
आचार्य चाणक्य का शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य जब भारत का एकछत्र सम्राट बना तब वह प्रधानमंत्री तथा प्रधान पुरोहित के पद पर आसीन हुआ। जैन ग्रंथों के मुताबिक, चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात बिन्दुसार के समय में भी चाणक्य कुछ काल तक प्रधानमंत्री बना रहा। तत्पश्चात उसने शासन कार्य से संन्याण ग्रहण कर लिया तथा वन में तपस्या करते हुए अपने जीवन के अंतिम दिन व्यतीत किए।
आचार्य चाणक्य द्वारा लिखित प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’
राजनीतिशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान चाणक्य ने राजशासन के ऊपर ‘अर्थशास्त्र’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रंथ हिन्दू राजशासन पर आधारित सर्वाधिक प्राचीनतम उपलब्ध रचना है। अर्थशास्त्र नामक इस ग्रंथ में नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दंडनीति तथा राजनीति आदि जैसे विषयों पर भी विचार किया गया है। कौटिल्य यानि चाणक्य अपने इस ग्रंथ में व्यूह रचना, किलाबंदी, शत्रुओं पर चढ़ाई करने के साथ ही विवाह संबंधी नियम, न्यायालयों की स्थापना पर भी विस्तार से लिखा है।
अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं। इस ग्रंथ के श्लोकों की संख्या 4000 बताई गई है। मौजूदा ग्रन्थ में भी इतने ही श्लोक हैं। अर्थशास्त्र के प्रथम अधिकरण में राजस्व सम्बन्धी विविध विषयों का वर्णन है। इस ग्रन्थ के द्वितीय अधिकरण में नागरिक प्रशासन की विस्तार से विवेचना की गई। वहीं तृतीय तथा चतुर्थ अधिकरणों में दीवानी, फौजदारी तथा व्यक्तिगत कानूनों का उल्लेख किया गया है। पंचम अधिकरण में सम्राट के सभासदों सहित अनुचरों के कर्तव्यों एवं दायित्वों का वर्णन है। छठे अधिकरण में राज्य के स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, बल, कोष तथा मित्र के स्वरूप तथा कार्यों का उल्लेख किया गया है। शेष नौ अधिकरणों में राजा की विदेश नीति, सैनिक अभियान, युद्ध विजय के उपाय, शत्रुदेश में लोकप्रियता प्राप्त करने के उपाय, युद्ध तथा सन्धि के अवसर आदि अनेक विषयों पर विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है।
आचार्य चाणक्य केवल राजनीति विशारद ही नहीं था, अपितु वह राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में नए सिद्धान्त का प्रतिपादक भी था। राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में अर्थशास्त्र का वहीं स्थान है जो व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनी की अष्टाध्यायी का है।
आखिर अर्थशास्त्र के लेखक को लेकर मतभेद क्यों है?
यह दुर्भाग्य है कि अर्थशास्त्र के रचयिता के सम्बन्ध में भारी मतभेद है। शाम शास्त्री, जाली, कीथ, विन्टरनित्ज जैसे कुछ विद्वान इसे कौटिल्य की रचना नहीं मानते हैं और इस सम्बन्ध में कुछ इस प्रकार के तर्क प्रस्तुत करते हैं-
— प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र में मौर्य साम्राज्य तथा शासनतंत्र का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। जबकि यूनानी साक्ष्य इस सम्बन्ध में विस्तार से प्रकाश डालते हैं।
— यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने कौटिल्य के नाम का उल्लेख कहीं नहीं किया है जोकि चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहा था। इस प्रकार इस ग्रन्थ की ऐतिहासिकता ही संदिग्ध है।
— इस ग्रन्थ में कौटिल्य के विचार अन्य पुरूष- ‘इति कौटिल्य:’ में व्यक्त किए गए हैं। यदि कौटिल्य स्वयं इस ग्रन्थ का रचयिता होता तो इस प्रकार लिखने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
— अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन नगर प्रशासन तथा नगर परिषदों का भी कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इसमें विदेशी नागरिकों के आचरण तथा उनकी देखरेख के लिए कोई नियम निर्धारित नहीं किए गए हैं।
हांलाकि उपरोक्त तर्कों की गहराई से समीक्षा की जाए तो ऐसा प्रतीत होगा कि इनमें कोई बल नहीं है। जैकोबी, स्मिथ, काशी प्रसाद जायसवाल आदि विद्वान अर्थशास्त्र को कौटिल्य की ही रचना मानते हैं। कौटिल्य की ऐतिहासिकता तथा अर्थशास्त्र को उसकी कृति होने के पक्ष में जो तथ्य पेश करते हैं, वह इस प्रकार हैं—
— अर्थशास्त्र का मुख्य विषय सामान्य राज्य एवं उसके शासनतंत्र का विवरण प्रस्तुत करता है। इस ग्रन्थ में चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार क्षेत्र हिमालय से लेकर समुद्र तट तक बताया गया है जो इस बात का सूचक है कि कौटिल्य विस्तृत साम्राज्य से परिचित था।
— कौटिल्य जिस समाज का चित्रण करता है उसमें नियोग प्रथा, विधवा विवाह आदि का प्रचलन था। यह प्रथा मौर्ययुगीन समाज में व्याप्त थी। उसने ‘युक्त’ शब्द का प्रयोग अधिकारी के अर्थ में किया है। यही शब्द सम्राट अशोक के लेखों में भी आया है। इस ग्रन्थ में मद्र, कम्बोज, लिच्छवि, मल्ल आदि गणराज्यों का भी उल्लेख किया गया है जो कि इस बात का सूचक है कि यह मौर्य युग के आरम्भ में लिखा गया था।
— अर्थशास्त्र में बौद्धों के प्रति बहुत कम सम्मान प्रदर्शित किया गया है तथा लोगों को अपने परिवार के पोषण की व्यवस्था किए बिना संन्यास ग्रहण करने से रोका गया है। इससे यही सूचित होता है कि इस ग्रन्थ की रचना बौद्ध धर्म के लोकप्रिय होने से पूर्व की गई थी।
— यह ध्यान देने योग्य है कि कौटिल्य तथा मेगस्थनीज के विवरणों में कई समानताएं भी हैं। जैसे कि मेगस्थनीज की तरह कौटिल्य भी लिखता है कि जब चन्द्रगुप्त आखेट के लिए निकलता था तो उसके साथ राजकीय जुलूस चलता था तथा सड़कों की कड़ी सुरक्षा रखी जाती थी। मेगस्थनीज और कौटिल्य दोनों ही लिखते हैं कि चन्द्रगुप्त की अंगरक्षक महिलाएं होती थी तथा वह अपने शरीर का मालिश करवाता था।
— चूंकि मेगस्थनीज का सम्पूर्ण विवरण हमें उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में सम्भव है कि कौटिल्य का उल्लेख उन अंशों में हुआ हो जो अप्राप्य हैं। पतंजलि ने भी बिन्दुसार और अशोक के नाम का उल्लेख नहीं किया है, तो क्या इन दोनों को अनैतिहासिक माना जा सकता है।
— अर्थशास्त्र मुख्यत: विभागीय अध्यक्षों का ही वर्णन करता है। नगर तथा सैन्य परिषदों का स्वरूप अशासकीय होने के कारण इसमें उल्लेख नहीं मिलता है।
— भारतीय लेखकों में अपने नाम का उल्लेख अन्य पुरुष में करने की प्रथा रही है। अत: यदि अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने अपना उल्लेख अन्य पुरुषों में किया है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह स्वयं इस ग्रन्थ का रचयिता नहीं था।
उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र मौर्यकाल की रचना है तथा इस ग्रन्थ में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य यानि आचार्य चाणक्य के ही विचार स्वयं उसी के द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं। हां, इतना अवश्य है कि कालान्तर में अन्य लेखकों द्वारा इस ग्रन्थ में कुछ प्रक्षिप्तांश जोड़ दिए गए हैं जिससे मूल ग्रन्थ का स्वरूप परिवर्तित सा हो गया है। इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस ग्रन्थ के अंत में कहा गया है कि “इसकी रचना उस व्यक्ति ने की है जिसने क्रोध के वशीभूत होकर शस्त्र, शास्त्र तथा नन्दराज के हाथ में गई हुई पृथ्वी का शीघ्र उद्धार किया।”
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