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146 Englishmen were put in a black hole with only 3-4 prisoners, what is the truth?

सिर्फ 3-4 कैदियों वाली काल कोठरी में ठूंसे गए थे 146 अंग्रेज, क्या है सच?

यह सच है कि किसी जमाने में इंग्लैंड के स्कूलों में विद्यार्थी भारत की जिन तीन चीजों के बारे में ज्यादा जानते थे- उनमें काल कोठरी की घटना (ब्लैक होल ट्रेजडी ), प्लासी की लड़ाई और 1857 का विद्रोह शामिल था। बता दें कि 1707 में मुगल बादशाह औरंगजेब के निधन के बाद जिन क्षेत्रीय प्रांतों का उदय हुआ उनमें एक नाम बंगाल भी था, जो केवल कहने मात्र को मुगल साम्राज्य के अधीन था जबकि सच्चाई यह थी कि बंगाल एक स्वतंत्र प्रान्त बन चुका था।

अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों के साथ होने वाले संघर्ष की आशंका को देखते हुए कलकत्ता में फोर्ट विलियम की किलेबन्दी कर ली और उसके परकोटे पर तोपे चढ़ा दी। जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों को उनके इस कार्य के लिए रोका तो उसकी बातों को अनसुनी कर दिया। इससे क्रोधित नवाब ने मई 1756 को कासिमबाजार पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।

इसके बाद उसने 20 जून 1756 को फोर्ट विलियम पर भी अधिकार कर लिया। फोर्ट विलियम पर कब्जा होने के बाद अंग्रेज गर्वनर ड्रेक अपने कमांडर सहित ब्रिटीश काउंसिल के अधिकांश सदस्यों, महिलाओं और बच्चों के साथ हुगली नदी में खड़े एक पोत पर सवार होकर वहां से बच निकला और फुल्टा द्वीप पर शरण लेने को बाध्य हुआ। बची खुची अंग्रेजी सेना ने काउंसिल के एक जूनियर सदस्य सर्जन जोनाथन हॉलवेल के नेतृत्व में फोर्ट विलियम को बचाने का प्रयास किया लेकिन उन्हें भी आत्मसमर्पण करना पड़ा।

जोनाथन हॉलवेल ने अपने लेख 'इंट्रेस्टिंग हिस्टोरिकल इवेंट्स रिलेटेड टू प्रॉविंस ऑफ़ बंगाल' में लिखा है कि मेरे हाथ बांधकर नवाब सिराजुद्दौला के सामने पेश किया गया। इसके बाद नवाब ने मेरे हाथ खोलने के आदेश दिए और वादा किया कि मेरे साथ कोई भी दुर्व्यहार नहीं किया जाएगा। हांलाकि नवाब ने अंग्रेजों के द्वारा फैक्ट्रियों की किलेबंदी और गवर्नर ड्रेक के व्यवहार पर नाराजगी प्रकट की।

जैसे ही नवाब सिराजुद्दौला वहां से उठकर आराम करने के लिए गया, वहां मौजूद नवाब के कुछ सैनिकों ने लूटपाट शुरू कर दी। शाम होते-होते फोर्ट विलियम का माहौल ऐसा हो चुका था कि शराब के नशे में एक अंग्रैज़ सैनिक ने पिस्टल निकाल कर नवाब के एक सैनिक को गोली से उड़ा दिया।

इसकी शिकायत जब नवाब सिराजुद्दौला के पास पहुंची तो उसने कहा कि इतने सारे अंग्रेज कैदियों को रात में खुला छोड़ना किसी खतरे से खाली नहीं है। ऐसे में इन्हें काल कोठरी में डाल दिया जाए। इसके बाद स्त्रियों-बच्चों का लिहाज़ किए बगैर 20 जून को करीब 146 अंग्रेजों को 18 फ़ीट लंबी और 14 फ़ीट 10 इंच चौड़ी अंधेरी कोठरी में ठूँस दिया गया। यह काल कोठरी केवल 3 या 4 कैदियों के लिए बनाई गई थी।

हॉलवेल लिखता है कि 21 जून की सुबह तक कुल 146 अंग्रेज बिना खाना, पानी और हवा के उस काल कोठरी में कैद रहे। जून महीने की भयंकर गर्मी के चलते सुबह होते-होते 123 अंग्रेज दम तोड़ चुके थे, केवल 23 व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में जीवित बाहर आए थे। चूंकि जीवित बचे 23 लोगों में जोनाथन हॉलवेल भी शामिल था। अत: हॉलवेल ने ही काल कोठरी की घटना लिखी है।

हॉलवेल ने बाद में उन मृत लोगों की याद में वहाँ एक स्मारक बनवाया। काल कोठरी की यह घटना इतिहास में ब्लैक होल ट्रेजडीके नाम मशहूर है। हांलाकि आधुनिक भारत के इतिहास में इस घटना की सत्यता अत्यंत विवादास्पद है। समकालीन मुस्लिम इतिहासकार गुलाम हुसैन ने अपनी किताब सियार-उल-मुत्खैरीन में इस घटना का कोई उल्लेख नहीं किया है। डॉ. सरकार और दत्त के मुताबिक, इस घटना का उल्लेख समकालीन अंग्रेजी, डच और फ्रांसीसी रिकॉर्डों में मिलता है लेकिन इनके विवरण एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं।

भारत के मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने लिखा है कि हॉलवेल ने अपने विवरण में मरने वालों की संख्या को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया था।”  वहीं इतिहासकार एस. सी. हिल बताते हैं कि हॉलवेल ने जिन 146 लोगों की बात कही थी, उनमें से सिर्फ 56 लोगों के रिकॉर्ड मिले। 'द एनार्की' के लेखक विलियम डेलरिंपिल के मुताबिक काल कोठरी में केवल 64 लोगों को रखा गया था जिसमें 21 लोगों की जान बच गई थी।

दरअसल इस घटना का इस्तेमाल ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल के नवाब के विरुद्ध तकरीबन 7 वर्ष तक चलते रहने वाले आक्रामक युद्ध के लिए प्रचार का कारण बनाए रखने के लिए किया और अंग्रेजीं जनता का समर्थन प्राप्त कर लिया। इस संबंध में विख्यात इतिहासकार डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने ठीक ही लिखा है, “इस घटना में कुछ भी सत्य नहीं है। यह केवल अंग्रेजों की मनगढ़न्त ही थी। वास्तव में इस कल्पित कथा का प्रचार अंग्रेजों की प्रतिहिंसात्मक मनोवृत्ति को उभारने के लिए ही किया गया था।

खैर जो भी हो लेकिन यह बिल्कुल सच है कि इस घटना के 150 साल बाद भी इसे इंग्लैंड के स्कूलों में भारतीय लोगों की नृशंसता के उदाहरण के तौर पर पढ़ाया गया। नि:सन्देह अंग्रेजों ने काल कोठरी की घटना का इस्तेमाल ब्रिटिश राष्ट्रवाद को बढ़ाने में किया।