‘छावा’ एक मराठी शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ है- शेर का बच्चा। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज को शेर और उनके सबसे बड़े बेटे संभाजी को ‘छावा’ कहा गया। स्वभाव से अभिमानी और क्रोधी संभाजी अत्यन्त पराक्रमी थे। संभाजी ने 9 साल के अल्प शासनकाल में 120 युद्ध किए और इन सभी युद्धों में अपराजेय रहे। अपने शौर्य के लिए विख्यात संभाजी ने महज 14 साल की उम्र में ही बुधभूषण, नखशिख, नायिकाभेद तथा सातशातक नामक संस्कृत ग्रन्थ लिखकर अपने बुद्धि कौशल का भी परिचय दे दिया था। मध्यकालीन भारतीय इतिहास में छत्रपति संभाजी महाराज का चरित्र-चित्रण कई इतिहासकारों तथा साहित्यकारों ने अपने-अपने तरीके से किया है। अब सवाल यह उठता है कि पूरे देश में छत्रपति संभाजी महाराज के ‘छावा’ नाम से पॉपुलर होने की कहानी कब से शुरू होती है।
बेहद चर्चित मराठी उपन्यास- छावा (Marathi Novel- Chhaava)
मराठी भाषा के ख्यातिलब्ध साहित्यकार शिवाजी सावंत ने अपने बेहद चर्चित उपन्यास छावा में छत्रपति संभाजी महाराज को एक नायक ही नहीं वरन इतिहास पुरुष के रूप में पेश किया है। शिवाजी सावंत ने अपने उपन्यास छावा में छत्रपति शिवाजी महराजा को ‘शेर’ कहा है और उनके बेटे संभाजी महाराज को ‘शेर का बच्चा’ यानि मराठी भाषा में ‘छावा’।
देश के कई प्रमुख इतिहासकारों ने छत्रपति संभाजी महाराज को अत्यंत क्रोधी, भोग-विलासी और व्यसनी के रूप में चित्रित किया है, यह जानकर दुख होता है। यदि आप छत्रपति संभाजी महाराज के पराक्रम, त्याग और स्वराज्य प्रेम से अवगत होना चाहते हैं तो शिवाजी सांवत का उपन्यास ‘छावा’ सबसे श्रेष्ठ साहित्य है।
शिवाजी सावंत ने अपने चर्चित उपन्यास ‘छावा’ में छत्रपति संभाजी महाराज के प्रति बनाई गई गलत धारणाओं को दूर करने का भरसक प्रयास किया है। बतौर उदाहरण- महज 9 वर्ष की उम्र में औरंगजेब से मिलने के लिए अपने पिता शिवाजी के साथ आगरा जाना, आगरा में छत्रपति शिवाजी के साथ संभाजी को भी कैद में किया जाना, मथुरा में एक मराठी ब्राह्मण कृष्णजी सावंत के यहां संभाजी को छोड़कर शिवाजी महाराज का महाराष्ट्र पहुंचना, संभाजी महाराज की दिलेर खान से मुलाकात, छत्रपति शिवाजी महाराज से पन्हाला के किले में भेंट करना आदि।
उपन्यास छावा में अत्यंत शक्तिशाली छत्रपति संभाजी महाराज को शिवाजी सावंत ने एक ऐसे नायक के रूप में प्रस्तुत किया है जिसने एक-दो नहीं बल्कि पांच मोर्चों पर एक साथ दुश्मन से युद्ध किया था। महाराष्ट्र के इस छावा को लंदन दरबार ने Warlike prince यानि ‘योद्धा राजकुमार’ के नाम से संबोधित किया है जिससे सम्भाजी का वास्तविक चरित्र उजागर होता है। मध्यकालीन इतिहास के कई तथ्यों को चुनौती देने वाला चर्चित उपन्यास ‘छावा’ तकरीबन 850 पृष्ठों का है। आज से 24 साल पहले यानि 1980 ई. में मराठी उपन्यास छावा का प्रथम प्रकाशन हुआ था, तब से लेकर अब तक इसके बारह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
सुपरहिट मराठी फिल्म- शिवरायांचा छावा (Superhit Marathi film Shivrayancha Chhaava)
मराठी फिल्म ‘शिवरायांचा छावा’ 16 फरवरी 2024 को फिल्मी पर्दे पर रिलीज हुई। यह मराठी फिल्म छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े बेटे छत्रपति संभाजी महाराज के इर्द-गिर्द घूमती है, जिन्हे महाराष्ट्र में शम्भू राजा के नाम से जाना जाता है।
ऐतिहासिक फिल्म शिवरायांचा छावा ने रिलीज होते ही फिल्मी पर्दे पर धमाल मचा दिया और कमाई करने के मामले में साल 2024 की दूसरी सबसे बड़ी मराठी फिल्म बन गई। एक आंकड़े के मुताबिक इस मराठी फिल्म ने महज दस दिनों के भीतर 11.2 करोड़ से अधिक की कमाई की। दिगपाल लांजेकर द्वारा लिखित और निर्देशित इस फिल्म में भूषण पाटिल, चिन्मय मंडलेकर, मृणाल कुलकर्णी, आयशा मधुकर, समीर धर्माधिकारी और राहुल देव ने मुख्य भूमिका निभाई है।
अपकमिंग हिन्दी फिल्म- छावा (Upcoming Hindi Movie- Chhaava)
छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित अपकमिंग हिन्दी मूवी छावा का टीजर रिलीज हो चुका है। अपकमिंग मूवी छावा के टीजर को महज पांच दिन में 18 मिलियन से अधिक व्यूज मिल चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, लक्ष्मण उटेकर द्वारा निर्देशित मूवी छावा आगामी छह दिसम्बर को फिल्मी पर्दे पर रिलीज होने जा रही है। बेहतरीन एक्टर विक्की कौशल ने छत्रपति संभाजी महाराज की भूमिका निभाई है जबकि सुपरहिट अभिनेत्री रश्मिका मंदाना ने इस फ़िल्म में येसुबाई भोंसले का किरदार अदा किया है।
मुगल बादशाह औरंगजेब की भूमिका निभाने वाले एक्टर का नाम है- अक्षय खन्ना जो अपने शानदार अभिनय के लिए मशहूर हैं। छावा के टीजर की शुरूआत ही इस डायलाग के साथ होती है- ‘छत्रपति शिवाजी महाराज को शेर कहते हैं और शेर के बच्चे को छावा। टीजर के अंत में बतौर औरंगजेब का डायलाग होता है- ‘शिवा चला गया लेकिन अपनी सोच छोड़ गया।’ छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित आगामी हिन्द फिल्म छावा के टीजर को जिस तरह से दर्शकों का प्यार मिल रहा है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि साल 2025 की यह सबसे बड़ी हिट मूवी हो सकती है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज जिन्हे केवल महाराष्ट्र में छावा कहा जाता था, उनके इस नाम को भारत में पॉपुलर करने में बेहद चर्चित मराठी उपन्यास छावा, सुपरहिट मराठी फिल्म शिवरायांचा छावा (शिवराय का छावा) तथा आगामी हिन्दी मूवी छावा ने महती भूमिका निभाई है।
छत्रपति संभाजी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय
छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रिय पत्नी सईबाई से जन्मे छत्रपति संभाजी महाराज जब दो वर्ष के थे, तभी उनके मां की मृत्यु हो गई। ऐसे में संभाजी महाराज का पालन-पोषण उनकी दादी जीजाबाई ने किया था। राजा जयसिंह के साथ हुई पुरन्दर की सन्धि के पश्चात 1666 ई. में छत्रपति शिवाजी महाराज जब औरंगजेब से मिलने आगरा गए तब वह अपने 9 वर्षीय पुत्र संभाजी को भी साथ ले गए थे। ऐसे में संभाजी बचपन से ही अपने प्रमुख शत्रु औरंगजेब की कूटनीति और क्रूरता से भलीभांति परिचित थे। छत्रपति शिवाजी जब औरंगजेब को चकमा देकर आगरा के किले से निकल भागे तब उनके साथ संभाजी भी थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने बेटे संभाजी को मथुरा में एक मराठी परिवार के यहां छोड़कर उनके मरने की अफवाह फैला दी थी ताकि शत्रु उनका पीछा नहीं कर सके। हांलाकि कुछ दिनों बाद बालक संभाजी भी सही सलामत महाराष्ट्र पहुंचने में सफल हो गए।
संभाजी अपने आक्रामक रवैये के लिए आरम्भ से ही जाने जाते थे, यही वजह है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें पन्हाला के किले में कैद कर रखा था। यहां तक कि छत्रपति शिवाजी की मौत (अप्रैल 1680) के समय भी संभाजी पन्हाला के किले में ही कैद थे। रायगढ़ में शिवाजी के मंत्रियों तथा सरदारों ने संभाजी के छोटे तथा सौतेले भाई राजाराम को छत्रपति बनाने का निर्णय लिया परन्तु इस गुप्त समझौते में उन्होंने मराठा सेनापति हम्मीरराव मोहिते को शामिल नहीं किया। फिर क्या था, संभाजी ने स्वयं को पन्हाला के किले से मुक्त कर लिया तथा हम्मीरराव मोहिते की मदद से रायगढ़ किले को भी अपने अधीन कर लिया। इसके बाद संभाजी ने राजाराम, उसकी मां सोयराबाई, पुराने पेशवा, सचिव और सुमन्त को बन्दीगृह में डाल दिया। इतना ही नहीं, राजाराम की मां सोयराबाई को षड्यंत्र रचने के आरोप में फांसी दे दी गई। तत्पश्चात जुलाई 1680 में संभाजी छत्रपति के रूप मराठा सिंहासन पर आरूढ़ हुए।
छत्रपति संभाजी महाराज का मुगल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष
शासन के आरम्भ में ही छत्रपति संभाजी महाराज ने मुगलों के शहर बुरहानपुर पर आक्रमण कर उसे बरबाद करके रख दिया। यहां तक कि बुरहानपुर शहर की सुरक्षा में नियुक्त मुगल सेना के परखच्चे उड़ा दिए। इसी के साथ मुगल बादशाह औरंगजेब के विद्रोही बेटे अकबर को संभाजी ने सुरक्षा प्रदान की। इस दौरान संभाजी ने अकबर की बहन जीनत को एक पत्र लिखा, संयोग से वह पत्र औरंगजेब के शुभचिन्तकों के हाथ लग गया जिसे भरे दरबार में औरंगजेब को पढ़कर सुनाया गया। संभाजी द्वारा लिखे गए पत्र का सारांश कुछ इस प्रकार से था- “बादशाह सलामत केवल मुसलमानों के ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी धर्मों के हैं। जिस सोच के साथ वह दक्कन आए थे, अब उनका मकसद पूरा हो चुका है अत: उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए। एक बार मैं और मेरे पिता उनके कब्जे से छूट कर दिखा चुके हैं। अगर वे यूं ही अपनी जिद पर अड़े रहे तो हमारे कब्जे से छूटकर दिल्ली नहीं जा पाएंगे। यदि उनकी यही इच्छा है तो दक्कन में ही उन्हें अपनी कब्र ढूंढ़ लेनी चाहिए।”
1686 ई. में बीजापुर और 1687 ई. में गोलकुण्डा विजय के पश्चात बादशाह औरंगजेब ने 3 लाख की मुगल सेना के साथ छत्रपति संभाजी महाराज के विरूद्ध अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा दी थी। 1687 में मुगलों तथा मराठों के बीच हुए भयंकर संघर्ष में संभाजी को विजयश्री अवश्य नसीब हुई लेकिन उनके विश्वासपात्र सेनापति हम्मीरराव मोहिते की मृत्यु हो गई। यदि देखा जाए तो संभाजी महाराज ने अपने पिता शिवाजी महाराज की तरह औरंगेजब को दक्षिण में बहुत अवधि तक जीत का अवसर नहीं दिया था। परन्तु साल 1689 में संभाजी एक बैठक के लिए संगमेश्वर पहुंचे थे, वहां घात लगाकर पहले से तैनात मुग़ल सरदार मुक़र्रब ख़ान की अगुवाई वाली सेना ने संभाजी पर हमला कर दिया। इस हमले में संभाजी के सभी सरदार मारे गए तथा संभाजी और उनके मंत्री कवि कलश को कैदकर लिया गया।
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छत्रपति संभाजी की निर्मम हत्या
छत्रपति संभाजी महाराज और उनके मंत्री कवि कलश को कैदकर बहादुरगढ़ ले जाया गया जहां इन दोनों को 40 दिनों तक कठोर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी गई। कवि कलश और संभाजी को लोहे की सलाखों में बांधकर ‘जोकर’ वेश में पूरे मुगल शिविर में घुमाया गया। इतना ही नहीं, संभाजी महाराज को जब औरंगजेब के समक्ष पेश किया गया तो उसने घुटनों के बल बैठकर सबसे पहले ‘अल्लाह’ को धन्यवाद दिया।
औरंगजेब ने संभाजी महाराज के समक्ष इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया जिसके बदले में इन्हें जीवनदान देने का वादा किया। संभाजी महाराज ने न केवल इस शर्त को अस्वीकार कर दिया बल्कि यह भी कहा कि यदि बादशाह अपनी बेटी भी दे, तब भी इस्लाम स्वीकार नहीं करूंगा। इसके बाद औरंगेजब के आदेश पर संभाजी के नाखून उखाड़ लिए गए, गर्म सलाखों से उनकी आंखें भी फोड़ दी गई। अंत में तुलापुर में इंद्रायणी और भीमा नदी के संगम स्थल पर बने पत्थर के प्रवेश द्वार पर सम्भाजी की हत्या कर उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को डाल दिए गए। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि संभाजी के शव को तुला नदी में फेंक दिया गया। जबकि कुछ लोगों के मुताबिक संभाजी के शव को सी कर उसका अंतिम संस्कार किया गया।
जो इतिहासकार छत्रपति संभाजी महाराज पर व्यसनी और विलासी होने का आरोप लगाते हैं, उन्हें यह सोचना चाहिए कि इतनी कठोर और अमानवीय सजा का धैर्यपूर्वक सामना कोई धीर-वीर पुरुष ही कर सकता था। इसके अतिरिक्त छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगजेब का यह कहना कि “अल्लाह, आपने हमारे जनाने मे संभा जैसा बेटा पैदा क्यूं नही किया?” मुगल बादशाह औरंगजेब का यह वक्तव्य संभाजी महाराज के सशक्त चरित्र को प्रमाणित करता है।
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