ब्लॉग

Was Aurangzeb's daughter Jaibunnisa attracted to Chhatrapati Shivaji Maharaj?

क्या छत्रपति शिवाजी महाराज से आकर्षित थी औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा?

9 मई 1666 का दिन गवाह है, जब दुनिया के सबसे चर्चित और भव्य मुगल दरबार में बादशाह औरंगजेब और छत्र​पति शिवाजी की मुलाकात होनी थी। आगरे किले के दीवान-ए-आम में मुगल दरबार के सभी छोटे-बड़े मनसबदार, रईस, अमीर-उमरा और बादशाह के अनुयायी खूब ठाट-बाट और शानदार हथियारों के साथ मौजूद थे। मयूर सिंहासन पर विराजमान मुगल बादशाह औरंगजेब भी इस शानदार मौके को गंवाना नहीं चाहता था, इसलिए वह अपनी ताकत और दौलत का प्रदर्शन कर छत्रपति शिवाजी को आतंकित करना चाहता था।

हांलाकि दक्षिण के सूबेदार शाइस्ता खान सहित अन्य नजदीकी लोगों ने बादशाह औरंगजेब को शिवाजी की तथाकथित जादुई शक्ति से सावधान रहने की हिदायत दी थी। औरंगजेब ने भी इस बात का पूरा ख्याल रखा था कि वह शिवाजी के प्रभाव में बिल्कुल नहीं आए। इतना ही नहीं, बादशाह औरंगजेब अपने विरोधी शिवाजी को मुगल दरबार में किसी तरह का कोई भी करतब दिखाने का अवसर नहीं देना चाहता था। इस प्रकार छत्रपति​ शिवाजी अपने 9 वर्षीय पुत्र शम्भाजी एवं 4000 मराठा सैनिकों के साथ 9 मई 1666 ई. को औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुए।

 बादशाह औरंगजेब के समक्ष जब छत्रपति शिवाजी ने मिर्जा राजा जय सिंह के बेटे राम सिंह के साथ आगरा के शाही दरबार में प्रवेश किया तो एकबारगी सन्नाटा छा गया। ‘द डेलिवरेंस ऑर इस्केप ऑफ शिवाजी द ग्रेट फ्रॉम आगरा' के लेखक बाबा साहब देशपांडे के मुताबिक  औरंगजेब ने विनम्रता के साथ शिवाजी को एक निश्चित दूरी तक आगे बढ़ने का आदेश दिया। इसके बाद शिवाजी ने मुगल बादशाह को झुककर तीन बार सलाम किया और बतौर नजराना 30 हजार रुपए भेंट किए। शिवाजी के जीवन में ऐसा पहली बार था जब उन्हें किसी बादशाह के समक्ष झुकना पड़ा था।

छत्रपति शिवाजी ने उन सभी बातों का पालन किया जो उन्हें मिर्जा राजा जय सिंह ने समझाया था। लेकिन छत्रपति शिवाजी तब भड़क उठे जब उन्हें निम्न श्रेणी के मनसबदारों के बीच खड़ा रहने को कहा गया। उस वक़्त मुगलों के दरबार में सिर्फ़ बादशाह ही बैठा करते थे और बाक़ी दरबारी खड़े रहा करते थे। द​रअसल औरंगजेब के दरबार में शिवाजी को 5000 वाली मनसबदारी दी गई थी जबकि शिवाजी 7000 वाली मनसबदारी चाहते थे। चूंकि औरंगजेब एक सोची-समझी रणनीति के तहत शिवाजी को अपमानित करना चाह रहा था। ऐसे में छत्रपति शिवाजी गुस्से में दांत पीसते हुए अपने आपे से बाहर हो गए जिससे पूरे दरबार में हलचल सी मच गई। इतने में औरंगजेब ने रामसिंह को शिवाजी को दरबार से बाहर ले जाने का आदेश दिया।

मुगल हरम की अन्य प्रमुख औरतों के साथ औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा भी परदे के पीछे बैठकर शाही दरबार में घटित हो रही इन सभी घटनाओं को बहुत बारीकी से देख रही थी। जैबुन्निसा केवल मराठा योद्धा शिवाजी को देखने की लालसा से ही मुगल दरबार में आई थी। क्योंकि उसने शिवाजी के बहादुरी के किस्से कई बार अपने कानों से सुन रखे थे। छत्रपति शिवाजी जब आगरा के शाही दरबार में मौजूद थे, तब उनकी उम्र 39 वर्ष थी, जबकि जेबुन्निसा महज 27 साल की थी।

यदि हम जेबुन्निसा की बात करें तो वह एक खूबसूरत, शिक्षित और सुसंस्कृत महिला थी। बिल्कुल ही उदार विचारों वाली युवती जेबुन्निसा 'मख़्फी' के नाम से अपने कलाम लिखा करती। फ़ारसी शब्द मख़्फी का अर्थ होता है अदृश्य, छिपा हुआ, गुमनाम।

ईस्ट इंडिया कंपनी का मुलाजिम एलेग्जेंडर डॉव अपनी पुस्तक 'द हिस्ट्री ऑफ हिंदुस्तान' में लिखता है कि ‘मुगल दरबार में छत्रपति शिवाजी की निडरता को देखकर जैबुन्निसा दंग रह गई थी। इतना ही नहीं शिवाजी के शारीरिक सौन्दर्य ने भी जेबुन्निसा को काफी प्रभावित किया था।’

ऐसे में जैबुन्निसा ने अपने पिता औरंगजेब से आग्रह किया कि शिवाजी को दरबार में दोबारा आमंत्रित किया जाए। कुछ अन्य दरबारियों ने भी औरंगजेब से यही बात कही थी। फिर क्या था, जैबुन्निसा ने आग्रह के साथ दरबार में एक बार फिर से उपस्थित होने के लिए शिवाजी के पास एक संदेश भेजा। शिवाजी शाही दरबार में दोबारा उपस्थित हुए लेकिन इस बार उन्होंने औरंगजेब को सलाम नहीं किया। उन्होंने कहा कि मैं एक राजकुमार की तरह पैदा हुआ हूं इसलिए गुलामों की तरह से व्यवहार करना नहीं आता है। उन्होंने आगे कहा कि 'मैं अपनी मर्यादा और गरिमा के साथ कोई समझौता नहीं कर सकता। भले ही मेरी मौत आ जाए।' इसके बाद शिवाजी ने औरंगजेब के सिंहासन की तरफ अपना पीठ कर लिया।

इस बात से क्रोधित होकर औरंगजे़ब ने सिपहसालार फुलद खान को आदेश दिया कि शिवाजी को नजरबंदर कर उन पर कड़ी निगरानी रखे। दरअसल औरंगजेब छत्रपति शिवाजी की कैद में ही हत्या कराना चाहता था। इतिहास पर नजर डालें तो आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज 101 दिन रहे थे। इनमें से 99 दिन उन्हें औरंगजेब की नजरबंदी (जयपुर भवन) में बिताने पड़े थे। 19 अगस्त, 1666 को यहीं से शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ फलों व मिठाइयों की टोकरी में बैठकर निकल गए थे। शिवाजी के बचकर निकलने की जानकारी औरंगजेब व अन्य को 20 अगस्त, 1666 को मिल सकी थी। कहते हैं कि औरंगजेब को शक था कि शिवाजी की फरारी में उसकी बेटी जैबुन्निसा ने मदद की।

कृष्णराव अर्जुन केलुस्कर अपनी किताब 'द लाइफ ऑफ शिवाजी महाराज' में लिखते हैं कि 'कुछ मुस्लिम इतिहासकारों का मानना है कि जैबुन्निसा ने रूपवान शिवाजी की दिलेरी और मुगल दरबार में उनके आचरण को अपनी आंखों से देखा था। शिवाजी ने मुग़ल बादशाह औरंगजेब को ठीक उसी तरह से करारा जवाब दिया था जैसे वह अपने रोमांस के हीरो में देखती थी'।

यद्यपि मशहूर मराठी इतिहासकार जदुनाथ सरकार इस तथ्य को एक सिरे से नकारते हैं। जदुनाथ सरकार द्वारा  1919 में प्रकाशित किताब 'स्टडीज़ इन मुग़ल इंडिया' के मुताबिक 'करीब 50 साल पहले बंगाली लेखक भूदेव मुखर्जी ने एक उपन्यास में लिखा था कि शिवाजी और जैबुन्निसा ने दो प्रेमियों की तरह अंगूठी का आदान-प्रदान किया और फिर अलग हो गए'। लेकिन, यह महज कोरी कल्पना है। इतिहास में कहीं भी यह दर्ज नहीं है कि औरंगजेब की कैद में रहे शिवाजी से जैबुन्निसा का कोई लगाव था।' बावजूद इसके मराठी लेखक कृष्णराव अर्जुन केळुस्कर और इतिहासकार बाबा साहब देशपांडे के अतिरिक्त स्कॉटिश एलेग्जेंडर डॉव का यह मानना है कि जैबुन्निसा के दिल में शिवाजी के प्रति के आकर्षण और सम्मान दोनों था।