भारत का इतिहास

Bahlul Lodi founder of the Lodi dynasty and the first Afghan Empire

बहलोल लोदी : लोदी वंश व प्रथम अफगान साम्राज्य का संस्थापक

सल्तनत युग में दिल्ली के सिंहासन पर राज्य करने वाले राजवंशों में लोदी वंश अन्तिम था। बहलोल लोदी ने लोदी राजवंश की स्थापना की। सिकन्दर लोदी ने उसकी शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि की तथा इब्राहिम लोदी भी इसी दिशा में प्रगति करने हेतु प्रयत्नशील था। तभी बाबर ने भारत पर आक्रमण कर लोदी सुल्तानों की सत्ता को समाप्त कर मुगल वंश की नींव डाली। लोदी वंश को अपने 75 वर्ष के शासनकाल (1451 ई. से 1526 ई. तक ) में जौनपुर, मालवा, गुजरात और मेवाड़ के शक्तिशाली पड़ोसी राज्यों से अपने अस्तित्व की सुरक्षा और शक्ति विस्तार के लिए संघर्ष करना पड़ा।

लोदी वंश का संस्थापक बहलोल लोदी

अफगानों की एक महत्वपूर्ण शाखा ‘शाहूखेल’ से सम्बन्ध रखने वाले बहलोल लोदी ने दिल्ली में लोदी वंश की स्थापना की। बहलोल लोदी के दादा का नाम मलिक बहराम था तथा पिता का नाम मलिक काला था। बहलोल लोदी को सुल्तान मुहम्मद शाह की कृपा से अमीर का पद प्राप्त हुआ था। बहलोल लोदी के चाचा इस्लाम खान की मृत्यु के बाद उसे सरहिन्द (पंजाब) की सूबेदारी मिली।

सरहिन्द का सूबेदार बनते ही उसने आसपास के क्षेत्रों को जीतकर अपनी शक्ति में वृद्धि की और सुल्तान मुहम्मदशाह से भी शक्तिशाली हो गया। मालवा के शासक महमूद खलजी ने जब मुहम्मदशाह पर आक्रमण किया तो उसने बहलोल  लोदी से मदद मांगी। महमूद खलजी के वापस लौट जाने के बाद मुहम्मद शाह ने बहलोल लोदी को अपना ‘पुत्र’ कहकर पुकारा तथा ‘खान-ए-जहां’ की उपाधि दी।

पंजाब के अधिकांश हिस्से पर बहलोल लोदी का स्वामित्व स्वीकर लिया गया। इससे लालायित होकर बहलोल लोदी ने भी 1443 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया परन्तु वह विफल रहा।  1445 ई. में  मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गई।

मुहम्मद शाह का पुत्र अलाउद्दीन आलम शाह सैय्यद वंश का अन्तिम शासक था। वह सैय्यद शासकों में सबसे अयोग्य और विलासी था। अलाउद्दीन आलम शाह ने स्वयं को अयोग्य पाकर वह अपने वजीर हमीद खां से झगड़कर बदायूं चला गया और वहीं रहने लगा। 1447 ई. में बहलोल लोदी ने दिल्ली पर एक असफल आक्रमण किया।

अंत में वजीर हमीद खां ने बहलोल लोदी और नागौर के सूबेदार कियाम खां को दिल्ली आमंत्रित किया। चूंकि बहलोल नजदीक था इसलिए वह पहले दिल्ली पहुंच गया। इसके बाद कियाम खां वापस लौट गया। कुछ ही दिनों बाद बहलोल ने वजीर हमीद खां को मरवा दिया और 19 अप्रैल, 1451 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार करके लोदी वंश की स्थापना की। इसी के साथ बहलोल लोदी ने दिल्ली में प्रथम अफगान साम्राज्य की नींव डाली। बहलोल लोदी ने 1489 ई. से 1517 ई. तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया।

बहलोल लोदी की प्रशासनिक उपलब्धियां

दिल्ली के सिंहासन पर बैठते ही बहलोल लोदी ने अफगान सरदारों को सन्तुष्ट करने के लिए उन्हें बड़ी-बड़ी जागीरें प्रदान की तथा उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया। दरअसल अफगान सरदार ही उसके राज्य और शासन का आधार थे। बहलोल लोदी अपने अमीरों को ‘मसनद-ए-अली’ कहकर पुकारता था।

 अब्दुला खान की किताब तारीख-ए-दाउदी के अनुसार, “बहलोल लोदी नाराज अमीरों के सामने अपनी पगड़ी उतार कर रख देता था और कहता था कि यदि आप मुझे अयोग्य समझते हैं तो किसी अन्य व्यक्ति को अपना सुल्तान चुन लीजिए।” इतना ही नहीं, अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बहलोल लोदी ने रोह के अफगानों को भारत आने के लिए भी आमंत्रित किया। इस सम्बन्ध में अफगानी इतिहासकार अब्बास ख़ां सरवानी लिखता है कि “इन फ़रमानों को पाकर रोह के अफ़ग़ान सुल्तान बहलोल लोदी की ख़िदमत में हाज़िर होने के लिए टिड्डियों के दल की तरह आ गए।”

हांलाकि बहलोल लोदी ने विद्रोही और उदण्ड सरदारों को न केवल दण्डित किया बल्कि सैन्य आक्रमण भी किए। बहलोल लोदी ने मेवात, सम्भल, कोल, इटावा, रपरी, भोगांव और ग्वालियर पर सैनिक आक्रमण किए तथा वहां के जागीरदारों और राजाओं को आधिपत्य स्वीकार करने तथा भू राजस्व देने के लिए बाध्य किया। बहलोल लोदी ने शक्तिशाली जौनपुर राज्य को भी जीतने में सफलता प्राप्त की।

बहलोल लोदी ने ‘बहलोली सिक्के’ चलवाए। एक टंका में 40 बहलोली होते थे। यही बहलोली सिक्के मुगल बादशाह अकबर के पहले तक उत्तरी भारत में विनिमय के मुख्य साधन बने रहे। यद्यपि बहलोल लोदी ने अफगान सरदारों को बड़ी-बड़ी जागीरें देकर उन्हें शक्तिशाली बनने का अवसर दिया जो लोदी वंश के पतन का कारण बना। परन्तु बहलोल लोदी ने अपने शासनकाल में अफगान सरदारों को स्वतंत्र जागीरें अथवा राज्य बनाने का अवसर नहीं दिया।

बहलोल लोदी द्वारा शर्की राज्य जौनपुर का विलय

बहलोल लोदी की सबसे बड़ी सफलता शक्तिशाली शर्की राज्य जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित करने की थी। जौनपुर का शर्की शासक महमूदशाह सैय्यद वंश के अंतिम शासक अलाउद्दीन आलमशाह का दामाद था। इसीलिए महमूदशाह शर्की की पत्नी उसे दिल्ली पर आक्रमण कर बहलोल लोदी को अपदस्थ करने के लिए हमेशा उकसाती रहती थी।

महमूद शाह शर्की भी अलाउद्दीन आलमशाह का दामाद होने के नाते दिल्ली पर अपना अधिकार समझता था। इसलिए बहलोल लोदी को दिल्ली में जमने से पूर्व ही वह उसे सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहता था। यही वजह है कि बहलोल लोदी के गद्दी पर बैठते ही महमूदशाह शर्की ने दिल्ली पर आक्रमण किया किन्तु उसका सेनापति दरिया खां बहलोल लोदी के पक्ष में हो गया।

मुल्तान से वापस लौटते समय बहलोल लोदी और महमूद शाह के ​बीच दिल्ली के निकट नरेला में युद्ध हुआ जिसमें महमूदशाह शर्की को पराजित होकर वापस लौटना पड़ा। हांलाकि महमूद शाह शर्की चुप बैठने वालों में से नहीं था, उसने क्रमश: इटावा और शमशाबाद पर सैन्य आक्रमण किया परन्तु ये दोनों ही युद्ध निर्णायक रहे और उसे बहलोल लोदी से सन्धि करनी पड़ी।

इस बार बहलोल लोदी ने जौनपुर पर आक्रमण किया लेकिन कुछ परिणाम नहीं निकला। 1457 ई. में महमूद शाह शर्की की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र मुहम्मदशाह जौनपुर की गद्दी पर बैठा परन्तु गृह युद्ध में उसके भाई हुसैन ने मुहम्मदशाह की हत्या कर दी और हुसैनशाह शर्की के नाम से जौनपुर के सिंहासन पर बैठा। हुसैनशाह शर्की भी महत्वाकांक्षी था, उसने भी दिल्ली जीतने का प्रयत्न किया।

जौनपुर और दिल्ली के बीच एक लम्बा संघर्ष चला, बीच-बीच में दोनों के बीच सन्धियां भी हुईं। परन्तु दोनों ही शासक एक-दूसरे पर आक्रमण करते रहे। बहलोल लोदी ने दो बार हुसैनशाह शर्की की रनिवास की औरतों तथा उसकी पत्नी मलिक-ए-जहां को कैद करने में सफल रहा परन्तु दोनों बार सम्मानपूर्वक वापस लौटा दिया। इस बारे में  इतिहासकार डॉ. के.एस. लाल लिखते हैं कि, "मध्ययुगीन भारत में एक विजयी मुस्लिम सुल्तान के लिए, यह व्यवहार अद्वितीय था।"

अन्त में बहलोल लोदी की विजय हुई और हुसैनशाह शर्की बिहार में शरण लेने को बाध्य हुआ। इस प्रकार जौनपुर विजय से बहलोल लोदी के राज्य और सम्मान में वृद्धि हुई। जौनपुर विजय के साथ ही दोआब के विद्रोही सरदार उसके अधीन हो गए तथा काल्पी, धौलपुर और बाड़ी के शासकों ने उसकी आधीनता स्वीकार कर ली। ग्वालियर पर आक्रमण बहलोल लोदी की अन्तिम विजय थी। ग्वालियर के राजा मान सिंह ने बहलोल लोदी को 80 लाख टंका दिए। ग्वालियर से लौटते समय बहलोल लोदी रास्ते में ही बीमार हो गया और जुलाई 1489 ई. के मध्य 80 वर्ष की अवस्था में ​जलाली के पास उसकी मौत हो गई।

बहलोल लोदी का मकबरा

जुलाई 1489 ई. के मध्य में बहलोल लोदी के निधन के पश्चात उसके छोटे पुत्र और उत्तराधिकारी सिकन्दर लोदी ने अपने पिता के मकबरे का निर्माण करवाया। वर्तमान में यह मकबरा ऐतिहासिक बस्ती चिराग दिल्ली में स्थित है। हांलाकि बहलोल लोदी के मकबरे को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि दिल्ली के लोदी गार्डन में स्थित शीश गुम्बद ही बहलोल लोदी का वास्तविक मकबरा है।

बहलोल लोदी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

— सैय्यद वंश का सुल्तान मुहम्मद शाह सरहिन्द के सूबेदार बहलोल लोदी को अपना ‘पुत्र’ कहकर पुकारता था तथा उसे ‘खान-ए-जहां’ की उपाधि दी।

— लोदी वंश के व्यक्ति भारत में सर्वप्रथम लमगान और मुल्तान में बसे थे।

— बहलोल लोदी के दादा का नाम मलिक बहराम था जो फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में भारत आया था।

— मलिक बहराम के पांच पुत्रों में से एक सुल्तान शाह को सैय्यद वंश के संस्थापक सुल्तान खिज्र खां ने मुल्तान का सूबेदार नियुक्त किया था।

—मलिक बहराम के दूसरे पुत्र मलिक काला (बहलोल लोदी का पिता) को खिज्र खां ने दौराला का हा​किम बना ​दिया।

— बहलोल लोदी का जन्म दौराला में हुआ था। प्रसव के वक्त बहलोल लोदी की मां का निधन हो गया था।

— बहलोल जब बालक था तभी उसके पिता की भी मौत हो गई, इसलिए बहलोल का पालन-पोषण उसके चाचा इस्माइल खान (सरहिन्द का सूबेदार) ने किया था।

— युवावस्था में बहलोल खान घोड़ों का व्यापारी था। सैय्यद वंश के सुल्तान मुहम्मद शाह को बेहतरीन नस्ल के घोड़े बेचने पर उसे एक परगना मिला तथा अमीर का दर्जा दिया गया।

— इस्लाम खान की मृत्यु के बाद बहलोल लोदी सरहिन्द (पंजाब) का सूबेदार बना।

— लोदी वंश के सा​थ ही प्रथम अफगान साम्राज्य की स्थापना बहलोल लोदी ने की।

— लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी का मूल नाम बल्लू था।

— सर्वाधिक समय तक शासन (38 वर्षों तक) करने वाला लोदी वंश का सुल्तान था बहलोल लोदी।

— लोदी वंश ने 1451 ई. से 1526 ई. तक शासन किया।

— दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला अंतिम राजवंश लोदी वंश था।

— दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले लोदी सुल्तान अफगान मूल के थे।

— 19 अप्रैल 1451 ई. को दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद बहलोल खान लोदी ने ‘बहलोल शाह गाजी’ की उपाधि धारण की।

— बहलोल लोदी की दो पत्नियां थीं- शम्स खातून और बीबी अम्भा।

— बहलोल लोदी अफगानों की गिलजई कबीले की शाहूखेल शाखा से था।

— बहलोल लोदी ने बहलोली सिक्के चलवाए। एक टंका में 40 बहलोली होते थे।

— बहलोली सिक्के मुगल बादशाह अकबर के पहले तक उत्तरी भारत में विनिमय के मुख्य साधन बने रहे।

— अब्दुला खान की किताब ‘तारीख-ए-दाउदी’ से लोदी वंश तथा अफगानों के राजत्व सिद्धान्त की जानकारियां मिलती है।

— बहलोल लोदी कभी सिंहासन पर नहीं बैठता बल्कि राजदरबार में गलीचे पर बैठता था।

— बहलोल लोदी ने अमीरों को जितनी भी जागीरें दी, उन जागीरों के हिसाब-किताब की कभी जांच नहीं की।

— बहलोल लोदी धार्मिक रूप से सहिष्णु था, उसके दरबार में कई प्रतिष्ठित हिन्दू सरदार थे- राय प्रताप सिंह, राय करन सिंह, राय नरसिंह, राय त्रिलोकचन्द और राय दादू।

—सैय्यद वंश के अ​न्तिम सुल्तान अलाउद्दीन आलमशाह का दामाद था जौनपुर का शर्की शासक महमूदशाह।

— गृहयुद्ध के दौरान महमूद शाह के उत्तराधिकारी मुहम्मदशाह को हुसैनशाह ने मार दिया। इसके बाद हुसैनशाह शर्की के नाम से जौनपुर की गद्दी पर बैठा।

—सुल्तान हुसैनशाह शर्की को पराजित कर बहलोल लोदी ने 1479 ई. में जौनपुर के शर्की राज्य को दिल्ली में मिला लिया।

— बहलोल लोदी द्वारा जीते गए क्षेत्र- मेवात (अहमद खान), सम्भल (दरिया खान), कोल (ईसा खान), रेवाड़ी (कुतुब खान), ग्वालियर, इटावा और चंदावर थे।

— बहलोल लोदी ने अन्तिम आक्रमण ग्वालियर पर किया, बहलोल लोदी के समय ग्वालियर का राजा मान सिंह था।

— जौनपुर के शासक हुसैनशाह शर्की की पत्नी का नाम मलिक-ए-जहां था, जिससे बहलोल लोदी ने दो बार अपने कैद में रखा परन्तु ससम्मान लौटा दिया।

— वर्तमान में जौनपुर जिला अपने कई पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, जैसे-अटाला मस्जिद, शीतला माता चौकिया और शाही किला आदि।

— बहलोल लोदी के दो पुत्रों में से बड़े पुत्र का नाम बारबक शाह तथा छोटे पुत्र का नाम सिकन्दर शाह था।

— बहलोल लोदी ने बारबक शाह को जौनपुर का राज्यपाल नियुक्त किया था। जबकि सिकन्दर शाह दिल्ली का सुल्तान बना।

— बहलोल लोदी का उत्तराधिकारी व छोटा पुत्र सिकन्दर लोदी सुल्तान बना जो लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक था।

सम्भावित प्रश्न-

— लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी की प्रशासनिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए?

— बहलोल लोदी द्वारा शर्की राज्य जौनपुर के दिल्ली सल्तनत में विलय का विस्तार से वर्णन कीजिए?

— बहलोल लोदी ने अफगान सरदारों तथा अमीरों के साथ कैसा व्यवहार किया, समीक्षा कीजिए?

— बहलोल लोदी के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए?

— बहलोल लोदी के मकबरे को लेकर इतिहासकारों में क्या मतभेद है,​ टिप्पणी लिखिए?