उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित सम्भल जिले का नाम हिन्दू धर्मग्रन्थों में भी मिलता है। सतयुग, त्रेता तथा द्वापर युग में सम्भल क्रमश: सत्यव्रत, महदगिरि तथा पिंगल के नाम से विख्यात था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का जन्म भी शंबल नामक ग्राम में होगा, लोक मान्यता में सम्भल को ही शंबल माना जाता है।
मुगल बादशाह बाबर द्वारा बनवाई गई सम्भल की बहुचर्चित शाही जामा मस्जिद आजकल विवादों के घेरे में आ चुकी है। दरअसल अयोध्या, काशी, मथुरा की तर्ज पर हिन्दू पक्ष द्वारा दायर की गई याचिका के बाद कोर्ट ने सम्भल जामा मस्जिद की सर्वे रिपोर्ट 29 नवम्बर तक प्रस्तुत करने को कहा है। कोर्ट ने सर्वे का वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी करने का भी आदेश जारी किया है।
हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में दावा किया है कि सम्भल की शाही मस्जिद की जगह कभी भगवान विष्णु का मंदिर हुआ करता था, जिसे बाबर के आदेश पर उसके सिपहसालार मीर हिन्दू बेग ने ध्वंस कर दिया था। इस दावे को पुख्ता करने के लिए हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में कई प्रमाणिक साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, ऐसे में सम्भल की जामा मस्जिद के पूर्व में एक हिन्दू मंदिर होने से जुड़ी रोचक स्टोरी अवश्य पढ़ें।
मीर बेग कौन था?
उज्बेकिस्तान के ताशकंद शहर का रहने वाला मीर बेग मुगल बादशाह बाबर का और दरबारी था। बाबर की आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में मीर बेग को बाकी ताशकंदी, बाकी बेग, बाकी शाघावाल, बाकी मिगबाशी आदि कई नामों से पुकारा गया है।
हिन्दू पक्ष का कहना है कि मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर ही मीर बेग ने सम्भल के हरिहर मंदिर को तोड़कर उसे मस्जिद में परिवर्तित किया था। वहीं मुस्लिम पक्ष के अनुसार, सम्भल के शाही जामा मस्जिद का निर्माण 1529 ई. में मीर बेग ने करवाया था।
प्रथम साक्ष्य : बाबर कृत बाबरनामा
हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में जो याचिका दायर की है, उसके मुताबिक बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में पृष्ठ संख्या 687 पर स्पष्ट लिखा है कि मूल रूप से उज्बेकिस्तान के ताशकंद निवासी मीर बेग ने मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर साल 1527-28 में सम्भल के हिन्दू मंदिर को ध्वंस कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया।
वहीं बाबर की आत्मकथा बाबरनामा के अनुसार, “बाबर के सिपहसालार मीर हिन्दू बेग ने 932 हिजरी में सम्भल पर कब्जा कर लिया इसके बाद बाबर के आदेश पर उसने एक हिन्दू मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया।”
द्वितीय साक्ष्य : अबुल फजल कृत आइन-ए-अकबरी
अकबर के दरबारी कवि व नवरत्नों में से एक अबुल फजल अपनी कृति अकबरनामा अथवा ‘आइन-ए-अकबरी’ में लिखता है कि “सम्भल में हरिमंडल (विष्णु मंदिर) नामक एक मंदिर है, जो एक ब्राह्मण का है जिसके वंशजों में से इसी स्थान पर विष्णु का दसवां अवतार प्रकट होगा।”
तृतीय साक्ष्य : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट
मेजर जनरल अलेक्जैंडर कन्निघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का जनक कहा जाता है। अलेक्जैंडर कन्निघम ने साल 1874-76 में सम्भल का दौरा किया था। इसके बाद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन अधिकारी एसीएल कारले ने संभल की जामा मस्जिद का 1875 में सर्वेक्षण करके ‘सेन्ट्रल दोआब एण्ड गोरखपुर’ नामक एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें मस्जिद निर्माण के दौरान बचे हुए मंदिर अवशेषों के मौजूद होने की बात लिखी गई है।
‘सेन्ट्रल दोआब एण्ड गोरखपुर’ नामक रिपोर्ट के अनुसार, सम्भल की जामा मस्जिद के बारे में हिन्दू यह दावा करते हैं कि पूर्व में यह हरि मंदिर था। इस रिपोर्ट की पृष्ठ संख्या 25-26 में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सर्वे के दौरान मस्जिद के एक खंभे से प्लास्टर उखड़ने पर लाल रंग का खंभा दिखाई दिया, जो कि हिन्दू मंदिरों में पाए जाने वाले खंभों से मेल खाता था।
सम्भल की जामा मस्जिद का केन्द्रीय गुम्बदाकार कमरा 20 फीट वर्ग का है, जिसके हिस्से समान नहीं हैं। इस केन्द्रीय कमरे का उत्तरी भाग 500 फीट 6 इंच है, जबकि दक्षिणी हिस्सा केवल 38 फीट 1½ इंच है। इतना ही नहीं, इसमें तीन मेहराबदार दरवाजे हैं और सभी अलग-अलग चौड़ाई (तकरीबन 7 से 8 फीट तक) के हैं। इतना ही नहीं, जामा मस्जिद के मुख्य द्वार के सामने हिंदू आबादी रहती है जबकि इसके शेष दरवाजों के आसपास मुस्लिम आबादी रहती है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट में यह भी उल्लेखित है कि सम्भल के जामा मस्जिद गुम्बद का जीर्णोद्धार पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था। इस मस्जिद के हिन्दू खम्भे भी मुस्लिम शैली में निर्मित खम्भों से बिल्कुल अलग हैं।
एसीएल कारले अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखता है कि सर्वे के दौरान सम्भल के कई मुसलमानों ने यह स्वीकार किया था कि मस्जिद में मौजूद बाबर के नामवाला शिलालेख जाली है। मुसलमानों ने 1857 की महाक्रान्ति के दौरान इस इमारत पर कब्जा किया था। उन दिनों जिला जज के सामने एक मुकदमा भी चला था लेकिन जाली शिलालेख और मुसलमानों की एकजुट गवाही के कारण उन्होंने यह मुकदमा जीत लिया। बता दें कि तब सम्भल का हिन्दू वर्ग अल्पसंख्यक था।
सम्भल की शाही मस्जिद में जो शिलालेख लगा है, उस पर ‘शाह जाम फ़ुलहम्मद बाबर’ उत्कीर्ण है जबकि बाबर का असली नाम ‘शाह ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर’ है। इसी से पता चलता है कि मस्जिद में लगा शिलालेख जाली है।
चतुर्थ साक्ष्य : ASI घोषित कर चुका है राष्ट्रीय स्मारक
सम्भल की जामा मस्जिद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानि ASI राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर चुका है। इस मस्जिद को साल 1920 में 22 दिसम्बर को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 3, उप-धारा (3) के तहत अधिसूचित किया गया था।
इस मामले में हिन्दू पक्ष ने अपनी याचिका में कहा है कि एएसआई अपनी विषयगत सम्पत्ति पर नियंत्रण रखने में विफल रहा है और कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय के दबाव के आगे एएसआई के अधिकारी मूक दर्शक बने हुए हैं।
पंचम साक्ष्य : हजारों वर्ष पुराने नक्शे में मौजूद है हरिहर मंदिर
कैला देवी मंदिर के महंत ऋषि राज गिरी ने सम्भल की जामा मस्जिद को हरिहर मंदिर होने का दावा किया है। महंत ऋषि राज गिरी का कहना है कि उनके पास शक संवत 987 का हजारों वर्ष पुराना नक्शा मौजूद है जिसमें सम्भल का नाम ‘तीर्थराज सम्भल’ अंकित है। इस नक्शे में सम्भल के 68 तीर्थ और 19 कूप भी दर्शाए गए हैं।
हांलाकि सम्भल की शाही जामा मस्जिद के मंदिर होने के दावे को लेकर दायर किए गए याचिका के बारे में मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह जामा मस्जिद थी और जामा मस्जिद ही रहेगी। यह सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है। सम्भल की जामा मस्जिद से जुड़े तथ्यों की निष्पक्ष जांच करने के बाद न्यायालय क्या निर्णय सुनाता है, यह अभी भविष्य के गर्त में है।
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