तुर्क आक्रमणकारियों ने लूट के उद्देश्य से भारत पर कई हमले किए। इन सभी आक्रमणों के दौरान यहां के भव्य और समृद्ध मंदिरों में स्थापित बहुमूल्य रत्नों से जड़ित स्वर्ण-चांदी आदि की मूर्तियों को लूटना तथा इन मंदिरों को विध्वंस करना इनके लिए सामान्य सी बात थी। कालान्तर में इन विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा प्रख्यात हिन्दू मंदिरों को विध्वंस कर मस्जिद बनाने का सिलसिला चल पड़ा। इनमें प्रमुख रूप से बाबरी मस्जिद-अयोध्या (सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अब राम मंदिर का निर्माण हो चुका है), ज्ञानवापी मस्जिद-वाराणसी, शाही ईदगाह-मथुरा (श्रीकृष्णजन्म स्थान के पास) और कमाल मौला मस्जिद- धार (भोजशाला) आदि का नाम शामिल है।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मंदिरों को विध्वंस कर मस्जिद के रूप में परिवर्तित करने का पहला उदाहरण है- अजमेर स्थित अढ़ाई दिन का झोंपड़ा। अढ़ाई दिन का झोंपड़ा केवल अजेमर ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की ऐसी पहली मस्जिद है जिसका निर्माण मंदिरों के खण्डहरों पर किया गया है। अढ़ाई दिन का झोंपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण किसने करवाया, यह मस्जिद कितने दिनों में तैयार हुई और फिर इस मस्जिद के निर्माण में प्रयुक्त मंदिरों के जो शिलालेख मिलते हैं, वह किन हिन्दू स्थलों की तरफ इशारा करते हैं। यह सब जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को अवश्य पढ़ें।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है। वह दिल्ली का प्रथम तुर्क शासक था। पृथ्वीराज चौहान के विरूद्ध तराईन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) में तथा जयचन्द के विरूद्ध चन्दावर के युद्ध (1194 ई.) में मुहम्मद गोरी को विजयश्री दिलवाने में कुतुबुद्दीन ऐबक ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। ऐसे में भारत से वापस जाते समय मुहम्मद गोरी ने उसे भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया। 1206 ई. में मुहम्मद गोरी का वध कर दिया गया, चूंकि गोरी नि:सन्तान था अत: कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर आकर भारतीय प्रदेशों की शासन-सत्ता अपने हाथों में ले ली।
इतिहास की प्रमाणिक पुस्तकों के अनुसार, अजमेर की सबसे पुरानी मस्जिद ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था। परन्तु इस मस्जिद का निर्माण किस सन् में हुआ था, इसकी सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। कुछ विद्वानों का कहना है कि पृथ्वीराज चौहान की पराजय के पश्चात मुहम्मद गोरी के आदेश पर उसके सिपहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई. में पूर्ववर्ती चौहान सम्राट विग्रहराज चतुर्थ द्वारा बनवाए गए संस्कृत विद्यापीठ को तोड़कर मस्जिद बनवाई। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि 6वीं शताब्दी में सेठ वीरमदेव काला द्वारा निर्मित जैन मंदिर को तोड़कर ऐबक ने यह मस्जिद बनवाई थी। इस मस्जिद की डिजाइन हेरात के वास्तुकार अबू बकर ने तैयार किया जो मुहम्मद गोरी के साथ भारत आया था। मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक के अफगान प्रबंधकों के संरक्षण में पूर्णतया हिन्दू राजमिस्त्रियों के द्वारा किया गया था।
जबकि मस्जिद के केन्द्रीय मीनार के एक शिलालेख के मुताबिक, ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ नामक इस मस्जिद का निर्माण अप्रैल, 1199 ई. में किया गया था। इस मस्जिद का शेष कार्य सुल्तान इल्तुतमिश के द्वारा 1213 ई. में पूरा करवाया गया था।
मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोंपड़ा कैसे पड़ा?
एक कहानी के मुताबिक, पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने के बाद मुहम्मद गोरी इसी रास्ते से जा रहा था, तभी उसने विद्यार्थियों को संस्कृत विद्यापीठ में संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करते देखा तो उसे यह बरदाश्त नहीं हुआ और उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को संस्कृत विद्यापीठ और उसमें स्थापित सरस्वती मंदिर को तोड़कर 60 घंटे के अन्दर मस्जिद बनाने का आदेश दिया। चूंकि इस मस्जिद का निर्माण 60 घंटे यानि ढाई दिन में हुआ था, इसीलिए इस मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ गया। हांलाकि कुछ विद्वान इसे महज किंवदंती मानते है, क्योंकि इस मस्जिद के निर्माण में कई साल लग गए थे।
इस नाम के पीछे एक कहानी यह भी है कि चूंकि सदियों से यह अजमेर की एकमात्र मस्जिद थी। अत: मुस्लिम मतावलम्बी पंजाब शाह का उर्स मनाने के लिए प्रतिवर्ष यहां एकत्र होते थे और यह उर्स ढाई दिनों तक चलता था। इसके बाद इस मस्जिद का नाम ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ पड़ गया।
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा और देशी-विदेशी इतिहासकारों का मत
मस्जिद में प्रयुक्त स्तम्भों, मस्जिद परिसर से प्राप्त कुछ हिन्दू मूर्तियों तथा शिलालेखों के आधार पर यह कहना बहुत मुश्किल है कि मस्जिद का कौन सा हिस्सा संस्कृत विद्यालय था या फिर सरस्वती मंदिर। कुछ जैन मंदिरों के भी प्रस्तर खण्ड मिले हैं। तो आइए जानते हैं, इस बारे में कुछ प्रख्यात विद्वानों का क्या कहना है।
कर्नल जेम्स टॉड का कथन
‘राजस्थान के इतिहास का जनक’ कहे जाने वाले ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने साल 1819 ई. में मस्जिद का दौरा किया। इसके बाद जेम्स टॉड ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एनाल्स एण्ड एण्टीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में इस मस्जिद को हिंदू वास्तुकला के सबसे उत्तम और सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक बताया। हांलाकि कर्नल जेम्स टॉड ने इस मस्जिद की संरचना के विषय कहा कि ‘पूर्व में यह एक जैन मंदिर था।’
अलेक्जेंडर कनिंघम का कथन
अलेक्ज़ैंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का जनक कहा जाता है। अलेक्जेंडर कनिंघम ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रथम निदेशक के तौर पर तकरीबन 15 वर्षों तक काम किया और साल 1885 में सेवानिवृत्त हुए। इस दौरान आप ने उत्तरी भारत के खण्डहरों के बीच कई पुरातात्विक अन्वेषण किए।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक अलेक्ज़ैंडर कनिंघम ने सन 1864 ई. में अजमेर की इस सबसे पुरानी मस्जिद का दौरा किया। इसके बाद उन्होंने कर्नल जेम्स टॉड के कथन को नकारते हुए कहा कि यह मस्जिद पूर्व में केवल जैन मंदिर नहीं हो सकती क्योंकि इस इमारत के स्तम्भों पर मां काली के अतिरिक्त हिन्दू देवी-देवताओं की चार भुजाओं वाली कई आकृतियां उत्कीर्ण हैं। अलेक्जेंडर कनिंघम ने कहा कि मस्जिद में केवल दो ही मूल स्तम्भ थे जबकि बाकी हिन्दू स्तम्भों की वास्तविक संख्या 700 से ज्यादा है, जोकि 20 से 30 मंदिरों के खण्डहरों के बराबर है। ऐसे में यह कहना लाजिमी होगा कि इसमें ज्यादातर हिन्दू मंदिरों के खण्डहरों का इस्तेमाल किया गया है।
सर सैय्यद अहमद खान का कथन
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान ने अपनी किताब ‘आसार-उस-सनादीद’ में लिखा है कि “अजमेर की मस्जिद अढ़ाई दिन का झोंपड़ा का निर्माण हिन्दू मंदिरों की सामग्री का इस्तेमाल करके किया गया है।” वहीं इतिहासकार सीता राम गोयल ने अपनी किताब ‘हिंदू टेंपल: व्हाट हैपन्ड टू देम’ में भी सर सैय्यद अहमद खान की पुस्तक ‘आसार-उस-सनादीद’ का ही हवाला दिया है।
एक अन्य लेखक संजय दीक्षित के मुताबिक, “मंदिरों के विध्वंस का एक शुरुआती उदाहरण है अजमेर की मस्जिद अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, जिसे पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद सरस्वती मंदिर और संस्कृत विद्यापीठ को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया।”
जैन मुनि सुनील सागर का कथन
जैन मुनि सुनील सागर ने जैन संतों तथा अपने अनुयायियों के साथ साल 2024 के मई महीने में स्मारक का निरीक्षण किया, हांलाकि मस्जिद के मुख्य भाग में जाने से परहेज किया। स्मारक भम्रण के पश्चात जैन मुनि सुनील सागर ने कहा कि “मैंने अढ़ाई दिन का झोपड़ा देखा और पाया कि यह केवल एक झुग्गी नहीं बल्कि एक महल है। मैंने रामायण और महाभारत के कई प्रतीकों को देखा। मुझे हिंदू धर्म की कुछ टूटी हुई मूर्तियां भी मिलीं, फिर भी विडंबना यह है कि इसे मस्जिद कहा जाता है।”
अजमेर संग्रहालय में संग्रहित हैं मस्जिद (अढ़ाई दिन का झोंपड़ा) के शिलालेख
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 1875-76 में अपने सर्वे के दौरान मस्जिद परिसर से कई शिलालेख और मूर्तियां बरामद किए। अजमेर संग्रहालय में प्रदर्शित इन महत्वपूर्ण साक्ष्यों को आप आसानी से देख सकते हैं। मस्जिद परिसर से बरामद शिलालेखों और मूर्तियों से कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है जो निम्नलिखित हैं-
— मस्जिद परिसर से प्राप्त एक शिलालेख में चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ के दरबारी कवि सोमदेव द्वारा लिखित पुस्तक ‘ललिता-विग्रहराज’ के कुछ अंश हैं। पुस्तक ललिता-विग्रहराज में सोमदेव ने विग्रहराज चतुर्थ और इन्द्रपुरी की राजकुमारी देसल देवी के बीच हुए प्रेम सम्बन्धों का उल्लेख किया है।
— एक शिलालेख में विग्रहराज चतुर्थ द्वारा रचित ‘हरकेलि’ नाटक के अंश हैं। जिसे भगवान शिव के सम्मान में लिखा गया है। यह नाटक भारवि के संस्कृत नाटक ‘किरातार्जुनीयम्’ से प्रेरित है।
— एक शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि ‘हरकेलि’ नाटक 1153 ई. में लिखा गया था।
— एक अन्य शिलालेख पर संस्कृत में लिखी एक कविता उत्कीर्ण है, जिसमें हिन्दू देवताओं की स्तुति की गई है। इस कविता में वर्णित अंतिम देवता सूर्य हैं। इस कविता में यह भी लिखा गया है कि चौहान वंश सूर्य से उत्पन्न हुआ है।
— एक अन्य शिलालेख में अजमेर के चौहान राजाओं की प्रशस्ति के अंश हैं।
— अजमेर संग्रहालय के अतिरिक्त पुरातत्व विभाग के द्वारा मस्जिद परिसर के बरामदे में भी बड़ी संख्या मंदिरों की जीर्ण -शीर्ण मूर्तियां रखी हुई हैं।
मस्जिद (अढ़ाई दिन का झोंपड़ा) का पूर्व इतिहास
मस्जिद परिसर से प्राप्त शिलालेखों से यह जानकारी मिलती है कि मस्जिद से पूर्व यहां संस्कृत विद्यापीठ था, जिसका निर्माण 1153 ई. में अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ ने करवाया था। विग्रहराज चतुर्थ न केवल एक विजेता था अपितु विद्वान भी था। विग्रहराज चतुर्थ ने संस्कृत भाषा में ‘हरकेलि’ नामक नाटक की रचना की। इस संस्कृत विद्यापीठ के स्तम्भों में विग्रहराज चतुर्थ ने ‘हरकेलि’ नाटक की पंक्तियों को उत्कीर्ण करवाया।
विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित संस्कृत विद्यापीठ की मूल इमारत चौकोर थी, जिसके प्रत्येक कोने पर मीनार और छतरी (गुंबद के आकार का मंडप) थी। संस्कृत विद्यापीठ के पश्चिमी हिस्से में देवी सरस्वती का एक मंदिर विद्यमान था। जबकि जैन मतावलम्बियों के अनुसार, पूर्व में यह जैन मंदिर था जिसका निर्माण 6वीं सदी में सेठ वीरमदेव काला के द्वारा पंच कल्याणक पर्व मनाने के लिए किया गया था।
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