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Madhya Pradesh/ Dhar's Bhojshala is the Saraswati temple or Kamal Maula Mosque

धार का भोजशाला ही सरस्वती मंदिर है, जानिए क्या हैं इसके पुख्ता सबूत?

मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित धार जिला (भोपाल से क़रीब 260 किमी. दूर) इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यहां मौजूद 11वीं सदी की एक ऐतिहासिक इमारत भोजशाला को जहां हिन्दू पक्ष सरस्वती देवी का मंदिर मानते हैं वहीं मुस्लिम पक्ष इस परिसर को कमाल मौला मस्जिद बताते हैं। इस स्टोरी में हम परमार वंश के महत्वपूर्ण शासक भोज तथा उसकी राजधानी धार स्थित भोजशाला के ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे।

परमार वंश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक भोज ने 1010 ईस्वी से 1060 ई. तक शासन किया। भोज के शासन काल में राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही ​दृष्टियों से परमार राज्य की अभूतपूर्व उन्नति हुई। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह अपने युग का पराक्रमी नरेश था। उसके उत्कर्ष काल में उत्तर तथा दक्षिण की सभी शक्तियों ने उसका लोहा माना था। उसने परमार सत्ता को चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया। उदयपुर लेख में भोज की प्रशंसा करते हुए कहा गया है- आकैलासान्मलयगिरितोअस्तोदयाद्रिद्वयादाभुक्ता पृथ्वी पृथुनरपतेस्तुल्यरूपेण येन।

उन्मूल्योर्व्वीभरगुरू गणालीलया चापयज्या, क्षिप्तादिक्षु क्षितिरपि परां प्रीतिमापादिता चा।।1

अर्थ पृथु की तुलना करने वाले भोज ने कैलाश से मलय पर्वत तक तथा उदयाचल से अस्ताचल तक की समस्त पृथ्वी पर शासन किया। उसने अपने धनुष-बाण से पृथ्वी के समस्त राजाओं को उखाड़ कर उन्हें विभिन्न दिशाओं में बिखेर दिया तथा पृथ्वी का परम प्रीतिदाता बन गया।

भारतीय इतिहास में भोज की ख्याति उसकी विद्वता तथा विद्या एवं कला के उदार संरक्षक के रूप में अधिक है। उदयपुर लेख में कहा गया हैसाधितं विहितं दत्तं ज्ञातं तद्ययन्न केनचित्। किमन्यत्कविराजस्य श्रीभोजस्यप्रशस्यते।।2   

अर्थ उसने सब कुछ साधा, सम्पन्न किया, दिया और जाना, जो अन्य किसी के द्वारा सम्भव नहीं था। इससे अधिक कविराज भोज की प्रशंसा क्या हो सकती है।

भोज की राजधानी धार विद्या तथा विद्वानों का प्रमुख केन्द्र थी। उसके दरबारी ​कवियों तथा विद्वानों में भास्करभट्ट, दामोदरमिश्र, धनपाल ​आदि प्रमुख थे। भोज स्वयं विद्वान था, उसकी उपाधि कविराज की थी। उसने ज्योतिष, काव्य शास्त्र, वास्तु आदि विषयों पर महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की,  इनमें प्राकृत व्याकरण, श्रृंगार प्रकाश, श्रृंगार मंजरी, भोजचम्पू, कूर्मशतक, तत्वप्रकाश, कृत्यकल्पतरू, शब्दानुशासन तथा राजमृगांक आदि रचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।  

भोज इतना दानी था कि उसके नाम से अनुश्रुति चल पड़ी थी कि वह हर कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख मुद्राएं प्रदान करता था। उसकी मृत्यु पर पंडितों को महान दुख हुआ था, तभी तो उदयपुर प्रशस्ति के एक प्रसिद्ध लेख के अनुसार, “अद्यधारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती। पण्डिता खण्डिता सर्वे भोजराजे दिवंगते।।”3 अर्थात् उसकी मृत्यु से विद्या और विद्वान दोनों ही निराश्रित हो गए।

भोजशाला स्थित सरस्वती मंदिर के साक्ष्य

संस्कृति एवं पुरात्व विशेषज्ञ तथा प्रख्यात इतिहासकार के. सी. श्रीवास्तव के मुताबिक, परमार वंश के शासक भोज ने अपनी राजधानी धार नगर में स्थापित किया तथा उसे विविध प्रकार से अलंकृत करवाया। यह विद्या तथा कला का सुप्रसिद्ध केन्द्र बन गया। यहां अनेक महल एवं मंदिर बनवाए गए जिनमें सरस्वती मंदिर सर्वप्रमुख था।”4

शासक भोज ने धार के सरस्वती मंदिर में एक प्रसिद्ध सं​स्कृत महाविद्यालय की स्थापना करवायी। जहां दूरदराज के विद्यार्थी संगीत, संस्कृत, ज्योतिष, योगा, आयुर्वेद और दर्शनशास्त्र की शिक्षा लेने के लिए आते थे। धार का यह संस्कृत महाविद्यालय कालान्तर में भोजशाला के नाम से जाना जाने लगा।

धार के सरस्वती मंदिर का उल्लेख राजगुरु मदन के नाटक कोकरपुरमंजरी में भी मिलता है। इसका प्रमाण यह है कि के.के. लेले द्वारा पाए गए शिलालेख से पता चलता है कि शिलालेख पर उत्कीर्ण नाटिका कोकरपुरमंजरीका प्रदर्शन राजा अर्जुनवर्मन (1210-1215 ई.) के सामने एक सरस्वती मंदिर में किया गया था।

ऐतिहासिक इमारत भोजशाला वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित एक राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं उसके मु​ताबिक मुस्लिम शुक्रवार को प्रार्थना कर सकते हैं, जबकि हिंदू मंगलवार को पूजा-अर्चना तथा देवी सरस्वती के त्यौहार यानी वसंत पंचमी पर प्रार्थना कर सकते हैं।5

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां चिश्ती संत कमाल अल दीन का मज़ार है। उनका मकबरा कमाल मौला मस्जिद के पास है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसे भोजशाला या सरस्वती मंदिर के हिस्सों से बनाया गया है। मस्जिद में एक बड़ा खुला प्रांगण है, जिसके मध्य में यज्ञशाला तथा चारों ओर स्तंभों से सज्जित एक बरामदा एवं पीछे पश्चिम में एक प्रार्थना गृह स्थित है।6  प्रार्थना गृह का आंतरिक भाग विभिन्न प्रकार के स्तंभों और 1400 के दशक में जोड़े गए मीनार को दर्शाता है।

2012 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में प्रकाशित माइकल विलिस के रिसर्च पेपर ' धार, भोज एंड सरस्वती : फ्रॉम इंडोलॉजी टू पॉलिटिकल माइथोलॉजी एंड बैक' के मुताबिक, इस इमारत को बनाने में कई तरह के खम्भों का इस्तेमाल किया गया। यहां फ़र्श पर खुदी पट्टियों और दीवारों पर उकेरी चीजें अब भी देखी जा सकती हैं। ये दिखाता है कि इस इमारत के लिए इस्तेमाल की गई सामग्रियां एक बड़े क्षेत्र के पुराने स्थलों से जमा की गई थीं।"7

साल 1875 ई. में इस जगह खुदाई की गई, इस दौरान यहां एक सरस्वती प्रतिमा निकली। इसके बाद 1880 ई. में भोपाल का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इस प्रतिमा को अपने साथ लंदन ले गया। यह सरस्वती प्रतिमा आज भी लंदन के संग्रहालय में मौजूद है। इस प्रतिमा के नीचे उत्कीर्ण लेख के मुताबिक, सरस्वती माता की यह प्रतिमा राजा भोज की नगरी धार में हिरसुत मनथल (मणथल) ने बनाई थी। शिवदेव ने इस लेख को 1034 ई. में उत्कीर्ण किया था।

इसके अतिरिक्त इतिहासकार ओ.सी. गांगुली और के.एन. दीक्षित ने साल 1924 में ब्रिटिश संग्रहालय में रखी प्रतिमा के बारे में एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उल्लेखित है कि यह धार से राजा भोज की सरस्वती प्रतिमा है।8

1903 में धार रियासत के शिक्षा अधीक्षक के.के लेले ने कमाल मौला मस्जिद में दीवारों और फर्श पर उत्कीर्ण कई संस्कृत और प्राकृत शिलालेखों की जानकारी दी। एक प्राकृत शिलालेख में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की प्रशंसा की गई थी। कूमशर्तक रचने का श्रेय राजा भोज को ही दिया जाता है। यह प्राकृ​त शिलालेख बारहवीं या तेरवहीं शताब्दी का है।9

बीबीसी न्यूज के हिन्दी संस्करण के मुताबिक, हिंदू फ़्रंट फ़ॉर जस्टिस ने अदालत में अपनी दलील में कहा, "कमाल मौला मस्जिद का निर्माण पूर्व में स्थित भोजशाला मंदिर पर 13वीं-14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान 'मंदिर के प्राचीन ढांचों' को गिराकर किया गया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1401 ईस्वी में तत्कालीन गर्वनर दिलवार खान ने भोजशाला के एक हिस्से में और 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवा दी।10

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सन्दर्भ ग्रन्थ

  1. उदयपुर प्रशस्ति से उद्धृत
  2. उदयपुर प्रशस्ति से उद्धृत
  3. उदयपुर प्रशस्ति से उद्धृत
  4. डॉ. के.सी.श्रीवास्तव, प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, इलाहाबाद, 2011, पृष्ठ संख्या-599
  5. विकिपीडिया-भोजशाला से संग्रहित
  6. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट
  7. माइकल विलिस, रिसर्च पेपर ' धार, भोज एंड सरस्वती: फ्रॉम इंडोलॉजी टू पॉलिटिकल माइथोलॉजी एंड बैक', रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, 2012
  8. O.C. Gangoly and K. N. Dikshit (January 1924). ""An Image of Saraswati in the British Museum"". Rūpam 17. 17: 1–2.
  9. R. Pischel, Epigraphia Indica 8 (1905-06)
  10. बीबीसी न्यूज के हिन्दी संस्करण से उद्धृत, 17 मार्च, 2024