दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने अपने भाई जौना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में जौनपुर नगर की स्थापना की, जो कालान्तर में शर्की साम्राज्य की राजधानी बनी। शर्की शासन के अधीन यहां हुई सांस्कृतिक उन्नति के कारण जौनपुर को 'शिराज-ए-हिंद' अथवा 'पूर्व का शिराज' कहा जाता था।
जौनपुर के शाही किले से महज 300 मीटर की दूरी पर स्थित अटाला मस्जिद इन दिनों चर्चा का केन्द्र बिन्दु बनी हुई है। बता दें कि हिन्दू पक्ष ‘स्वराज वाहिनी’ की ओर से दाखिल की गई याचिका में अटाला मस्जिद को अटाला देवी का मंदिर बताया गया है।
जब से सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी और मथुरा की तर्ज पर मुकदमा चलाने का आदेश दिया है, तभी से अटाला मस्जिद जौनपुर का मुद्दा एक बार फिर से जोर पकड़ चुका है। इस स्टोरी में हम उन तथ्यों पर रोशनी डालने की कोशिश करेंगे जिसके आधार पर जौनपुर की अटाला मस्जिद को हिन्दू पक्ष अटाला देवी का मंदिर बता रहा है।
अटाला मस्जिद, जौनपुर की वर्तमान स्थिति
उत्तर प्रदेश में बनारस के उत्तर-पश्चिम में 34 मील की दूरी पर स्थित जौनपुर नगर के शाही किले से 300 मीटर की दूरी पर मौजूद अटाला मस्जिद 1408 ई.में इब्राहिम शाह शर्की के शासनकाल में बनकर तैयार हुई।
जौनपुर शहर से 2.2 किमी. उत्तरपूर्व तथा हुसैन शाह शर्की द्वारा निर्मित जामी मस्जिद से एक किमी. की दूरी पर स्थित अटाला मस्जिद का मूल स्केच विलियम होजेस ने जौनपुर भम्रण के दौरान बनाया था जो उसकी किताब ‘सेलेक्टेड व्यूज़ इन इंडिया’ (1780 में प्रकाशित) में सर्वप्रथम शामिल किया गया।
वर्तमान में यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। अटाला मस्जिद में तीन विशाल प्रवेश द्वार हैं। अटाला मस्जिद में 42 फ़ुट चौड़े तीन विशाल उपासना कक्ष हैं, जो 5 गलियारों में विभाजित हैं। ये तीनों उपासना कक्ष 2 मंजिल तक ऊंचे हैं।
मस्जिद की मीनार इतनी ऊँची (तकरीबन 23 मीटर) है कि इसे सामने नहीं देखा जा सकता है। 248 फ़ीट की परिधि वाली अटाला मस्जिद की ऊँचाई 100 फ़ीट से ज़्यादा है। मस्जिद का केन्द्रीय गुम्बद गुंबद अंदर से 57 फ़ुट ऊंचा है। जौनपुर की प्रसिद्ध अटाला मस्जिद हर तरफ से 78.5 वर्ग मीटर एरिया कवर करती है।
अटाला देवी मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्य
जौनपुर के तत्कालीन जिला कमिश्नर नेविल ने 1908 के राजपत्र में लिखा है कि “दिल्ली के सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक के भाई इब्राहिम नाइब बारबक ने अटाला देवी मंदिर को नष्ट किया था। इस सम्बन्ध में प्रख्यात इतिहासकार आर. सी. मजूमदार ने लिखा है कि “फिरोजशाह तुगलक इस युग का सबसे महान धर्मान्ध सुल्तान था और इस क्षेत्र में सिकन्दर लोदी तथा औरंगजेब का अग्रणी था। फिरोजशाह ने कई हिन्दू मंदिरों को नष्ट करवाया था ताकि वह महमूद गजनवी की भांति ‘मूर्तिभंजक’ कहलाने का यश प्राप्त कर सके।”
जौनपुर की अटाला मस्जिद के बारे में हिन्दू पक्ष का कहना है कि सर्वमनोकामना पूर्ण करने वाली मां अटाला देवी के भव्य मंदिर का निर्माण कन्नौज के राजा विजयचन्द्र ने करवाया था। परन्तु फिरोजशाह तुगलक के भाई इब्राहिम नाइब बारबक ने 1364 ई. में अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर 1378 ई. में अटाला मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू करवाया, जो 1408 ई. में इब्राहिम शाह शर्की के शासनकाल में बनकर पूर्ण हुई। इस प्रकार अटाला देवी मंदिर की शिलाओं को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया।
इतिहासकार डॉ. फणीन्द्रनाथ ओझा की किताब ‘मध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति’ के एक अध्याय ‘हिंदू-इस्लामी वास्तुकला का विकास’ में पृष्ठ संख्या-93 पर लिखा है कि “जौनपुर की अटाला मस्जिद शर्की वास्तुकला का सर्वाधिक सुन्दर नमूना है, जिस जगह पर उसका निर्माण हुआ है, वहां पहले अटाला देवी का मंदिर था। अटाला मस्जिद का निर्माण उसी मंदिर की सामग्री से हुआ है।”
शीला ए. ब्लेयर और जोनाथन एम ब्लूम की किताब ‘द आर्ट एण्ड आर्किटेक्चर आफ इस्लाम: 1250-1800’ की पृष्ठ संख्या 198-199 पर उल्लेखित है कि “अटाला मस्जिद को इब्राहिम शाह शर्की ने अटाला माता को समर्पित हिन्दू मंदिर को तोड़कर उसी की नींव पर बनवाया था। अटाला मस्जिद उस समय की शेष मस्जिदों से बिल्कुल अलग है।”
इतिहासकार सैय्यद अतहर अब्बास रिजवी ने ‘The Wonder That Was India Volume -2’ में अटाला मस्जिद के बारे में यह लिखा है कि, “इस मस्जिद का निर्माणकार्य इब्राहिम शाह शर्की ने पूरा करवाया था। अटाला मस्जिद को अटाला देवी के मंदिर की जगह पर बनवाया गया था, जिसे फिरोजशाह तुगलक ने 1376 ई. में तुड़वाया था। अटाला मस्जिद में हिन्दू मंदिरों के स्तम्भों, छतों तथा अन्य सामाग्रियों का इस्तेमाल किया गया।”
ब्रिटिश इतिहासकार पर्सी ब्राउन के अनुसार, “जौनपुर की अटाला मस्जिद अटाला देवी के हिन्दू मंदिर के स्थान पर बनी थी, इसके निर्माण में इस मंदिर की सामग्री के साथ ही स्थानीय मंदिरों की सामग्री का इस्तेमाल किया गया था।”
वहीं त्रिपुरारी भास्कर की किताब ‘जौनपुर का इतिहास’ के मुताबिक, “सनातनी पक्ष का मानना है कि अटाला मस्जिद की जगह अटाला देवी का मंदिर था क्योंकि आज भी सिपाह मोहल्ले में गोमती नदी के किनारे अटाला देवी का विशाल घाट मौजूद है।”
हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के मुताबिक, तथाकथित अटाला मस्जिद की वास्तुकला पूरी तरह से हिन्दू मंदिर की तरह से है। मस्जिद की भीतरी दीवारों से लेकर आंतरिक स्तम्भों में हिन्दू वास्तुकला स्पष्ट दिखाई देती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की कई रिपोर्टों में अटाला मस्जिद के सौंपे गए चित्र में त्रिशूल, कमल तथा गुड़हल आदि के फूल मिले हैं। एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की 1865 में प्रकाशित जर्नल (पत्रिका) में अटाला मस्जिद में कलश की आकृतियों का होना वर्णित किया गया है। यहां तक कि कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के तत्कालीन प्रिसिंपल ई.बी. हैवेल के मुताबिक, अटाला मस्जिद की वास्तुकला (प्रकृति व चरित्र) पूर्णतया हिन्दू है।
अटाला मस्जिद के पक्ष में कुछ अन्य इतिहासकारों का मत
देश की जानीमानी इतिहासकार रोमिला थापर यह मानने से इनकार करती हैं कि अटाला मंदिर मूलत: मंदिर के अवशेषों पर बनी हैं। वह अपनी किताब ‘इतिहास की पुनर्व्याख्या’ में लिखती हैं कि ‘अटाला मस्जिद के शिलालेख से यह पता चलता है कि इस इमारत को हिन्दू कारीगरों ने मुसलमानों के साथ मिलकर बनाया था’।
कुछ इसी तरह से डॉ.ब्रजेश कुमार यदुवंशी का कहना है कि, “अटाला मस्जिद के पत्थरों पर उत्कीर्ण बेलबूटों को देखकर लोग भ्रम में पड़ जाते हैं। इसी भ्रम के आधार पर लोग कहते हैं कि कभी यहां मंदिर रहा होगा।” डॉ. यदुवंशी बतौर उदाहरण यह कहते हैं जौनपुर के शाहीपुल पर हाथी के ऊपर शेर वाली मूर्ति बौद्धकाल की गाथा को प्रदर्शित करती हैं जबकि इस शाहीपुल का निर्माण अकबर के शासनकाल में मुनइन खानखाना ने 1564 में करवाया था।
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