बक्सर युद्ध के पश्चात अंग्रेज न केवल उत्तरी भारत बल्कि समस्त भारत पर दावा करने लगे थे। बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को एक साथ हराया था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मुगलों की तरफ से एक नागा कमांडर ने भी अपने संन्यासी योद्धाओं के साथ इस युद्ध में हिस्सा लिया था। अब आप सोच रहे होंगे कि इस नागा संन्यासी कमांडर का नाम क्या था, उसकी सेना में कितने नागा संन्यासी योद्धा थे और नागा संन्यासी योद्धाओं के पास कौन-कौन से हथियार थे? इन सब प्रश्नों की जानकारी के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
बक्सर युद्ध के कारण
प्लासी युद्ध के पश्चात बंगाल अंग्रेजों के अधीन हो गया और फिर देश की आजादी के बाद ही स्वतंत्र हो सका। अंग्रेजों ने कठपुतली नवाब मीरजाफर के जरिए बंगाल में खूब लूटपाट मचाई। मीरजाफर जब अंग्रेजों की डिमांड पूरी करने में असमर्थ साबित होने लगा तब अंग्रेजों ने मीरजाफर के दामाद मीरकासिम को बंगाल का नया नवाब बनाया।
परन्तु मीरकासिम अपने ससुर मीरजाफर से ज्यादा योग्य और कुशल था। उसके पास प्रशासनिक अनुभव भी था, उसने इस बात को बहुत जल्दी ही समझ लिया कि बंगाल की स्थिति सुधारने के लिए उसे अंग्रेजों के चंगुल मक्ति पानी ही होगी।
इसके लिए नवाब मीरकासिम ने सबसे पहले विद्रोही जमींदारों का दमन किया, भ्रष्ट कर्मचारियों से राजकीय धन वसूले, अतिरिक्त कर लगाए तथा अपनी सेना को यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित किया। इतना ही नहीं, अंग्रेजी हस्तक्षेप से बचने के लिए अपनी राजधानी हटाकर मुंगेर ले गया। मुंगेर में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के साथ ही वहां बन्दूक और तोप बनाने का कारखाना खोला गया। नवाब मीरकासिम के इन कार्यों से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी आशंकित हो उठी।
ऐसे में कम्पनी अब मीरकासिम को बंगाल की गद्दी से हटाने के लिए दोबारा षड्यंत्र रचने लगी। इस कार्रवाई से कुपित होकर मीरकासिम ने अंग्रेजों का ध्यान भटकाने के लिए देशी व्यापारियों को नि:शुल्क व्यापार करने का अधिकार प्रदान कर दिया। अत: अंग्रेज व्यापारी और भारतीय व्यापारी एक ही पलड़े पर आ गए।
हांलाकि मीरकासिम यह कदम न्यायपूर्ण था परन्तु धन कमाने का मौका हाथ से जाते देख अंग्रेजों ने मीरकासिम पर सैनिक कार्रवाई करने की योजना बनाई। इस योजना के तहत 25 मई 1763 ई. को अंग्रेजों का प्रतिनिधि ऐमायट मुंगेर पहुंचा और उसने मीरकासिम के समक्ष ग्यारह सूत्री मांगें प्रस्तुत की, जिसे नवाब ने ठुकरा दिया। फिर क्या था, कलकत्ता कौंसिल के आदेश पर अंग्रेज एजेंट एलिस ने 24 जून 1763 को पटना पर अधिकार कर लिया।
जब मीरकासिम को इसकी जानकारी मिली तो उसने पटना पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में कई अंग्रेज मारे गए तथा अंग्रेजी एजेंट एलिस सहित 184 अंग्रेजों को कैदी बना लिया गया। इस घटना के बाद मेजर एडम्स की अगुवाई में अंग्रेजी सेना ने मुर्शिदाबाद की तरफ कूच किया। मीरकासिम भी मुंगेर से चला।
अंग्रेजों ने मार्ग में कटवा, गिरिया तथा सुती में नवाब मीरकासिम की सेना को परास्त किया। मीरकासिम अब मुंगेर से पटना पहुंचा और पराजय के क्रोधावेश में उसने पटना में कैद 184 अंग्रेज कैदियों की हत्या करवा दी। मशहूर ‘पटना हत्याकाण्ड’ में अंग्रेज कैदियों के साथ एलिस भी मारा गया। बावजूद इसके अंग्रेजी सेना के आक्रामक रूख को देखते हुए मीरकासिम पटना से भागकर अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास पहुंचा।
बक्सर का युद्ध (22 अक्टूर 1764 ई.)
अवध पहुंचने के बाद बंगाल के नवाब मीरकासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल बादशाह शाहआलम के साथ मिलकर अंग्रेजों को बंगाल से बाहर निकालने की योजना बनाई। इन तीनों शक्तियों की सम्मिलित सेना में 40 से 50 हजार के बीच सैनिक थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना में महज सात हजार सत्ताईस सैनिक थे, जिसकी कमान मेजर हेक्टर मुनरो के हाथ में थी।
बंगाल के नवाब मीरकासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाहआलम की सम्मिलित सेना बिहार की तरफ बढ़ी। बक्सर नामक स्थान पर 22 अक्टूबर 1764 ई. को एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें छोटी सी अंग्रेज सेना के सामने सम्मिलित सेना को हार का सामना करना पड़ा। बक्सर के युद्ध में 847 सैनिक अंग्रेजों के तथा सम्मिलित सेना के 2000 सैनिक घायल हुए तथा मारे गए।
बक्सर युद्ध में नागा कमांडर अनूपगिरी की एन्ट्री
मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय ने बक्सर के युद्ध में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई थी। इस युद्ध में मुगलों की तरफ से नागा कमांडर अनूपगिरी गोसाई अपने नागा सैनिकों के साथ लड़े थे। इतिहासकार विलियम आर पिंच की किताब ‘वॉरियर एसेटिक्स एंड इंडियन एम्पायर्स’ के मुताबिक, “शिव भक्त अनूपगिरी गोसाई एक नागा योद्धा संन्यासी थे। नागा कमांडर अनूपगिरी और उनके भाई उमराव गिरी के नेतृत्व में तकरीबन 20 हजार पैदल और घुड़सवार नागा योद्धा सन्यासी थे जो तोप व राकेटों से लैश थे।”
नागा योद्धा संन्यासी अचानक धावा बोलने और बिल्कुल पास आकर लड़ने के लिए विख्यात थे। प्रख्यात इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल लिखते हैं कि “नागा कमांडर अनूपगिरी गोसाई को मुगलों ने ‘हिम्मत बहादुर’ का खिताब दे रखा था।” यद्यपि नागा कमांडर अनूपगिरी गोसाई को व्यवसायी फैजी कहना ज्यादा उचित होगा जिसकी सेना में भाड़े के सैनिक होते थे।
विलियम डैलरिम्पल के मुताबिक, “बक्सर के युद्ध में जब अनूपगिरी गोसाई बुरी तरह घायल हो गए तब उन्होंने अवध के नवाब शुजाउद्दौला को मैदान से भागने के लिए राजी कर लिया। नागा कमांडर अनूपगिरी ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कहा कि ‘यह बिना किसी फायदे के मौत के मुंह जाने का मौका नहीं है, हम अगली बार आसानी से जीत जाएंगे’।
इस प्रकार जो लोग अनूपगिरी गोसाई के बारे में कहा करते थे कि उन्होंने मृत्यु को जीत लिया है, बक्सर के युद्ध से भागकर अपनी जान बचाई और बंगाल-बिहार पर अंग्रेजी हुकूमत पक्की कर दी। बक्सर युद्ध के पश्चात अंग्रेजी सेना बंगाल और बिहार को रौंदते हुए गंगा नदी पारकर बनारस तथा इलाहाबाद तक पहुंच गईं। अब अंग्रेजी सेना उत्तरी भारत में सर्वश्रेष्ठ शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हो गई।
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