भारत ही नहीं वरन संसार के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक वाराणसी को काशी अथवा बनारस भी कहते हैं। भगवान शिव की नगरी, मंदिरों के शहर तथा देश की धार्मिक राजधानी कहे जाने शहर बनारस में हमेशा पर्यटकों का तांता लगा रहता है। ऐसे में यदि आप भी बनारस घूमने का मन बना रहे हैं तो वहां का टमाटर चाट, कचौरी-जलेबी, हींग कचौड़ी, गोलगप्पे, बाटी-चोखा, आलू टिक्की चाट, लस्सी और बनारसी पान का स्वाद जरूर लीजिएगा।
परन्तु ध्यान रहे, इन सभी लजीज व्यंजनों से परे बनारस की एक खास मिठाई है, जो दुनिया के किसी शहर में नहीं बल्कि सिर्फ बनारस में ही मिलती है। जी हां, मैं अति स्वादिष्ट मिठाई मलइयो की बात कर रहा हूं। ऐसे में ओंस की बूदों में तैयार इलायची, केसर, पिस्ता और बादाम से तैयार मलइयो का स्वाद लेना कभी मत भूलिएगा।
सबसे खास बात यह है कि बनारस की सबसे यूनिक मिठाई मलइयो का स्वाद केवल आप जाड़े के दिनों में यानि नवम्बर से फरवरी महीने के मध्य ही उठा सकते हैं। इस प्रकार सिर्फ बनारस में बनने वाली दुनिया की इकलौती मिठाई मलइयो से जुड़ा रोचक इतिहास जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
मलइयो का जन्मदाता है बनारस
बनारस की खास मिठाई मलइयो का कोई सटीक इतिहास नहीं मिलता परन्तु ऐसा माना जाता है कि मलइयो की शुरूआत सैकड़ों वर्ष पूर्व बनारस के पक्के महाल में चौखंभा से हुई थी। जाड़े के दिनों में मलइयो का खास आनन्द लेने के लिए पुराने बनारस के ठठेरी बाजार भी जा सकते हैं।
इसके अतिरिक्त चौक, मैदागिन, गोदौलिया, अस्सी, लंका, दश्वामेध व गिरजाघर चौराहे स्थित दुकानों पर जाकर आप स्वादिष्ट मलइयो का लुत्फ उठा सकते हैं। बनारस की खास मिठाई मलइयो सिर्फ नवम्बर से फरवरी महीने में ही तैयार की जाती है, इसलिए आप शरद ऋतु में ही इस खास मिठाई का आनन्द ले सकते हैं, वो भी सिर्फ बनारस में।
स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है मलइयो
खुले आसमान में ओंस के नीचे कच्चे दूध को उबालकर रातभर के लिए रखा जाता है। इसके बाद दूध को काफी देर तक मथने के बाद निकले झाग में केसर, पिस्ता, बादाम, इलायची, चीनी और मेवा मिलाकर मलइयो तैयार किया जाता है। कहते हैं जाड़े की ठिठुरती ठंड में मलइयो गुनगनाती धूप का आनन्द देती है।
आयुर्वेद के अनुसार, बनारस की विशेष मिठाई मलाइयो स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक मानी जाती है। जहां ड्राई फ्रूटस और केसर से त्वचा की सुन्दरता बढ़ती है वहीं दूध में मिली ओंस की बूदें आंखों की रोशनी के लिए अमृत का काम करती हैं।
बनारस में कब उपलब्ध होती है मलइयो
बनारस की अनोखी मिठाई मलइयो केवल शरद ऋतु में ही उपलब्ध होती है, विशेषकर नवम्बर से फरवरी महीने तक। मलइयो बेचने वाले बनारस के हलवाईयों का कहना है कि पिछले चार दशकों से केवल मलइयो के लिए विदेशी मेहमान जाड़े के दिनों में बनारस आते हैं।
पारम्परिक रूप से सील-लोढ़े और मथनी से तैयार की जाने वाली मलइयो को लोग अब मशीन से भी तैयार करने लगे हैं, यही वजह है कि मलइयो को अब शादी अथवा अन्य समारोहों में भी पेश किया जाने लगा है।
चूंकि मलइयो में मुख्य रूप से दूध का झाग ही होता है, जिसे लोग अब मशीन से भी तैयार करने लगे हैं। ध्यान रहे, इस झाग को दिनभर बनाए रखने के लिए रसिपी में ट्रांसफैट मिलाया जाने लगा है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेय होता है।
अत: कोशिश करें कि जाड़े के दिनों में तैयार होने वाली मलइयो का सेवन 11 बजे से पहले ही करें क्योंकि जैसे ही तापमान बढ़ता है, पारम्परिक रूप से तैयार मलइयो का झाग स्वत: ही गायब होने लगता है।
बनारस में मलइयो की कीमत 300 से 400 रुपए प्रति किलो है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के छोटे, मीडियम और बड़े साइज के कुल्हड़ों में मिलने वाली मलइयो की कीमत 15 रुपए से लेकर 30 रुपए तक है।
आखिर कैसे तैयार की जाती है मलइयो
विशेष मिठाई मलइयो बनारस की समृद्ध संस्कृति का एक हिस्सा है जो दुनिया के किसी अन्य शहर में नहीं अपितु केवल इसी शहर मिलती है। मलइयो का आनन्द सिर्फ ठंड के ही दिनों में ले सकते हैं, इसीलिए इस स्वादिष्ट डिश को बनारस का ‘विन्टर स्वीट’ कहा जाता है।
बनारस की पहचान मलइयो मुंह में जाते ही घुल जाती है। ठंड के दिनों में मलइयो का झाग जब खत्म होता है तब आप केसर और पिस्ता, बादाम युक्त दूध का आनन्द लेते हैं। आइए, अब हम आपको बताते हैं कि बनारस की मलइयो को पारम्परिक रूप से कैसे तैयार किया जाता है।
सबसे पहले लोहे की कड़ाही में कच्चे दूध को उबाला जाता है। इस उबले हुए दूध को खुले आसमान में रातभर के लिए रख दिया जाता है ताकि ठंड के दिनों में पड़ने वाली ओंस की बूंदें इसमें समाहित हो सके। तत्पश्चात अलसुबह ही इस दूध को मथनी से काफी देर तक मथा जाता है।
इस दूध को काफी देर तक मथने के बाद जो झाग निकलता है उसमें सील- लोढ़े से पीसे हुए केसर, पिस्ता, बादाम, इलायची और चीनी को मिलाया जाता है। अब इस तैयार मलइयो को मिट्टी के कुल्हड़ में सजाकर सर्व किया जाता है। बता दें कि ओंस की बूंदों से तैयार मलाइयो का झाग घंटों तक बना रहता है। इस पूरी प्रकिया में काफी वक्त लगता है, हांलाकि मलइयो को कुछ लोग अब मशीन से भी तैयार करने लगे हैं परन्तु देशी नुस्खे से तैयार मलइयो की बात ही कुछ और है।
इसे भी पढ़ें : हिन्दू धर्म के नस-नस में समाहित है पान, पढ़ें पूरा इतिहास
इसे भी पढ़ें : क्या सच में मुगल बादशाह शाहजहां की रसोई से जन्मा है आगरा का पेठा?