लोदी वंश का श्रेष्ठ शासक — बहलोल लोदी की मृत्यु के पश्चात उसका तीसरा पुत्र निजाम ख़ां 17 जुलाई, 1489 को ‘सिकन्दर शाह लोदी’ की उपाधि के साथ दिल्ली के सिंहासन पर आसीन हुआ। जबकि सिकन्दर लोदी का बड़ा भाई बारबकशाह जौनपुर का राज्यपाल था। सिकन्दर लोदी की मां जैबन्द एक सुनार की पुत्री थी इसलिए राजनीतिक लाभ के लिए उसने धार्मिक असहिष्णुता का सहारा लिया।
सिकन्दर लोदी सुडौल तथा शक्तिशाली था अत: अपने व्यक्तित्व को सुन्दर बनाए रखने के लिए वह कभी दाढ़ी नहीं रखता था। राज्य विस्तार तथा सुल्तान की शक्ति-प्रतिष्ठा की स्थापना की दृष्टि से सिकन्दर लोदी अपने पिता बहलोल लोदी तथा अपने पुत्र इब्राहीम लोदी से श्रेष्ठ साबित हुआ।
सिकन्दर लोदी स्वयं शिक्षित तथा विद्वान था। वह फारसी भाषा का ज्ञाता था, उसने 9000 फ़ारसी कविताओं का दीवान लिखा था। वह ‘गुलरूखी’ उपनाम से फारसी में कविताएं भी लिखता था। रात्रि के समय तकरीबन 70 विद्वान उसके पलंग के पास बैठकर विभिन्न प्रकार की चर्चाएं करते थे। उसने संस्कृत के कई ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाया। मुस्लिम शिक्षा में सुधार करने के लिए उसने तुलम्बा के विद्वान शेख़ अब्दुल्लाह और शेख़ अजीजुल्लाह को बुलाया था। सिकन्दर लोदी ने एक आयुर्वेदिक ग्रन्थ का फारसी में अनुवाद करवाया जिसका नाम ‘फरहंगे सिकन्दरी’ रखा गया। सिकन्दर लोदी के शासनकाल में ही संगीत विद्या के एक श्रेष्ठ ग्रन्थ ‘लज्जत-ए-सिकन्दरशाही’ की रचना हुई।
स्थापत्यकला की दृष्टि से सिकन्दर लोदी ने अनेक मस्जिदें बनवाईं तथा दिल्ली में अपने पिता बहलोल लोदी का एक स्मारक बनवाया। सिकन्दर लोदी ने 1504 ई.में राजस्थान के शासकों पर अपने एकाधिकार को सुरक्षित रखने तथा व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से आगरा शहर की स्थापना की। आगरा में उसने एक किले का भी निर्माण करवाया जो ‘बादलगढ़ का किला’ के नाम से प्रख्यात था। सिकन्दर लोदी ने 1506 ई. में आगरा को अपनी राजधानी बनाई।
सिकन्दर लोदी का राजत्व सिद्धान्त
सिकन्दर लोदी के राजत्व सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य सुल्तान की शक्ति में वृद्धि करना तथा अमीर वर्ग (विशेषकर अफगान सरदारों) को नियंत्रण में रखना था। इस कार्य के लिए सिकन्दर लोदी ने निम्नलिखित कार्य करने शुरू किए। पहला यह कि अपने पिता बहलोल लोदी के विपरीत उसने दरबार में राजसिंहासन पर बैठना शुरू किया।
दूसरा यह कि दरबार में अफगान सरदारों की अनुपस्थिति के साथ ही अनुशासनहीनता की स्थिति में उसने कठोर दण्ड देने का विधान किया। बतौर उदाहरण- सुल्तान सिकन्दर लोदी ने 22 षड्यन्त्रकारी सरदारों का वध करवा दिया अथवा राज्य से निष्कासित कर दिया। तारीख-ए-दाउदी के मुताबिक, “सम्भल में चौगान खेलते समय जब दो अफगान सिकन्दर लोदी के सामने ही झगड़ने लगे तब उसने उन्हें कोड़ों से पिटवाया।”
प्रान्तीय गवर्नरों को छह कोस आगे जाकर शाही फरमान प्राप्त करना होता था, इसके साथ ही जब फरमान पढ़ा जाता था तब सभी अमीरों को खड़ा रहना पड़ता था। सिकन्दर लोदी के मुताबिक, “यदि मैं अपने एक गुलाम को भी पालकी में बैठा दूं तो मेरे आदेश पर मेरे सभी सरदार उसे अपने कन्धों पर बैठाकर ले जाएंगे।” इस प्रकार सुल्तान सिकन्दर लोदी ने राज्य के प्रमुख सरदारों पर अपने सख्त नियंत्रण में रखा।
साम्राज्य विस्तार
गद्दी पर बैठते ही सुल्तान सिकन्दर लोदी ने सबसे पहले अपने विरोधियों का सफाया किया। सिकन्दर लोदी के दबाव से उसका चाचा आलम ख़ाँ रपरी छोड़कर गुजरात भाग गया। युद्ध में गम्भीर रूप से घायल होने के कारण ईसा खां की मृत्यु हो गई। सिकन्दर लोदी ने अपने भतीजे आजम हुमायूं को शिकस्त देकर उससे कालपी छीन लिया। जालरा के सरदार तातार खां को पराजित कर उसे अपने अधीन कर लिया हांलाकि उसकी जागीर वापस कर दी। इस प्रकार एक साल के अन्दर ही उसने अपने सभी विरोधियों को समाप्त कर दिया।
सिकन्दर लोदी अपने बड़े भाई तथा जौनपुर के शासक बारबक शाह से केवल आधीनता स्वीकार करवाना चाहता था परन्तु बारबक शाह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तत्पश्चात सिकन्दर लोदी ने युद्ध में बारबक शाह को पराजित कर उसे जौनपुर लौटा दिया तथा वहां अपने व्यक्तियों की नियुक्ति की। बावजूद इसके जब बारबकशाह शासन करने में असफल रहा तो उसे कैद कर कारागार में डाल दिया और वहां एक सूबेदार की नियुक्ति की।
हांलाकि जौनपुर में विद्रोह हो गया और विद्रोही सरदारों के नेता जुगा ने भागकर बिहार में हुसैनशाह शर्की के पास शरण ली। इसके बाद 1494 ई. में बनारस के समीप हुए एक युद्ध में सुल्तान सिकन्दर लोदी ने हुसैनशाह शर्की को परास्त कर बिहार को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।
जौनपुर के पश्चात सिकन्दर लोदी ने तिरहुत को अपने अधीन कर लिया। हुसैनशाह शर्की बंगाल भाग गया लेकिन लोदी की सेना ने बंगाल की सीमा तक उसका पीछा किया। बंगाल का शासक अलाउद्दीन शाह ने लोदी की सेना को रोकने के लिए अपने पुत्र दानियाल के नेतृत्व में एक सेना भेजी। परन्तु युद्ध से पूर्व ही दोनों पक्षों में यह समझौता हो गया कि कोई भी किसी की सीमा में आक्रमण नहीं करेगा।
मालवा के आन्तरिक संघर्ष में हस्तक्षेप करने का मौका मिलने बाद भी सिकन्दर लोदी ने मालवा पर आक्रमण नहीं किया, यद्यपि उसने चन्देरी पर आधिपत्य कायम कर लिया। सिकन्दर लोदी धौलपुर, मन्दरेल, उतगिरी, नरवर और नागौर जैसे राजपूत राज्यों को जीतने में सफल रहा।
सिकन्दर लोदी ने ग्वालियर किले पर नियत्रंण स्थापित करने के लिए पांच बार प्रयास किए लेकिन राजा मान सिंह तोमर ने उसे हर बार शिकस्त दी। राजपूत राज्यों पर अपने एकाधिकार को सुरक्षित रखने के लिए सिकन्दर लोदी ने 1504 ई.में आगरा शहर बसाया। इस प्रकार के महमूद बेगड़ा और मेवाड़ के राणा सांगा के समकालीन सिकन्दर लोदी ने अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को शक्तिशाली बनाया।
निष्कर्षतया सिकन्दर लोदी का साम्राज्य तकरीबन समस्त उत्तरी भारत में फैला हुआ था यानि लोदी सल्तनत का विस्तार पंजाब से लेकर बंगाल की सीमाओं तक था इसमें सतलुज और बुंदेलखंड के बीच के क्षेत्र शामिल थे।
आर्थिक नीति
सिकन्दर लोदी ने कृषि तथा व्यापार की उन्नति के लिए भरपूर प्रयास किया। उसने राज्य के हिसाब-किताब के लिए लेखा-परीक्षण प्रणाली की शुरूआत की। उसने खाद्यान्न करों को समाप्त कर दिया तथा व्यापारिक कर भी हटा लिए ताकि लोगों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा मिले। उसने निर्धनों के लिए मुफ़्त भोजन की व्यवस्था की।
सिकन्दर लोदी ने भूमि की पैमाइश के लिए एक प्रमाणिक पैमाना ‘गज-ए-सिकन्दरी’ का प्रचलन शुरू करवाया जो प्राय: 30 इंच का होता था। सिकन्दर लोदी सल्तनत काल का एक मात्र सुल्तान था, जिसने खम्स (लूट का माल) से कोई हिस्सा नहीं लिया। उसने राज्य के शासकों, सरदारों और असमाजिक तत्वों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए ‘गुप्तचर विभाग’ का पुनर्गठन किया।
धार्मिक नीति
सिकन्दर लोदी ने असहिष्णुता की नीति अपनाई। सुल्तान बनने के बाद उसने हिन्दू मन्दिरों को नष्ट करने, मूर्तियों को खण्डित करने तथा उन स्थानों पर मस्जिदें बनाने की नीति अपनाई।
सिकन्दर लोदी ने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्तियों को तोड़कर उसके टुकड़ों को मांस तौलने के लिए कसाईयों को दे दिया। सुल्तान लोदी ने मथुरा, मन्दैल, नरवर, चन्देली आदि स्थानों पर मंदिरों तथा मूर्तियों को नष्ट किया। मथुरा में उसने हिन्दुओं को यमुना स्नान करने तथा बाल मुड़वाने पर प्रतिबन्ध लगा रखा था।
यहां तक कि सिकन्दर लोदी ने मुहर्रम में ताजिए निकालना भी बन्द करवा दिया था। इतना ही नहीं, मुसलमान स्त्रियों को पीरों तथा संतों की मजारों पर जाने से रोक दिया था। क्रोध में आकर सिकन्दर लोदी ने शर्की शासकों द्वारा जौनपुर में बनवाई गई मस्जिदों को भी तोड़ने का आदेश दे दिया था परन्तु उलेमाओं के कहने पर उसने अपना आदेश वापस ले लिया। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सिकन्दर लोदी को धर्मान्धता के दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता।
सिकन्दर लोदी की मृत्यु
तकरीबन सभी इतिहासकारों ने सिकन्दर लोदी को एक सफल शासक होने के साथ-साथ लोदी वंश का श्रेष्ठ शासक स्वीकार किया है। सिकन्दर लोदी अपने अंतिम दिनों में बयाना गया हुआ था, वहीं उसे गले की बीमारी हो गई। अत: वह दिल्ली वापस लौट आया फिर भी स्वस्थ नहीं हो सका और 21 नवम्बर 1517 ई. को 59 वर्ष की आयु में उसका देहान्त हो गया। सिकंदर लोदी की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र इब्राहीम लोदी ने दिल्ली सल्तनत की कमान सम्भाली। 1517-1518 ईस्वी में इब्राहिम लोदी ने अपने पिता सिकन्दर लोदी का मकबरा नई दिल्ली स्थित लोदी गार्डेन में बनवाया जहां आज भी उसकी कब्र मौजूद है।
सिकन्दर लोदी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
— सिकन्दर लोदी ने शासन किया—1489 से 1517 ई. तक।
— सिकन्दर लोदी का मूल नाम था— निजाम खान।
— जौनपुर के गवर्नर बारबकशाह के विरूद्ध सफल अभियान किया था— सिकन्दर लोदी ने।
— सिकन्दर लोदी ने 1504 ई. में किस नगर की स्थापना की थी— आगरा।
— भूमि की पैमाईश के लिए वह पैमाना जिसका प्रचलन सिकन्दर लोदी ने करवाया था— ‘गज-ए-सिकन्दरी’।
— मुसलमानों के ताजिया निकालने पर प्रतिबन्ध लगाया था— सिकन्दर लोदी ने।
— महिलाओं को पीरों एवं संतों की मजारों पर जाने से रोक लगाया था—सिकन्दर लोदी ने।
— एक आयुर्वेदिक ग्रन्थ का फारसी अनुवाद है— फरहंगे सिकन्दरी।
— 1506 ई. में आगरा को राजधानी बनाया—सिकन्दर लोदी ने।
— सिकन्दर लोदी के शिक्षक का नाम था — शेख हसन मौलवी।
— सिकन्दर लोदी के समय का ग्रन्थ ‘लज्जत-ए-सिकन्दरशाही’ का सम्बन्ध है— गान विद्या से।
— शहनाई सुनने का शौकीन था— सिकन्दर लोदी।
— अनुवाद विभाग की स्थापना करवाई थी— सिकन्दर लोदी ने।
— सिकन्दर लोदी के दरबार में नियुक्त ईरानी विद्वानों के नाम— शेख अब्दुल्ला, शेख अजीजुल्ला तथा रफीउद्दीन शिराजी।
— बोधन नामक ब्राह्मण को सिर्फ इसलिए फांसी दे दी क्योंकि उसने कहा कि हिन्दू व मुस्लिम धर्म समान है—सिकन्दर लोदी ने।
— सिकन्दर लोदी की मृत्यु कैसे और कब हुई— गले की बीमारी, 21 नवम्बर 1517 ई.।
—दिल्ली में बहलोल लोदी का मकबरा किसने बनवाया— सिकन्दर लोदी ने।
— सिकन्दर लोदी का मकबरा (अष्टकोणीय) किसने बनवाया— इब्राहिम लोदी ने।
— सिकन्दर लोदी का मकबरा है— खैरपुर (दिल्ली, लोदी गार्डेन।
— मोठ की मस्जिद किसने बनवाई — सिकन्दर लोदी के वजीर ने।
इसे भी पढ़ें - बहलोल लोदी : लोदी वंश व प्रथम अफगान साम्राज्य का संस्थापक