भारत का इतिहास

History of Tughlaq Dynasty about Ghiyasuddin Tughlaq

तुगलक वंश : गियासुद्दीन तुगलक (1320-1325)

तुगलक वंश के संस्थापक गियासुद्दीन तुगलक का असली नाम गाजी तुगलक अथवा गाजी बेग तुगलक था। गाजी बेग तुगलक का पिता मलिक तुगलक जो बलबन का एक तुर्की गुलाम था,  उसने पंजाब में एक जाट कन्या से विवाह किया था। इसीलिए मध्यकालीन इतिहास में तुगलक वंश को स्वदेशी माना जाता है। जलालुद्दीन खिलजी के समय गाजी तुलगक महज एक सैनिक था। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के समय वह अपनी योग्यता के दम पर उत्तरी पश्चिमी सीमान्त प्रान्त दीपालपुर (पंजाब) का गवर्नर और सीमा रक्षक के पद पर पहुंच गया। उसने मंगोल आक्रमणों के विरूद्ध सफलता हासिल की, काबुल तथा गजनी पर आक्रमण किए और मंगोलों के अधीन क्षेत्रों से राजस्व वसूल किए। गाजी तुगलक ने 8 सितम्बर 1320 ई. को खुसरव शाह की हत्या कर दी और गियासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

गियासुद्दीन तुगलक की चुनौतियां- सुल्तान मुबारक शाह खिलजी और खुसरव शाह दिल्ली सल्तन की व्यवस्था और गरिमा दोनों को नष्ट कर चुके थे। सरदारों तथा दरबारियों में विलासिता और अकर्मण्यता आ चुकी थी। नागरिकों के मन में सुल्तान के प्रति सम्मान कम हो चुका था। प्रान्तों में विद्रोह हो रहे थे। सिन्ध का गवर्नर स्वतंत्र सुल्तान बनने के सपने देख रहा था। राजपूतों ने चित्तौड़, नागौर तथा जालौर के दुर्गों में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी। दक्षिण में प्रशासनिक व्यवस्था नियंत्रण से बाहर हो रही थी।

मुबारक शाह और खुसरव शाह के द्वारा सरदारों तथा जनता में अत्यधिक धन वितरण करने के कारण राजकोष खाली हो चुका था। भूराजस्व भी सुगमता से प्राप्त नहीं हो रहा था। लिहाजा गियासुद्दीन तुगलक आर्थिक संकट से घिर चुका था।

प्रशासनिक तथा आर्थिक सुधार- गियासुद्दीन तुगलक ने आर्थिक नीति का आधार संयम, संख्ती और नरमी के बीच संतुलन स्थापित करना था। इसलिए उसने मध्यपंथी नीति अपनाई जिसे रस्म-ए-मियाना कहा गया। मध्यवर्ती जमींदारों विशेष से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए गए। लगान निश्चित करने में बटाई और नस्क प्रथा का प्रयोग फिर से शुरू कर दिया गया। उसने ऋणों की वसूली बन्द करवा दी। भूराजस्व दर एक ​तिहाई किया तथा सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाया। सिंचाई हेतु नहरों का निर्माण कराने वाला गियासुद्दीन पहला सुल्तान था।  गियासुद्दीन ने आदेश दिया कि भूराजस्व एक बार में 1/11 से ज्यादा न बढ़ाया जाए। अमीरों को पद देने में वंशानुगत के साथ-साथ योग्यता को भी आधार बनाया गया। इसी वर्ग से गवर्नरों को चुना जाने लगा ताकि इजारेदारी को समाप्त किया जा सके।

उसने आर्थिक अपराधों तथा ऋण वसूली के लिए दिए जाने वाले शारीरिक दण्ड की प्रथा को त्याग दिया। भूराजस्व में राज्य की मांग का आधार हुक्म-ए-हासिल (पैदावार के अनुरूप) के हिसाब से तय किया गया जिसमें फसल के नुकसान को समायोजित करने के प्रावधान थे।

गियासुद्दीन ने अलाउद्दीन खिलजी की तरह कोई मंडी सुधार नहीं किया बल्कि अक्तादारों को निर्देश दिया कि कोई भी किसी सैनिक के वेतन तथा भत्ते का दुरूपयोग न करें। उसने अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई दाग तथा चेहरा प्रथा को प्रभावशाली ढंग से लागू किया। इसी के साथ यातायात व डाक व्यवस्था में सुधार कर तीव्र बनाने का श्रेय गियासुद्दीन को ही जाता है।

गियासुद्दीन तुगलक का विजय ​अभियान- गियासुद्दीन ने अपनी सेना को इस प्रकार से सुसंगठित किया कि महज दो वर्ष के भीतर ही उसने दक्षिण में सैनिक अभियान भेजने की योजना बना ली। सन 1323 ई. में उसने अपने बेटे जौना खां उर्फ उलूग खां (मुहम्मद बिन तुगलक) को दक्षिण भारत में सल्तन के प्रभुत्व की पुनर्स्थापना के लिए भेजा। राजमुंदरी के अभिलेखों में जौना खां उर्फ उलूग खां को ‘दुनिया का खान’ कहा गया है। दिल्ली सल्तनत की अव्यवस्था का लाभ उठाकर वारंगल के शासक प्रताप रूद्रदेव ने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया था और सल्तनत को ‘कर’ (Tax) देना बन्द कर दिया था। ऐसे में गियासुद्दीन ने अपने बेटे जौना खां को एक विशाल सेना के साथ वारंगल अभियान पर भेजा। उलूग खां ने न केवल वारंगल को जीता बल्कि मार्ग में उसने बीदर तथा अन्य किलों को भी जीत लिया। प्रताप रूद्रदेव तथा उसके सम्बन्धियों को कैद कर दिल्ली भेज दिया गया। जहां कारागार में ही प्रताप रूद्रदेव ने आत्महत्या कर ली। जौना खां ने वारंगल के काकतीय एवं मदुरा के पाण्डय राज्यों को विजित कर उसे दिल्ली सल्तनत में मिला लियातेलंगाना का नाम सुल्तानपुर रखा गया।

गियासुद्दीन तुगलक का अंतिम सैन्य अभियान बंगाल के विरूद्ध था। जहां बलबन के पुत्र बुगरा खां के समय से ही बंगाल को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था। उसकी मृत्यु के पश्चात उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का संघर्ष होता रहा। इतिहासकार बरनी के मुताबिक, बंगाल के कुछ अमीरों ने सुल्तान गियासुद्दीन से निवेदन किया कि वह बंगाल में होने वाले अत्याचार का अंत करे। ऐसे में गियासुद्दीन ने बंगाल को अपने अधीन कर दक्षिणी तथा पूर्वी बंगाल को दिल्ली राज्य में सम्मिलित कर लिया। सुल्तान ने बहराम खां को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया। सिक्कों पर गियासुद्दीन के नाम लिखवाए गए।

गियासुद्दीन तुगलक मृत्यु- खुसरव शाह जब सुल्तान था तब उसने सूफी संत निजामुद्दीन औलिया को 5 लाख टंका की धनराशि भेंट दी थी। लेकिन गियासुद्दीन ने निजामद्दीन औलिया से भी पैसे लौटाने को कहा ताकि उस धनराशि को वापस खजाने में जमा कराया जा सके। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने पैसे तो नहीं लौटाए बल्कि उस सूफी संत और सुल्तान में मनमुटाव पैदा जरूर हो गया।

इब्नबतूता लिखता है कि “सुल्तान जब बंगाल में था तभी उसे सूचना मिली कि जौना खां अपने समर्थकों की संख्या बढ़ा रहा है तथा सूफी संत निजामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया है।” इसके बाद सुल्तान ने जौना खां उर्फ उलूग खां तथा निजामुद्दीन औलिया को दिल्ली पहुंचकर दण्ड देने की धमकी दी। जिसके बारे में सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने कहा कि ‘हुनूज दिल्ली दूर अस्त’ अर्थात् दिल्ली अभी बहुत दूर है।

सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक शीघ्रतापूर्वक बंगाल से वापस लौटा तब जौना खां ने स्वागत समारोह के लिए सुल्तान की नवीन राजधानी तुगलकाबाद से आठ किलोमीटर दूर अफगानपुर में एक लकड़ी का महल बनवाया। यह महल कुछ इस प्रकार से बनवाया गया था कि हाथियों के द्वारा एक विशेष स्थान पर धक्का देने पर वह गिर सकता था। भोजन के पश्चात उलूग खां ने सुल्तान से बंगाल से लाए गए हाथियों के प्रदर्शन की प्रार्थना की। सुल्तान की आज्ञा से हाथियों का प्रदर्शन शुरू हुआ। इस दौरान हाथियों के धक्के से वह लकड़ी का महल गिर गया जिसमें दबकर 1325 ई. में गियासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गई। तुगलकाबाद फोर्ट में ही सुल्तान ने अपने लिए जो कब्र बनवाई थी उसी में उसे दफना दिया गया। 

गियासुद्दीन तुगलक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

जियाउद्दीन बरनी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना तारीख--फिरोजशाही से गियासुद्दीन तुगलक की धर्मनिष्ठा, न्याय प्रियता, सैन्य प्रबन्ध, कर वसूली, दान पुण्य आदि की जानकारी मिलती है।

सुल्तान मुबारक शाह खिलजी के शासन काल में गियासुद्दीन तुगलक उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रान्त (दीपालपुर) का एक शक्तिशाली गवर्नर था।

गियासुद्दीन तुगलक ने लगभग सम्पूर्ण दक्षिण भारत (केवल काम्पिली को छोड़कर) को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।

— दक्षिण के राज्यों में सर्वप्रथम वारंगल को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया।

जौना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) ने उड़ीसा (जाजनगर) पर भी आक्रमण किया था परन्तु उड़ीसा पर उसकी विजय पूर्ण नहीं थी। सम्भवतया युद्ध के बाद लूट मार करके अथवा आक्रमण में असफल होकर दिल्ली वापस लौट आया।

गियासुद्दीन दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने अपने नाम के साथ गाजी (काफिरों का वध करने वाला) शब्द जोड़ा।

— गियासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली में मजलिस-ए-हुक्मरान (Council of Regency) कायम करने के बाद बंगाल की तरफ कूच किया था।

— गियासुद्दीन तुगलक ने बंगाल से वापस लौटते समय तिरहुत (मिथिला) पर आक्रमण किया। वहां के राजा ​हरसिंह देव को नेपाल की सीमाओं में जाकर रहना पड़ा। तिरहुत पर सुल्तान का अधिकार हो गया।

गियासुद्दीन ने शराब की बि​क्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया। वह संगीत विरोधी था।

— गियासुद्दीन तुगलक ने जो सिक्के जारी किए गए, उन सिक्कों पर अल शहीद उत्कीर्ण किया गया था।

— गियासुद्दीन ने प्रत्येक 3/4 मील की दूरी पर डाक लाने वाले कर्मचारी अथवा घुड़सवार नियुक्त किए थे।

अफगानपुर में लकड़ी के महल का निर्माणकर्ता अहमद अयाज था।

बंगाल अभियान से लौटते समय सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने गियासुद्दीन के बारे में कहा था कि ‘दिल्ली हुनूज दूर अस्त’ अर्थात दिल्ली अभी बहुत दूर है।

तुगलकाबाद के समीप अफगानपुर गांव में लकड़ी का महल गिरने से गियासुद्दीन की मौत हो गई।

इब्नबतूता गियासुद्दीन की मौत के लिए जौना खां को जिम्मेदार मानता है जबकि इतिहासकार फरिश्ता इसे मात्र दुघर्टना मानते हैं।

गियासुद्दीन तुगलक ने 1320-25 के दौरान 6.5 किलोमीटर में फैले एक किलेबंद शहर तुगलकाबाद का निर्माण किया।

गियासुद्दीन तुगलक ने अपनी मृत्यु के पूर्व तुगलकाबाद किले में खुद का मकबरा बनवाया था।

सम्भावित प्रश्न

—गियासुद्दीन तुगलक की प्रशासनिक और आर्थिक नीति का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए?

— गियासुद्दीन तुलगक को अपने शासन के प्रारम्भ में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उल्लेख कीजिए?

— गियासुद्दीन तुलगक की साम्राज्यवादी नीति का विशद वर्णन कीजिए?

— क्या गियासुद्दीन तुगलक की मृत्यु में उसके पुत्र मुहम्मद बिन तुलगक का षड्यंत्र शामिल था?

— गियासुद्दीन तुगलक और सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के सम्बन्धों पर टिप्पणी ​लिखिए?

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