सल्तनत काल में इतिहास लेखन कला की खूब उन्नति हुई लेकिन इतिहास की इस कला को जितना बढ़ावा मुगल दौर में मिला, उतना पहले कभी नहीं मिला। 16वीं शताब्दी और इसके बाद के समय में ऐतिहासिक लेखन में काफी विविधता नजर आती है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि खुद मुगल बादशाह इतिहास में ज्यादा रूचि लेते थे, क्योंकि उनकी एतिहासिक चेतना काफी विकसित हो चुकी थी। कई मुगल बादशाहों की जीवनियां जैसे-बाबरनामा और तुजुके जहांगीरी इसकी बेहतरीन मिसाल हैं। इतना ही नहीं मुगल बादशाहों ने इतिहास लिखवाने के लिए उस जमाने के मशहूर इतिहासकारों और लेखकों को नियुक्त किया। इन इतिहासकारों की पहुंच तमाम सरकारी दस्तावेजों तक थी। ऐसे इतिहास को सरकारी इतिहास कहा जाता है, चूंकि सरकारी इतिहासकारों तथा लेखकों को अपने लेख मुगल दरबार में पढ़ना पढ़ता था, इसलिए ऐसे ग्रन्थ ज्यादातर सरकार के पक्ष में ही बोलते हैं। मुगल बादशाह के खिलाफ कुछ भी लिखना-पढ़ना अपनी मौत को दावत देना था। अकबरनामा, पादशाहनामा और आलमगीरनामा मुगल सरकारी इतिहास की स्पष्ट उदाहरण हैं।
मुगलकालीन इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण बदलाव यह देखने को मिलता है कि इस दौर की घटनाओं को वर्षानुक्रम में पेश किया गया है। अकबरनामा, पादशाहनामा और आलमगीरनामा इसके कुछ उदाहरण हैं। मुगलकालीन इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्नलिखित हैं।
- इस्लामिक स्रोत (मुगलकालीन)
1—अबुल फजल ; ‘अकबरनामा’
मध्यकालीन इतिहासकारों में अबुल फजल को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। दरअसल अबुल फजल मध्य युग का एकमात्र इतिहासकार है जिसने अपने इतिहास लेखन में बुद्धिवादी तथा धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण को आत्मसात किया। अबुल फजल की गद्य शैली अद्वितीय थी। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही थी कि वह अकबर की उपलब्धियों को एक स्पष्ट और संतुलित रूप देने में सफल रहा। बता दें कि अबुल फजल मुगल बादशाह अकबर का दरबारी तथा उसके नवरत्नों में से एक था।
अबुल फजल द्वारा रचित अकबरनामा में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल का विस्तृत वर्णन है। अकबरनामा के तीन भाग हैं। इसके प्रथम भाग में हुमायूं तक अकबर के सभी पूर्वजों का वर्णन है। दूसरे भाग में अकबर के 46वें वर्ष तक के शासन का पूर्ण विवरण तिथिक्रम के अनुसार दिया गया है। अकबरनामा के तीसरे भाग का नाम आईन-ए-अकबरी है, जिसमें अकबर के शासनकाल का विस्तृत प्रशासकीय लेख है।
‘आईन-ए-अकबरी’
अकबरनामा के पूरक ग्रन्थ का नाम आईन-ए-अकबरी है। इस ग्रन्थ में भारतीय साम्राज्य, अकबरकालीन संस्थाओं, नियमों, कानूनों, भूमि विवरण, राजस्व व्यवस्था तथा रीति रिवाजों का गहराई से वर्णन किया गया है। सीधे अर्थों में कहें तो आईन-ए-अकबरी अकबरनामा की जान है। आईन-ए-अकबरी के पांच हिस्से हैं। पहले हिस्से में 10, दूसरे में 30, तीसरे में 16 आईन (Regulations) हैं। चौथे हिस्से में हिन्दुस्तान की जातियों, ऋतुओं, फसलों तथा प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ राजनीति, धर्म, साहित्य तथा न्याय प्रणाली का वर्णन है। जबकि पांचवे हिस्से में महज दो अध्याय हैं जिनमें अकबर की कहावतें तथा अबुल फजल की आत्मकथा है।
2— अब्दुल कादिर बदायूंनी; मुन्तखब-उत-तवारीख
अब्दुल कादिर बदायूंनी की मुन्तखब-उत-तवारीख मुगलकाल की एक बेहतरीन कृति है। बता दें कि अकबर के इतिहासकारों के तीन तबके हैं। पहले वे लोग जो अकबर को हीरो मानकर चलते हैं, जैसे-अबुल फजल। दूसरे ऐसे इतिहासकार हैं जिन्होंने अकबर की तारीफ की है, जैसे-निजामुद्दीन अहमद। तीसरा तबका ऐसे इतिहासकारों का है जिन्हें लगता था कि अकबर ने मुसलमानों के साथ नाइंसाफी की थी। बदायूंनी के अनुसार, सिर्फ मुसलमान ही तमाम बड़े पदों और बादशाहों की इनायतों के हकदार थे।
दरअसल बदायूंनी अपनी महत्वपूर्ण कृति मुन्तखब-उत-तवारीख को अकबर के समय में लिखता रहा लेकिन यह जहांगीर के समय में प्रकाश में आई। यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ तारीख-ए-बदायूंनी के नाम से भी विख्यात है। मुन्तखब-उत-तवारीख हिन्दूस्तान का आम इतिहास है जो गजनवी के दौर से शुरू होकर अकबर के चालीसवें साल पर खत्म होता है। लेखक ने अपने तासुब, दुश्मनी, खुद की पसंद और नापसंद को इस किताब में भरपूर जगह दी है, इसलिए इतिहास के स्रोत के रूप में इस पुस्तक को बहुत होशियारी से इस्तेमाल करना चाहिए। बतौर उदाहरण-बदायूंनी ने अकबर के शासन संबंधी सुधारों को फिजूल बताया है, इतना ही नहीं उसके ख्याल में अकबर की हर नीति इस्लाम के खिलाफ साजिश थी।
3— निजामउद्दीन अहमद ; तबकात-ए-अकबरी
निजामुद्दीन अहमद का केवल एक ही ग्रन्थ है, तबकात-ए-अकबरी। मध्यकालीन इतिहास में अबुल फजल और अब्दुल कादिर बदायूंनी के ग्रन्थों के मुकाबले निजामुद्दीन अहमद की तबकात-ए-अकबरी अधिक प्रमाणिक और विश्वसनीय है। बता दें कि जहां अबुल फजल ने अपने ग्रन्थ में अकबर की प्रशंसा की है, वहीं अब्दुल कादिर बदायूंनी ने निन्दा की है। जबकि निजामुद्दीन अहमद का ग्रन्थ निष्पक्ष और एकरूप है।
तबकात-ए-अकबरी को निजामुद्दीन ने मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में लिखा था। तबकात-ए-अकबरी का लेखन कार्य 1593 ई. में पूर्ण हुआ। इस ग्रन्थ में 9 अध्याय है। यह गजनवी वंश के सुबुक्तगीन से लेकर अकबर के शासनकाल के 38वें वर्ष तक का वृत्तान्त है। निजामुद्दीन अहमद के ग्रन्थ तबकात-ए-अकबरी में दिल्ली के सुल्तानों का इतिहास, दक्खन, गुजरात, मालवा, बंगाल, जौनपुर, कश्मीर, सिन्ध तथा मुल्तान के सुल्तानों का इतिहास क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया है।
इस प्रकार देखा जाए तो तबकात-ए-अकबरी केवल दिल्ली के शासकों के लिए ही नहीं अपितु प्रान्तीय इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण स्रोत है। निजामुद्दीन अहमद ने क्षेत्रीय इतिहास लेखन की पद्धति को अपनाकर उसने इतिहास लेखन में एक नवीन धारा को जन्म दिया। विशेषरूप से अकबर के शासनकाल के निष्पक्ष और क्रमबद्ध वर्णन के लिए यह एक प्रमाणिक और विश्वसनीय स्रोत है।
4— खाफी खां ; मुन्तखब-उल-लुबाब
मध्यकालीन इतिहासकार खाफी खां को मुहम्मद हाशिम या हाशिम अली खां के नाम से भी जाना जाता है। खाफी खां के पूर्वज खुरासान जिले के ख्वाफ नगर से थे, जो दिल्ली आकर बस गए थे। खाफी खां का पिता ख्वाजा मीर भी इतिहासकार था जो मुरादबख्श की सेवा में उच्च श्रेणी का अधिकारी था। मुराद की मौत के बाद ख्वाजा मीर मुगल बादशाह औरंगजेब की सेवा में आ गया। ऐसे में ख्वाजा मीर का पुत्र मुहम्मद हाशिम यानि खाफी खां भी औरंगजेब की सेवा में ही बड़ा हुआ और विभिन्न राजनैतिक पदों पर कार्य किया।
खाफी खां के विख्यात फारसी ग्रन्थ मुन्तखब-उल-लुबाब में तैमूर के वंशज बाबर से लेकर मुहम्मद शाह के शासनकाल के चौदहवें वर्ष तक का इतिहास है। इस ग्रन्थ को तारीख-ए-खाफी खां भी कहा जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि औरंगजेब ने अपने मुगल बादशाह बनने के ग्यारहवें वर्ष में इतिहास लेखन पर प्रतिबंध लगा दिया था, इसलिए खाफी खां ने उसके शासनकाल की समस्त घटनाओं की सूची का एक रजिस्टर बनाकर रखा था जो औरंगजेब की मृत्यु के बाद प्रकाशित किया गया।
हांलाकि खाफी खां के इतिहास लेखन का दृष्टिकोण बिल्कुल सरकारी है। बतौर उदाहरण— खाफी खां ने मराठा नेता छत्रपति शिवाजी को एक विद्रोही और बीजापुर के सेनानायक अफजल खां का हत्यारा बताया है। शिवाजी के संबंध में खाफी खां लिखता है कि “अपनी जाति में वह साहस तथा बुद्धि के लिए प्रसिद्ध था और कुटिलता और कुचाल में वह शैतान का बच्चा समझा जाता था, उसे ठगी का पुतला कहना अनुचित न होगा”। वहीं खाफी खां ने शिवाजी की प्रशंसा भी की है और लिखता है कि “उसने यह नियम बनाया कि जब उसके सैनिक लूटमार के लिए जाएं तो वे मस्जिदों, कुरानों अथवा दूसरों की स्त्रियों को हानि न पहुंचाएं।”
गौरतलब है कि खाफी खां ने इतिहास लेखन की परम्परागत शैली को ही अपनाया है। उसने युद्धों और सैनिक अभियानों का विस्तृत वर्णन किया है। हांलाकि वह औरंगजेब के उत्तराधिकारियों के समय की अनेक घटनाओं का सही मूल्यांकन नहीं कर पाया है। धार्मिक भावना के चलते उसके विवरण पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया जाता है। बावजूद इसके मुन्तखब-उल-लुबाब सम्राट औरंगजेब के शासनकाल का विस्तृत विवरण प्राप्त करने के लिए एक उत्कृष्ट ऐतिहासिक कृति है।
- आत्मकथा
1— फिरोजशाह तुगलक ; ‘फुतूहात-ए-फिरोजशाही’
फुतुहात-ए-फिरोजशाही नामक ग्रन्थ को सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने लिखा है। फुतुहात-ए-फिरोजशाही महज 32 पृष्ठ का एक छोटा सा ग्रन्थ है जिसमें खुद फिरोजशाह ने अपनी उपलब्धियों, विचारों, आदेशों के विषय में लिखा है। हांलाकि फुतुहात-ए-फिरोजशाही की दो एक हस्तलिखित प्रतियां मिली हैं उनमें सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल की घटनाओं का अधिक विवरण नहीं मिलता है, केवल राजनीति, अर्थव्यवस्था, शासन प्रबन्ध तथा सार्वजनिक निर्माण के कार्यों का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है। फुतुहात-ए-फिरोजशाही में फिरोजशाह तुगलक लिखता है कि उसने विभिन्न प्रकार के करों को समाप्त कर दिया था, जैसे- मन्डवी वर्ग (तरकारियों पर कर), दलालते बाजारहा (बाजार के क्रय-विक्रय पर दलाली कर), जजारी (कसाई कर), अमीरे तरब (मनोरंजन कर), गुलफरोशी (फूलों के विक्रय पर कर), जिजय तम्बोल (पान पर कर), चुंगिए गल्ला (अनाज पर चुंगी), किताबी (पुस्तकें नकल करने वालों पर कर), नील गरी (नील पर कर), मही फरोशी (मछली बेचने पर कर), करही (घर पर कर), चराई (पशुओं के चराने पर कर), कस्साबी (कसाईयों पर कर), दाद बेगी (मुकदमों पर कर), रिस्मान फरोशी (रस्सी बेचने पर कर), किमार खाना (जुआ घरों पर कर), साबुन गरी (साबुन बनाने पर कर), नद्दाफी (धूनियों पर कर) आदि।
खम्स लूट के माल पर कर के संबंध में फिरोजशाह ने आदेश दिए कि लूट का पांचवा भाग राजकोष में जमा किया जाए और शेष लूटने वाले को दे दिया जाए। सुल्तान ने यह भी आदेश दिया था कि कोई भी स्त्री मजार पर न जाए अन्यथा उसे दंडित किया जाएगा। बता दें कि यह लघु ग्रन्थ फिरोजशाह के सम्पूर्ण जीवन एवं कृत्यों को प्रदर्शित करता है। इस पुस्तक में उसके शासनकाल की विजयों का संक्षिप्त वर्णन है। सर एच ईलियट लिखता है कि इस पुस्तक में फिरोजशाह तुगलक के सतचरित्र संबंधी सभी बातें बेहद रोचक हैं। वहीं डॉ. मेहदी हुसैन का मत है कि फुतुहात-ए-फिरोजशाही में फिरोजशाह तुगलक की धार्मिक कट्टरता की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है, जिसमें मंदिरों को खण्डित करने की प्रवृत्ति और काफिरों से अनुदार व्यवहार शामिल है।
2— बाबर ; ‘तुजुक-ए-बाबरी’ (बाबरनामा)
मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरउद्दीन मोहम्मद बाबर ने अपनी जीवनी ‘तुजुक-ए-बाबरी’ खुद लिखी जिसे बाबरनामा भी कहा जाता है। बाबर ने इस पुस्तक को तुर्की भाषा में लिखा था, जिसका फारसी अनुवाद शेख जेतुद्दीन ख्वाजा ने किया जो बाबर का सदर-उस-सदर था।
बाबरनामा में सिर्फ खानवा की लड़ाई तक ही विवरण हैं। इस पुस्तक में बाबर की मौत के एक साल पहले के हालात मौजूद हैं। ‘तुजुक-ए-बाबरी’ को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग बाबर के फरगना के शासक बनने से शुरू होता है और समरकन्द छोड़ने पर खत्म होता है। दूसरा भाग समरकन्द से भागने तथा हिन्दूस्तान पर उसके आखिरी हमले पर खत्म होता है। जबकि तीसरे भाग में हिन्दुस्तान के हालात के वर्णन हैं।
बाबर ने अपनी आत्मकथा में हिन्दुस्तान के राजनीतिक दशा, प्राकृतिक दृश्य, वातावरण, फसलों, फूलफल, सब्जियों तथा स्थानीय व्यापार के बारे में विस्तार से लिखा है। हांलाकि भारतवासियों के लिए ये तमाम चीजें साधारण हैं लेकिन बाबर के विदेशी होने की वजह से उसने इन तमाम चीजों को अपनी डायरी में जगह दी है। बाबर अपनी आत्मकथा में लिखता है- “हिन्दुस्तान एक विचित्र देश है, और हमारे इलाकों को देखते हुए यह एक नई दुनिया है। इसके पहाड़, दरिया, जंगल, रेगिस्तान, कस्बे, खेल, जानवर, पौधे और इसकी भाषाएं, वर्षा और हवाएं सब कुछ भिन्न है।” बाबर हिन्दुस्तान की आर्थिक स्थिति से ज्यादा आकर्षित हुआ था, वह लिखता है- “यहां की खुशगवार बात यह है कि यह एक बड़ा देश है और यहां सोने-चांदी के ढेर हैं।”
विस्मय की बात यह है कि बाबर अपनी आत्मकथा में लिखता है कि हिन्दुस्तान में बहुत कम कशिश है। यहां के लोग खूबसूरत नहीं हैं। अक्लमंदी और प्रतिभा दुलर्भ है। कला और दस्तकारी पिछड़ी हुई है। दरअसल बाबर की यह राय समाज के पिछड़े वर्ग के बारे में है। इसको पूरे हिन्दुस्तान पर लागू करना बाबर की गलती थी। क्योंकि बाबर के सारे आरोपों का खंडन अमीर खुसरो की रचनाओं से हो जाता है क्योंकि खुसरो ने हिन्दुस्तानियों की खूब प्रशंसा की है।
बाबर ने बाबरनामा में राजनीतिक स्थिति का विवरण देते समय खान देश, उड़ीसा, सिंध और कश्मीर की चर्चा बिल्कुल नहीं की है। वहीं पुर्तगालियों और उनकी बस्तियों के बारे में भी कुछ नहीं लिखा है।
3— जहांगीर: ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’
जिस प्रकार से मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने अपना आत्मचरित बाबरनामा मूल तुर्की भाषा में लिखा था तथा हुमायूं की सौतेली बहन गुलबदन बेगम ने भी अकबर के शासनकाल में उसी के निर्देशानुसार हुमायूंनामा की रचना की। ठीक इसी प्रकार से मुगल वंश के चौथे बादशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी नाम से लिखी। बता दें कि जहां तुजुक-ए-बाबरी मूल तुर्की भाषा में है वहां तुजुक-ए-जहांगीरी फारसी भाषा में है।
तुजुक-ए-जहांगीरी को जहांगीर के शासनकाल का प्रथम स्रोत माना जाता है। इस ग्रन्थ में युद्ध की परिस्थितयों, शाही फौजों की दक्षिण में हार, शाही अफसरों में फूट, उनके लगातार तबादले, मुगल दरबार में अमीरों की नियुक्तियां, पदोन्नतियां और पद से निकाले जाने का उल्लेख है।
तुजुक-ए-जहांगीरी के मुताबिक अकबर ने गुजरात विजय के उपलक्ष्य में सीकरी गांव को शुभ समझकर अपनी राजधानी बनाया और उस गांव का नाम फतहपुर रखा। जहांगीर लिखता है कि उसके पिता अकबर ने यमुना नदी के किनारे लाल पत्थरों से आगरा दुर्ग का निर्माण करवाया। वह आगे लिखता है कि आगरा शहर यमुना नदी के किनारे स्थित है, उसके समान नगर इराक, खुरासान और मावरून्नहर में ही होंगे।
जहांगीर ने आगरा दुर्ग में न्याय की जंजीर लगवाने के साथ ही मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह द्वारा आधीनता स्वीकार किए जाने का उल्लेख किया है। जबकि अबुल फजल ने यह लिखा है कि अकबर के समय में ही राणा प्रताप ने आत्मसमर्पण कर दिया था, यह असत्य वर्णन तुजुक-ए-जहांगीरी से ही स्पष्ट हो जाता है।
जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में नूरजहां से विवाह करने का भी उल्लेख किया है। उसने कश्मीर की प्राकृतिक शोभा, वर्षा, शरद ऋतुओं का खुलकर वर्णन किया है। उसने दरबार में मनाए जाने वाले जश्नों, उत्सवों, सिहांसनारोहण, नौरोज उत्सव, तुलादान की प्रथा, मनसबदारों तथा सेनापतियों द्वारा प्राप्त उल्लेखनीय सफलताओं पर मनाए जाने वाले जश्नों का भी रोचक वर्णन किया है।
तुजुक-ए-जहांगीरी में अपने शराब पीने की आदत के बारे में जहांगीर लिखता है कि “हमारा मदिरापान इतना बढ़ गया था कि प्रतिदिन बीस प्याला या इससे अधिक पीता था। हमारी ऐसी अवस्था हो गई थी कि यदि एक घड़ी भी न पीता तो हाथ कांपने लगता तथा बैठने की शक्ति नहीं रह जाती थी।” हांलाकि तुजुक-ए-जहांगीरी में जहांगीर ने निष्पक्ष होकर लिखा है लेकिन जहां उसकी व्यक्तिगत बातें आती हैं, उन पर वह पर्दा डाल देता है या ऐसा वर्णन करता है जिससे स्थिति स्पष्ट नहीं होती है। जैसे स्वयं उसका विद्रोह, शेर अफगन का वध, खुसरों के मृत्यु की परिस्थितियां आदि।
सम्भावित प्रश्न— मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मुगलकालीन प्रमुख साहित्यक स्रोतों की विशद वर्णन कीजिए?
— मध्यकालीन भारत के इतिहास की प्रमुख जीवनियों ‘फुतूहात-ए-फिरोजशाही’, तुजुक-ए-बाबरी’ और ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ के महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख कीजिए?
— बाबर और जहांगीर की जीवनियों ‘तुजुक-ए-बाबरी’ और ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ पर टिप्पणी लिखिए?
— खाफी खां की कृति मुन्तखब-उल-लुबाब से मुगलकाल के बारे में क्या जानकारी मिलती है?