मध्यकालीन भारत में इतिहास लेखन के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई। 10वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में फारस में राष्ट्रीयता के उदय के साथ अरबी के स्थान पर न केवल फारसी भाषा को इतिहासकारों ने महत्व प्रदान किया बल्कि फारसी साहित्य के साथ-साथ फारसी भाषा में इतिहास की रचना की गई।
दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद फारसी भाषा राज्यभाषा बनी। सल्तनतकाल में कुतुबउद्दीन ऐबक से लेकर सिकन्दर लोदी तक तथा मुगलकाल में बाबर से लेकर औरंगजेब तक प्रत्येक सुल्तान तथा बादशाहों के दरबार में फारसी लेखकों, कवियों, दार्शनिकों, शास्त्रज्ञों तथा इतिहासकारों का जमावड़ा रहता था जिन्हें राज्य की ओर से प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान किया जाता था।
बता दें कि मध्यकालीन भारत के प्रमुख स्रोतों की संख्या तुर्क-अफगान (दिल्ली सल्तनतकाल) शासनकाल की अपेक्षा मुगलकाल में अधिक है। यद्यपि इतिहास लेखन की परम्परा दिल्ली सल्तनतकाल में ही शुरू हो चुकी थी, जो मुगलकाल तक आते-आते अत्यधिक विकसित हो चुकी थी। सल्तनतकाल और मुगलकाल में तुर्की तथा फारसी भाषाओं में विभिन्न ग्रन्थ लिखे गए।
8वीं शताब्दी में जब से अरबों ने सिन्ध पर विजय प्राप्त की और उसे तुर्की साम्राज्य में मिला लिया, तभी से सच्चे अर्थों में मध्यकालीन इतिहास से संबंधित ऐतिहासिक साहित्य मिलना आरम्भ हो जाता है। सिंध पर चच के पुत्र दाहिर का शासन था, सिंध पर अरबों ने प्रथम आक्रमण किया था। अत: सिंध से जुड़ी घटनाओं की पहली पुस्तक का नाम फतहनामा अथवा चचनामा है। मूलत: यह पुस्तक सिन्ध आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम के किसी अज्ञात सैनिक/सेवक द्वारा अरबी भाषा में लिखी गई। बाद में चचनामा को मुहम्मद अली बिन अबु वक्र कुफी ने नसिरूद्दीन कुबाचा के समय फारसी में अनुवादित किया।
इसके बाद 892-93 ई. मे अरबी इतिहासकार बालाजूरी की प्रसिद्ध रचना फतूह-अल-वुल्दान में सिन्ध विजय का विवरण मिलता है। इसके बाद भारत में धीरे-धीरे ऐतिहासिक रचनाओं का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस युग की अनेक महत्वपूर्ण रचनाओं में शामिल अलबरूनी कृत किताबुल हिन्द है। इसमें भारतीय भूगोल, विज्ञान, गणित, इतिहास, खगोल व दर्शन शास्त्र का वर्णन है। किताबुल हिन्द महमूद गजनवी के शासनकाल को रेखांकित करने के साथ ही साथ 1019 से 1030 ई. तक भारतीय जीवन अध्ययन एवं निरीक्षण पर आधारित है।
कल्हण कृत ‘राजतरंगिणी’, मिनहाज-उस्-सिराज कृत ‘तबकात-ए-नासिरी’,जिया-उद्-दीन बरनी कृत ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’, यहिया-बिन-अहमद कृत ‘तारीख-ए- मुबारकशाही’, अबु मलिक इसामी कृत ‘फूतूह-उस-सलातीन’ सल्तनकालीन महत्वपूर्ण रचनाएं मानी गई हैं।
साहित्यिक दृष्टिकोण से मुगलकाल प्रगतिशील था। फारसी, हिन्दी, संस्कृत के अतिरिक्त उर्दू भाषा का विकास भी इसी काल में हुआ। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय साहित्य का भी उद्भव हुआ। मुगलकाल में फारसी को राजभाषा बना दिया गया। मुगल वंश के संस्थापक बाबर द्वारा रचित ‘तुजुक-ए-बाबरी’ अथवा ‘बाबरनामा’ मूलत: तुर्की भाषा में लिखा गया था, कालान्तर में इसका अनुवाद फारसी भाषा में कर दिया गया। बाबर का कविता संग्रह दीवान (तुर्की भाषा में)बहुत ही प्रसिद्ध हुआ।
मध्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों में आत्मकथाओं का भी अलग स्थान हैं, इनमें फिरोजशाह तुगलक कृत ‘फुतूहात-ए-फिरोजशाही’, बाबर कृत ‘तुजुक-ए-बाबरी’ एवं जहांगीर कृत ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ का विशेष रूप से उल्लेख किया जाता है। मध्यकालीन महत्वपूर्ण एतिहासिक पुस्तकों में गुलबदन बेगम का हुमायूंनामा, अबुलफजल कृत अकबरनामा, अब्बास खां शेरवानी कृत तारीख-ए-शेरशाही, मोतमिद खां कृत इकबालनामा-ए-जहांगीरी तथा अब्दुल हमीद लाहौरी कृत पादशाहनामा एवं औरंगजेबकालीन पुस्तक मोहम्मद काजिम कृत आलमगीरनामा प्रमुख दरबारी साहित्य हैं।
प्रशासन संबंधी तथ्यों की जानकारी का एक महत्वपूर्ण स्रोत दस्तूर-ए-अमल के अन्तर्गत आने वाली रचनाएं हैं। इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है अबुल फजल कृत आइन-ए-अकबरी जिसमें अकबर के प्रशासन संबंधी जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ में राजकीय आवास, टकसाल, सेना के गठन, मनसबदारों की श्रेणियां, फौजदार, कोतवाल इत्यादि के लिए निर्धारित योग्यताएं एवं उनके कार्य राजस्व संबंधी सुधार आदि का उल्लेख किया गया है।
प्रशासनिक विषयों पर इंशा श्रेणी के अन्तर्गत आने वाले प्रशासकीय पत्रों से भी जानकारी प्राप्त होती है। इंशा श्रेणी के तहत आने वाली महत्वपूर्ण रचनाओं में इंशा-ए-युसूफ, इंशा-ए-ब्राह्मण, खुतुत-ए- शिवाजी, इंशा-ए-अबुल फजल, दस्तूर-ए-अमल-ए-टोडरमल, जवाबित-ए-आलमगिरी आदि हैं।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन में विदेशी यात्रा वृत्तांत भी अपना अलग महत्व रखते हैं। गैर सरकारी होने के कारण इन यात्रियों के विवरण विश्वसनीय और प्रमाणिक हैं। विदेशी यात्रा वृत्तांत के अन्तर्गत यूरोपीय यात्रियों और व्यापारियों के यात्रा विवरण एवं व्यापारिक कंपनियों के दस्तावेज भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ऐसे यात्रियों में प्रमुख रूप से राल्फ फिंच, विलियम हाकिन्स, एडवर्ड टैरी, पीटरमुण्डी, फ्रांसिस्को बर्नियर, इटालियन यात्री मनूची तथा रूसी यात्री निकितीन का नाम शामिल है। इन यात्रियों ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का आंखों देखा विवरण लिखा है। ठीक इसी प्रकार से डच, पुर्तगाली, अंग्रेज और फ्रांसीसी व्यापारिक कंपनियों के दस्तावेजों से तत्कालीन अर्थव्यवस्था, वस्तुओं के मूल्य, उत्पादन, शिल्प, परिवहन के साधनों तथा व्यापार आदि के विषय में जानकारी मिलती है।
मध्ययुगीन इतिहास लेखन में राजस्थानी स्रोतों का अपना अलग महत्व है। राजस्थान का मुस्लिम शासकों के साथ गहरा संबंध रहा है। इससे इतर मध्यकालीन आधुनिक इतिहासकारों का योगदान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इन आधुनिक इतिहासकारों ने इतिहास के उपयोगितावादी दृष्टिकोण को अधिक महत्व दिया।
फारसी समसामयिक इतिहासकार
- फारसी स्रोत (सल्तनत काल)
1— मिनहाज-उस्-सिराज : ‘तबकात-ए-नासिरी
मिनहाज-उस्-सिराज ने सुल्तान नासिरूद्दीन के नाम पर अपनी रचना का नाम ‘तबकात-ए-नासिरी’ रखा था। ‘तबकात-ए-नासिरी’ की लगभग 11 प्रतिलिपियां मिलती हैं जिसमें इंडिया आफिस का पुस्तकालय, सेन्ट पीट्सबर्ग इम्पिरियल पब्लिक लाइब्रेरी तथा ब्रिटीश म्यूजियम की प्रतियां अधिक स्पष्ट हैं।
मिनहाज ने सुल्तान इल्तुतमिश, रजिया से लेकर सुल्तान नासिरूउद्दीन के राज्यकाल का वृत्तांत अपनी आंखों देखी घटनाओं के आधार पर लिखा है। काजी-उल-कुजात के सम्मानजनक पद पर आसीन होने के कारण तत्कालीन मालिकों तथा अमीरों से उसका घनिष्ठ संबंध था। उसने 1227 से 1259 ई.तक जिन दरबारियों, प्रान्तीय गर्वनरों तथा सेना के विभिन्न अधिकारियों का जो वर्णन किया है, वह किसी दूसरी रचना में उपलब्ध नहीं है। उसने अमीरों का संगठन, उनका चरित्र तथा इस वर्ग द्वारा सत्ता प्राप्ति के लिए किए जाने संघर्षों का विशद वर्णन किया है।
2— जिया-उद्-दीन बरनी : ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’
जिया-उद्-दीन बरनी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ है जिसे उसने 1357 ई. में पूरा किया। इस कृति में बलबन के सिंहासनारोहण (1265-66 ई.) से लेकर फिरोजशाह के शासनकाल के छठें वर्ष (1357 ई.) तक का वर्णन है।
तारीख-ए-फिरोजशाही में आठ सुल्तानों का वर्णन मिलता है, जिनमें बलबन, कैकुवाद, जलालुद्दीन फिरोज खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन के पुत्र कुतुबउद्दीन, गयासुद्दीन तुगलक तथा फिरोजशाह तुगलक का नाम शामिल है। इस प्रकार से सल्तनत युग को जानने का यह प्रधान स्रोत है। उसकी इस रचना में तत्कालीन समाज की सांस्कृतिक दशा के साथ-साथ अलाउद्दीन खिलजी के राजस्व विभाग, बाजार नियंत्रण नीति आदि व्यवस्थाओं का विवरण दिया गया है।
बरनी ने तारीख-ए-फिरोजशाही को फारसी भाषा में लिखा है, लेकिन उसने इसमें तत्कालीन प्रचलित हिन्दुस्तानी शब्दों का भी प्रयोग किया है जैसे- चराई, मण्डी, ढोलक, पालक, चाकर, छप्पर, चौकी इत्यादि।
3— अमीर खुसरो एवं उनके महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ
अमीर खुसरो का जन्म 1253 ई. में उत्तर प्रदेश में पटियाली नामक स्थान पर हुआ था। संभवत: खुसरो जब सात साल के थे, तभी उनके पिता का देहान्त हो गया था। ऐसे में खुसरो का पालन-पोषण उनके नाना इमादउलमुल्क ने किया था। इमादउलमुल्क के ही संरक्षण में अमीर खुसरो गणित, व्याकरण, दर्शन, तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, रहस्यवाद, इतिहास आदि विषयों में पारंगत हो चुके थे। अमीर खुसरो पहला मुसलमान था जिसने भारतीय होने का दावा किया था। वह स्वयं कहता है— मैं तुर्की भारतीय, हिन्दवी बोलता हूं।
अमीर खुसरो के ग्रन्थ में कैकुवाद, जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी तथा मुबारक खिलजी इन चारो शासकों के शासनकाल का पूरा विवरण मिलता है। अलाउद्दीन खिलजी का दरबारी कवि होने के कारण उनका शाही परिवार से घनिष्ठ संबंध था, जिससे उन्होंने तत्कालीन परिस्थितयों का विशद वर्णन किया है। अमीर खुसरो की प्रमुख ऐतिहासिक रचनाएं निम्नलिखित हैं-
किरान-उस-सैदिन
किरान-उस-सैदिन को अमीर खुसरो ने 38 वर्ष की उम्र में लिखा था, यह उसकी पहली मसनवीं थी जिसको खुसरो ने सुल्तान कैकुवाद के आदेशानुसार लिखा था। इस रचना में बुगरा खां और उसके पुत्र कैकुवाद के सरयू नदी के किनारे भेंट का वर्णन है। बुगरा खां उस समय बंगाल का गर्वनर और उसका पुत्र कैकुवाद दिल्ली का सुल्तान था।
मिफता-उल-फुतूह
अमीर खुसरो अलाई राज्य का शाही इतिहासकार था। उसने अपनी इस रचना में सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की एक वर्ष की चार विजयों का उल्लेख किया है, जिनमें कड़ा के गर्वनर मलिक छज्जू के विद्रोह एवं उसका दमन, अवध के शासक की पराजय, मंगोलों की पराजय तथा झायन की विजय शामिल है।
आशिका या आशिकिया या देवलरानी खिज्र खां
अमीर खुसरो ने अपनी इस रचना को 1316 ई. में पूर्ण किया। इसमें सुल्तान के ज्येष्ठ पुत्र खिज्र खां तथा गुजरात के राजा कर्ण की पुत्री देवल देवी के प्रेम तथा विवाह की कथा का उल्लेख है। साथ ही अल्लाउद्दीन की विजयों का भी संक्षिप्त उल्लेख कर दिया गया है। गुजरात विजय का विवरण इस पुस्तक में विस्तार के साथ दिया गया है।
नूह सिपेहर
नूह सिपेहर अमीर खुसरो की सर्वोत्तम रचना मानी जाती है। खुसरो ने इस रचना को 67 वर्ष की उम्र में लिखा था, जिसमें छन्दों की संख्या 4509 है। अमीर खुसरो पैगम्बर मोहम्मद साहब के स्तुतिगान के पश्चात इस रचना की शुरूआत निजामुद्दीन औलिया के प्रशंसा से करता है। नुह सिपेहर में मुबारक शाह खिलजी के राज्याभिषेक, देवगिरी के आक्रमण, तेलंगाना और वारंगल अभियानों का वर्णन, भारत की जलवायु, पशु-पक्षी, पेड़, पौधों, धर्म, भाषा के साथ मुबारक शाह के शिकार का वर्णन, सुल्तान के चौगान के खेल का वर्णन, मुबारक शाह के पुत्र मुहम्मद के जन्म तथा नौरोज व बसन्त ऋतु का वर्णन किया गया है।
तुगलकनामा
तुगलकनामा में अमीर खुसरो ने गयासुद्दीन तुगलक की खुसरो शाह पर विजय का वर्णन किया है, साथ ही तुगलक राज्य की कुछ अन्य घटनाओं का भी वर्णन है। खुसरो ने अपनी इस कृति की रचना 1320 ई. में की, जिसमें उसने सुल्तान कुतुबुद्दीन की हत्या, अलाई वंश का विनाश, खुसरो खां के राज्यकाल, तुगलक के विद्रोह, अमीरों से पत्र व्यवहार, देहली पर आक्रमण, गाजी मलिक यानि गयासुद्दीन तुगलक की विजय, खुसरो शाह तथा उसके भाई का बंदी बनाया जाना एवं उनकी हत्या का उल्लेख है।
खजाइन-उल-फुतूह या तारीख-ए-अलाई
खजाइन-उल-फुतूह का शाब्दिक अर्थ है विजयों का कोष।इसमें अलाउद्दीन खिलजी के प्रथम 15 वर्षों के इतिहास विशेषकर दक्षिण विजयों का विस्तृत उल्लेख है। गद्य शैली में लिखा गया अमीर खुसरो का यह एकमात्र इतिहास ग्रन्थ है। इसे तारीख-ए-अलाई भी कहा जाता है। आधुनिक इतिहासकार डॉ. के.एस. लाल के मुताबिक यह एकमात्र ग्रन्थ है जो अलाउद्दीन खिलजी के समय लिखा गया था, जो आज भी उपलब्ध है।
4— यहिया-बिन-अहमद सरहिन्दी : ‘तारीख-ए- मुबारकशाही’
यहिया बिन अहमद की तारीख-ए-मुबारकशाही अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें दिल्ली के एक विशेष राजवंश के वृत्तांत के लिए एकमात्र मौलिक स्रोत है। बता दें कि इस रचना में सैयद वंश के सुल्तानों का वर्णन किया गया है। इस प्रकार सन 1400 ई. से लेकर 1434 ई. तक के वृत्तांत के लिए यह एक प्रमाणिक स्रोत है। इस रचना का महत्व केवल इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि सैयदकाल के लिए हमारे पास यही एक मौलिक स्रोत है। इस ग्रन्थ की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसमें प्रत्येक तथ्य का कालक्रमानुसार निरूपण है। बाद के इतिहास लेखकों ने जैसे निजामउद्दीन अहमद, बदायूंनी एवं फरिश्ता ने अपने इतिहास लेखन में यहिया बिन अहमद के इसी ग्रन्थ का आश्रय लिया है।
सम्भावित प्रश्न- मध्यकालीन भारत के इतिहास के प्रमुख स्रोतों के रूप में फारसी साहित्य का वर्णन कीजिए?
मध्यकालीन भारतीय इतिहास के मुख्य स्रोतों में अमीर खुसरो द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थों के बारे में लिखिए?
मध्यकालीन इतिहास के प्रमुख ग्रन्थों तबकात-ए-नासिरी, तारीख-ए-फिरोजशाही और तारीख-ए- मुबारकशाही पर टिप्पणी लिखें?