ब्लॉग

History of 'Bhagiratha of Rajasthan' Maharaja Ganga Singh

‘राजस्थान के भगीरथ’ महाराजा गंगा सिंह को ब्रिटीश सरकार ने दी थी 19 तोपों की सलामी, जानिए क्यों?

महाराजा गंगासिंह का जीवन परिचय- बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह की कोई सन्तान नहीं थी अत: डूंगर सिंह ने अपने छोटे भाई गंगा सिंह को गोद ले लिया। डूंगर सिंह की मृत्यु के बाद गंगा सिंह 31 अगस्त 1887 को बीकानेर रियासत की गद्दी पर बैठे। लाल सिंह की तीसरी संतान गंगा सिंह का जन्म 13 अक्टूबर 1880 को बीकानेर में हुआ था। गंगा सिंह की पहली शादी 1897 में प्रतापगढ़ राज्य की वल्लभ कुंवर से तथा दूसरी शादी बीकमकोर की राजकन्या भटियानीजी से हुआ। गंगा सिंह ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा घर से तथा उच्च शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज से पूरी की। 1898 ई. में गंगा सिंह ने देवली रेजिमेंट से फौजी प्रशिक्षण प्राप्त किया था।  

गंगनहर लाकर बने ‘राजस्थान के भागीरथ’- वर्ष  1899-1900 के दौरान राजस्थान में एक भीषण अकाल पड़ा। चूंकि विक्रम संवत 1956 में यह अकाल पड़ा था इसलिए राजपूताना में इसे 'छप्पनिया काल' भी कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इस भीषण अकाल से राजस्थान में तकरीबन पौने-दो करोड़ लोग काल कवलित हुए थे। पशु-पक्षियों की तो कोई गिनती ही नहीं है। 'छप्पनिया काल' की भीषण तबाही के कारण राजस्थान में 56 की संख्या अशुभ मानी जाती है। आज भी मारवाड़ी अथवा महाजनी बही-खातों में पृष्ठ संख्या 56 को रिक्त छोड़ा जाता है।

इस भीषण अकाल से पीड़ित प्रजा को अन्न-जल के बिना मरते-तड़पते देख महाराजा गंगा सिंह ने अपनी रियासत में पानी की स्थायी व्यवस्था करने का संकल्प लिया। महाराजा गंगा सिंह ने साल 1906 ई. में पंजाब के तत्कालीन इंजीनियर आर.जी. कनेडी के साथ मिलकर सतलुज-वैली प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की। बीकानेर से पंजाब तक नहर बनवाकर सतलुज से रेगिस्तान में जलगंगा बहाने की इस प्रक्रिया में पंजाब तथा अन्य देशी रियासतों ने अपने हिस्से का जल व जमीन देने से मना कर दिया। इसके​ लिए महाराजा गंगा सिंह ने अंग्रेजों से एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती तत्पश्चात सन 1912 ई. में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर डैंजिल इबटसन की पहल पर दुबारा कैनाल योजना बनी।

दुर्भाग्यवश प्रथम विश्वयुद्द शुरू हो चुका था ऐसे में कुछ वर्षों बाद यानि 4 सितम्बर 1920 को बीकानेर, बहावलपुर व पंजाब रियासतों में ऐतिहासिक सतलुज घाटी प्रोजेक्ट समझौता हुआ। इस प्रकार 1921 में महाराजा गंगासिंह ने गंगनहर की नींव रखी और 21 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद 26 अक्टूम्बर 1927 को गंगनहर का निर्माण कार्य पूरा हुआ। बता दें कि गंगनहर की खुदाई में कामगारों ने ऊँटगाड़ी का इस्तेमाल किया गया था। गंग नहर के निर्माण में उन दिनों कुल 8 करोड़ रुपये खर्च हुए थे और 129 किमी. लंबी (हुसैनवाला से शिवपुरी तक) यह नहर उस वक्त दुनिया की सबसे लंबी नहर थी। वर्तमान में इस नहर ​के जरिए 30 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। महाराजा गंगा सिंह ने अपने अथक प्रयासों से रेगिस्तान में जल गंगा बहा दी और ‘राजस्थान के भागीरथ’ कहलाए। महाराजा गंगासिंह के प्रशंसक इन्हें ‘कलियुग का भागीरथ’ भी कहते हैं।

आधु​निक प्रणाली पर आधारित ‘न्याय व्यवस्था’ की स्थापना- महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर में आधुनिक प्रणाली पर आधारित न्याय व्यवस्था की स्थापना की। उन्होंने साल 1922 में बीकानेर में हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) की स्थापना की। इस उच्च न्यायालय में 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 2 अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई। इस प्रकार बीकानेर देश की प्रथम रियासत बनी जिसमें हाईकोर्ट की स्थापना की गई थी।

महाराजा गंगासिंह ने वर्ष 1913 में चुनी हुई जनप्रतिनिधि सभा का गठन किया तथा बीकानेर रियासत के कर्मचारियों के लिए एंडोमेंट एश्योरेंस स्कीम व जीवन बीमा योजना लागू की। यहां तक कि बीकानेर की जनता के लिए निजी बैंकों की सुविधाएं उपलब्ध करवायी। अपनी रियासत में बाल विवाह पर पांबदी लगाने के लिए महाराजा गंगा सिंह ने शारदा एक्ट को कड़ाई से लागू किया।

प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में असीम साहस और शौर्य का परिचय- वर्ष 1901 में चीन में हुए विद्रोह को दबाने के लिए महाराजा गंगा सिंह अपने ‘गंगा रिसाला’ (ऊँटों की सैनिक टुकड़ी) के साथ चीन गए थे जिससे प्रसन्न होकर ब्रिटीश सरकार ने उन्हें ‘चीन युद्ध पदक’ से नवाजा था।

मिलिट्री प्रशिक्षण प्राप्त महाराजा गंगा सिंह ने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान असीम साहस और शौर्य का परिचय दिया था। प्रथम विश्वयुद्ध में महाराजा गंगा सिंह ने 'बीकानेर कैमल कॉर्प्स' के प्रधान के रूप में फिलिस्तीन, मिस्र और फ्रांस के युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाई। पहले महायुद्ध के दौरान 'ब्रिटिश इम्पीरियल वार केबिनेट' के वह अकेले गैर-अंग्रेज सदस्य थे। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद गंगा सिंह ने ‘वर्साय की सन्धि’ में भाग लिया तथा इस शांति संधि के हस्ताक्षरकर्ता बने।

द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की सहायता देने के लिए महाराजा गंगा सिंह यूरोप गए। महाराजा गंगासिंह जी ने ‘गंगा-रिसाला’ के जरिए प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में अदम्य साहस और अपने रणकौशल का परिचय दिया था। महाराजा गंगासिंह की ‘गंगा-रिसाला’ ( ऊँटों की सैनिक टुकड़ी) आज भी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की शान है।

महाराजा गंगा सिंह को ब्रिटीश हुकूमत की तरफ से 14 से ज्यादा सैन्य-सम्मानों के अतिरिक्त ‘कैसरे हिन्द’ की उपाधि से भी नवाजा गया। 1918 में पहली बार उन्हें 19 तोपों की सलामी दी गई। इसके ठीक 2 वर्ष पश्चात महाराजा गंगा सिंह को ब्रिटीश सरकार ने स्थायी तौर पर 19 तोपों की सलामी योग्य शासक स्वीकार किया था।

करणी माता तथा लोकदेवता रामदेवजी से जुड़े धर्मार्थ कार्य-  बीकानेर से 30 किमी दक्षिण में​ स्थित देशनोक धाम में करणी माता का मंदिर है, जो बीकानेर रियासत की इष्टदेवी भी हैं। अत: बीकानेर के पूर्व शासकों की भांति महाराजा गंगा सिंह की भी मां करणी में अपार श्रद्धा थी। महाराजा गंगा सिंह प्रतिदिन करणी माता की पूजा करते थे। ऐसे में महाराजा गंगा सिंह ने देशनोक धाम में करणी माता मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया।  वर्ष 1910 में एक बार जॉर्ज पंचम में उन्हें लन्दन अपने दरबार में बुलाया और कहा कि ​यदि आप सच्चे भक्त हैं तो पिंजरे में बंद इस शेर से लड़कर दिखाओ तब हम आपकी वीरता मानेंगे। महाराजा गंगा सिंह ने करणी माता का नाम लिया और अपने एक ही प्रयास में शेर को ढेर कर दिया।

इतना ही नहीं वर्ष 1933 में महाराजा गंगा सिंह ने राजस्थान में ‘रामसा पीर’ के नाम से मशहूर लोक देवता रामदेवजी की समाधि पर एक पक्के मंदिर का निर्माण करवाया। बाबा रामदेव को द्वारिका‍धीश (श्रीकृष्ण) का अवतार माना जाता है। समाज सुधारक के रूप में रामदेवजी ने मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा व जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया। गुरू की महत्ता पर जोर देते हुए इन्होने कर्मो की शुद्धता पर बल दिया।

महाराजा गंगा सिंह की राजनीतिक सहभागिता- महाराजा गंगा सिंह के प्रयासों से 1921 ई. में नरेन्द्र मण्डल का गठन किया गया। अत: गंगा सिंह 1921 से 1925 तक नरेन्द्र मण्डल के अध्यक्ष रहे। पेरिस शान्ति सम्मेलन के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्रसंघ से पूर्व गठित एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ‘लीग ऑफ नेशंस’ (राष्ट्र संघ) का गठन हुआ था। इस प्रकार 1924 में 'लीग ऑफ नेशंस' के पांचवें अधिवेशन में महाराजा गंगा सिंह ने हिस्सा लिया था।

 महाराजा गंगासिंह ने 1927 ई. में बटलर समिति के समक्ष यह मांग रखी कि उनके संबंध भारत सरकार के साथ नहीं बल्कि इंग्लैण्ड के राजतंत्र के साथ माना जाए। महाराजा गंगा सिंह ही एकमात्र राजस्थानी थे जिन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया था। लंदन से भारत लौटते समय उन्होंने रोम में एक नोट लिखा जो ‘रोम नोट’ के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजा गंगा सिंह ने 15 मई, 1917 को ऑस्टिन चेम्बरलेन को ‘रोम नोट’ अग्रेषित किया जिसमें चेम्बरलेन से आग्रह किया गया था कि उन्हें उदार तथा सहानुभूतिपूर्ण ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि भारतीय जनता ब्रिटिश साम्राज्य से बंध सके।

महाराजा गंगा सिंह द्वारा किए गए अन्य महत्वपूर्ण विकास कार्य- महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर रियासत के परकोटे के बाहर श्रीगंगानगर नामक एक शहर की स्थापना की। ऐसा कहा जाता है कि सुनियोजित शहर श्रीगंगानगर पेरिस की नगर योजना से प्रभावित है। वर्तमान में इस शहर को "राजस्थान की खाद्य टोकरी" के रूप में भी जाना जाता है। ​महाराजा गंगा सिंह ने अपने पिता लाल सिंह की स्मृति में बीकानेर में लालगढ़ पैलेस बनवाया। इसके अतिरिक्त बीकानेर-जोधपुर रेलवे परियोजना व बिजली लाने की दिशा में भी उन्होंने महत्वपूर्ण सक्रियता दिखाई।

भारत की महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थाओं के विकास में भी महाराजा गंगा सिंह ने महती भूमिका निभाई। बतौर उदाहरण-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संरक्षक के अतिरिक्त मेयो कॉलेज, अजमेर की जनरल काउंसिल, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, लंदन की इंडियन सोसाइटी जैसी संस्थाओं के सदस्य होने के अलावा वह इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के पहले सदस्य थे।

गौरतलब है कि कैंसर की बीमारी से ग्रसित होने के कारण 62 साल की उम्र में महाराजा गंगा का निधन 2 फरवरी 1943 ई. को बंबई में हुआ। इसके बाद महाराजा गंगा सिंह के पुत्र सार्दुल सिंह बीकानेर रियासत के शासक बने।

इसे भी पढ़ें : जागीरदारों को 74 प्रकार के ‘कर’ देते थे राजपूताना के किसान, जानकर उड़ जाएंगे होश

इसे भी पढ़ें : क्या छत्रपति शिवाजी से आकर्षित थी औरंगजेब की बेटी जुबैन्निसा?

इसे भी पढ़ें : 100 भाईयों को मारकर सम्राट बना था यह शख्स, सिर्फ एक घटना ने बना दिया महान

इसे भी पढ़ें : दिवेर का युद्ध : 36 हजार मुगल सैनिकों का आत्मसमर्पण और महाराणा प्रताप का मेवाड़ पर अधिकार