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Farmers of rajasthan used to pay 74 types of taxes to the Jagirdars

जागीरदारों को 74 प्रकार के ‘कर’ देते थे राजपूताना के किसान, जानकर उड़ जाएंगे होश

19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राजपूताना (राजस्थान) के जागीरदारों अथवा ठिकानेदारों के रहन-सहन में भारी परिवर्तन देखने को मिला। अब युद्धों का खतरा समाप्त हो चुका था, राजाओं के राज्य और उनके जागीरदारों अथवा ठिकानेदारों की जागीरें सुरक्षित हो चुकी थीं। ऐसे में राजा और सामन्त विलासी हो गए। कुछ जागीरदारों की नयी पीढ़ियां मेयो कॉलेज में पढ़ी हुई थीं, जो पश्चिमी जीवन शैली से काफी प्रभावित थीं। बतौर उदाहरण- पाश्चात्य वेशभूषा, खानपान के अतिरिक्त रियासत में ब्रिटीश अधिकारियों के आगमन पर उनके लिए अंग्रेजी शराब आदि की व्यवस्था जैसी घटनाओं का सामूहिक प्रभाव उनके रहन-सहन पर पड़ा।

ठिकानेदारों की नई पीढ़ी में जितनी तेजी से विलासिता बढ़ रही थी, उसके मुकाबले विलासिता की वस्तुएं स्थानीय स्तर पर मौजूद नहीं थीं। अब जागीरदारों तथा ठिकानेदारों ने राज्य की राजधानियों में अपनी नई हवेलियां बनवानी शुरू कर दी। यहां तक कि अपने ठिकानों तथा महलों को पश्चिमी शैली के फर्नीचर व अन्य सामग्रियों से सजवाना आरम्भ कर दिया।

यह सौ फीसदी सच है कि पाश्चात्य सभ्यता पर आधारित जीवन पद्धति के लिए धन की जरूरत थी। इसलिए 19वीं शताब्दी के अंत में तथा 20वीं शताब्दी के आरम्भ में जागीरदारों अथवा ठिकानदारों ने राजपूताना के किसानों पर नए कर लगाए। ये सभी लागतें (कर) नए खर्चों के लिए धन जुटाने के लिए थीं।

चूंकि 20वीं सदी के प्रारम्भ तक राजपूताना के अधिकांश जागीरदार ऋणी हो रहे थे, इसलिए वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसानों का शोषण करने लगे। किसानों के बढ़ते शोषण का एक कारण यह भी था कि जनसंख्या में बढ़ोतरी के चलते किसान अब कृषि भूमि प्राप्त करने में लगे हुए थे। अत: जो जागीरदार पहले किसानों के अन्यत्र चले जाने पर चिन्तित हो जाते थे, अब उन्हें कृ​षि श्रमिक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने लगे। जहां पुराने किसान अपनी पारम्परिक खेती करने पर आमादा थे, वहीं नए श्रमिक कम कीमत पर काम करके अपने परिवार का पेट भरने के लिए तैयार थे। उपर्युक्त परिस्थितियों ने जागीरदारों को नई लागतें (कर) लगाने के लिए प्रोत्साहित किया।

राजपूताना ​के किसी भी ठिकाने में लागतें (कर) लगानें का कोई नियम नहीं था। जागीरदार अथवा ठिकानेदार जब चाहे अपने असामियों पर नई करें लगा सकता था, जैसे- जयपुर राज्य में शेखावटी के ठाकुर ने जब नई मोटर-कार खरीदी तब उसका खर्च अपने असामियों से वसूलने के लिए मोटर-लाग नामक नया कर लगा दिया, जबकि शेखावटी के आसामी 30 प्रकार के कर पहले से ही दे रहे थे। साल 1922 ई. में बिजौलिया के किसानों ने राजपूताना के एजेंट टू गर्वनर जनरल को 74 प्रकार के लाग-बाग की सूची प्रस्तुत की, जो वहां के स्थानीय किसानों से वसूल की जा रही थी। जानकारी के लिए बता दें कि भू-राजस्व के अतिरिक्त कृषकों से जो अतिरिक्त कर वसूल किए जाते थे, उन्हें लाग-बाग कहा जाता था।

राजपूताना के किसानों से वसूले जाने वाले कर (लाग-बाग)

कबूतरों का धान- जागीरदारों द्वारा असामियों से कबूतरों को दाना डालने के लिए पांच से दस सेर धान कर के ​रूप में लिया जाता था। घोड़ा लाग- कुंवरजी के बड़े होने पर घुड़सवारी के लिए घोड़ा खरीदने पर प्रत्येक घर से कर के रूप में एक रुपया वसूला जाता था। कुम्हार लाग- ठिकानेदारों के यहां कुम्हार बेगारी में पानी भरता था, इसके लिए प्रत्येक काश्तकार को पांच से दस सेर धान कुम्हार को प्रतिवर्ष देना पड़ता था। कोटड़ी खर्च लाग - ठिकाने की कोटड़ी खर्च के लिए प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष छह रुपए देने पड़ते थे। खर-गढ़ी लाग - ठिकाने के सार्वजनिक निर्माण अथवा दुर्गों के भीतर निर्माण कार्यों के लिए बेगार में गांवों से गधों को मंगवाया जाता था। बाद में गधों के बदले खर-गढ़ी लाग वसूला जाने लगा। ऊड़ी लाग- ऊड़ी लाग के अन्तर्गत जागीरदार अपने काश्तकारों से एक मन (चालीस किलो) पर दस सेर (तकरीबन बारह किलो) अनाज लेकर इसे खेती-बारी के बीज के रूप में रखते थे। जबकि काश्तकार अपनी खेती के लिए बीज का अनाज ​बनियों से खरीदता था। अंग लाग- प्रत्येक किसान के परिवार का जो भी सदस्य पांच वर्ष से ज्यादा आयु का होता था, उस परिवार से प्रति सदस्य एक रुपया कर के रूप में लिया जाता था। राली लाग- काश्तकार प्रतिवर्ष अपने जागीरदार को अपने कपड़ों से गद्दा या राली बनाकर देता था, यह राली जागीरदार या उसके कर्मचारियों के काम आती थी। माहेरा लाग- किसान के पुत्र/पुत्री के विवाह के अवसर पर उसके ननिहाल के लोग माहेरा लाते थे। जागीरदार उनके माहेरे पर माहेरा लाग के रूप में एक रुपए लेता था। मालया मिलणो- जागीरदारों द्वारा किसानों तथा व्यापारियों से ली जाने वाली भेंट मालया मिलणो कहलाती थी। जावा का दूध- नवरात्रि में देवी की पूजा के लिए प्रत्येक परिवार से लिया जाने वाला दूध। राखी को घी- रक्षाबन्धन के अवसर प्रत्येक परिवार से लिया जाने वाला घी। खरच भोग- भूराजस्व की वूसली के दौरान होने वाले खर्च की पूर्ति के लिए लिया जाने वाला कर खरच भोग कहलाता था। खीचड़ी- जागीरदार द्वारा प्रत्येक गांव में उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार ली जाने वाली लाग खीचड़ी कहलाती थी। चूड़ा लाग- जब भी ठकुराइन नया चूड़ा पहनती थी तब काश्तकारों को उसका मूल्य चुकाना पड़ता था। नजराना- यह कर प्रति वर्ष किसानों से जागीरदार वसूलते थे, इसके बाद जागीरदार राजा को नजराना देता था। दूध लाग- ठिकाने के लिए ग्रामीणों से प्रतिदिन प्रति व्यक्ति एक सेर दूध बारी-बारी से प्रत्येक घर से मंगवाया जाता था। दस्तूर- भूराजस्व कर्मचारी जो भी अवैध रकम किसानों से वसूल करते थे, उसे दस्तूर कहा जाता था। तोल लाग- यह कर जागीरदार द्वारा हासिल वसूल कर लेने के बाद अधिभार के रूप में दो से दस सेर अनाज लिया जाता था। जट लाग- रायकों व रेबारियों के द्वारा ऊँट के बाल एवं जाजम बनाने के लिए दिए जाते थे।

गंगाजी की लाग- जागीरदार के स्वर्गवासी हो जाने पर उसकी भस्मी को गंगाजी में डालने पर वर्तमान जागीरदार द्वारा प्रति काश्तकार एक से दो रुपया लिया जाता था। घासमारी- राज्य की परती भूमि पर पशुओं को चराने के लिए दिया जाने वाला कर। चंवरी लाग- किसान के पुत्र या पुत्री के विवाह पर एक से पच्चीस रुपए तक चंवरी लाग के नाम पर लिए जाते थे। चीला लाग- जागीरदार अपने ठिकाने की सीमा में से निकलने वाली प्रत्येक गाड़ी से छह पाई लाग लेता था। गांव खरच लाग- गांव के विकास के नाम पर लिया जाने वाला कर जो जागीरदार या उनके कामदारों के पास जमा होता था। गर्ज लाग- यदि जागीरदार अपने पट्टे के गांव में जाता था तब गांववाले रुपए एकत्र करके जागीरदार को भेंट में देते थे। कूंता और लाटा- कूंता के तहत खड़ी फसल का अनुमान लगाकर लगान ​​निश्चित किया जाता था, जबकि फसल कटने के बाद ठिकाने का हिस्सा तौलकर ले लिया जाता था, उसे लाटा कहा जाता था। हल लाग- खेत में वर्ष में पहली बार हल जोतने पर किसानों द्वारा दिया जाने वाला कर ही हल लाग कहलाता था। खेड़ खर्च- यह कर मारवाड़ राज्य में सेना के खर्च के नाम पर वसूला जाता था। कांसा लाग- किसानों के घर शादी या फिर कोई अन्य समारोह होने पर भेंटस्वरूप 10 से 15 पत्तल भोजन व कुछ धनराशि जागीरदारों के ठिकाने पर कर के रूप में भेजनी पड़ती थी। खरड़ा- श्रमजीवी जातियों से वसूला जाने वाला कर खरड़ा कहलाता था। उत्तराधिकार शुल्क- इसको कई नामों से पुकारा जाता था जैसे- हुक्मराना, पेशकशी, तलवार बंधाई, नजराना आदि। खिचड़ी लाग- राज्य की सेना द्वारा किसी गांव के पास पड़ाव डालने पर उसके भोजन के लिए गांव के लोगों से जो कर वसूल किया जाता है, उसे खिचड़ी लाग कहते थे। राम-राम लाग- इसे मुजरा लाग भी कहा जाता था। कमठा लाग- गढ़ी की मरम्मत व निर्माण के लिए दो रुपए प्रति घर से वसूले जाते थे। हाथी के फूले- हाथी के खाने की घास के लिए लिया जाने वाला कर। बकरा लाग- जागीरदार प्रत्येक काश्तकार से एक बकरा स्वयं के खाने के लिए लेता था। कुछ जागीरदार बकरे के बदले प्रति परिवार से दो रुपया वार्षिक लेते थे। पंडित की पाग- एक प्रकार का कर जो शिक्षा के नाम पर जागीरदारों के द्वारा वसूला जाता था। न्योता लाग- यह लाग जागीरदार अपने लड़के-लड़की की शादी के अवसर पर किसानों से वसूलते थे। पान चराई- राज्य की भूमि पर किसानों के पशुओं को पत्ते चरने देने के लिए लिया जाने वाला कर पान चराई कहलाता था। पोस्टकार्ड लाग- ठिकाने के डाक खर्च के लिए दो से छह रुपया तक वसूले जाने वाला कर। आबियाना- पानी पर लगाए जाने वाले कर को आबियाना कहते थे। काठ- राज्य के जंगलों से लकड़ियां प्राप्त करने पर राजकीय कर देना पड़ता था। ईच- सब्जी बेचने वाली मालिनियों से वसूला जाने वाला कर ईच कहा जाता था। जाबा माल- ठिकाने की ओर से पशुओं पर लगाया जाता था। हीद भराई- मारवाड़ में मालियों से वसूल किया जाने वाला कर। जकात- बीकानेर में आयात-निर्यात तथा चूंगी कर, जोधपुर व जयपुर में सामर के नाम से वसूला जाता था। नाता कर- राजस्थान में विधवा पुनर्विवाह के दौरान एक रुपए की दर से वसूला जाने वाला कर। पावणा पावरा- जागीरदारों द्वारा अपने मेहमानों पर होने वाले खर्चे को ग्रामीणों से वसूल किया जाता था उसे पावणा पावरा लाग कहते थे।

अखराई- राज्यकोष में जमा होने वाली राशि पर दी जाने वाली रसीद पर एक रुपए पर एक पैसा लिया जाने वाला कर अखराई कहलाता था। मापा या बारूता कर- मेवाड़ में एक गांव से दूसरे गांव में माल लाने या ले जाने पर यह कर वसूला जाता था। गनीम बराड़- मेवाड़ में वसूला जाने वाला युद्ध कर। दाण- मेवाड़ व जैसलमेर राज्यों में माल के आयात-निर्यात पर लगाया जाने वाला कर। अंगा कर- मारवाड़ में महाराजा जयसिंह के समय प्रति व्यक्ति एक रुपए वसूला जाने वाला कर। रूखवाली भाद्द- बीकानेर में बागी ठाकुरों की लूट-खसोट से देश को बचाने ​के लिए रूखवाली भाद्द कर वसूल किया जाता था। फाड्या लाग- जागीरदार द्वारा हासिल का हिस्सा लेने हेतु लाए कपड़ों के लिए एक से डेढ़ मन धान लाग के रूप में लिया जाता था। फलावट लाग- यह लाग हासिल को आंकने के लिए ली जाती थी। एक मन (40 किलो) पर पांच सेर (तकरीबन 6 किलो) अनाज फलावट लाग के रूप में वसूला जाता था। धुवों या झूंपी लाग- यह प्रकार का गृह कर था जो प्रत्येक घर से एक से पांच रुपया वार्षिक वसूला जाता था।

गौरतलब है कि उपरोक्त प्रकार के करों से त्रस्त होकर पूरे राजपूताना (राजस्थान) में किसान आन्दोलनों का उदय हुआ। इनमें बिजौलिया किसान आन्दोलन, बेंगू किसान आन्दोलन, बूंदी किसान आन्दोलन, अलवर का किसान आन्दोलन, बीकानेर किसान आन्दोलन व सीकर आन्दोलन प्रमुख हैं।

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