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mysterious story of 'Isarlat' located in Tripolia market of Jaipur

जयपुर के त्रिपोलिया बाजार स्थित ‘ईसरलाट’ की रहस्यमयी गाथा पढ़कर दंग रह जाएंगे आप

जयपुर शहर के त्रिपोलिया बाजार में दिखने वाली बेहद शानदार सात मंजिला अष्टकोणीय मीनार वास्तव में त्रिपोलिया बाजार में न हो कर, इसके पीछे स्थित 'आतिशबाज़ार' की दुकानों के ऊपर बनी है। जयपुर के इतिहास में यह मीनार 'ईसरलाट' के नाम से विख्यात है। यह खूबसूरत मीनार स्थानीय लोगों में सरगासूली के नाम से भी जानी जाती है। दरअसल ‘स्वर्ग को स्पर्श हुई मीनार’ के प्रतीक स्वरूप इसे सरगासूली अथवा स्वर्गसूली कहा जाता है। आपको बता दें कि सात खंडों वाली अष्टकोणीय मीनार का निर्माण जयपुर के महाराजा ईश्वरी सिंह ने वर्ष 1747 ई. में करवाया था।

जानकारी के लिए बता दें कि देबारी समझौते के फलस्वरूप आमेर में गृह क्लेश उत्पन्न हुए ऐसे में 1743 में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात उनका बड़ा पुत्र ईश्वरी सिंह आमेर का शासक बना। जबकि देबारी समझौते के अनुसार, ईश्वरी सिंह के छोटे भाई माधोसिंह को आमेर का शासक बनना था। लिहाजा माधोसिंह ने ईश्वरी सिंह के खिलाफ विद्रोह कर दिया। ईश्वरी सिंह और उनके सौतेले भाई माधोसिंह के बीच करीब छह वर्ष तक सत्ता संघर्ष चला। इस बीच इन दोनों भाईयों तथा विभिन्न राजपूताना शक्तियों के बीच दो युद्ध हुए। 1747 ई. में राजमहल अथवा टोंक का युद्ध तथा 1748 ई. में बगरू का युद्ध संपन्न हुआ। इन युद्धों में मेवाड़, कोटा, बूंदी व जाटों के साथ-साथ मराठों ने भी शिरकत की, दरअसल इन सभी शक्तियों के अपने निजी स्वार्थ निहित थे।

राजमहल (टोंक) का युद्ध- 1747 ई.

इतिहास गवाह है, तारीख एक मार्च वर्ष 1747 ई.में टोंक जिले की देवली तहसील के पास बनास नदी के किनारे राजमहल नामक स्थान पर ईश्वरी सिंह और उसके सेनापति हरगोविन्द नाटाणी तथा माधोसिंह व मेवाड़, कोटा, बूंदी व मराठों की संयुक्त सेना के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में ईश्वरी सिंह को विजयश्री मिली। ईश्वरी सिंह ने इसी विजय के उपलक्ष्य में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में सात मंजिलों वाली एक अष्टकोणीय विजय मीनार का निर्माण करवाया जिसे ईसरलाट  (सरगासूली) के नाम से जाना जाता है।

बगरू का युद्ध- 1748 ई.

राजमहल के युद्ध में मिली हार से बौखलाए माधोसिंह ने मराठा शासक मल्हार राव होल्कर, बूंदी के अपदस्थ राजा उम्मेद सिंह तथा कोटा नरेश दुर्जनशाल की संयुक्त सेनाओं ने जयपुर पर आक्रमण कर दिया। ईश्वरी सिंह के साथ भरतपुर के जाट राजा सूरजमल की सेना थी। दोनों सेनाओं के मध्य एक अगस्त 1748 ई. को जयपुर के पास बगरू नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में माधोसिंह की विजय हुई। मल्हार राव होल्कर ने 20 लाख की धनराशि निर्धारित कर ईश्वरी सिंह को जयपुर का शासक बना दिया और माधोसिंह को राजमहल की जागीर दे दी गई।

मानपुर का युद्ध- 1748 ई.

ईश्वरी सिंह ने अलवर के पास मानपुर नामक स्थान पर अहमदशाह अब्दाली की सेना को परा​जित किया। चूंकि ईश्वरी सिंह मराठा शासक मल्हार राव होल्कर की तय धनराशि नहीं दे सका था, ऐसे में 1750 ई. में मराठों की एक विशाल सेना लेकर मल्हार राव होल्कर ने जयपुर पर आक्रमण कर दिया। मराठों से भयभीत होकर 32 साल की उम्र में ईश्वरी सिंह ने अपनी​ ​तीन रानियों के साथ अपने द्वारा बनवाए विजय मीनार से कूदकर आत्महत्या कर ली। ईश्वरी सिंह कछवाहा राजपूतों में एक मात्र शासक था जिसने मराठों के दबाव में आत्महत्या की।

ईसरलाट ( सरगासूली ) से जुड़ी अन्य रोचक बातें-

पिंकसिटी के नाम से विख्यात जयपुर शहर के त्रिपोलिया बाजार में मौजूद पीले रंग की ईसरलाट (विजय मीनार) बरबस ही सभी लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। ईसरलाट के नाम से विख्यात यह विजय मीनार राजपूत और मुगल वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना है। ऐसा कहा जाता है कि सात खण्डों वाली इस अष्टकोणीय ईसरलाट की डिजाइन स्थानीय वास्तुकार गणेश खोवाल द्वारा बनाई गई है। ईसरलाट के शीर्ष मंजिल पर एक खुला मंडपनुमा बालकनी निर्मित है, जहां से आमेर सहित पूरे जयपुर का विहंगम दृश्य बहुत ही सरलता से नजर आता है। ऐसी भी मान्यता है कि ईसरलाट के जरिए जयपुर शहर की निगरानी भी की जाती थी।

स्थानीय लोगों के बीच ईसरलाट के निर्माण से जुड़ी एक कहानी यह भी है कि ईश्वरी सिंह ने स्थानीय लड़कियों तथा अपने सेनापति हरगोविन्द नटाणी की बेटी को निहारने के लिए ईसरलाट का निर्माण करवाया था। बूंदी के राजकवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने पिंगल भाषा में रचित अपने काव्य ग्रंथ ‘वंश भास्कर’ में  लिखा है कि "राजा ईश्वरीसिंह ने सरगासूली का निर्माण अपने सेनापति हरगोविंद नाटाणी की बहुत सुन्दर बेटी को ‘देखने’ के लिए कराया है।" इस संबंध में कहा जाता है कि जयपुर से पराजित होने वाले राज्यों में बूंदी भी था, इसलिए जयपुर की बूंदी पर जीत से दुखी होकर सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपनी कविता में यह बात लिख दी है। हांलाकि जयपुर इतिहास में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ‘ईश्वरी सिंह अपने सेनापति हरगोविंद नटाणी की बेहद सुन्दर पुत्री पर अनुरक्त था। ऐसे में वह महान राजा नहीं था।’

राजमहल की लड़ाई में ईश्वरी सिंह के सेनापति हरगोविन्द नाटाणी ने अपनी व्यूह रचना से मराठों, कोटा तथा उदयपुर की संयुक्त सेना को पराजित कर दिया था। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हरगोविन्द नाटाणी एक बनिया होते हुए भी बहुत ही साहसी इंसान था। दरअसल हरगोविन्द नाटाणी अपनी इसी योग्यता के कारण जयपुर साम्राज्य के मुसाहिबी के पद पर पहुंचना चाहता था जबकि उस समय जयसिंह के सबसे विश्वासपात्र प्रधानमंत्री राजामल खत्री का पुत्र केशवदास खत्री मुसाहिब के पद पर विराजमान था, जो खुद भी बहुत ही काबिल व्यक्ति था।

ऐसे में हरगोविन्द नाटाणी महाराजा ईश्वरी सिंह और केशवदाव में मनमुटाव कराने में सफल हुआ। आखिरकार ईश्वरी सिंह के दबाव में आकर केशवदास ने जहर खा लिया। कहा जाता है कि केशवदास की मृत्यु के साथ ही ईश्वरी सिंह और जयपुर के बुरे दिन शुरू हो गए।

दूसरी तरफ माधो सिंह ने अपने मामा उदयपुर के महाराणा की सहायता से मल्हार राव होल्कर की मराठा सेना को जयपुर पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित कर लिया। इस दौरान जयपुर साम्राज्य के काबिल मुसाहिब केशवदास की हत्या करवाने वाला हरगोविन्द नाटाणी भी ईश्वरी सिंहा का नहीं रहा। 

1750 ई. में जब मल्हार राव होल्कर की मराठा सेना जयपुर पर आक्रमण करने के लिए तैयार थी, तब ईश्वरी सिंह ने हरगोविन्द नाटाणी से सेना एकत्र करने को कहा तब हरगोविन्द सिर्फ यही कहता रहा कि ‘एक लाख कछवाहे तो मेरी जेब में हैं।‘ जब मराठे जयपुर शहर के परकोटे तक पहुंच गए तो हरगोविन्द ने निडरतापूर्वक जवाब दिया- ‘हुजूर मेरी जेब तो फट गई!’ अब सवाई जयसिंह के बड़े बेटे ईश्वरी सिंह ने मराठों से खुद को जलील होने से बचने के लिए आत्महत्या कर लिया।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि ईश्वरी सिंह ने अपनी जीत और गौरव के प्रतीकस्वरूप जिस ईसरलाट का निर्माण करवाया था, उसका अंत बहुत ही दुखदाई रहा। ईश्वरी सिंह द्वारा ईसरलाट से कूदकर आत्महत्या के अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में ईश्वरी सिंह ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था और उन्होंने मराठों की बढ़ती आक्रामक सेना को रोकने के बजाय अपने नौकरों से जहर लाने का आदेश दिया, जिसे खाने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।

ऐसा भी कहा जाता है कि ईश्वरी सिंह ने कोबरा सांप मंगवाए थे, जिनके डसने से उनकी मौत हो गई। खैर जो भी हो, ईश्वरी सिंह की मृत्यु के पश्चात माधोसिंह जयपुर के शासक बने और उन्होंने 1768 ई. तक यानि अपनी मृत्यु तक तकरीबन 16 वर्षों तक शासन किया।